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लोपामुद्रा

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लोपामुद्रा प्राचीन भारत की एक नारी दार्शनिक थीं। वे महर्षि अगस्त्य की पत्नी थी जिनकी सृष्टि उन्होंने स्वयं की थी। इनको 'वरप्रदा' और 'कौशीतकी' भी कहते हैं। इनका पालनपोषण विदर्भराज निमि या क्रथपुत्र भीम ने किया इसलिए इन्हें 'वैदर्भी' भी कहते थे। अगस्त्य से विवाह हो जाने पर राजवस्त्र और आभूषण का परित्याग कर इन्होंने पति के अनुरूप वल्कल एवं मृगचर्म धारण किया। अगस्त्य जी द्वारा प्रहलाद के वंशज इत्वल से पर्याप्त धन ऐश्वर्य प्राप्त होने पर दोनों में समागम हुअ जिससे 'दृढस्यु' नामक पराक्रमी पुत्र की उत्पत्ति हुई।

रामचंद्र जी अपने वनवास में लोपामुद्रा तथा अगस्त्य से मिलने उनके आश्रम गए थे। वहाँ ऋषि ने उन्हें उपहारस्वरूप धनुष, अक्षय तूणीर तथा खड्ग दिए थे।

लोपामुद्रा (मंत्र १ और २) , अगस्त्य ऋषि (मंत्र ३ और ४) तथा अगस्त्य और उनके एक शिष्य (मंत्र ५ और ६) द्वारा रचित ऋग्वेद की ऋचाएँ
ऋचा क्रमांक संस्कृत में[1][2] अंग्रेजी अनुवाद [2]
1 परुवीरहं शरदः शश्रमणा दोषा वस्तोरुषसो जरयन्तीः मिनाति शरियं जरिमा तनूनमप्यु नु पत्नीर्व्र्षणो जगम्युः [Lopamudra] For many autumns have I been laboring, evening an morning, through the aging dawns. Old Age diminishes the beauty of bodies. Bullish men should now come to their wives.
2 ये चिद धि पूर्व रतसाप आसन साकं देवेभिरवदन्न्र्तानि
ते चिदवसुर्नह्यन्तमापुः समू नु पत्नीर्व्र्षभिर्जगम्युः
[Lopamudra] For even those ancients who served truth and at one with the gods spoke truths,
even they got out of harness for they did not reach the end. Wives should now unite with their bullish (husbands)
3 न मर्षा शरान्तं यदवन्ति देवा विश्वा इत सप्र्धो अभ्यश्नवाव जयावेदत्र शतनीथमजिं यत सम्यंचा मिथुनावभ्यजाव [Agastya] Not in vain is the labor that the gods help. Let us take on all contenders; let us two win here the contest of a hundred stratagems, when a united couple we will drive on
4 नदस्य मा रुधतः काम आगन्नित आजातो अमुतः कुतश्चित लोपामुद्र वर्षणं नी रिणति धीरमधीर धयति शवसन्तम [Agastya] The lust of a mounting bull [/waxing reed=penis] has come to me, lust arisen from there, from everywhere. Lopamudra makes the bullish one flow out; the steadfast man does the flighty woman suck while he is snorting.
5 इमं न सोममन्तितो हर्त्सु पीतमुप बरुवे यत सीमागश्चक्र्मा तत सु मर्ळतु पुलुकामो हि मर्त्यः [Student or Agastya] This soma within my heart, just drunk do I adjure, Whatever offense we have committed let him forgive that for of my many desires in mortal man.
6 अगस्त्यः खनमनः खनित्रैः परजमपत्यं बलमिछमानः उभौ वर्णाव रषिरुग्रः पुपोष सत्या देवेष्वशिषो जगाम Agastya, digging with spades, seeking offspring, descendants, power-- with regard to both "colors" [=offspring and ascetic power] mighty seer throve. He arrived at his hopes, which came true among the gods

सन्दर्भ

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  1. "Rig Veda Book 1 Hymn 179". Sacred Texts. मूल से 13 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 December 2015.
  2. Jamison & Brereton 2014, पृ॰ 380.

बाहरी कड़ियाँ

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