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वाताग्र

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आसमान से उमड़ते और नीचे-आगे की ओर झपटते बादलों का दृश्य, नीचे मकान भी द्रश्य हैं।
शीत वाताग्र के अगले हिस्से में बनने वाली स्क्वॉल लाइन एक ऐसी मौसमी परिघटना है जिसके सहारे वाताग्र को देखा भी जा सकता है; अन्यथा वाताग्र आँखों से दिखाई नहीं देते।

मौसम विज्ञान में वाताग्र (अंग्रेज़ी: weather front अथवा synoptic front[1]) दो भिन्न प्रकृति वाली वायुराशियों के मिलने से[2][3] बना संक्रमण क्षेत्र होता है। दूसरे शब्दों में, जब दो अलग-अलग गुणों वाली वायुराशियाँ मिलती हैं, तब उनके बीच संक्रमण क्षेत्र बनता है, जिसे वाताग्र कहते हैं। इस प्रकार, यह वायुराशियों के किनारों पर स्थित संक्रमण क्षेत्र होता हैं जहाँ वायु की कोई विशिष्टता एकदम से परिवर्तित होती है; इन विशिष्टताओं या लक्षणों में वायु का ताप, घनत्व, आर्द्रता इत्यादि में से कोई एक, अथवा एकाधिक, बदल रही हो सकती हैं। एक तरह से देखा जाय तो वाताग्र वह सीमातल है, जो दो वायुराशियों को एक - दूसरे से अलग करता है।

सीमाओं के रूप में ये वाताग्र चार प्रकार के होते हैं: उष्ण वाताग्र, शीत वाताग्र, अधिविष्ट अथवा संरोधित वाताग्र; और स्थाई अथवा स्थिर वाताग्र। वाताग्र बनने की प्रक्रिया को वाताग्रजनन (frontogenesis) कहते हैं।[4] वाताग्र एक मौसमी तंत्र है। शीतोष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति की व्याख्या वाताग्र[5] एवं वाताग्रजनन के सिद्धांत के आधार पर ही की जाती है; हालाँकि, वाताग्र इस तरह के चक्रवातीय मौसमी तंत्र से इतर भी बन सकते हैं।

वाताग्रों से साथ विविध मौसमी दशायें जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए ठंडे वाताग्र अपने साथ तड़ितझंझाओं और कपासीवर्षी बादलों की पट्टिकायें (बैंड्स) ले आ सकते हैं या स्क्वॉल लाइन के पीछे चलने वाले हो सकते हैं जबकि गर्म वाताग्र के साथ आमतौर पर स्तरी बादल, हल्की वर्षा या फिर कोहरा इत्यादि जुड़े होते हैं। गर्मियों में मामूली किंतु प्रभावशाली आर्द्रता प्रवणता, जिसे ड्राई लाइन के नाम से जाना जाता है, भीषण मौसमी दशायें उत्प्रेरित कर सकती है। कुछ वाताग्रों कोई वर्षण नहीं उत्पन्न करते हैं हालाँकि इनके साथ पवनों की दिशा में बदलाव अवश्य देखने को मिलता है।[6]

उत्पत्ति

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जब दो भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियाँ विपरीत दिशाओं से आकर अभिसरण का प्रयास करती हैं, तब ये पूर्ण रूप से मिश्रित नहीं हो पाती एवं उनके किनारों के हिस्से में ढलुआँ सतह के रूप में एक सीमा का निर्माण होता है।[4] इसी सतह को, मौसम विज्ञान में, सीमाग्र या वाताग्र कहा जाता है। यहाँ दो विपरीत दिशा से आने वाली वायु राशियों के गुणों का मिश्रण होना प्रारंभ होता है। वाताग्र के बनने की इस प्रक्रिया को वाताग्रजनन कहते हैं। इसके लिए दो दशाओं का होना अति आवश्यक है:[2] (1) दो वायुराशियाँ विपरीत स्वभाव अथवा अभिलक्षण (तापमान, आर्द्रता, घनत्व इत्यादि) वाली होनी चाहिए; उदाहरण के लिए एक वायु ठंडी, भारी एवं शुष्क हो सकती है जबकि दूसरी वायु गर्म, हल्की तथा आर्द्र हो, और (2) दो विपरीत दिशाओं से वायु का अभिसरण (कन्वरजेंस) होना चाहिए।[2]

