वक़्त (1965 फ़िल्म)
वक़्त | |
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वक़्त का पोस्टर | |
निर्देशक | यश चोपड़ा |
लेखक |
अख्तर मिर्ज़ा (कहानी) अख्तर उल-इमान (संवाद) |
निर्माता | बी आर चोपड़ा |
अभिनेता |
सुनील दत्त, बलराज साहनी, राज कुमार, शशि कपूर, साधना, शर्मिला टैगोर, रहमान |
छायाकार | धर्म चोपडा |
संपादक | प्राण मेहरा |
संगीतकार | रवि |
वितरक | बी आर फ़िल्म्स |
प्रदर्शन तिथि |
1965 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
वक्त सन् 1965 में प्रदर्शित तथा चोपड़ा बंधुओ द्वारा निर्मित व निर्देशित हिन्दी फ़िल्म है। जिसमें उस दौर के प्रमुख अभिनेता सुनील दत्त , राज कुमार, साधना, बलराज साहनी, शशि कपूर, शर्मिला टैगोर व रहमान इत्यादि शामिल है।
संक्षेप
[संपादित करें]लाला केदारनाथ नगर के एक संपन्न व्यपारी है जो अपने तीन पुत्रो (राजू, बबलू, मुन्ना) व पत्नी के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे होते है। एक बार अपने पुत्रो के जन्म समारोह में उनकी मुलाकात एक ज्योतिषाचार्य से होती है जो उन्हे वक़्त की अहमियत बतलाते है, परंतु केदारनाथ उनके तर्क को अस्वीकृत कर अपनी मेहनत को ही सर्वश्रेष्ठ बताते है और अपने तीनो पुत्रो के भविष्य को स्वंय बनाने की घोषणा करते है। उसी रात एक भीषण भूकंप में उनका घर-बार सब नष्ट हो जाता है तथा वे अपने परिवार से बिछुड जाते है, परिवार की तलाश में केदारनाथ से अनजाने में एक कत्ल हो जाता है और वे जेल चले जाते है।
वक़्त के साथ तीनो पुत्र बडे होते है ज्येष्ठ पुत्र राजा (राजू) एक चोर बन जाता है जो चिनॉय सेठ के लिए काम करता है, मंझला रवि (बबलू) एक संपन्न दंपत्ति को मिलता है जहाँ वह अच्छी परवरिश पाकर एक वकील बनता है और छोटा पुत्र विजय (मुन्ना) अपनी माँ के साथ गरीबी में जीवन व्यतीत करता है तथा स्नातक होने के पश्चात भी ड्राइवर की नौकरी करता है।
कई रोमांचक मोड से गुजरती हुई कहानी एक बार फिर बिछुडे हुए परिवार को मिला देती है। अंत में लाला केदारनाथ मनुष्य जीवन में वक़्त की अहमियत को समझते है तथा अपने पुत्रो को भी यही नसीहत देते है कि वक़्त ही आदमी को बनाता है और वक़्त ही आदमी को बिगाडता है।
चरित्र
[संपादित करें]अभिनेता | भूमिका |
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बलराज साहनी | लाला केदारनाथ |
राज कुमार | राजा (राजू) |
सुनील दत्त | रवि (बबलू) |
शशि कपूर | विजय (मुन्ना) |
साधना | मीना मित्तल |
शर्मिला टैगोर | रेणु खन्ना |
अचला सचदेव | लक्ष्मी केदारनाथ |
रहमान | चिनॉय सेठ |
मदन पुरी | बलबीर |
मनमोहन कृष्ण | श्रीमान मित्तल |
लीला चिटनिस | श्रीमती मित्तल |
जीवन | अनाथालय प्रमुख |
सुरेन्द्र | श्रीमान खन्ना |
सुमति गुप्ते | श्रीमती खन्ना |
शशिकला | रानी साहिबा |
हरि शिवदासानी | लाला हरदयाल राय |
मोतीलाल | सरकारी वकील |
ऐरिका लाल | पार्टी में गायिका |
मुबारक | न्यायाधीश |
जगदीश राज | पुलिस इंस्पेक्टर |
संगीत
[संपादित करें]फ़िल्म को संगीत रवि ने दिया है।
क्रम | गीत | गायक |
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1 | ऐ मेरी जोहरा जबीं | मन्ना डे |
2 | वक्त से दिन और रात | मोहम्मद रफ़ी |
3 | कौन आया | आशा भोंसले |
4 | दिन है बहार के | आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर |
5 | हम जब सिमट के | आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर् |
6 | मैने एक ख्वाब सा देखा है | आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर् |
7 | चेहरे पे खुशी छा जाती है | आशा भोंसले |
8 | आगे भी जाने न तू | आशा भोंसले |
रोचक तथ्य
[संपादित करें]- इस फ़िल्म में उस दौर की सबसे लंबी अभिनेता सूची है जो आगे चलकर बहु-सितारा फ़िल्मों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी।
- बाद में इसका पुनर्निर्माण तेलुगु में भाले अब्बायिलु (1969) तथा मलयालम में कोलिलाक्कम (1981) के रूप में हुआ।
नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]फ़िल्म ने 13वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार में विभिन्न श्रेणियों में पुरस्स्कार जीते।
श्रेणी | उम्मीदवार | परिणाम |
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सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता | राज कुमार | जीत |
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक | यश चोपड़ा | जीत |
सर्वश्रेष्ठ कहानी | अख्तर मिर्ज़ा | जीत |
सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन | अख्तर उल-इमान | जीत |
सर्वश्रेष्ठ छायाकार (रंगीन) | धर्म चोपड़ा | जीत |
सर्वश्रेष्ठ फिल्म | बी आर चोपड़ा | नामित |
सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री | साधना | नामित |