वार्ता:चन्द्रगुप्त मौर्य

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अखंड भारत का निर्माता गडरिया सम्राट चंद्रगुप्त मोरिया

अखंड भारत के निर्माता सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का सत्य इतिहास पर चर्चा[संपादित करें]

1. विशाखादत के अनुसार उसने विष्णु पुराण से मूरा नाम लिया , परंतु मूरा नाम जैसा कुछ भी नहीं है, विष्णु पुराण में!

2. चंद्रगुप्त को चंद्रवंशी कहना निराधार है, क्योंकि शाक्य सूर्यवंशी क्षत्रिय थे न की चंद्रवंशी, तो उनकी शाखा चंद्रवंशी कैसे हो सकती है।

3. चाणक्य के अर्थशास्त्र के अनुसार राजा उच्चकुल उत्पन्न होना चाहिए, शुद्र नंदो का नाश कर चाणक्य ने क्षत्रिय राजवंश की स्थापना करवाई,

ये वेबसाइट अफ़वाह का अड्डा है , जहां केवल निराधार तथ्य ही हैं, नंद शुद्रो को क्षत्रिय लिखा है, इस वेबसाइट में और मोरिया सम्राट चंद्रगुप्त को शुद्र,

मुझे रिफ्रेंस जोड़ने नहीं आते , इसलिए मैंने जितनी बार सत्य इतिहास को एडिट किया उसे हटा दिया गया, इसलिए क्योंकि इस वेबसाइट से भ्रमवादी लोगों को ज्यादा मदद मिलती है, सत्य और साक्ष्य के लिए जगह नहीं है। मो० 8840665414 Amansinghmurao (वार्ता) 14:42, 7 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

आप अपना मोबाइल नम्बर यहाँ लिखकर प्रचार कर रहे हो। आपके लिखे वाक्यों के विश्वसनीय स्रोत दीजिये, उन्हें अद्यतन कर दिया जायेगा। बिना विश्वसनीय स्रोतों के जानकारी को यहाँ नहीं रखा जा सकता। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 14:46, 7 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

संजीव जी मैने इसी लिए , मोबाइल नंबर दिया क्योंकि मेरे पास जो श्रोत है वो बुक पीडीएफ में है, मोबाइल में, और मुझे श्रोत जोड़ना नहीं आता इसलिए दिया की मैं उसे व्हाट्सएप पर बुक के नाम और श्रोत दिखा सकूं , ताकि वो खुद उसे, एनालाइज कर उसे जोड़े।

उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद बौद्ध ग्रंथ

"तेन तस्स नगरस्स सामिनो साकिया च तेस पुत्त - पुत्ता सकल जम्बूद्वीपे मोरिया नाम ति पाकटा जाता । "

- उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद

उस नगर के समीप शाक्य के पुत्र-पौत्र सकल जंबूद्वीप में मौर्य नाम से प्रसिद्ध हुए। Amansinghmurao (वार्ता) 09:17, 12 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

पुराण :-----

"ततश्र नव चैतान्नन्दान कौटिल्यो ब्राह्मणस्समुद्धरिस्यति ॥२६॥ तेषामभावे मौर्याः पृथ्वीं भोक्ष्यन्ति ॥२७॥ कौटिल्य एवं चन्द्रगुप्तमुत्पन्नं राज्येऽभिक्ष्यति ॥२८॥ (विष्णु-पुराण)

तदन्तर इन नव नन्दो को कौटिल्य नामक एक ब्राह्मण मरवा देगा। उसके अन्त होने के बाद मौर्य नृप राजा पृथ्वी पर राज्य भोगेंगे। कौटिल्य ही मुरिय(मौर्य) से उत्पन्न चन्द्रगुप्त को राज्या-अभिषिक्त करेगा।