अधिक तकनीकी रूप से देखा जाय तो वाताग्रजनन आम तौर पर किसी विकसित हो रहे बैरोक्लिनिक (baroclinic) तरंग के परिणामस्वरूप होता है।[a] हॉस्किन्स और ब्रेथरटन (1972, पृष्ठ 11)[8] के अनुसार, तापमान प्रवणताओं को प्रभावित करने वाले आठ प्रमुख मैकेनिज्म होते हैं: क्षैतिज विकृति (horizontal deformation), क्षैतिज शीयरिंग (horizontal shearing), ऊर्ध्वाधर विकृति (vertical deformation), विभेदात्मक ऊर्ध्व गति (differential vertical motion), गुप्त ऊष्मा का मुक्त होना, सतही घर्षण, टर्बुलेंस और मिश्रण (turbulence and mixing), विकिरण

सेमी-जियोस्ट्रॉफिक वाताग्रजनन सिद्धांत मुख्यतः क्षैतिज विकृति और शीयरिंग की भूमिका पर आधारित होता है।

वाताग्र के धीरे-धीरे क्षीण पड़ने अथवा विलुप्त हो जाने की प्रक्रिया को 'वाताग्र संलयन' (फ़्रंटोलायसिस) के नाम से जाना जाता है।

सतही मौसम विश्लेषण

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सतही मौसम विश्लेषण मौसम मानचित्र का एक विशेष प्रकार होता है, जो किसी निर्धारित समय पर किसी भौगोलिक क्षेत्र के ऊपर मौसमीय तत्वों का टॉप-व्यू प्रस्तुत करता है। यह जानकारी ज़मीनी मौसम स्टेशनों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित होती है। मौसम मानचित्रों का निर्माण समुद्र-स्तर पर वायु दाब, तापमान, बादल आवरण आदि जैसे महत्वपूर्ण मानों का पता लगाकर, उन्हें मानचित्र पर चिह्नित और रेखांकित करके किया जाता है। इससे वाताग्र जैसे सिनॉप्टिक-पैमाने (synoptic scale) की विशेषताएँ पहचानी जा सकती हैं।

सतही मौसम विश्लेषण में कुछ विशेष प्रतीकों का उपयोग किया जाता है, जो वाताग्र तंत्र, बादल आवरण, वर्षा या अन्य महत्वपूर्ण जानकारी को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए:

  • "H" का चिह्न उच्च दाब क्षेत्र को दर्शाता है, जो सामान्यतः साफ़ और शांत मौसम का संकेत होता है।
  • इसके विपरीत, "L" का चिह्न निम्न दाब क्षेत्र को दिखाता है, जो प्रायः वर्षा और तूफ़ानों से जुड़ा होता है।

निम्न दाब क्षेत्र सतही हवाओं को उच्च दाब क्षेत्रों से अपनी ओर आकर्षित करता है, और इसके विपरीत भी होता है।

मौसम मानचित्रों पर न केवल वाताग्र क्षेत्रों और सतही सीमाओं को दर्शाने के लिए, बल्कि विभिन्न स्थानों पर उस समय का वास्तविक मौसम बताने के लिए भी अलग-अलग प्रतीकों का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वर्षा वाले क्षेत्रों की पहचान से वाताग्र के प्रकार और स्थान का भी अनुमान लगाया जा सकता है।

बर्जरॉन द्वारा वायुराशियों का वर्गीकरण

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विभिन्न वायु द्रव्यमान जो उत्तर अमेरिका और अन्य महाद्वीपों को प्रभावित करते हैं, आमतौर पर वाताग्रों द्वारा विभाजित होते हैं। इस चित्रण में, आर्कटिक फ्रंट आर्कटिक और पोलर वायुराशियों को अलग करता है, जबकि पोलर फ्रंट ध्रुवीय वायु और गर्म वायुराशियों को अलग करता है। (cA continental arctic; cP continental polar; mP maritime polar; cT continental tropic; और mT maritime tropic हैं।)

