सामग्री पर जाएँ

वात्या भट्ठी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
सेस्टाओ, स्पेन में ब्लास्ट फर्नेस. वास्तविक भट्टी केन्द्रीय गिर्डरवर्क के अंदर है।

वात्या भट्ठी या ब्लास्ट फर्नेस (Blast furnace) एक प्रकार की धातु-वैज्ञानिक भट्टी (मेटलर्जिकल फर्नेस) है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर लोहे जैसी औद्योगिक धातुओं का निर्माण करने हेतु धातुओं को पिघलाने के लिए किया जाता है।

वात्या भट्ठी में भट्ठी के ऊपर से लगातार ईंधन और अयस्क की आपूर्ति की जाती है जबकि चैंबर के निचले तल में हवा (कभी-कभी ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा वाली हवा) भरी जाती है ताकि पदार्थों के नीचे की तरफ आने के दौरान पूरे फर्नेस में रासायनिक प्रतिक्रिया हो सके। अंतिम उत्पाद के रूप में आम तौर पर नीचे की तरफ से पिघली हुई धातु और धातुमल तथा फर्नेस के ऊपर से धुआं युक्त गैसें निकलती हैं।

वात्या भट्ठी को आम तौर पर चिमनी के निकास मार्ग में गर्म गैसों के संवहन के माध्यम से स्वाभाविक रूप से चूषण युक्त एयर फर्नेसों (जैसे रिवर्बरेटरी फर्नेस) के साथ निरूपित किया जाता है। इस व्यापक परिभाषा के अनुसार लोहे की ब्लूमरी, टिन के ब्लोइंग हाउस और सीसे को गलाने वाली मिलों को ब्लास्ट फर्नेस के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर उन्ही कारखानों तक सीमित है जहां लौह अयस्क को पिघलाकर कच्चे लोहे (पिग आयरन) का उत्पादन किया जाता है, जो वाणिज्यिक लौह एवं इस्पात के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली एक मध्यवर्ती सामग्री है।

ब्लास्ट फर्नेस चीन में लगभग पांचवीं सदी ई.पू. से और पश्चिम में उच्च मध्य युगीन काल से मौजूद हैं। पंद्रहवीं सदी के अंतिम दौर में वे वॉलोनिया (बेल्जियम) के नामुर के आसपास के इलाकों से फैलते हुए 1491 में इंग्लैण्ड में दिखाई देने लगे। इनमें ईंधन के रूप में हमेशा चारकोल (लकड़ी का कोयला) का इस्तेमाल किया जाता था। 1709 में चारकोल की जगह कोक (पत्थर का कोयला) के सफल उपयोग का श्रेय व्यापक रूप से अब्राहम डार्बी को दिया जाता है। आगे चलकर 1828 में जेम्स ब्यूमोंट नीलसन के पेटेंट वाली ब्लास्ट के पूर्वतापन की प्रक्रिया द्वारा इस प्रक्रिया की कुशलता को और बढ़ा दिया गया।

ब्लास्ट फर्नेस को ब्लूमरी से इस दृष्टि से अलग माना जाता है कि, ब्लास्ट फर्नेस का उद्देश्य पिघली हुई धातु का निर्माण करना है जिसे फर्नेस से नल के माध्यम से निकाला जा सके जबकि ब्लूमरी का उद्देश्य इसे पिघलने से बचाना है ताकि कार्बन लोहे में घुल न जाए. ब्लूमरी में भी कृत्रिम रूप से धौंकनी का इस्तेमाल करके हवा भरी जाती है लेकिन "ब्लास्ट फर्नेस" शब्द आम तौर पर उन फर्नेसों के लिए आरक्षित है जहाँ लोहे (या किसी अन्य धातु) को अयस्क से परिष्कृत किया जाता है।

पनचक्कियों द्वारा संचालित फर्नेस का एक उदाहरण; नौंग शू से, चीन के युआन राजवंश के दौरान वांग जेन, 1313 ई., के द्वारा.

सबसे पुराने प्रचलित ब्लास्ट फर्नेसों का निर्माण पहली सदी ई.पू. में चीन के हान राजवंश में हुआ था। हालांकि पांचवीं सदी ई.पू. तक चीन में काफी हद तक कास्ट आयरन (ढलवा लोहा) से बने खेती के औजारों और हथियारों का इस्तेमाल किया जाता था[1] जबकि तीसरी सदी ई.पू. में लोहे को गलाने वाले उपकरण को चलाने के लिए दो सौ से ज्यादा लोगों के एक औसत कार्यबल की जरूरत पड़ी.[1] इन प्रारंभिक भट्टियों की दीवारें मिट्टी की बनी होती थीं और फ्लक्स के रूप में फास्फोरस युक्त खनिज पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है।[2] चीनी ब्लास्ट फर्नेस की प्रभावकारिता को इस अवधि के दौरान इंजीनियर दु शि (लगभग 31 ई.) ने बढ़ा दिया जिन्होंने ढलवा लोहे का निर्माण करने के लिए पिस्टन-धौंकनी में पनचक्कियों की शक्ति का इस्तेमाल किया।[3]

बाईं तरफ का चित्र ढलवां लोहे से सख्त लोहे के उत्पादन की प्रक्रिया का उदाहरण है; जबकि दाईं तरफ का चित्र ब्लास्ट फर्नेस में काम करने वाले लोगों को दर्शाता है; तिआन्गोंग काइवू विश्वकोश, 1637 से.