चन्द्रगुप्तं नृपं राज्ये कौटिल्यः स्थापयिष्यति | चतुविंशत्समा राजा चन्द्रगुप्तो भविष्यति ||३३१|| भविता भद्रसारस्तु पञ्चविंशत्समा नृपः | षड्विंशत्तु समा राजा अशोको भविता नृषु ||३३२|| तस्य पुत्रः कुनालस्तु वर्षाण्यष्टौ भविष्यति | कुनालसूनुरष्टौ च भोक्ता वै बन्धुपालितः ||३३३|| बन्धुपालितदायादो दशमानीन्द्रपालित: | भविता सप्त वर्षाणि देववर्मा नराधिपः ||३३४|| राजा शतधरश्वाष्टौ तस्य पुत्रौ भविष्यति | बृहद्रथश्व वर्षाणि सप्त वै भविता नृपः ||३३५|| इत्येते नव भूपा ये भोक्ष्यन्ति च वसुन्धराम् | सप्तत्रिंशच्छतं पूर्ण तेभ्य: शुङ्गान्गमिष्यति ||३३६|| पुष्पमित्रस्तु सेनानीरूध्दृत्य वै बृहद्रथम् | कारयिष्यति वै राज्यं समाः षष्टि सदैव तु ||३३७|| (वायु पुराण)

कौटिल्य ही चंद्रगुप्त को राजा के रूप में राज्य में स्थापित करेगा, वह चौबीस वर्षों तक राज करेगा ||३३१|| उसके बाद भद्रसार(बिंदुसार) पच्चीस वर्ष तक राजा होगा, फिर अशोक नाम का राजा मनुष्यों में छब्बीस वर्षों तक राज करेगा ||३३२|| उसका पुत्र कुणाल आठ वर्षों तक राज करेगा, इंद्रपालित कुणाल का पुत्र बन्धुपालित आठ वर्षों तक राज्य पद पर समासीन होगा ||३३३|| बन्धुपालित का उतराधिकारी दस वर्षो के लिए राजा होगा, फिर नराधिपति देववर्मा सात वर्षों के लिए राजा होगा ||३३४|| तंदुपरांत उसका पुत्र राजा शतधर आठ वर्ष राज करेगा, पश्चात राजा बृहदश्व सात वर्ष तक राज करेगा ||३३५|| ये नव राजा पृथ्वी का भोग करेंगे, उन सबका राजत्व काल कुल मिलाकर १३७ वर्षों का होगा ||३३६|| दशवे राजा बृहद्रथ को मार सेनानी पुष्पमित्र सत्तारुड हो जायेगा, वह सात वर्षों तक राज करेगा ||३३७||

उद्धरिष्यति कौटिल्यः समैर्द्वादशभिः सुतान् | भुक्त्वा महीं वर्षशतं ततो मौर्य्यान् गमिष्यति ||२१|| भविता शतधन्वा च तस्य पुत्रस्तु षट्समाः | बृहद्रथस्तु वर्षाणि तस्य पुत्रश्च सप्ततिः ||२२|| षट्त्रिंशत्तु समाराजा भविता शक एव च | सप्तानां दशवर्षाणि तस्य नप्ता भविष्यति ||२३|| राजा दशरथोऽष्टौ तु तस्य पुत्रो भविष्यति | भविता नववर्षाणि तस्य पुत्रश्च सप्ततिः ||२४|| इत्येते दशमौर्य्यास्तु ये भोक्ष्यन्ति वसुन्धराम् | सप्तत्रिंशच्छतं पूर्णं तेभ्यः शुङ्गन् गमिष्यति ||२५|| (२७२ अध्याय, मत्स्यपुराण)

नवनंदों के १०० वर्ष राज्य कर लेने के पर उनको नष्ट करके चाणक्य नामक ब्राह्मण मौर्य राज की स्थापना करेगा। जिस वंश में शतधन्वा बृहद्रथ आदि आदि १० राजा १३७ वर्षों तक राज करेंगे। जिसके अंतरत शुंग वंश का राज होगा।

एतस्मित्रेव काले तु कलिना संस्मृतो हरिः। काश्यपादुद्भवो देवो गौतमो नाम विश्रुतः।। बौद्धधर्मं च संस्कृत्य पट्टणे प्राप्तवान्हरिः। दशवर्ष कृतं राज्य तस्माच्छाक्यमुनिः स्मृतः।। (भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व, प्रथम खंड, षष्ठम अध्याय, श्लोक ३६,३७)

उसी समय कलि ने प्रार्थना करके भगवान को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर हरि ने काश्यप द्वारा गौतम के नाम से जन्म ग्रहण किया ऐसा कहा गया है। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर पाटलिपुत्र जाकर दशवर्ष तक राज्य किया, पश्चात उनके शाक्य मुनि हुए।

