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लघु हिमयुग

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लघु हिमयुग पृथ्वी के जलवायु इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसमें वैश्विक तापमान में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। यह काल मुख्य रूप से 13वीं से 19वीं शताब्दी तक फैला हुआ था और विशेष रूप से उत्तरी गोलार्ध में इसका प्रभाव अधिक देखा गया। इस अवधि के दौरान, विश्वभर में हिमनदों का विस्तार हुआ, जिससे कृषि, समाज और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ा।[1]

अवधि और परिभाषा

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लघु हिमयुग की अवधि को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। कुछ इसे 1300 ईस्वी से 1850 ईस्वी तक मानते हैं, जबकि अन्य इसे 1570 से 1900 के बीच सीमित करते हैं। यूरोपीय आल्प्स क्षेत्र में इसका प्रभाव सबसे स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां हिमनद 1300 से 1950 तक पहले की तुलना में अधिक फैले हुए थे।[2]

जलवायु परिवर्तन के प्रमाण

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इस अवधि के दौरान वैश्विक तापमान औसत से 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक कम था। यह परिवर्तन विभिन्न प्राकृतिक संकेतों से प्रमाणित है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया में हिमनदों का विस्तार हुआ।[3] यूरोप में ठंड से प्रभावित फसल उत्पादन और भीषण सर्दियों का उल्लेख ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है। वृक्षों के वार्षिक वलय, बर्फ के कोर नमूने और झील तलछटों में इस जलवायु परिवर्तन के संकेत देखे गए हैं।[2]

संभावित कारण

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लघु हिमयुग के पीछे कई संभावित कारण माने जाते हैं। इस दौरान सूर्य की गतिविधि में गिरावट आई, जिससे वैश्विक तापमान कम हो गया। माउन्डर न्यूनतम (1645-1715) और डाल्टन न्यूनतम (1790-1830) नामक कालखंडों में सूर्य धब्बों की संख्या बेहद कम थी। 17वीं और 18वीं शताब्दी में कई बड़े ज्वालामुखीय विस्फोट हुए, जिनसे वायुमंडल में सल्फेट एरोसोल्स बढ़े और सूर्य के प्रकाश का अवशोषण कम हुआ, जिससे तापमान में गिरावट आई।[4] अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन जैसे महासागरीय प्रवाहों में बदलाव के कारण भी ठंड बढ़ी। इसके अतिरिक्त, प्रशांत डिकेडल ऑसिलेशन और अटलांटिक मल्टीडिकेडल ऑसिलेशन जैसे चक्रीय जलवायु पैटर्न भी इस अवधि के दौरान ठंड बढ़ाने में सहायक रहे।[3]

सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव

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लघु हिमयुग के दौरान कृषि और खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई। यूरोप और अमेरिका में फसलें असफल हुईं, जिससे अकाल और सामाजिक अशांति उत्पन्न हुई। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और खराब जीवन परिस्थितियों के कारण कई महामारियाँ फैलीं।[1] इस अवधि में कठोर सर्दियों ने कई सभ्यताओं की जीवनशैली और व्यापार मार्गों को प्रभावित किया। आल्प्स, स्कैंडिनेविया, आइसलैंड और हिमालय में हिमनदों की सीमाएं काफी आगे बढ़ गईं, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी और जल आपूर्ति प्रभावित हुई।[5]

समाप्ति और आधुनिक प्रभाव

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लघु हिमयुग का अंत 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ। इसका कारण औद्योगिक क्रांति के दौरान बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और सौर गतिविधि में वृद्धि को माना जाता है। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि हाल के दशकों में तापमान में जो वृद्धि हुई है, वह लघु हिमयुग के अंत से कहीं अधिक तीव्र है।[5]

निष्कर्ष

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लघु हिमयुग जलवायु परिवर्तन का एक जटिल और महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसने पृथ्वी के पर्यावरण, समाज और वैश्विक इतिहास को प्रभावित किया। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक कारक जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तन ला सकते हैं, और वर्तमान जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु है।[4]

  1. Matthews, John A.; Briffa, Keith R. (2005). "The 'Little Ice Age': Re-Evaluation of an Evolving Concept". Geografiska Annaler: Series A, Physical Geography (अंग्रेज़ी में). 87 (1): 17–36. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1468-0459. डीओआइ:10.1111/j.0435-3676.2005.00242.x.
  2. "Little Ice Age - an overview | ScienceDirect Topics". www.sciencedirect.com. अभिगमन तिथि 2025-01-30.
  3. "The Effects of the Little Ice Age (c. 1300-1850) - Climate in Arts and History". Climate in Arts and History (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2025-01-30.
  4. "Little Ice Age (LIA) | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी में). 2024-12-20. अभिगमन तिथि 2025-01-30.
  5. Lanchester, John (2019-03-25). "How the Little Ice Age Changed History". The New Yorker (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0028-792X. अभिगमन तिथि 2025-01-30.