हालांकि काफी लंबे समय तक यही माना जाता रहा कि चीनियों ने ब्लास्ट फर्नेस को विकसित किया था और लोहे के निर्माण की अपनी पहली विधि के रूप में ढलवा लोहे का निर्माण किया था लेकिन डोनाल्ड वैगनर (उपरोक्त सन्दर्भ अध्ययन का लेखक) ने अभी हाल ही में आरंभिक कार्य के कुछ बयानों को निष्प्रभावी करने वाला एक पत्र[4] प्रकाशित किया है; नए पत्र में भी ढलवा लोहे की पहली शिल्प कृतियों का समय चौथी और पांचवीं सदी ई.पू. बताया गया है लेकिन इसमें आरंभिक ब्लूमरी फर्नेस के इस्तेमाल का भी सबूत दिया गया है जो परवर्ती लोंगशान संस्कृति (2000 ई.पू.) के चीनी कांस्य युग के आरंभिक दौर में पश्चिम से आया था। उनके अनुसार आरंभिक ब्लास्ट फर्नेस और ढलवा लोहे का निर्माण कांसे को पिघलाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भट्टियों से हुआ था। हालांकि जाहिर है कि स्टेट ऑफ किन द्वारा चीन के एकीकरण के दौरान सैन्य सफलता के लिए लोहा जरूरी था। ग्यारहवीं सदी तक सोंग राजवंश के समय में चीनी लौह उद्योग में लोहे और इस्पात के निर्माण में चारकोल की जगह बिटुमिनस कोयले के इस्तेमाल के रूप में एक उल्लेखनीय संसाधन परिवर्तन देखा गया जिससे हजारों एकड़ वाला वनप्रदेश नष्ट होने से बच गया। ऐसा शायद चौथी सदी ई. में हुआ होगा। [5][6]

प्राचीन विश्व के अन्य स्थान

[संपादित करें]

चीन के अलावा कहीं और ब्लास्ट फर्नेस के इस्तेमाल का कोई (पुख्ता) सबूत नहीं है। इसकी जगह ब्लूमरियों में प्रत्यक्ष कमी (direct reduction) करके लोहे का निर्माण किया जाता था। ब्लास्ट फर्नेस के रूप में इनका वर्णन उचित नहीं है, हालांकि उन्हें संबोधित करने में कभी-कभी गलती से इस शब्द का इस्तेमाल कर दिया जाता है।

यूरोप में यूनानी, सेल्ट, रोमन और कार्थेजिनियन सभी इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल करते थे। फ़्रांस में ऐसे कई उदाहरण और ट्यूनीशिया में ऐसे कई पदार्थ मिले हैं जिनसे पता चलता है कि हेलेनिस्टिक युग में एंटीओक के साथ-साथ वहां भी इनका इस्तेमाल होता था। अंध युग में इसके इस्तेमाल के बारे में बहुत कम जानकारी होने के बावजूद शायद उस युग में भी इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता था।[उद्धरण चाहिए] इसी तरह पश्चिम अफ्रीका में ब्लूमरी जैसी भट्टियों में धातु को गलाने और औजारों का ढलाई का काम 500 ई.पू. तक अफ्रीका की नोक संस्कृति में दिखाई देती है।[7] पूर्व अफ्रीका में ब्लूमरी जैसी भट्टियों के आरंभिक रिकॉर्ड न्यूबिया और एक्सम में गले हुए लोहे और कार्बन की खोज हैं जिनकी समयावधि 1,000 और 500 ई.पू. के बीच का समय है।[8][9] कहा जाता है कि खास तौर पर मेरु में प्राचीन काल में ब्लास्ट फर्नेस थे जिनसे न्यूबियावासियों/कुशितों के धातु के औजारों का निर्माण होता था और उनकी अर्थव्यवस्था के लिए अधिशेष का निर्माण होता था।

मध्यकालीन यूरोप

[संपादित करें]

आठवीं सदी में स्पेन के कैटालोनिया में एक बेहतर ब्लूमरी का अविष्कार किया गया था जिसे कैटलन फोर्ज नाम दिया गया था। प्राकृतिक हवा के झोंके का इस्तेमाल करने के बजाय धौंकनियों के माध्यम से हवा भरी जाती थी जिसके परिणामस्वरूप बेहतर गुणवत्ता वाले लोहे का निर्माण होता था और उसकी उत्पादन क्षमता भी बढ़ गई थी। धौंकनियों की सहायता से हवा भरने के काम को कोल्ड ब्लास्ट के नाम से जाना जाता है और इससे ब्लूमरी की ईंधन क्षमता के साथ-साथ उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि होती है। कैटलन फोर्ज को प्राकृतिक प्रारूप वाले ब्लूमरियों से भी बड़ा बनाया जा सकता है।

आधुनिक प्रयोगात्मक पुरातत्व विद्या और इतिहास के पुनःअधिनियम से पता चला है कि कैटलन फोर्ज और वास्तविक ब्लास्ट फर्नेस में सिर्फ एक छोटा सा अंतर है जहाँ लोहे को द्रव चरण में ढलवा लोहे के रूप में प्राप्त किया जाता है। आम तौर पर लोहे को तरल रूप में प्राप्त करना वास्तव में अवांछित है और तापमान को जानबूझकर लोहे के गलनांक बिंदु से नीचे रखा जाता है क्योंकि ठोस ब्लूम को हटाने के काम यांत्रिक रूप से थकाऊ होने और इसके लिए निरंतर प्रक्रिया के बजाय बैच प्रक्रिया की जरूरत पड़ने के बावजूद यह लगभग शुद्ध लोहा होता है और इस पर तुरंत काम किया जा सकता है। दूसरी ओर, ढलवा लोहा कार्बन और लोहे का गलनक्रांतिक मिश्रण है और इससे इस्पात या गढा हुआ लोहा बनाने के लिए इसे कार्बनमुक्त करना पड़ता है जो मध्य युग में बहुत ज्यादा थकाऊ काम था।

पश्चिम के सबसे पुराने जाने माने ब्लास्ट फर्नेसों को स्विट्जरलैंड के डर्सटेल में, जर्मनी के मार्किश सौएरलैंड में और स्वीडन के लैपफाईटन में बनाया जाता था जहाँ यह कॉम्प्लेक्स 1150 और 1350 के बीच सक्रिय था।[10] जर्नबोआस नामक स्वीडिश काउंटी के नोरास्कोग में भी उससे भी पहले शायद 1100 के आसपास ब्लास्ट फर्नेसों के होने के निशान मिले हैं।[11] चीनी भट्टियों की तरह ये आरंभिक ब्लास्ट फर्नेस भी आजकल इस्तेमाल होने वाले ब्लास्ट फर्नेसों की तुलना में बहुत अक्षम थे। लैपफाईटन कॉम्प्लेक्स के लोहे का इस्तेमाल ढले हुए लोहे के गोले बनाने के लिए किया जाता था जिन्हें ओस्मोंड के नाम से जाना जाता था और इनका व्यापार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता था जिसका एक संभावित सन्दर्भ 1203 से नोवगोरोड की संधि में और ऐसे कई सन्दर्भ 1250 के दशक से 1320 के दशक तक की अंग्रेजी रिवाजों के विवरण में मिलते हैं। तेरहवीं से पंद्रहवीं सदी की अन्य भट्टियों के निशान वेस्टफालिया में मिले हैं।[12]