चन्द्रगुप्तस्तस्य सुतः पौरसाधिपतेःसुताम्। सुलूवस्य तथोद्वह्य यावनीबौद्धतत्परः।। षष्ठिवर्ष कृतं राज्यं बिन्दुसारस्ततोऽभवत्। पितृस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोऽभवत्।। (भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व, प्रथम खंड, षष्ठम अध्याय, श्लोक ४३,४४)

बुद्धसिंह के वंशज चन्द्रगुप्त हुए, जिसने पोरसाधिपति की पुत्री और सेलुकस की पुत्री उस यवनी के साथ पाणिग्रहण करके उस बौद्ध ने पत्नी समेत साठ वर्ष तक राज्य किया। चन्द्रगुप्त के बिन्दुसार हुआ अपने पिता के समान काल तक राज्य किया। बिन्दुसार के अशोक हुए।

" तेषामभावेजगतींमौर्या भोक्ष्यन्तिवै कलौ ||१२|| सएवचन्द्रगुप्तंवै द्विजोराज्येऽभिषेक्ष्षति | तत्पुत्रोवारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धनः ||१३|| सुयशाभवितातस्य संगतःसुयशःसुतः | शालिशूकस्ततस्तस्य सोमशर्माभविष्यति ||१४|| शतधन्वाततस्तस्य भविताबृहद्रथः | मौर्यादशनृपाः सप्तमिशच्छतोत्तरन् ||१५|| " (श्रीमद्भागवतपुराण)

उसके बाद मौर्य कलयुग में पृथ्वी का पालन करेंगे ||१२|| चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त राजगद्दी पर बैठेगा। चंद्रगुप्त का पुत्र वारिसार(बिंदुसार), उसका पुत्र अशोकवर्ध्दन होगा ||१३|| उसका सुयश; सुयश का पुत्र संगत; उसका पुत्र शालिशुक; शालिशुक का सोमशर्मा होगा ||१४|| उसका पुत्र शतधन्वा और उसका पुत्र बृहद्रथ होगा | यह मौर्यवंशी दशराजा कलिकाल में १३७ वर्ष राज करेंगे ||१५||

नोट :- श्रीमद्भागवत पुराण इन शब्दों में गलती हो सकती हैं। ( सएवचन्द्रगुप्तंवै, सुयशाभवितातस्य, भविताबृहद्रथः, मौर्यादशनृपाः, सप्तमिशच्छतोत्तरन् )

धर्म ग्रंथ :------

बौद्ध ग्रंथ :-

" भगवापि खतत्तियो मयमपि खत्तिया । मयमपि अरहाम भगवतो सरीरन भाग।" (शमशान घाट) भगवान भी क्षत्रिय, हम भी क्षत्रिय । अतः हमे भी बुद्ध की अस्थियां चाहिए।

" त्वं नापिति अहं राजा क्षत्रियो मूर्धभीषक्त कथं मया साध समागमो भविष्यति "

- दिव्यवदान(शुद्र नाईन स्त्री से बिंदुआर का संवाद)

तुम नाईन शुद्र हो और मैं मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय हूँ , अतः तुम्हारे साथ हमारा समागम कैसे हो सकता है।

" पाटलीपुत्रे नगरे बिन्दुसारो नाम राजा राज्यं कारयति | बिन्दुसारस्य राज्ञःपुत्रो जातः | "

- दिव्यावदान

पाटलिपुत्र नगर में बिंदुसार नाम के राजा राज करते हैं। बिंदुसार की जाति राजपुत्र है।

" देवी अहं क्षत्रियः कथं पलाड्डू परिभक्षयामि "

- दिव्यवदान (सम्राट अशोक का पत्नी से संवाद)

देवी मैं क्षत्रिय हूं प्याज कैसे खा सकता हूं!

