वनस्थली विद्यापीठ

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वनस्थली विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है जो राजस्थान के टोंक जिले की निवाई में स्थित है। जहॉ शिशु कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षण एंव अनुसंधान कार्य हो रहा है। विद्यापीठ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 3 के अधीन भारत सरकार द्वारा समविश्वविद्यालय घोषित किया गया है। विद्यापीठ भारतीय विश्वविद्यालय संघ तथा एसोसिएशन ऑफ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज का सदस्य है।

वनस्थली का वातावरण स्वतंत्रता का वातावरण है। छात्राओं को अधिकतम स्वतन्त्रता दी जाती है और उनके व्यक्तित्व के निर्माण का प्रयास किया जाता है। जो छात्रा दो-चार वर्ष वनस्थली में पढ़ लेती है उसके व्यक्तित्व मे वनस्थली की झलक देखी जा सकती है। वनस्थली के विशाल पुस्तकालय में लगभग एक लाख पुस्तकें हैं जिनमें उच्चकोटि के अनेक दुर्लभ ग्रन्थ भी हैं। लगभग 750 पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती हैं जिनमें उच्च स्तर की विदेशी पत्रिकाएँ भी हैं। क्षेत्रीय स्तर पर, राज्य के स्तर पर, तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी वनस्थली की छात्राएँ खेलकूद के विभिन्न कार्यक्रमों में पुरस्कृत होती है। घुड़सवारी के प्रशिक्षण की यहाँ जो व्यवस्था है वह यही का एक विशिष्ट और सराहनीय पक्ष है। लगभग प्रतिवर्ष ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान विश्वविद्यालय की मेरिट लिस्ट में यहाँ की छात्राएँ भी स्थान पाती हैं। वनस्थली का उच्च माध्यमिक विद्यालय देश का प्रथम 'गर्ल्स ऑटोनॉमस स्कूल' है।

लक्ष्य[संपादित करें]

विद्यापीठ का लक्ष्य पूर्व एंव पश्चिम की आध्यात्मिक विरासत एंव वैज्ञानिक उपलब्धि के समन्वय को व्यक्त करने वाली छात्राओं के सर्वतोभद्र व्यक्तित्व का विकास करना है।

स्थापना[संपादित करें]

ग्राम पुननिर्माण का कार्यक्रम प्रारम्भ करने और साथ ही रचनात्मक कार्यक्रम के माध्यम से सार्वजनिक कार्यकर्ता तैयार करने की इच्छा, विचार और योजना मन में लिए हुए, वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक स्व. पं॰ हीरालाल शास्त्री ने सन् 1929 में भूतपूर्व जयपुर राज्य सरकार में गृह तथा विदेश विभाग के सचिव के सम्मानपूर्ण पद को त्याग कर बन्थली (वनस्थली) जैसे सुदूर गाँव को अपने भावी कार्यक्षेत्र के रूप में चुना। उनके साथ उनकी पत्नी स्व. श्रीमती रतन शास्त्री भी इस कार्य के लिये आगे आईं।

यहाँ यह कार्य करते हुए पं॰ हीरालाल शास्त्री एवं श्रीमती रतन शास्त्री की अपनी प्रतिभावान पुत्री 12.5 वर्षीय का अचानक 25 अप्रैल 1935 को केवल एक दिन की अस्वस्थता के पश्चात निधन हो गया। शान्ता बाई से उन्हें समाज-सेवा की बड़ी उम्मीद थी। इस एस आभाव और रिक्तता की भावनात्मक पूर्ति के लिए उन्होनें अपने परिचितों–मित्रों की 5-6 बच्चियों को बुला कर उनके शिक्षण का कार्य आरम्भ कर दिया और इसके लिये 6 अक्टूबर 1935 को श्रीशान्ता बाई शिक्षा-कुटीर की स्थापना की, जो कि बाद में वनस्थली विद्यापीठ के रूप में विकसित हुई।

वनस्थली शिक्षा की विशेषताएँ[संपादित करें]

वनस्थली की पंचमुखी शिक्षा और उसे सम्पन्न करने के लिए जो विशेष प्रवृत्तियाँ आयोजित की जाती हैं उनके आधार पर वनस्थली की शिक्षा की अग्रलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं -

  • 1. पूर्व व पश्चिम की आध्यात्मिक विरासत और वैज्ञानिक उपलब्धियों का समन्वय,
  • 2. सर्वांगीण प्रगतिशील शिक्षा
  • 3. भारतीय संस्कृति और आचार-विचार पर बल,
  • 4. व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक उत्तरदायित्व और मर्यादा पालन में संतुलन,
  • 5. सादा जीवन,
  • 6. आदतन खादी पहनना,
  • 7. अपने निजी तथा घरेलू कार्य स्वयं करने पर आग्रह और
  • 8. छात्रावासों में बिना किसी भेदभाव के सामूहिक जीवन।

शिक्षा का अखिल भारतीय केन्द्र[संपादित करें]

