वार्ता:अशोक चक्रधर
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फ़िल्म और टेलीविज़न[संपादित करें]
अशोक चक्रधर जी ने फ़िल्म लेखन और अभिनय भी किया है। इन्होंने फ़िल्म जमुना किनारे (ब्रजभाषा) का लेखन, काका हाथरसी प्रोडक्शंस, 1983 के अंतर्गत किया और श्री चक्रधर जी ने डीडी-1 के धारावाहिक बोल बसंतो तथा सोनी चैनल के धारावाहिक छोटी सी आशा में अभिनय भी किया।
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रंगमंच[संपादित करें]
नाम | निर्माण |
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भोर तरंग | दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र, 1987 |
ढाई आखर | दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र, 1989 |
बुआ भतीजी | दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र, 1991 |
बोल बसंतो | दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र, 1997 |
अशोक चक्रधर जी जननाट्य मंच के संस्थापक सदस्य हैं। इनका नाटक बंदरिया चली ससुराल नाटक का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा द्वारा मंचन हो चुका है। इसके निर्देशक श्री राकेश शर्मा तथा रंगमंडल, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय है। और श्री रंजीत कपूर के नाटक 'आदर्श हिन्दू होटल' एवं 'शॉर्टकट' के लिए गीत लेखन भी इन्होंने किया।
कम्प्यूटर और हिन्दी[संपादित करें]
अशोक चक्रधर जी ने हिन्दी के विकास में कम्प्यूटर की भूमिका विषयक शताधिक पावर-पाइंट प्रस्तुतियां की हैं और ये हिन्दी सलाहकार समिति, ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार तथा हिमाचल कला संस्कृति और भाषा अकादमी, हिमाचल प्रदेश सरकार, शिमला के भूतपूर्व सदस्य रह चुके है।
अंतर्राष्ट्रीय समारोह सहभागिता[संपादित करें]
अशोक चक्रधर जी ने साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, सोवियत संघ, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर, हांगकांग, नेपाल, युनाइटेड अरब अमीरात, जर्मनी, इटली, फिलिस्तीन, इज़राइल, ओमान, ट्रिनिडाड एंड टोबैगो, कनाडा, हॉलैण्ड, सूरीनाम, रूस, केन्या ईस्ट अफ्रीका, उज़्बेकिस्तान, जापान, पाकिस्तान आदि की यात्राएँ की हैं।
वर्ष | समारोह | स्थान |
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पुरस्कार और सम्मान[संपादित करें]
क्रमांक | वर्ष | पुरस्कार / सम्मान |
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प्रसिद्ध व्यक्तियों के विचार[संपादित करें]
क्रम | नाम | प्रकाशन | सन |
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1- | बूढ़े बच्चे | प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, भारत सरकार | 1979 |
2- | सो तो है | प्रलेक प्रकाशन, नई दिल्ली, | 1983 |
3- | भोले भाले | हिन्दी साहित्य निकेतन | 1984 |
4- | तमाशा | हिन्दी साहित्य निकेतन | 1986 |
5- | चुटपुटकुले | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 1988 |
6- | हंसो और मर जाओ | हिन्दी साहित्य निकेतन | 1990 |
7- | देश धन्या पंच कन्या | प्राची प्रकाशन, नई दिल्ली | 1997 |
8- | ए जी सुनिए | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 1997 |
9- | इसलिए बौड़म जी इसलिए | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 1997 |
10- | खिड़कियां | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 2001 |
11- | बोल-गप्पे | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 2001 |
12- | जाने क्या टपके | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, | 2001 |
13- | चुनी चुनाई | प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली | 2002 |
14- | सोची समझी | प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली | 2002 |
15- | जो करे सो जोकर | डायमण्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली | 2007 |
16- | मसलाराम | पेंगुइन प्रकाशन |
- पद्मश्री शरद जोशी ने लिखा था-
अशोक की कहन में बड़ी शक्ति है और यह हमारी भाषा की, हमारे देश की और हमारी जनता की शक्ति है।
- पद्मश्री काका हाथरसी ने कहा था-
'चक्रधर' चक्र घुमाया
हास्य-व्यंग्य के रंग में, करें करारी चोट,
कविसम्मेलन-मंच पर, 'घुमा दिया लंगोट'।
घुमा दिया लंगोट, न झुककर देखा नीचे,
आगे थे जो 'काका' छूट गए वे पीछे।
सभी चकित रह गए 'चक्रधर' चक्र घुमाया,
अल्प समय में, अल्प आयु में नाम कमाया।
- माया गोविन्द के शब्दों में -
वो कल्पना-प्रभात हैं
है जिसके काव्य में असर
जो है प्रकाश सा प्रखर
जो शब्द-शब्द है प्रखर
वो है 'अशोक चक्रधर'।
- हुल्लड़ मुरादाबादी के शब्दों में -
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, शब्दों के जादूगर अशोक चक्रधर का कृतित्व अपने-आपमें एक करिश्मा है।
- हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के शब्दों में -
अंग्रेज़ी में एक कहावत है 'जैक ऑफ़ ऑल, मास्टर ऑफ़ नन'। अशोक चक्रधर मंचीय काव्य-जगत में एकमात्र ऐसा नाम है, जिसने इस कहावत को झूठा साबित करके दिखा दिया है। वह 'जैक ऑफ़ ऑल' भी हैं तथा 'मास्टर ऑफ़ ऑल' भी हैं।
- जावेद अख़्तर के शब्दों में -
जैसे शायरी ज़िंदगी के होठों की हल्की सी मुस्कान है, उसी तरह शायरी के होठों पर जो हल्की सी मुस्कान है, उसका नाम 'अशोक चक्रधर' है।
- अल्हड़ बीकानेरी के शब्दों में -
हर अंजुमन में वो आली जनाब होता है,
गुलों के बीच महकता गुलाब होता है।
जो लाजवाब समझते हैं खुद को ऐ 'अल्हड़',
अशोक चक्रधर उनका जवाब होता है।