तेन तस्स नगरस्स सामिनो साकिया च तेस पुत्त - पुत्ता सकल जम्बूद्वीपे मोरिया नाम ति पाकटा जाता । (उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद)

उस नगर के समीप शाक्य के पुत्र-पौत्र सकल जंबूद्वीप में मौर्य नाम से प्रसिद्ध हुए।

चन्दवड्ढनो राजस्स मोरिय रञ्ञो सा अहू। राजमहेसी धम्ममोरिया पुत्तातस्सासि चन्दगुप्तो’ति॥ (उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद)

मोरिय नगर के राजा चंद्रवर्द्धन मोरिया और धर्मा मोरिया के पुत्र चंद्रगुप्त हुए।

"मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर। चन्दगुत्तो ति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो ||१६|| नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा। सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो ||१७|| (महावंश)

मौर्य वंश नाम के क्षत्रियों में उत्पन्न श्री चन्द्रगुप्त को चाणक्य नामक ब्राह्मण ने नवे घनानन्द को चन्द्रगुप्त के हाथों मरवाकर सम्पूर्ण जम्मू दीप का राजा अभिषिक्त किया।

जैन ग्रंथ :-----

" जमरेयनिम कलगाए अरिह तित्थमकरे महावीरे |

तम रेयनिम अवतिवै अहिसिट्टे पलगेरयस || सत्यि पलगे रन्न पन पन्न सयं तुहि - ई नन्दनम्। एतिहास्यं मुरियानम् तिसम् चि अ पुस्सि मित्तस्सं ।। " (तीर्थोद्धार प्रकिनिका)

"जं रैनिं कलगय विहतित्थंकरे महावीरे । तं रैनिं अवन्तिव ई अहिसित्ते पलगेरय ।। सत्थि पलग सन्ने पनवन्न शयं तुहि ई नन्दनम् । अट्टसयं मुरियानाम् तिसं चि अ पुस मित्तस्स ॥ " (मेरुतुंग)

ब्राह्मण धर्म ग्रंथ :-

" महाकुलीनो दैवबुद्धिः सत्त्वसंपन्नो वृद्ददर्शी धार्मिकः सत्यवागविसंवादकः कृतज्ञः स्थूललक्षो महोत्साहोदीर्घसूत्रः शक्यसामन्तो दृढबुद्धिरक्षुद्रपरिपत्को विनयकाम इत्यमिगामिका गुणाः ||३|| "

- ३ श्लोक, स्वामी के गुण, ९६ प्रकरण, १ अध्याय, मंडलयोनि(६) अधिकरण, अर्थशास्त्र

राजा को अतिउच्चकुलोत्पन्न होना चाहिए । वह ईश्वरप्रदत्त बुद्धिमत्ता से युक्त हो । वृद्धों जैसी अनुभवपूर्ण बुद्धिवाला , धर्मात्मा , सत्यभाषी , सत्यप्रतिग्य , कृतग्य , दानी , महोत्साहि अदीर्घसूत्री , दृढ - बुद्धिसम्पन्न , महानपुरुषों से युक्त और विनयशील हो । श्रवण , ग्रहण ' धारण , विग्यान , तर्कशक्तिसम्पन्न , निरर्थक बातों को त्यागनेवाला और यथार्थ का सम्मान करनेवाला हो ।

मौर्येर्हिरण्यर्थिर्भिरर्च्या: प्रकल्पिताः (महाभाष्य) धन की इच्छा रखने वाले मौर्यों ने पूजा के लिए मूर्तियां बनवाकर सुवर्ण एकत्रित किया।

प्रतिज्ञा दुर्बलं च बल दर्शन व्यपदेश दर्शिताऽशेष सैन्यः सेनानीनार्यों मौर्यं बृहद्रथं पिपेश पुष्यमित्रः स्वाभिनः

- हर्षचरित्रम्(बाणभट्ट)

अनार्य सेनानी पुष्यमित्र ने प्रदर्शन के बहाने से अपनी संपूर्ण सेना का एकत्रीकरण कर अपने प्रतिज्ञा दुर्बल सम्राट ब्रह्द्रथ की हत्या कर दी।

" पनंतरिय सठि वस सते राजमुरिय काले वेछिने च चोयठ अगसति कुतरियं । " (हाथी गुफा, राजा खरवेल के शिलालेख, ,आर्किमोलोजिकल सर्वे , १९०५ - १९०६)

मुरिय (मौर्य) राजा चंद्रगुप्त बलवाइयों में मुखिया हो गया और अंत में धीरे धीरे भारत का महान प्रतापी राजा हुआ। (आर्किमोलोजिकल सर्वे ) Amansinghmurao (वार्ता) 09:22, 12 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