स्वीडिश मौसम विज्ञानी बर्जरॉन द्वारा किया गया वर्गीकरण वायुराशियों के वर्गीकरण का सबसे व्यापक रूप से स्वीकार किया गया तरीका है। वायुराशियों को तीन अक्षरों से दर्शाया जाता है:[9][10] विभिन्न प्रकार या उत्पत्ति वाले वायुराशियों वाताग्र अलग करते हैं, और ये निम्न वायुदाब के क्षेत्रों के साथ स्थित होते हैं।[11]

  • पहला अक्षर इसकी नमी की विशेषताओं को दर्शाता है, जैसे:
    • ccontinental अर्थात महाद्वीपीय वायुराशि (सूखा) के लिए प्रयोग होता है
    • mmaritime महासागरीय वायुराशि (नम) के लिए प्रयोग होता है।
  • दूसरा अक्षर इसके स्रोत क्षेत्र के तापीय गुण को दर्शाता है:
    • Ttropical (उष्णकटिबंधीय) के लिए
    • Ppolar (ध्रुवीय) के लिए
    • AArctic या Antarctic (आर्कटिक या अंटार्कटिक) के लिए
    • Mmonsoon (मानसूनी) के लिए
    • Eequatorial (भूमध्यरेखीय) के लिए
    • Ssuperior वायु (वायुमंडल में ऊर्ध्वगामी गति द्वारा बनी शुष्क वायु) के लिए
  • तीसरा अक्षर वायुमंडल की स्थिरता को दर्शाता है; इसे ऐसे चिह्नित किया जाता है:
    • k   यदि वायुराशि नीचे की सतह से colder (“kolder”) यानी ठंडा हो
    • w   यदि वायुराशि नीचे की सतह से warmer यानी गर्म हो

उष्ण वाताग्र

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उष्ण वाताग्र किसी समरूपी गर्म वायुराशि के अग्रभाग पर स्थित होता है, जो समताप रेखाओं के तापमान प्रवणता के भूमध्यवर्ती अर्थात भूमध्यरेखा की ओर, वाले किनारे पर पाया जाता है। यह आमतौर पर शीत वाताग्र की तुलना में व्यापक निम्नदाब द्रोणी में स्थित होता है।

उष्ण वाताग्र की गति शीत वाताग्र से धीमी होती है, क्योंकि ठंडी हवा अधिक घनी होती है और उसे सतह से ऊपर उठाना कठिन होता है। इसके कारण उष्ण वाताग्र के पार तापमान में परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमे और बड़े क्षेत्र में होता है। उष्ण वाताग्र के आगे प्रकट होने वाले बादल प्रायः स्तरीय प्रकार के होते हैं, और वर्षा धीरे-धीरे बढ़ती है जैसे-जैसे वाताग्र पास आता है। कभी-कभी उष्ण वाताग्र से पहले कोहरा भी देखा जा सकता है। वाताग्र के पार होने के बाद, आम तौर पर तेज़ी से साफ मौसम और गर्मी आती है।

यदि गर्म वायुराशि अस्थिर हो, तो उष्ण वाताग्र के आगे के बादलों में झंझावात भी छिपे हो सकते हैं, और वाताग्र के गुज़रने के बाद भी कुछ समय तक गरज के साथ बारिश जारी रह सकती है। मौसम मानचित्रों में, उष्ण वाताग्र को एक ठोस लाल रेखा द्वारा दर्शाया जाता है, जिसमें अर्धवृत्ताकार चिह्न उस दिशा की ओर संकेत करते हैं, जिधर की तरफ़ गर्म वायुराशि अग्रसर हो रही होती है।

शीत वाताग्र

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ठंडा वाताग्र या शीत वाताग्र एक सतही वायुमंडलीय सीमा होती है जो उच्च तापीय प्रवणता वाले क्षेत्र, अर्थात क्षैतिज रूप से जहाँ हवा के तापमान में तेजी से बदलाव हो रहा हो, में गर्म भाग की दिशा में अवस्थित होती है। मौसम मानचित्रों, जिन्हें सतही विश्लेषण मानचित्र भी कहा जाता है, पर यह तापीय प्रवणता समताप रेखाओं की सघनता द्वारा परिलक्षित होती है, तथा कई बार इसे समदाब रेखाओं के माध्यम से भी चिह्नित किया जा सकता है, क्योंकि शीत वाताग्र प्रायः एक सतही ट्रफ के साथ संरेखित रहता है।

