लियोनिड मिटियर शावर

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प्रत्येक वर्ष 17 - 18 नवंबर को पृथ्वी के आकाश में होने वाली खगोलीए घटना जिसमें सैंकड़ों उल्कापिंड धरती की ओर गिरते हैं और उसके वायुमंडल में पहुँचकर जल उठते हैं तथा कुछ ही सेकेंडों में समाप्त हो जाते हैं। यह घटना आकाश में होने वाली दीवाली की आतिशबाजी सी प्रतीत होती है।

घटना का कारण[संपादित करें]

इस घटना का कारण धूमकेतु टैंपल टट्टल द्वारा पीछे छोड़े गये मलबे के मार्ग से पृथ्वी का गुजरना है। 17 – 18 नवम्बर को जब पृथ्वी अपने परिक्रमण पथ से गुजरते हुए इस स्थल पर पहुँचती है तब मलवे के हजारों टुकड़े पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से आकृष्ट होकर पृथ्वी की तरफ गिर पड़ते हैं। जब कोई भी उल्का पिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो पृथ्वी से करीब 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर वह जल उठता है। वह अपने पीछे एक गिरती हुई रोशनी की लकीर छोड़ जाता है। जब बहुत बड़ी संख्या में उल्का पिंड जलते हैं, तो वह उल्का वृष्टि का रूप ले लेते हैं।

सहायक एवं संदर्भ श्रोत[संपादित करें]