कुछ तकनीकी ज्ञान की उन्नति को सिस्टरसियन भिक्षुओं के सामान्य अध्याय के परिणाम के रूप में संचारित किया जाता था। इसमें ब्लास्ट फर्नेस शामिल हो सकता है क्योंकि सिस्टरसियन कुशल धातु विज्ञानियों के रूप में मशहूर हैं।[13] जीन गिम्पेल के अनुसार उनकी उच्च स्तरीय औद्योगिक प्रौद्योगिकी ने नई तकनीकों के प्रसार में मदद की: "हर मठ में एक मॉडल फैक्टरी थी जो अक्सर चर्च की तरह बड़े और कुछ फीट की दूरी पर स्थित होते थे और इसके फर्श पर स्थित विभिन्न उद्योगों की मशीनरी को जल शक्ति से चलाया जाता था।" लोहा निकालने के लिए फोर्ज के साथ-साथ भिक्षुओं को दान के रूप में अक्सर लौह अयस्क भी दिया जाता था और अतिरिक्त समय के भीतर उन्हें बेचने के लिए पेश कर दिया जाता था। सिस्टरसियन तेरहवीं सदी के मध्य से सत्रहवीं सदी[14] तक फ़्रांस के शैम्पेन में अग्रणी लौह उत्पादक बन गए जो एक कृषि उर्वरक के रूप में अपनी भट्टियों से निकलने वाले फॉस्फेट युक्त धातुमल का भी इस्तेमाल करते थे।[15]

पुरातत्वविद अभी भी सिस्टरसियन प्रौद्योगिकी के विस्तार की खोज में लगे हुए हैं।[16] रिवौल्क्स एब्बी के एक आउटस्टेशन और ब्रिटेन में अब तक पहचान की गई एकमात्र मध्ययुगीन ब्लास्ट फर्नेस लास्किल में उत्पन्न धातुमल में लोहे का परिमाण कम था।[17] उस समय की अन्य भट्टियों से निकलने वाले धातुमल (लावा) में काफी परिमाण में लोहा पाया जाता था जबकि ऐसा माना जाता है कि लास्किल में काफी कुशलतापूर्वक ढलवा लोहे का निर्माण किया जाता होगा। [17][18][19] हालांकि इसकी समयावधि अभी तक स्पष्ट नहीं है लेकिन संभवतः 1530 के दशक के अंतिम दौर में हेनरी अष्टम द्वारा मठों के विघटन तक इसका वजूद नहीं रहा होगा क्योंकि 1541 में रूटलैंड के अर्ल के साथ "स्माईथ्स" से संबंधित एक समझौते (ठीक उसके बाद) में ब्लूम का जिक्र है।[20] फिर भी जिन माध्यमों से मध्ययुगीन यूरोप में ब्लास्ट फर्नेस का प्रसार हुआ था उन माध्यमों को अभी तक निर्धारित नहीं किया जा सका है।

आरंभिक आधुनिक ब्लास्ट फर्नेस: उत्पत्ति और प्रसार

[संपादित करें]

फ्रांस और इंग्लैंड में इस्तेमाल की जाने वाली इन भट्टियों के प्रत्यक्ष पूर्वज नामुर क्षेत्र में थे जहां अब वॉलोनिया (बेल्जियम) है। वहां से उनका प्रसार सबसे पहले नोर्मंडी की पूर्वी सीमा पर पेस डी ब्रे में हुआ और वहां से ससेक्स के वील्ड में हुआ जहाँ बक्सटेड की सबसे पहली भट्टी (जिसे क्वीनस्टॉक कहा जाता था) का निर्माण लगभग 1491 में हुआ था जिसके बाद 1496 में ऐशडाउन फॉरेस्ट के न्यूब्रिज में एक और भट्टी का निर्माण हुआ था। लगभग 1530 तक उनकी संख्या कम थी लेकिन अगले दशकों में वील्ड में कई भट्टियों का निर्माण किया गया जहाँ लौह उद्योग लगभग 1590 तक अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। इन भट्टियों से ज्यादातर ढलवा लोहे को लोहे की पट्टी (बार आयरन) के निर्माण के लिए फाइनरी फोर्ज में ले जाया जाता था।[21]

वील्ड के बाहर पहली ब्रिटिश भट्टियां 1550 के दशक में दिखाई देने लगी और उस सदी की शेष अवधि और अगले दशकों में कई और भट्टियों का निर्माण किया गया। उद्योग का उत्पादन शायद 1620 में अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया और उसके बाद अठारहवीं सदी के आरम्भ तक इसमें थोड़ी सी गिरावट देखी गई। इसका स्पष्ट कारण यह था कि कुछ अधिक दूरस्थ ब्रिटिश स्थानों में लोहे का निर्माण करने की तुलना में स्वीडन एवं कहीं और से लोहा मंगाना अधिक सस्ता पड़ता था। उद्योग के लिए कम लागत पर उपलब्ध चारकोल की खपत शायद उतनी ही तेजी से हो रही थी जितनी तेजी से पेड़ बढ़ते थे।[22] 1711 में कुम्ब्रिया में निर्मित बैकबैरो ब्लास्ट फर्नेस को प्रथम कुशल उदाहरण के रूप में वर्णित किया जाता है।[कौन?]

