लाल किताब

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लाल किताब ज्योतिष का एक ग्रंथ है। इसके मूल रचयिता का नाम अज्ञात एवं विवादास्पद है। पंडित श्री रामेश्वर दत्त गौतम जी के अनुसार यह भारत के पंजाब प्रांत के ग्राम फरवाला (जिला जालंधर) के निवासी पंडित रूप चंद जोशी जी ने इसे सन १९३९ से १९५२ के बीच में इसके पाँच खण्डों की रचना की थी। इस किताब को मूल रूप से उर्दू एवं फारसी भाषा में लिखा गया है। यह ग्रंथ सामुद्रिक तथा समकालीन ज्योतिष पर आधारित है।

संस्करण[संपादित करें]

इस के पाँच संस्करण हैं जो निम्नलिखित हैं:-

1. लाल किताब के फरमान -- सन 1939 में प्रकाशित
2. लाल किताब के अरमान -- सन 1940 में प्रकाशित
3. लाल किताब (गुटका) -- सन 1941 में प्रकाशित
4. लाल किताब -- सन 1942 में प्रकाशित
5 लाल किताब -- सन 1952 में प्रकाशित

हर भाग अपने आप में संपूर्ण है।

इस पद्धति के नियम आम प्रचलित ज्योतिष से कुछ भिन्न हैं। अगर हम इसकी भाषा पर जायें तो यह आम लोगो की बोलचाल वाली भाषा में लिखी गई है। उत्तर भारत के पुराने पंजाब के इलाकों के लोग इसे आसानी से समझ सकते हैं पर अन्य प्रांतों के लोग चाहे वे उर्दू जानते हों इसे समझने में कठिनाई महसूस करेंगे। आप यूँ कह लिजिए कि " जैसे तुलसीदास जी ने आम लोगों के लिये 'रामचरितमानस' लिखा था, उसी तरह पंडित रूप चंद जोशी जी ने ज्योतिष का यह ग्रंथ आम लोगों के लिये लिखा।"

हिंदी में रूपान्तर[संपादित करें]

इस किताब के कई रूपांतर हिन्दी में उपलब्ध हैं जो कि मूलत: लाल किताब 1952 का रुपांतर हैं। चंडीगढ़ (पंजाब) में अरुण प्रकाशन नें सभी किताबों का हिन्दी में रुपांतर किया तथा इसे अरुण संहिता लाल किताब के नाम से प्रकाशन किया। दिल्ली के कुछ प्रकाशकों ने भी लाल किताब को छापा है। मूलत: सभी किताबों में प्रिन्टिगं गल्तियाँ हैं जिस से असल बात का गल्त मतलब बन जाता है। लेकिन फिर भी इन किताबों ने लाल किताब को प्रचलित होने में मदद दी है।

कुछ शोधकर्ताओं ने अपने शोध भी लिखे हैं जो अग्रेंज़ी तथा हिदीं में भी उपलब्ध हैं।

विशेषताएँ[संपादित करें]

‘लाल किताब’ ज्योतिर्विद्या की एक स्वतन्त्र और मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित एक अनोखी पुस्तक है। इसकी कुछ अपनी निजी विशेषताएँ हैं, जो अन्य सैद्धान्तिक अथवा प्रायोगिक फलित ज्योतिष-ग्रन्थों से हटकर हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को ‘टोटकों’ का सहारा लेने का संदेश देना है। ये टोटके इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर अपना कल्याण कर सकता है। काला कुत्ता पालना, कौओं को खिलाना, क्वाँरी कन्याओं से आशीर्वाद लेना, किसी वृक्ष विशेष को जलार्पण करना, कुछ अन्न या सिक्के पानी में बहाना, चोटी रखना, सिर ढँक कर रखना इत्यादि। ऐसे कुछ टोटकों के नमूने हैं, जिनके अवलम्बन से जातक ग्रहों के अनिष्टकारी प्रभावों से अनायास की बचा जाता है। कीमती ग्रह रत्नों (मूंगा, मोती, पुखराज, नीलम, हीरा आदि। में हजारों रुपयों का खर्च करने के बजाय जातक इन टोटकों के सहारे बिना किसी खर्च के (मुफ्त में) या अत्यल्प खर्च द्वारा ग्रहों के दुष्प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकता है।

‘लाल किताब’ में धर्माचरण और सदाचरण के बल पर ग्रह दोष निवारण का झण्डा ऊँचा किया है, जिससे हमारा इहलोक तो बनेगा ही, परलोक भी बनेगा।

‘लाल किताब’ में विभिन्न प्रकार के ग्रह दोषों से बचाव के लिए सैकड़ों टोटकों का विधान है। जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है, जिससे संबंधित टोटके न बतलाये गये हों।

  • यह ज्योतिष के सिधान्तो और हस्तरेखा के सिधान्तो को सरल रूप से समझाता है।
  • इस ग्रन्थ में मानव मस्तिष्क के 42 प्रभागों को जन्म कुंडली के विभिन्न घरों से संबंधित कर दिया गया है। हस्तरेखा के सिधान्तो और व्यक्ति की जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों की स्थिति से व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओ का बताया जा सकता है।
  • लाल किताब में कष्ट निवारण के लिए कुछ सरल उपाय बताये गए है, जो की मुसीबत में फसे व्यक्ति के लिए वरदान स्वरुप है।
  • उपाय के तौर पर महंगे यज्ञ और हवन आदि महेंगी रस्मो की आवश्यकता नही है।
  • लाल किताब कुछ सरल उपायों की मदद से जटिल समस्याओ का हल बता सकती है।
  • यन्त्र मंत्र और तंत्र से ये उपाय बहुत अलग है।
  • लाल किताब में सुझाये उपाय बहुत ही सरल और सुरक्षित है। ये किसी भी तरह से किसीको हानि नही पहुचाते और पुरी तरह से ग्रहों के कस्त्दायक प्रभाव को नियंत्रित करते है।

आलोचना[संपादित करें]

कुछ विचारकों का मत है कि लाल किताब का उद्देश्य लोगों को ईश्वर-भक्ति से विमुख करना एवं जलप्रदूषण एवं अन्य प्रकार के कदाचार फैलाना है।[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "भोजसंहिता मंगलखण्ड, पृष्ठ १०; लेखक-भोजराज द्विवेदी". मूल से 27 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 फ़रवरी 2014.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]