संदर्भ चर्चा[संपादित करें]

महाकुलीनो दैवबुद्धिः सत्त्वसंपन्नो वृद्ददर्शी धार्मिकः सत्यवागविसंवादकः कृतज्ञः स्थूललक्षो महोत्साहोदीर्घसूत्रः शक्यसामन्तो दृढबुद्धिरक्षुद्रपरिपत्को विनयकाम इत्यमिगामिका गुणाः ||३|| "

- ३ श्लोक, स्वामी के गुण, ९६ प्रकरण, १ अध्याय, मंडलयोनि(६) अधिकरण, अर्थशास्त्र

राजा को अतिउच्चकुलोत्पन्न होना चाहिए । वह ईश्वरप्रदत्त बुद्धिमत्ता से युक्त हो । वृद्धों जैसी अनुभवपूर्ण बुद्धिवाला , धर्मात्मा , सत्यभाषी , सत्यप्रतिग्य , कृतग्य , दानी , महोत्साहि अदीर्घसूत्री , दृढ - बुद्धिसम्पन्न , महानपुरुषों से युक्त और विनयशील हो । श्रवण , ग्रहण ' धारण , विग्यान , तर्कशक्तिसम्पन्न , निरर्थक बातों को त्यागनेवाला और यथार्थ का सम्मान करनेवाला हो ।

जो भी बारबर साक्ष्यों को हटा रहा है, वो मुझे अल्पज्ञानी और चाणक्य से घृणित करने वाला लग रहा है। इसका संदर्भ ये रहा ----

https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.311986/page/n541/mode/1up?view=theater Amansinghmurao (वार्ता) 14:10, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

@Amansinghmurao जी: विकिपीडिया आपके मूल शोध के लिए नहीं है। यहाँ अनावश्यक रूप से सन्दर्भित उद्धरण भी नहीं दिये जा सकते। इसके लिए आप विकिसूक्ति पर का सकते हो। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 14:25, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

इसका अर्थ है कि इस पेज का लक्ष्य है कि लोगों को भ्रमित रखा जाए, क्योंकि सारे साक्ष्य पुराण और धर्म ग्रंथ चंद्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय सिद्ध करते हैं। और जिन किताबों में चंद्रगुप्त मौर्य को शूद्र कहा गया है वह अभी पांचवीं शताब्दी से लेकर महमूद गजनवी के समय लिखी गई हैं। जो कि एक ड्रामा नाटक सीरियल है।

ऐसे भेजो को पढ़कर भी पाठक निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि चंद्रगुप्त क्षत्रिय थे या शुद्र यह केवल भ्रामक पेज है। Amansinghmurao (वार्ता) 14:41, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

@Amansinghmurao जी: इसके लिए आप लेख को सन्दर्भों के साथ सुधार सकते हो। पाठकों को भ्रमित करना विकिपीडिया का उद्देश्य नहीं है। इसका उद्देश्य उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष जानकारी उपलब्ध करवाना है। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 14:49, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

कुछ नहीं, मैंने जितनी बार संदर्भों के साथ पेज को एडिट किया उतनी बार हटाया गया केवल उस हिसाब से इस पेज में रखे जाते हैं जिससे लोग भ्रमित रहे हैं और निष्कर्ष ना निकाल पाए।

जो विष्णु पुराण का श्लोक इस पेज में दिया हुआ है इसमें कहां पर मूरा लिखा है। जरा बताएं।

श्लोक में कुछ और लिखा है हिंदी अर्थ में कुछ और दिया है।

केवल और केवल भ्रमित करना ही मकसद है। Amansinghmurao (वार्ता) 15:02, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

काल्पनिक मूरा चर्चा[संपादित करें]

मूरा नाम का जिक्र कहीं भी नहीं मिलता ना पुराणों में नाम धर्म ग्रंथों में। Amansinghmurao (वार्ता) 14:51, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

@Amansinghmurao जी: यदि मौर्य के स्थान पर किसी सदस्य ने मूरा अथवा मूरिय कर दिया है तो आप उन सम्पादनों को हटा सकते हो। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 15:08, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त के पिता का नाम चंद्रवर्धन था। यह रहा पाली श्लोक तेन तस्स नगरस्स सामिनो साकिया च तेस पुत्त - पुत्ता सकल जम्बूद्वीपे मोरिया नाम ति पाकटा जाता । (उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद)