रूस में सबसे पहले ब्लास्ट फर्नेस को टुला के पास 1637 में खोला गया था और उसे गोरोडिश्च वर्क्स कहा जाता था। यहाँ से ब्लास्ट फर्नेस का प्रसार मध्य रूस में और उसके बाद अंत में यूराल्स तक हुआ।[23]

बुन्योरो साम्राज्य और न्योरो लोगों जैसे धातु कार्य करने वाली कुछ बंटू सभ्यताओं के साथ मध्ययुगीन पश्चिम अफ्रीका में निर्मित ब्लास्ट फर्नेस की भी खोज और दर्ज की गई है।[24]

19वीं सदी के ब्लास्ट फर्नेस और अन्य लौह निर्माण प्रक्रियाओं का निरूपण

कोक ब्लास्ट फर्नेस

[संपादित करें]

1709 में इंग्लैण्ड के श्रोपशायर के कोलब्रुकडेल में अब्राहम डार्बी ने ब्लास्ट फर्नेस में ईंधन के रूप में चारकोल के बजाय कोक का इस्तेमाल करना शुरू किया। कोक लोहे का इस्तेमाल शुरू में ढलाई के काम के लिए, बर्तन बनाने और ढलवा लोहे के अन्य सामानों का निर्माण करने के लिए किया जाता था। ढलाई का काम इस उद्योग की एक मामूली शाखा थी लेकिन डार्बी के बेटे ने निकटवर्ती हॉर्सहे में एक नई भट्टी का निर्माण किया और फाइनरी फोर्ज के मालिकों को बार लोहे का निर्माण करने के लिए कोक पिग लोहे की आपूर्ति करने लगे। इस समय तक कोक पिग लोहे का निर्माण करना चारकोल पिग लोहे की तुलना में अधिक सस्ता था। लौह उद्योग में कोयले से प्राप्त ईंधन का इस्तेमाल ब्रिटिश औद्योगिक क्रांति का प्रमुख कारक था।[25][26][27] डार्बी के पुराने ब्लास्ट फर्नेस की पुरातात्विक खुदाई की गई है और इसे आयरनब्रिज गोर्ज म्यूजियम के एक हिस्से कोलब्रुकडेल में यथावत देखा जा सकता है। फर्नेस से उत्पन्न कास्ट लोहे का इस्तेमाल 1779 में दुनिया की सबसे पहली लोहे की पुल की धरणी का निर्माण करने के लिए किया गया था। लोहे की यह पुल कोलब्रुकडेल में सेवर्ण नदी पर स्थित है और आज भी इस पर पैदलयात्रियों का आना-जाना लगा रहता है।

एक और महत्वपूर्ण विकास हॉट ब्लास्ट का बदलाव था जिसे 1828 में स्कॉटलैंड के विल्सनटाउन आयरनवर्क्स के जेम्स ब्यूमोंट नीलसन ने पेटेंट करवाया था। इससे उत्पादन लागत और कम हो गई। कुछ दशकों के भीतर भट्टी जितनी बड़ी "स्टोव" के इस्तेमाल की प्रक्रिया चालू हुई जिसे इसके आगे स्थापित किया जाता था जिसमें भट्टी की अपशिष्ट गैस (कार्बन युक्त) को प्रवाहित करके जलाया जाता था। इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न गर्मी का इस्तेमाल भट्टी में भर हुई हवा को पहले से गर्म करने के लिए किया जाता था।[28]

एक और अतिरिक्त महत्वपूर्ण विकास ब्लास्ट फर्नेस में कच्चे एन्थ्रासाईट कोयले का इस्तेमाल था जिसका सबसे पहला सफल प्रयास 1837 में साउथ वेल्स के नाइसीडवीन आयरनवर्क्स में जॉर्ज क्रेन द्वारा किया गया था।[29] इसे 1839 में पेंसिल्वेनिया के कैटासौकुआ की लेहाई क्रेन आयरन कंपनी द्वारा अमेरिका में लाया गया था।

आधुनिक भट्टियां

[संपादित करें]

ब्लास्ट फर्नेस आधुनिक लौह उत्पादन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। आधुनिक भट्टियां बहुत ज्यादा कुशल होती हैं जिनमें ब्लास्ट हवा को पहले से गर्म करने के लिए काउपर स्टोव भी शामिल है और भट्टी से निकलने वाली गर्म गैसों से गर्मी प्राप्त करने के लिए इसमें रिकवरी सिस्टम लगी होती हैं। उद्योग की प्रतियोगिता के फलस्वरूप अत्यधिक उत्पादन को बल मिलता है। सबसे बड़ी ब्लास्ट भट्टियों का आयतन लगभग 5580 घन मी (m3) (190,000 घन फुट)[30] होता है और लौह उत्पादन क्षमता लगभग 88,000 टन (88,000 शॉर्ट टन) प्रति सप्ताह होती है।

यह अठारहवीं सदी की प्रारूपिक भट्टियों की एक बहुत बड़ी वृद्धि है जिनकी औसत लौह उत्पादन क्षमता लगभग 360 टन (400 शॉर्ट टन) प्रति वर्ष थी। ब्लास्ट भट्टियों के भिन्न रूपों जैसे स्वीडिश इलेक्ट्रिक ब्लास्ट फर्नेस, को उन देशों में विकसित किया गया है जहां कोई स्वदेशी कोयला संसाधन नहीं है।

आधुनिक प्रक्रिया

[संपादित करें]
इन्स्टालेशन1 में रखा गया ब्लास्ट फर्नेस.लौह अयस्क + लाइमस्टोन सिंटर2.कोक3. एलिवेटर 4.फीडस्टॉक इनलेट5.कोक6 की परत. अयस्क और लाइमस्टोन 7 के सिंटर पेलेट्स की परत. हॉट ब्लास्ट (1200 डिग्री C के आसपास)8.लावा 9 का पृथकत्व.पिघले पिग आयरन का दोहन 10.लावा पॉट11.पिग आयरन के लिए टारपीडो कार 12.ठोस पदार्थों के अलग होने के लिए धूल चक्रवात 13.हॉट ब्लास्ट के लिए काउपर स्टोव 14.स्मोक आउटलेट (कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) टैंक की दिशा में मोड़ा जा सकता है) 15: काउपर स्टोव के लिए हवा की आपूर्ति करता है (एयर प्री-हीटर्स) 16.पाउडरयुक्त कोयला17.कोक ऑवन18.कोक19. ब्लास्ट फर्नेस गैस डाउनकमर
ब्लास्ट फर्नेस रेखाचित्र 1.काउपर स्टोव से हॉट ब्लास्ट 2.मेल्टिंग क्षेत्र (बोश) 3. फेरस ऑक्साइड (बैरल) का न्यूनीकरण क्षेत्र 4.फेरिक ऑक्साइड (ढेर) का न्यूनीकरण क्षेत्र 5.प्री-हीटिंग क्षेत्र (गला)6.अयस्क, लाइमस्टोन और कोक की आपूर्ति 7.इग्ज़ॉस्ट गैसेज 8.अयस्क, कोक और लाइमस्टोन का कॉलम 9.लावा का पृथकत्व 10.पिघले पिग आयरन का दोहन 11.अपशिष्ट गैसों का संग्रह