मौसम मानचित्रों में इसकी की सतही स्थिति को एक ठोस नीली रेखा द्वारा दर्शाया जाता है, जिसमें त्रिभुजाकार चिह्न होते हैं जो उस दिशा में इंगित करते हैं जिस दिशा में शीतल वायु गमन कर रही होती है। यह रेखा उस अग्रभाग (leading edge) को निरूपित करती है जहाँ ठंडी वायुराशि आगे बढ़ रही होती है।[12] शीत वाताग्र के आगमन से सामान्यतः वर्षा और कभी-कभी तीव्र झंझावात उत्पन्न होते हैं। चूँकि, शीतल वायु का घनत्व गर्म वायु से अधिक होता है, अतः शीत वाताग्र, उष्ण वाताग्र की अपेक्षा दोगुनी गति से भी अग्रसर हो सकता है। यह शीतल वायु, वाताग्री सीमा के पूर्व की ओर (उत्तरी गोलार्ध में) स्थित गर्म वायु को न केवल उसके नीचे से प्रवेश करके ऊपर उठाती है, बल्कि उसे आगे भी धकेलती है। यह ऊर्ध्वगामी गति, यदि उस समय वायुमंडल में पर्याप्त आर्द्रता हो, तो उठी हुई नम ऊष्म वायु के संघनन के कारण एक संकीर्ण वर्षा-रेखा या गर्जन-तूफान की रेखा उत्पन्न कर सकती है।

हालाँकि, यह सामान्य व्याख्या कि "घनी शीतल वायु, विरल ऊष्म वायु के नीचे सरक कर प्रवेश जाती है", अत्यधिक सरलीकृत है।[13] वस्तुतः यह ऊर्ध्वगामी प्रवाह, पृथ्वी की घूर्णन गति के सापेक्ष जियोस्ट्रॉफिक संतुलन (geostrophic balance) को बनाए रखने की एक सक्रिय प्रक्रिया है, जो फ्रंटोजेनेसिस (frontogenesis) के दौरान संपन्न होती है।

वर्षण के कारक के रूप में

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वाताग्र वायुमंडलीय प्रक्रियाओं में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वर्षण तथा खासतौर पर वर्षा की उत्पत्ति के प्रमुख कारणों में से एक माने जाते हैं। वायुमंडल में जब दो भिन्न तापमान एवं आर्द्रता वाली वायु राशियाँ एक-दूसरे से मिलती हैं, तो उनके संयोग क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। इन वायु राशियों के मिलने से वायु के ऊर्ध्वाधर गति में वृद्धि होती है, जिससे संघनन एवं बादल निर्माण होता है — जो अंततः वर्षा का कारण बनता है।

जब एक ठंडा वाताग्र किसी गर्म, आर्द्र वायुराशि को विस्थापित करता है, तो वह उसे तेज़ी से ऊपर की ओर उठाता है। इस तीव्र उत्क्रमण (uplift) से संवहनात्मक वर्षा उत्पन्न होती है, जिसमें गर्जन, चमक, बौछारें और कभी-कभी तूफ़ान भी शामिल हो सकते हैं। यह वर्षा तीव्र होती है परंतु सीमित क्षेत्र में सीमित समय तक होती है। जब ठंडी ध्रुवीय वायु गर्म भूमध्यरेखीय वायु को धकेलती है, तो उसके परिणामस्वरूप अचानक तेज़ बारिश और बिजली-गरज की घटनाएँ होती हैं।[14]

गर्म वाताग्र अपेक्षाकृत शांत गति से आगे बढ़ता है और ठंडी वायु राशि के ऊपर धीरे-धीरे चढ़ता है। इससे स्तरी बादलों का निर्माण होता है और वर्षा भी शांत, दीर्घकालिक तथा विस्तृत क्षेत्र में होती है — जिसे हल्की बारिश या फुहार के रूप में जाना जाता है। यह वर्षा आगे बढ़ते वाताग्र के आने से पहले ही आरंभ हो जाती है और लंबे समय तक बनी रह सकती है।[15]

अधिवेष्टित वाताग्र में ठंडी और गर्म दोनों वायु राशियों की विशेषताएँ मौजूद होती हैं। यह तब बनता है जब एक ठंडा वाताग्र किसी गर्म वाताग्र को पकड़ लेता है। इसमें वायु का उत्क्रमण जटिल होता है और वर्षा का स्वरूप भी मिश्रित (continuous rain with occasional showers) होता है।

