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लक्षण

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लक्षण का अर्थ है - 'पहचान का चिह्न' या गुणधर्म या प्रकृति। किसी पदार्थ की वह विशेषता जिसके द्वारा वह पहचाना जाय। वे गुण आदि जो किसी पदार्थ में विशिष्ट रूप से हों और जिनके द्वारा सहज में उसका ज्ञान हो सके। जैसे, आकाश के लक्षण से जान पड़ता है कि आज पानी बरसेगा।

शरीर में दिखाई पड़नेवाले वे चिह्न आदि जो किसी रोग के सूचक हों, भी 'लक्षण' कहलाते हैं। जैसे,—इस रोगी में क्षय के सभी लक्षण दिखाई देते हैं।

सामुद्रिक के अनुसार शरीर के अँगों में मिलने वाले कुछ विशेष चिह्न भी लक्षण कहे जाते हैं जो शुभ या अशुभ माने जाते हैं। जैसे,—चक्रवर्ती और बुद्ध के लक्षण एक से होते हैं। लक्षणों को जाननेवाला या शुभ अशुभ चिह्नों का ज्ञाता लक्षणज्ञ कहलाता है।

जिस विषय या वस्तु को पारिभाषित करना हो, उसके स्वरूप का ठीक ठीक, सन्तुलित निरूपण लक्षण कहलाता है । संस्कृत में लक्षण की यह परिभाषा दी गई है-

तदैव हि लक्षणं यद व्याप्ति अतिव्याप्ति असम्भवरूप दोषत्रयशून्यम्।
अर्थात् लक्षण वह है जो अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असम्भव -इन दोषों से रहित हो।

काव्य या साहित्य के लक्षणों का विवेचन करनेवाला ग्रंथ लक्षण ग्रंथ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, लक्षण ग्रन्थ का अर्थ साहित्यिक समीक्षा की पुस्तक या 'समालोचना शास्त्र' है। लक्षण व्यवहार के विशिष्ट गुण हैं- जैसे कुंठा के प्रति प्रतिक्रियाएं, समस्याओं का समाधान करने की प्रणालियाँ, आक्रामक तथा प्रतिरक्षक व्यवहार और दूसरों की उपस्थिति में व्यक्ति का बहिर्मुखी या अंतर्मुखी वयवहार आदि।

जो बहुत वस्तुओं में से एक वस्तु को पृथक करे, वह लक्षण है। जिससे वस्तु को पहचाना जाये वह लक्षण है। जैसे: सूँढ सभी जानवरों में हाथी को अलग कर रही है तो सूँढ हाथी का लक्षण हुआ। मिठास नमक, फिटकरी, शक्कर में से शक्कर को पृथक कर रही है, तो मिठास शक्कर का लक्षण हुआ। अर्थात बहुत मिली हुई वस्तु में से जो किसी वस्तु को अलग करे, वही उस वस्तु का लक्षण है। दूसरे शब्दों में, जो लक्ष्य को प्रसिद्ध करे वही लक्षण है।

लक्ष्य

जिसका वह लक्षण हो वही लक्ष्य है। जैसे: हाथी का लक्षण सूँढ है तो हाथी लक्ष्य हुआ। शक्कर का लक्षण मिठास है तो शक्कर लक्ष्य हुई।

लक्षण के प्रकार

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लक्षण दो प्रकार के होते हैं: आत्मभूतअनात्मभूत । जो वस्तु के साथ हमेशा रहता है वह आत्मभूत लक्षण है। जो वस्तु के साथ कुछ समय के लिए संयोग रूप रहता है, वह अनात्मभूत लक्षण है। जैसे: जीव का लक्षण ज्ञान हमेशा रहता है तो आत्मभूत लक्षण है। राम लकड़हारा है। वह लकड़ी के संयोग से लकड़हारा है हमेशा लकड़हारा नहीं है, इसीलिए यह अनात्मभूत लक्षण हुआ।

ऊपर सींग का उदाहरण लिया गया था लेकिन उससे वस्तु की पहचान नहीं हो रही थी। इसका मतलब उस लक्षण में कुछ ना कुछ गड़बड़ी है। तभी हम वस्तु को नहीं पहचान पा रहे। इसीलिए हमें हर लक्षण ऐसा रखना चाहिए, जिससे वस्तु को सही पहचान सके। जो लक्षण बिल्कुल सही हो,वस्तु की पहचान करा रहा हो वह तो लक्षण है और हमें वस्तु की पहचान में भ्रमित कर रहा हो वह लक्षणाभास है।

लक्षणाभास

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मतलब हमें आभास हो रहा है कि वह लक्षण है पर वास्तव में वह लक्षण है नहीं।

लक्षणाभास के तीन भेद हैं :

  • (१) अतिव्याप्ति
  • (२) अव्याप्ति
  • (३) असम्भव

अतिव्याप्ति दोष

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जो लक्ष्य में भी पाया जाये व अलक्ष्य में भी पाया जाय, वहाँ अतिव्याप्ति दोष हैे।

कुछ उदाहरण
  • सींग गाय का लक्षण है। यह कथन सही प्रतीत हो रहा है पर वास्तव में यह लक्षण सही नहीं है क्योंकि सींग तो ओर जानवर में भी होते हैं। यहाँ हम गाय को देख रहे हैं तो गाय लक्ष्य है हमारा।

सींग तो भैंस के भी होते हैं। हम भैंस को नहीं देख रहे मतलब भैंस अलक्ष्य है। सींग गाय (लक्ष्य) में व भैंस (अलक्ष्य) में है, इसीलिए यह लक्षणाभास है व अतिव्याप्ति दोष से युक्त है।

  • आत्मा अमूर्तिक है। इसमें लक्ष्य व लक्षण की पहचान करनी है। पहले आत्मा को बताया जा रहा है, इसीलिए लक्ष्य। जिससे बताया जा रहा है अर्थात अमूर्तिक वह लक्षण। अब यह लक्षण सही है या गलत उस पर विचार करते हैं। यह लक्षण भी सही नहीं है क्योंकि यह आत्मा (लक्ष्य) में भी है व चार अन्य द्रव्य (अलक्ष्य) में भी है।

अव्याप्ति

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'अव्याप्त' का अर्थ 'पूरी तरह व्याप्त नहीं' है। जो किसी लक्ष्य में पाया जाये व किसी लक्ष्य में ना पाया जाये, वह अव्याप्ति दोष है।

कुछ उदाहरण
  • जिनके सींग हो वे पशु हैं । इस कथन पर विचार करें तो पायेंगे कि यह लक्षण सही नहीं है क्योंकि यहाँ हम पशु को देख रहे हैं तो पशु हुआ लक्ष्य। अब सींग सभी पशुओं में नहीं पाये जाते। इसका अर्थ है कि सींग लक्षण स्वयं कह रहा है कि मैं तुम्हारे सभी लक्ष्य में नहीं हूँ। जहाँ तुम मुझे देख रहे हो मैं वहाँ हर जगह नहीं हूँ। अतः यहाँ अव्याप्ति दोष है।

असंभवपना

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जो लक्षण लक्ष्य में पाया जाना संभव ना हो वह असंभव दोष है।

कुछ उदाहरण
  • 'कुर्सी में ज्ञान है'। हम कुर्सी को देख रहे हैं इसीलिए कुर्सी है लक्ष्य। ज्ञान के द्वारा देख रहे हैं इसीलिए ज्ञान है लक्षण। अब यह लक्षण (ज्ञान) लक्ष्य, (कुर्सी) में पाया ही नहीं जाता। अतः यहाँ असम्भव दोष है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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