विभिन्न वर्गों और जातियों की लड़कियाँ भारत के प्राय: सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों तथा नेपाल, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, केनिया, कुवैत, थाईलैण्ड, तंजानिया, जापान, जर्मनी, यू॰एस॰ए॰ आदि कुछ दूसरे देशों से भी यहाँ शिक्षा प्राप्त करने के लिए आती है। इस प्रकार विद्यापीठ शिक्षा का अखिल भारतीय केन्द्र तो है ही, अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र के रूप में भी इसका उदय हो रहा है। इसी दृष्टि से विशेष शिक्षाक्रम में प्रवेश लेने वाली विभिन्न देशों की छात्राओं के लिए वनस्थली विद्यापीठ में 'शान्ता विश्वनीडम्’ नाम से एक अन्तर-राष्ट्रीय भवन का निर्माण किया गया है। मुख्यतया विदेशी छात्राओं के लिए जिन पाठ्यक्रमों का आयोजन किया जाता है वे इस प्रकार हैं-

1. गाँधी विचार और व्यवहार,
2. भारतीय चित्रकला,
3. भारतीय संगीत,
4. भारतीय नृत्य और
5. भारतीय भाषाएँ।

इन शिक्षाक्रमों की अवधि एक वर्ष है।

वनस्थली की पंचमुखी शिक्षा[संपादित करें]

यह सर्वांगीण शिक्षा देने की दृष्टि से एक विशिष्ट शिक्षा योजना है। वनस्थली की पंचमुखी शिक्षा के पाँच अंग हैं - शारीरिक, व्यावहारिक (गृहस्थ शिक्षा, श्रम कार्य और उद्योग), ललितकला विषयक, नैतिक और बौद्धिक। विद्यापीठ में विभिन्न स्तर के शिक्षाक्रम में इन पाँचों अंगों का समावेश किया गया है।

शारीरिक शिक्षा - इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की ड्रिलें (जैसे लाठी, लेजिम, गदका, डम्बल्स जोड़ी, तलवार, भाला, सैनिक कवायद, बाल कवायद आदि) नाना प्रकार के आधुनिक और पुराने खेल व स्पोर्ट्स (जैसे कबड्डी, खो-खो, हॉकी, बास्केट बॉल, वॉलीबॉल, बैडमिण्टन, थ्रो-बॉल, हैण्ड-बॉल, डीज-बॉल, लाँग-जम्प, हाई-जम्प) तथा साईकिल सवारी, घुड़सवारी तथा तैरना सिखाने की यथासंभव व्यवस्था की जाती है। यौगिक आसनों को सिखाने का भी प्रबन्ध है। विभिन्न स्तर पर छात्राओं के लिए एन.सी.सी. की शाखाएँ भी चलती है। छात्राओं को बन्दूक चलाना भी सिखाया जाता है। विद्यापीठ के ग्लाइडिंग लाइंग क्लब की स्थापना छात्राओं को ग्लाइडिंग व लाशा का प्रशिक्षण देने की दृष्टि से की गई है। शारीरिक उच्च शिक्षा हेतु यहां डिग्री प्रदान की जाती है।

व्यावहारिक शिक्षा - इसके अन्तर्गत घर-गृहस्थी के काम जिसमें भोजन बनाने तथा दूसरे सम्बन्धित काम जैसे - पापड़, मंगोड़ी, बिस्कुट बनाने आदि का समावेश हो जाता है। कातना, रंगाई, छपाई (सांगानेरी), बत्तिक का काम, सोना और कशीदा करना; दर्जी का काम; खिलौना बनाना; जिल्दसाजी करना; पेपरमेशी का काम; क्ले मॉडलिंग, चमड़े के पर्स ; पोर्टफोलियो आदि चीजें बनाना; तेल, साबुन, पाउडर और वेसलीन बनाना तथा बर्तनों पर कलई करना शामिल है। इन कार्यों में से कुछ काम बराबर चलते हैं और कुछ सुविधानुसार चलाए जाते है। सभी छात्राएँ अपने कमरों की सफाई और अपने बर्तन स्वयं साफ करती हैं और एक हद तक अपने कपड़े भी स्वयं धोती है। पिछले कुछ वर्षों से सामूहिक श्रम-कार्य की योजना भी चल रही है।

कला शिक्षा - विभिन्न स्तर पर संगीत (गायन एवं वृन्द वादन) और चित्रकला दोनों में से किसी एक की शिक्षा छात्राओं को मिल सके इसकी व्यवस्था विद्यापीठ के शिक्षाक्रम में की गई है। शेष कक्षाओं मैं जिन छात्राओं के परीक्षा विषयों में संगीत और चित्रकला का समावेश नहीं होता उनके लिए इन विषयों के सीखने की विशेष व्यवस्था है। नृत्य शिक्षा (कत्थक, मणिपुरीभरतनाट्यम) शिक्षा की व्यवस्था भी है। विभिन्न कलाओं के लिये प्रशिक्षण एवं डिग्रीयाँ प्रदान की जाती है। चित्रकला एवं संगीत में हाई स्कूल परीक्षा पास करने पर इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाता है।