आधुनिक भट्टियां कार्यकुशलता को बढ़ाने वाली सहायक सुविधाओं की एक व्यूह रचना जैसे अयस्क भण्डारण यार्ड से सुसज्जित हैं जहाँ बार्जों को खाली किया जाता है। कच्चे माल को अयस्क पुलों या रेल होपरों और अयस्क स्थानांतरण कारों की सहायता से स्टॉकहाउस कॉम्प्लेक्स में स्थानांतरित किया जाता है। रेल-माउंटेड स्केल कार या कंप्यूटर नियंत्रित वेट होपर वांछित गर्म धातु और धातुमल रसायन का निर्माण करने के लिए विभिन्न कच्चे पदार्थों की मापतौल ज्ञात करते हैं। कच्चे माल को घिरनियों या वाहक बेल्टों द्वारा चालित एक स्किप कार के माध्यम से ब्लास्ट फर्नेस के ऊपर ले जाया जाता है।[31]

ब्लास्ट फर्नेस में कच्चे माल को चार्ज करने के लिए कई तरह के तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ ब्लास्ट फर्नेसों में एक "डबल बेल" प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है जहाँ ब्लास्ट फर्नेस में कच्चे माल के प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए दो "बेलों" का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों बेलों का उद्देश्य ब्लास्ट फर्नेस में गर्म गैसों के नुकसान को कम करना है। सबसे पहले कच्चे माल को ऊपरी या छोटी घंटी में खाली किया जाता है। उसके बाद अधिक सही ढंग से चार्ज का वितरण करने के लिए बेल को एक पूर्व निर्धारित परिमाण में घुमाया जाता है। उसके बाद बड़े बेल में चार्ज को खाली करने के लिए छोटी बेल को खोला जाता है। उसके बाद ब्लास्ट फर्नेस को बंद करने के लिए छोटे बेल को बंद कर दिया जाता है जबकि बड़ा बेल ब्लास्ट फर्नेस में चार्ज को वितरित करता है।[32][33] एक अधिक हाल की डिजाइन में "बेल रहित" प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। इन प्रणालियों में प्रत्येक कच्चे माल के लिए एकाधिक होपरों का इस्तेमाल किया जाता है जिसे तब वाल्व के माध्यम से ब्लास्ट फर्नेस में मुक्त कर दिया जाता है।[32] मिलाए जाने वाले प्रत्येक घटक के परिमाण को नियंत्रित करने में स्किप या वाहक सिस्टम की तुलना में ये वाल्व अधिक सही साबित होते हैं जिससे फर्नेस की कार्यकुशलता बढ़ जाती है। इनमें से कुछ बेल रहित प्रणालियों में चार्ज को स्थापित करने के स्थान को ठीक से नियंत्रित करने के लिए शूट (फिसलनी) का इस्तेमाल भी किया जाता है।[34]

लोहा बनाने वाली ब्लास्ट भट्टी खुद दुर्दम्य ईंटों वाली एक लंबी चिमनी जैसी संरचना के रूप में बनी होती है। कोक, चूनापत्थर फ्लक्स और लौह अयस्क (आयरन ऑक्साइड) को एक सटीक भरण क्रम में फर्नेस के ऊपरी भाग में चार्ज किया जाता है जिससे भट्टी के भीतर गैस के प्रवाह और रासायनिक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। चार "अपटेकों" (उद्ग्रहणों) से गर्म और गंदे गैस को भट्टी के गुम्बद से निकलने में मदद मिलती है जबकि "ब्लीडर वाल्व" गैस के दबाव में होने वाली अचानक वृद्धि से भट्टी के ऊपरी भाग की रक्षा करता है। प्लग-इन कर देने के बाद ब्लीडर वाल्वों को एक ब्लीडर क्लीनर से साफ़ करना पड़ता है। गैस में मौजूद मोटे कोण "डस्ट कैचर" में फंस जाते हैं और निष्कासित करने के लिए उन्हें एक रेलरोड कार या ट्रक में डाल दिया जाता है जबकि गैस खुद साफ़ गैस के तापमान को कम करने के लिए एक वेंचुरी स्क्रबर और एक गैस कूलर से होकर गुजरती है।[31]

भट्टी के निचले आधे भाग के "कास्टहाउस" में बसल पाइप, टूयर और तरल लोहे और धातुमल की ढलाई का उपकरण होता है। "नलछिद्र" को दुर्दम्य मिट्टी के प्लग के माध्यम से खोलने के बाद लोहे और धातुमल को अलग करने वाली एक "स्किमर" ओपनिंग के माध्यम से एक नांद में तरल लोहा और धातुमल निकलने लगता है। आधुनिक और बड़ी ब्लास्ट भट्टियों में अधिक से अधिक चार नलछिद्र और दो कास्टहाउस हो सकते हैं।[31] नल के माध्यम से कच्चे लोहे और धातुमल के निकलने के बाद नलछिद्र को फिर से दुर्दम्य मिट्टी से बंद कर दिया जाता है।