उस नगर के समीप शाक्य के पुत्र-पौत्र सकल जंबूद्वीप में मौर्य नाम से प्रसिद्ध हुए।

चन्दवड्ढनो राजस्स मोरिय रञ्ञो सा अहू। राजमहेसी धम्ममोरिया पुत्तातस्सासि चन्दगुप्तो’ति॥ (उत्तरविहारट्टकथायंथेरमहिंद)

मोरिय नगर के राजा चंद्रवर्द्धन मोरिया और धर्मा मोरिया के पुत्र चंद्रगुप्त हुए।

श्रोत --- https://indusindiabuddha.page.tl/ANCHIENT.htm Amansinghmurao (वार्ता) 15:38, 13 अगस्त 2021 (UTC)[उत्तर दें]

Request for addition of military achievement[संपादित करें]

please add this content in hindi regarding Chandragupta which I have copied from https://en.wikipedia.org/wiki/Military_history_of_India...

Dates

Conflicts Indians (and allies) Foreigners (and allies) Locations Result
305–315 BCE Chandragupta Maurya's Macedonian campaigns Mauryan Empire Macedonian Empire South Asia Mauryans conquered Macedonian strapies in the Indus valley & Northwest India.[1][2]
315 BCE Mauryan conquest of Northwest regions Mauryan Empire Macedonian Empire South Asia Mauryans conquered Macedonian strapies in the Northwest regions.[2]
315 BCE Excecution of Greek governors Mauryan Empire Macedonian Empire South Asia Justin states that after Alexander's death, Chandragupta freed Indian territories from the Greeks and executed some of the governors.[1]
305–303 BC Seleucid–Mauryan war Mauryan Empire Seleucid Empire Northwest India, Indus valley & Afghanistan Mauryan victory[3][note 1]

2405:201:6036:801D:78F5:248C:32D9:F629 (वार्ता) 04:06, 21 फ़रवरी 2024 (UTC)[उत्तर दें]