नैतिक शिक्षा - छात्राओं के नैतिक व्यक्तित्व का विकास करना तथा उनमें सर्वधर्म समभाव पैदा करना नैतिक शिक्षा का लक्ष्य है। यह शिक्षा उपदेशात्मक ढंग से नहीं दी जाती। सर्वधर्म समन्वय की दृष्टि को ध्यान में रखते हुए विद्यापीठ और छात्रावास में होने वाली सामूहिक प्रार्थनाएँ, साप्ताहिक बातचीत और वेद, गीता, रामायण तथा दूसरे धर्म-ग्रन्थों आदि का पाठ, छात्र-पंचायतें, छात्रावास का बिना किसी भेदभाव के सामूहिक और सम्मिलित जीवन और वातावरण की स्वच्छता विद्यापीठ की नैतिक शिक्षा के प्रमुख साधन है। इस दृष्टि से विद्यापीठ की सामूहिक सायंकालीन प्रार्थना और प्रार्थना के बाद होने वाले प्रवचन विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

बौद्धिक शिक्षा - छात्राओं के विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आज की प्रचलित शिक्षा प्रणाली के दोषों से यहाँ की शिक्षा यथासंभव मुक्त रहे। प्राकृतिक तथा सामाजिक ज्ञान की शिक्षा प्रारम्भ से ही दी जाती है। इतिहास में विश्व इतिहास की शिक्षा को भी आवश्यक स्थान दिया गया है। अंग्रेजी का अध्ययन कक्षा 6 से प्रारम्भ होता है। शिक्षण पद्धति में सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण, भ्रमण और यात्रा, पर्व-समारोहों और नाटक चुने हुए विषयों पर तैयार की जाने वाली प्रायोजनाओं, चित्रों, चार्टों और नक्शों का यथावश्यक उपयोग किया जाता है। शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य परीक्षाएँ पास करना न बने और शिक्षा व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित हो, इसका भी ख्याल रखा जाता है। परीक्षा पद्धति में छात्राओं के दैनिक कार्य से किए जाने वाले मूल्यांकन को भी स्थान दिया गया है

विभिन्न विभाग[संपादित करें]

1. प्राथमिक विद्यालय - (बाल मन्दिर तथा कक्षा 1 से 5 तक) - इस विद्यालय में विद्यापीठ का अपना स्वतंत्र शिक्षाक्रम है।

2. उच्च माध्यमिक विद्यालय - (कक्षा 6 से 11 तक) - इस विद्यालय में कक्षा 6 से 8 तक का अपना स्वतंत्र शिक्षाक्रम हैं। कक्षा 10वीं एवं 12वीं में वनस्थली विद्यापीठ का स्वतंत्र बोर्ड है। इस स्तर पर कला, विज्ञान तथा गृह विज्ञान इन तीन वर्गों के अध्ययन की व्यवस्था है। अब पाठ्यक्रम एवं परीक्षाएँ एवं प्रमाण पत्र सभी वनस्थली बोर्ड के हैं। विद्यापीठ का उच्च माध्यमिक विद्यालय न केवल राजस्थान का बल्कि भारत का सबसेपहला 'गर्ल्स ऑटोनॉमस स्कूल' है। बालिकाओं के अतिरिक्त विद्यालय स्तर पर बालकों के लिये भी अलग विद्यालय की व्यवस्था है। जहां कक्षा 12वीं तक अध्ययन संभव है।

3. ज्ञान-विज्ञान महाविद्यालय - इनमें पी.यू.सी., बी.ए., बी.एस-सी., एम.ए. (दस विषयों में), एम.एस-सी. (केवल रसायन शास्त्र में), पोस्ट एम.ए. डिप्लोमा इन लिंग्विस्टिक्स के अतिरिक्त हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, इतिहास, संगीत और भाषा विज्ञान में अनुसंधान की भी सुविधा उपलब्ध है। विदेशी भाषाओं में राजस्थान विश्वविद्यालय के जर्मन तथा फ्रेंच के सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा परीक्षाओं के शिक्षाक्रमों की व्यवस्था है। ये पाठ्यक्रम अपनेसामान्य पाठ्यक्रम के साथ-साथ लिए जाते हैं।

4. शिक्षा महाविद्यालय - बी.एड. और एम.एड. के पाठ्यक्रम के अतिरिक्त पी.एच.डी. के अनुसंधान के लिए भी मान्यता प्राप्त है।

5. वेद विद्यालय - विद्यालय का मूल उद्देश्य वेद के अध्ययन, अध्यापन की व्यवस्था करना है, साथ ही यह विद्यालय राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संस्कृत की परीक्षाओं के लिए सम्बन्धित है। वर्तमान में संस्कृत, ऋग्वेद, यजुर्वेदसामवेद के अध्ययन के लिए प्रारम्भिक व उच्चस्तरीय कक्षाएँ चलाई जाती है। और तदनुसार बोर्ड की 'प्रवेशिका' और 'मध्यमा' (उपाध्याय) परीक्षाओं के लिए यहाँ व्यवस्था है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]