टूयर का इस्तेमाल हॉट ब्लास्ट को कार्यान्वित करने के लिए किया जाता है जिसका इस्तेमाल ब्लास्ट भट्टी की कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। गर्म ब्लास्ट को आधार के पास टूयर के नाम पानी से ठंडा किए जाने वाले ताम्बे की टोंटियों के माध्यम से भट्टी में ले जाया जाता है। स्टोव की डिजाइन और स्थिति के आधार पर गर्म ब्लास्ट का तापमान 900 डिग्री सेल्सियस से 1300 डिग्री सेल्सियस (1600 डिग्री फारेनहाइट से 2300 डिग्री फारेनहाइट) तक हो सकता है। उनके तापमान सहने की क्षमता 2000 डिग्री सेल्सियस से 2300 डिग्री सेल्सियस (3600 डिग्री फारेनहाइट से 4200 डिग्री फारेनहाइट) तक हो सकती है। उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त उर्जा मुक्त करने के लिए टूयर स्तर पर भट्टी में कोक के साथ तेल, अलकतरा, प्राकृतिक गैस, पाउडरयुक्त कोयला और ऑक्सीजन डाला जा सकता है।[31]

रसायन विद्या

[संपादित करें]
ट्रिनेक आयरन और स्टील वर्क्स के ब्लास्ट फर्नेस

पिघले हुए लोहे का उत्पादन करने वाली मुख्य रासायनिक प्रतिक्रिया इस प्रकार है:

Fe2O3 + 3CO → 2Fe + 3CO2[35]

इस प्रतिक्रिया को एकाधिक चरणों में बांटा जा सकता है जिनमें से पहले चरण के रूप में भट्टी में प्रवाहित पहले से गर्म ब्लास्ट हवा कोक के रूप में कार्बन के साथ प्रतिक्रिया करती है जिसके परिणामस्वरूप कार्बन मोनो ऑक्साइड और गर्मी का उत्पादन होता है:

2 kdyzdh zgdir. Sgdirn.

Zyevis tension eb fer-Canham & Overton | title = Descriptive Inorganic Chemistry, Fourth Edition | place = New York | publisher = W. H. Freeman and Company | pages = 534–535 | year = 2006 | isbn = 9780716776956 | postscript = . | url = https://archive.org/details//page/534 }}</ref>

गर्म कार्बन मोनो ऑक्साइड लौह अयस्क को कम करने वाला कारक है और यह आयरन ऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करके पिघले हुए लोहे और कार्बन डाई ऑक्साइड का निर्माण करता है। भट्टी के विभिन्न भागों के तापमान के आधार पर (निचला भाग सबसे ज्यादा गर्म होता है) लोहे को कई चरणों में परिवर्तित किया जाता है। भट्टी के सबसे ऊपरी भाग में जहाँ तापमान आम तौर पर 200 डिग्री सेल्सियस और 700 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, आयरन (III) ऑक्साइड को आयरन (II) आयरन (III) ऑक्साइड, Fe3O4 में बदल दिया जाता है।

3 Fe2O3(s) + CO(g) → 2 Fe3O4(s) + CO2(g)[36]

लगभग 850 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भट्टी में थोड़ा और नीचे की तरह आयरन (II) आयरन (III) को आयरन (II) ऑक्साइड में बदल दिया जाता है:

Fe3O4(s) + CO(g) → 3 FeO(s) + CO2(g)[36]

ताज़ी भोज्य सामग्री के रूप में भट्टी से होकर गुजरने वाली हवा में मौजूद नाइट्रोजन, गर्म कार्बन डाइऑक्साइड और अप्रतिक्रिया वाली कार्बन मोनोऑक्साइड प्रतिक्रिया क्षेत्र में प्रवेश करती है। जब ये गैसें नीचे की तरफ जाती हैं तो प्रतिकूल-वर्तमान गैसें फीड चार्ज को गर्म करने के साथ-साथ चूनापत्थर को कैल्शियम ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साई में बदल देती हैं:

CaCO3(s) → CaO(s) + CO2(g)[36]

जब आयरन (II) ऑक्साइड 1200 डिग्री सेल्सियस तक के उच्चतर तापमान वाले क्षेत्र में प्रवेश करती है तो यह आगे चलकर लौह धातु में परिणत हो जाता है:

FeO(s) + CO(g) → Fe(s) + CO2(g)[36]

इस प्रक्रिया में निर्मित कार्बन डाई ऑक्साइड कोक की सहायता से फिर से कार्बन मोनो ऑक्साइड में परिणत हो जाता है।

C(s) → CO2(g) → 2 CO(g)[36]

भट्टी के गैसीय वातावरण को नियंत्रित करने वाली मुख्य प्रतिक्रिया को बौदौआर्ड प्रतिक्रिया कहा जाता है:

C + O2 → CO2[35]
CO2 + C → 2CO[35]

भट्टी के मध्य क्षेत्रों में चूना पत्थर के अपघटन की प्रक्रिया निम्नलिखित प्रतिक्रिया के अनुसार आगे बढ़ती है:

CaCO3 → CaO + CO2[31]

अपघटन द्वारा निर्मित कैल्सियम ऑक्साइड लोहे में मौजूद विभिन्न अम्लीय अशुद्धियों (उल्लेखनीय रूप से सिलिका) के साथ प्रतिक्रिया करके एक फैयालिटिक धातुमल का निर्माण करती है जो अनिवार्य रूप से कैल्शियम सिलिकेट, CaSiO3 है:[35]

SiO2 + CaO → CaSiO3[37]

ब्लास्ट फर्नेस द्वारा निर्मित "पिग आयरन" में अपेक्षाकृत रूप से लगभग 4 से 5 प्रतिशत कार्बन सामग्री होती है जिससे यह बहुत भंगुर बन जाता है और इसका इस्तेमाल सीमित और तत्काल वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए किया जाता है। कुछ पिग आयरन का इस्तेमाल कास्ट आयरन बनाने के लिए किया जाता है। कार्बन सामग्री को कम करने के लिए और औजारों और निर्माण सामग्रियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न स्तरीय इस्पात के निर्माण करने के लिए ब्लास्ट फर्नेसों द्वारा निर्मित ज्यादातर पिग आयरन को अतिरिक्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