Hello @2405:201:6036:801D:78F5:248C:32D9:F629 , किसीने पहले ही जोड़ दिया है । अर्चना रस्तोगी (💌) 09:02, 7 मार्च 2024 (UTC)[उत्तर दें]
  1. Mookerji 1988, पृ॰प॰ 6–8, 31–33.
  2. From Polis to Empire, the Ancient World, C. 800 B.C.-A.D. 500. Greenwood Publishing. 2002. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0313309426. अभिगमन तिथि 16 August 2019.
  3. " Pg.106 - Seleucid Kingdom Another Hellenistic monarchy was founded by the general Seleucus (suh-LOO-kuss), who established the Seleucid dynasty of Syria. This was the largest of the Hellenistic kingdoms and controlled much of the old Persian Empire from Turkey in the west to India in the east, although the Seleucids found it increasingly difficult to maintain control of the eastern territories. In fact, an Indian ruler named Chandragupta Maurya (chundruh-GOOP-tuh MOWR-yuh) (324-301 B.c.E.) created a new Indian state, the Mauryan Empire, and drove out the Seleucid forces. ... The Seleucid rulers maintained relations with the Mauryan Empire. Trade was fostered, especially in such luxuries as spices and jewels. Seleucus also sent Greek and Macedonian ambassadors to the Mauryan court. Best known of these was Megasthenes (muh-GAS-thuh-neez), whose report on the people of India remained one of the Western best sources of information on India until the Middle Ages. " Spielvogel, Jackson J. (2012). Western civilization. Internet Archive. Boston, MA : Wadsworth Cengage Learning. पृ॰ 106. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-495-91329-0.
  4. Kosmin 2014, पृ॰ 33–34.
  5. Pg.740 : "Chandragupta and Seleucus Nikator, who had inherited the eastern provinces of Alexander empire. This may have occurred in about 301 BCE and was resolved by an agreement. Chandragupta obtained the territories of Arachosia (the Kandahar area of south-east Afghanistan), Gedrosia (south Baluchistan), and Paropomisadai (the area between Afghanistan and the Indian subcontinent) and handed over 500 elephants in return. "Upinder Singh (2008). History Of Ancient And Early Medeival India From The Stone Age To The 12th Century. पृ॰ 740,748.
  6. “ Pg.42 : Threatened by Chandragupta’s growing power, Seleucis of Syria, Alexander’s successor, challenged him by invading northern India in 305 BC but suffered a devastating defeat. A treaty ending the conflict gave Chandragupta all lands north to the Hindu Kush, including Baluchistan and Afghanistan. Chandragupta used an extensive and elaborate civil service, an army, and a secret service to rule. A virtual dictatorship coincided with widespread public works, building roads and developing irrigation systems . Check Mauryan Empire on Page 43 “Barnes, Ian; Hudson, Robert; Parekh, Bhikhu C. (1998). The history atlas of Asia. Internet Archive. New York : Macmillan. पृ॰ 42. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-02-862581-2.
  7. “Pg.270 :In 324 B.C.E. Chandragupta Maurya unified northern India by defeating his rivals. He went on to war against the successor of ALEXANDER THE GREAT in Asia, Seleucus Nicator, expelling his forces from the borderlands of India. In 305 B.C.E. the two men concluded a treaty in which the Greeks withdrew from the Punjab in northwestern India and which fixed the western boundary of the MAURYAN EMPIRE to the crest of the Hindu Kush. There was also exchange of ambassadors, gifts, and a vague mention of a marriage alliance. Megasthenes was Seleucus’s representative at Chandragupta’s court. “ & “Check Mauryan Empire Map , Pg:590. “ENCYCLOPEDIA OF WORLD HISTORY 7 Volumes. पृ॰ 270.
  8. "Pg.101 : Towards the close of the reign of Chandrgupta, the Maurya empire received a further extension in the north-west Seleucus the general of Alexander, who had made himself master of Babylon, gradually extended his empire from the Mediterranean Sea to the Indus and even tried to regain the provinces to the east of that river. He failed and had to conclude a treaty with Chandragupta by which he surrendered a large territory including, in the opinion of certain writers, the satrapies of Paropanisadai {Kabul), Aria (Herat), Arachosia (Qandahar), and Gedrosia (Baluchistan), in return for 500 elephant. "Majumdar, R. C. (1953). Advanced history of India. Macmillan & Company. पृ॰ 101,104.
  9. "Pg.60 : Seleucus had to purchase peace by ceding to Chandragupta territories then known as Aria, Arachosia, and Paropanisadae (the capitals of which were respectively the cities now known as Herat, Kandahar and Kabul), and probably also a part of Gedrosia (Baluchistan). In return Chandragupta presented him with 500 war elephants. The terms of the peace leave no doubt that the Greek ruler fared badly at the hands of Chandragupta. His defeat and discomfiture at the hands of an Indian ruler would naturally be passed over by Greek writers, and their silence goes decidedly against Seleucus. The peace was ratified by a matrimonial alliance between the rival parties. This has been generally taken to mean that Chandragupta married a daughter of Seleucus, but this is not warranted by known facts. Henceforth Scleucus maintained friendly relations with the Mauryan Court and sent Megasthanes as his ambassador who lived in Pataliputra for a long time and wrote a book on India." Munishi, K.M. (1953). The Age Of Imperial Unity Volume II. पृ॰ 60.
  10. "Pg.273 : The ceded country comprised a large portion of Ariana itself, a fact ignored by Tarn. In exchange the Maurya a monarch gave the "comparatively small recompense of 500 elephants. It is believed that the territory ceded by the Syrian king included the four satrapies: Aria, Arachosia, Gedrosia and the Paropanisadai, i.e., Herat, Kandahar, Makran and Kabul. Doubts have been entertained about this by several scholars including Tarn. The inclusion of the Kabul valley within the Maurya Empire is, however, proved by the inscriptions of Asoka, the grandson of Chandragupta, which speak of the Yonas and Gandharas as vassals of the Empire. And the evidence of Strabo probably points to the cession by Seleukos of a large part of the Iranian Tableland besides the riparian provinces on the Indus." Raychaudhuri, Hem Chandra (1953). Political history of ancient India. पृ॰ 273,297,327.
  11. Smith, Vincent Arthur (1920), The Oxford History of India: From the Earliest Times to the End of 1911, Clarendon Press, पपृ॰ 104–106


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