वाँन थ्यूनेन का सिद्धान्त
![]() | इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (दिसम्बर 2020) स्रोत खोजें: "वाँन थ्यूनेन का सिद्धान्त" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |

जर्मन विद्वान (१७८३-१८५०) ने मैकलेनबर्ग में फार्म मैनेजर के पद पर पर कार्य करते हुए अपने अनुभव के आधार पर 1826 में कृषि भूमि उपयोग के लिए अवस्थिति सिद्धान्त का पतिपादन किया जो तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित हैं। उनका यह सिद्धान्त निश्चयवादी तथा मानकीय है।
वॉन थ्युनेन ने यह प्रेक्षण किया कि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने वाली भूमियों पर भिन्न प्रकार के भूमि उपयोग होते हैं। बाजार से निकटतम वलय में शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का विशेषीकरण मिलता है, जिनका माँग अधिक होता है तथा जिनका परिवहन व्यय महंगा है। इस वलय क बाहर की ओर कम नष्ट होने वाली, कम परिवहन लागत वाली तथा कम बाजार मूल्य वाली वस्तुओं के वलय विकसित होते हैं।
सिद्धान्त का प्रतिपादन
[संपादित करें]
जहाँ R = भूमि का लगान (rent); Y = प्रति इकाई भूमि पर उत्पादन; c = उत्पादन खर्च प्रति उत्पादन-इकाई; p = बाजार मूल्य प्रति उत्पादन-इकाई; F = भाड़े की दर (प्रति कृषि-इकाई, प्रति मील); m = बाजार की दूरी
कृषि भूमि उपयोग का सिद्धान्त: थ्यूनेन के चक्र
[संपादित करें]
मुल्यांकन और आलोचना
[संपादित करें]जिस प्रकार के क्षेत्र की कल्पना की उस प्रकार का कोई क्षेत्र विद्यमान नहीं है।
परिवहन व्यय केवल भार व दूरी के अनुपात में ही नहीं बढ़ता, बल्कि अन्य कारक भी कार्यरत होते हैं।
चित्र अनुसार मिट्टी की उत्पादन क्षमता सभी फसलों के लिए सामान नहीं है।