हालांकि ब्लास्ट भट्टियों की कार्यकुशलता में लगातार विकास हो रहा है लेकिन फिर भी ब्लास्ट भट्टी के अंदर होने वाली रासायनिक प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिकन आयरन एण्ड स्टील इंस्टिट्यूट के अनुसार: "सहस्राब्दी तक ब्लास्ट भट्टियों का वजूद रहेगा क्योंकि बड़ी और कार्यकुशल भट्टियों में अन्य लौह निर्माण प्रौद्योगिकियों की तुलना में कम खर्च पर गर्म धातु का निर्माण किया जा सकता है।"[31] ब्लास्ट भट्टियों की सबसे बड़ी खामियों में से एक खामी यह है कि इनमें अनिवार्य रूप से कार्बन डाई ऑक्साइड का निर्माण होता है क्योंकि कार्बन द्वारा आयरन ऑक्साइड को परिवर्तित करके लोहा प्राप्त किया जाता है और इसका कोई किफायती विकल्प नहीं है - इस्पात निर्माण दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के अपरिहार्य औद्योगिक योगदानकर्ताओं में से एक है (ग्रीनहाउस गैस देखें)।

ब्लास्ट भट्टी के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन द्वारा स्थापित चुनौती को यूएलसीओएस (अल्ट्रा लो CO2 स्टीलमेकिंग) एक चालू यूरोपीय कार्यम में संबोधित किया जा रहा है।[38] कम से कम 50% तक विशिष्ट उत्सर्जन (CO2 प्रति टन इस्पात) में कटौती करने के लिए कई नए प्रक्रिया मार्गों का प्रस्ताव रखा गया है और उनकी बारीकी से जांच की गई है। कुछ CO2 को हासिल करने के बाद उसे भंडारित (कैप्चर एण्ड फर्दर स्टोरेज/सीसीएस) करने पर जोर देते हैं जबकि अन्य हाइड्रोजन, बिजली और बायोमास के जरिए लोहे और इस्पात के उत्पादन को कार्बन रहित करने का सुझाव देते हैं।[39] फ़िलहाल खुद ब्लास्ट भट्टी प्रक्रिया में सीसीएस को शामिल करने वाली और टॉप-गैस रीसाइक्लिंग ब्लास्ट फर्नेस नामक एक प्रौद्योगिकी का विकास किया जा रहा है और इसके साथ ही साथ वाणिज्यिक प्रयोजन वाली एक ब्लास्ट भट्टी के निर्माण की योजना बन रही है। उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने के लिए निर्धारित घटनाक्रम की तरह जैसे ईयू द्वारा इस प्रौद्योगिकी को 2010 के दशक के अंत तक पूरी तरह से प्रदर्शित किया जाना चाहिए। व्यापक परिनियोजन 2020 से शुरू हो सकता है।

स्टोन वूल का निर्माण

[संपादित करें]

स्टोन वूल या रॉक वूल एक स्पन मिनरल फाइबर है जिसका इस्तेमाल एक इन्सुलेशन उत्पाद के रूप में हाइड्रोपोनिक में किया जाता है। इसे खनिज चट्टान को डालकर ब्लास्ट भट्टी में बनाया जाता है जिसमें बहुत कम मात्रा में धातु ऑक्साइड होती है। परिणामी धातुमल को निकालकर और घुमाकर उससे रॉक वूल उत्पाद बनाया जाता है।[40] इसमें बहुत कम मात्रा में अवांछित और अपशिष्ट उत्सर्जी धातुओं का भी निर्माण होता है।

संग्रहालय स्थल के रूप में बंद ब्लास्ट भट्टियां

[संपादित करें]

लंबे समय तक, बंद पड़ी ब्लास्ट भट्टियों को आम तौर पर ध्वस्त कर दिया जाता था और उनकी जगह एक नई तथा बेहतर भट्टी का निर्माण किया जाता था, या भट्टी क्षेत्र के आगे के इस्तेमाल के लिए इसके सम्पूर्ण क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया जाता था। हाल के दशकों में, कई देशों को अपने औद्योगिक इतिहास के रूप में ब्लास्ट भट्टियों के मूल्य का एहसास हुआ है। ध्वस्त करने के बजाय परित्यक्त इस्त्पात कारखानों को संग्रहालयों में बदल दिया गया है या उन्हें बहु-उद्देश्यीय पार्कों के रूप में एकीकृत कर दिया गया है। जर्मनी में सबसे ज्यादा संख्या में ऐतिहासिक ब्लास्ट भट्टियों को संरक्षित किया गया है और इसके अलावा स्पेन, फ़्रांस, चेक गणराज्य, जापान, लक्जमबर्ग, पोलैंड, मैक्सिको, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी ऐसी साइटें मौजूद हैं।

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]
  • बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस
  • ब्लास्ट फर्नेस जस्ता गलाने की प्रक्रिया
  • लोहे का निष्कर्षण
  • जलीय वाष्प, "स्टीम ब्लास्ट" द्वारा उत्पादित
  • फिनेक्स (FINEX)
  • फ्लोडिन प्रक्रिया
  • इंग्लैंड में लौह तथा स्टील कार्य, जिसमें सभी प्रकार के लौह कार्य समाहित हैं
  • लास्किल