वाताग्र जब पर्वतीय क्षेत्रों से टकराते हैं तो वायु ऊपर की ओर उठती है, जिससे अरोही अथवा पर्वतीय वर्षा होती है। इसके अतिरिक्त, आउटफ्लो सीमाएँ, ली ट्रफ्स, और स्थानीय हवाएँ भी वाताग्र की सहायता से संवहन को प्रोत्साहित करती हैं।

यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक वाताग्र वर्षा लाए। यदि उस क्षेत्र की वायु में पर्याप्त नमी उपलब्ध नहीं है, तो वर्षा या बादल बनने की संभावना नगण्य होती है। इसलिए, केवल वाताग्र की उपस्थिति ही वर्षा की गारंटी नहीं देती, बल्कि नमी की मात्रा भी निर्णायक भूमिका निभाती है।

गतिशीलता

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वाताग्र सामान्यतः ऊपरी वायुमंडलीय पवनों द्वारा दिशा प्राप्त करते हैं, लेकिन वे उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ते। उत्तरी गोलार्ध में, ठंडे वाताग्र और अधिवेष्टित वाताग्र आम तौर पर उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की दिशा में यात्रा करते हैं, जबकि गर्म वाताग्र समय के साथ ध्रुवीय दिशा में बढ़ते हैं।

उत्तरी गोलार्ध में कोई गर्म वाताग्र प्रायः दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर गति करता है। वहीं, दक्षिणी गोलार्ध में इसका ठीक उल्टा होता है — वहाँ ठंडा या अधिवेष्टित वाताग्र सामान्यतः दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व, और गर्म वाताग्र उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ता है।

वाताग्रों की यह गति मुख्य रूप से दाब प्रवणता बल (pressure gradient force — वायुमंडलीय दाब में क्षैतिज अंतर) और कोरिऑलिस प्रभाव (coriolis effect — पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण उत्पन्न) के कारण होती है।

वाताग्र क्षेत्रों की गति को कुछ भौगोलिक संरचनाएँ — जैसे पर्वत और बड़े गर्म जल निकाय (large bodies of warm water) — धीमा भी कर सकते हैं।

  1. बैरोक्लिनिक तरंग (Baroclinic wave) वायुमंडल में तब विकसित हो सकती है जब किसी निश्चित दाब स्तर (pressure level) पर पवन का प्रवाह तापमान (या संभावित तापमान) की समताप रेखाओं (isotherms) के समानांतर हो रहा हो और प्रवाह के पार तापमान प्रवणता शून्य न हो।[7]

सन्दर्भ

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  1. Markowski & Richardson 2011, p. 117.
  2. गर्ग 2021, p. 84.
  3. Laju & Prasetyo, p. 102.
  4. गर्ग 2021, p. 83.
  5. Singh 2022, p. 72.
  6. Miller, Samuel T. (10 नवम्बर 2000). "Clouds and precipitation". STEC 521 lecture notes. Durham, NH: University of New Hampshire. मूल से से 11 जनवरी 2005 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 8 जुलाई 2011.
  7. Wallace, Thompson & Beresford 2015, p. 33–42.
  8. Hoskins & Bretherton 1972, p. 11–37.
  9. "Airmass classification". Glossary of Meteorology. अभिगमन तिथि: 2008-05-22 – via amsglossary.allenpress.com.
  10. Saravanan, K.J., ed. (27 जून 2008). "Bergeron classification of air masses". weatherfront.blogspot.com. अभिगमन तिथि: 19 एप्रिल 2022.
  11. Ahrens, C. Donald (2007). Meteorology Today: An introduction to weather, climate, and the environment. Cengage Learning. p. 296. ISBN 978-0-495-01162-0.
  12. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Roth-2013-11-21 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  13. "Overrunning". [letter] 'O'. Glossary. NOAA / National Weather Service. अभिगमन तिथि: 2010-05-02.
  14. Ahrens, C. Donald. Meteorology Today, 10th ed., Cengage Learning, 2013
  15. Barry, R.G., & Chorley, R.J. Atmosphere, Weather and Climate, 9th ed., Routledge, 2009

स्रोत ग्रंथ

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