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. एब्रे, पी. 30.
  2. आर्ली आयरन इन चायना, कोरिया, एंड जापान Archived 2007-02-05 at the वेबैक मशीन, डोनाल्ड बी. वैगनर, मार्च 1993
  3. Needham, Joseph (1986), Science and Civilisation in China, Volume 4: Physics and Physical Technology, Part 2, Mechanical Engineering, Taipei: Cambridge University Press, पृ॰ 370, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0521058031.
  4. दी अर्लियेस्ट यूज़ ऑफ आयरन इन चाइना Archived 2006-07-18 at the वेबैक मशीन, डोनाल्ड बी.वैगनर, 1999
  5. डोनाल्ड बी.वैगनर, 'चाइनीज ब्लास्ट फर्नेसेज़ फ्रॉम दी 10थ टू दी 14थ सेंचुरी' हिस्टोरिकल मेटलर्जी 37(1) (2003), 25-37; ओरिज़नली पब्लिश्ड इन वेस्ट एशियन साइंस, टेक्नोलॉजी, एंड मेडिसिन 18 (2001), 41-74.
  6. एब्रे, पी. 158.
  7. डंकन ई.मिलर और एन.जे.वान डेर मर्व, 'अर्ली मेटल वर्किंग इन सब सहारन अफ्रीका' जर्नल ऑफ अफ्रीकन हिस्ट्री 35 (1994) 1-36; मिंज़े स्तुइवेर और एन.जे.वान डेर मर्व, 'रेडियोकार्बन क्रोनोलॉजी ऑफ दी आयरन एज इन सब-सहारन अफ्रीका' नृविज्ञान वर्तमान 1968. टिलेकोट 1975 (नीचे देखें)
  8. "ए हिस्ट्री ऑफ सब-सहारन अफ्रीका". मूल से 14 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  9. "दी न्युबियन पास्ट". मूल से 5 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  10. "आर्कियोलॉजीक्ल इन्वेस्टिगेशन्स ऑन दी बिगनिंग ऑफ ब्लास्ट फर्नेस- टेक्नोलॉजी इन सेन्ट्रल यूरोप". मूल से 8 फ़रवरी 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 मार्च 2011.
  11. ए. वेटरहोलम, 'ब्लास्ट फर्नेस स्टडीज़ इन नोरा बर्गस्लाग' (Örebro universitet 1999, Järn och Samhälle) आईएसबीएन 91-7668-204-8
  12. एन. ब्जोकेंस्टाम, 'दी ब्लास्ट फर्नेस इन्यूरोप ड्यूरिंग दी मिडिल एजेज: पार्ट ऑफ ए न्यू सिस्टम फॉर प्रोड्यूसिंग रॉट आयरन' इन जी. माग्नुसन, दी इम्पोर्टेन्स ऑफ आयरनमेकिंग: टेक्नोलॉजीक्ल इनोवेशन एंड सोशल चेंज I (जर्नकोंटोरेट, स्टॉकहोम 1995), 143-53 एंड अदर पेपेस इन दी सेम वॉल्यूम.
  13. वुड्स, पी.34.
  14. गिम्पेल, पी. 67.
  15. वुड्स, पी.35.
  16. वुड्स, पी.36.
  17. वुड्स, पी.37.
  18. आर.डब्ल्यू. वेर्नन, जी. मैकडोनाल्ड एंड ए. श्मिट, 'एन इंट्रेगेटेड जियोलॉजीक्ल एंड एनालिटिकल एप्रेसियल ऑफ अर्ली आयरन-वर्किंग: ट्री केस स्टडीज़' हिस्टोरिकल मेटलर्जी 32(2) (1998), पीपी. 72-5, 79
  19. डेविड डर्बीशिर, 'हेनरी "स्टाम्प आउट इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन"', दी डेली टेलीग्राफ (21 जून 2002); वुड्स द्वारा उद्धृत.
  20. Schubert, H. R. (1957), History of the British iron and steel industry from c. 450 BC to AD 1775, Routledge & Kegan Paul, पपृ॰ 395–397.
  21. बी. एवटी एंड सी. व्हिटिक (पी.कॉम्बस के साथ), 'लॉर्डशिप ऑफ कैंटरबरी, आयरन-फाउंडिंग एट बस्टेड, एंड दी कॉन्टिनेंटल ऐन्टेसडन्ट्स ऑफ कैनन-फाउंडिंग इन दी वील्ड' ससेक्स आर्कियोलॉजीक्ल कलेक्शंस 140 (2002 के लिए 2004), पीपी. 71 - 81.
  22. पी.डब्लू. किंग, 'दी प्रोडक्शन एंड कंजप्शन ऑफ आयरन इन अर्ली मॉडर्न इंग्लैंड एंड वेल्स' इकॉनोमिक हिस्ट्री रिव्यू LVIII, 1-33; जी. हैमरस्ले, 'दी तारकोल आयरन इंडस्ट्री एंड इट्स फ्यूल 1540-1750' आर्थिक हिस्ट्री रिव्यू सेर. II, XXVI (1973), पीपी. 593–613.
  23. Yakovlev, V. B. (1957), "Development of Wrought Iron Production", Metallurgist, New York: स्प्रिंगर, 1 (8): 545, आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0026-0894, डीओआइ:10.1007/BF00732452, मूल से 11 अप्रैल 2020 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 2008-01-13. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  24. "आयरन जेंडर, एंड पावर - बाय यूगेनिया डब्ल्यू. हरबर्ट". मूल से 7 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  25. Raistrick, Arthur (1953), Dynasty of Iron Founders: The Darbys and Coalbrookedale, York: Longmans, Green.
  26. हाइड
  27. Trinder, Barrie Stuart; Trinder, Barrie (2000), The Industrial Revolution in Shropshire, Chichester: Phillimore, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1860771335, मूल से 2 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 23 अक्तूबर 2019.
  28. बिर्च, पीपी. 181-9
  29. हाइड, पी. 159.
  30. Made in Ukraine, मूल से 1 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 2008-05-20.
  31. "एआईएसआई". मूल से 10 मई 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  32. McNeil, Ian (1990), An encyclopaedia of the history of technology, Taylor & Francis, पृ॰ 163, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0415013062.
  33. Strassburger, Julius H. (1969), Blast furnace: Theory and Practice, Taylor & Francis, पृ॰ 564, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0677104200.
  34. Whitfield, Peter, Design and Operation of a Gimbal Top Charging System (PDF), मूल (PDF) से 5 मार्च 2009 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 2008-06-22.
  35. "Blast Furnace". Science Aid. मूल से 17 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-12-30.
  36. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; InorganicChemistry नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  37. डॉ॰ के.ई. ली, टू साइंस से (बायोलॉजी कैमिस्ट्री फिज़िक्स)
  38. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 नवंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  39. आईसीआईटी-रिव्यू डे मेटाल्यूगरी, सितंबर और अक्टूबर के अंक, 2009
  40. "वॉट्स इज स्टोन वूल?". मूल से 4 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 मार्च 2011.

संदर्भग्रन्थ

[संपादित करें]

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]