लंबी चोंच का गिद्ध

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लंबी चोंच का गिद्ध
लंबी चोंच का गिद्ध
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी
वर्ग: पक्षी
गण: फ़ॉल्कॉनिफ़ॉर्मिस (या ऍक्सिपिट्रिफ़ॉर्मिस, देखें)
कुल: ऍक्सिपिट्रिडी
वंश: जिप्स
जाति: जी. टॅनुइरॉसट्रिस
द्विपद नाम
जिप्स टॅनुइरॉसट्रिस
हॉजसन (in Gray), १८४४[2][3][4]
नीले में लंबी चोंच का गिद्ध का क्षेत्र
पर्यायवाची

Gyps indicus tenuirostris
Gyps indicus nudiceps[5][6]

लंबी चोंच का गिद्ध (Gyps tenuirostris) हाल ही में पहचानी गई जाति है। पहले इसे भारतीय गिद्ध की एक उपजाति समझा जाता था, लेकिन हाल के शोधों से पता चला है कि यह एक अलग जाति है। जहाँ भारतीय गिद्ध गंगा नदी के दक्षिण में पाया जाता है तथा खड़ी चट्टानों के उभार में अपना घोंसला बनाता है वहीं लंबी चोंच का गिद्ध तराई इलाके से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पाया जाता है और अपना घोंसला पेड़ों पर बनाता है। यह गिद्ध पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं।

पहचान[संपादित करें]

८०-९५ से.मी. लंबा यह मध्यम आकार का गिद्ध औसतन भारतीय गिद्ध जितना ही लंबा होता है। यह क़रीब पूरा ही स्लेटी रंग का होता है। जांघों में सफ़ेद पंख होते हैं। इसकी गर्दन लंबी, काली तथा गंजी होती है। कानों के छिद्र खुले हुये और साफ़ दिखाई देते हैं।

प्राकृतिक वास[संपादित करें]

यह भारत में गंगा से उत्तर में पश्चिम तक हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में उत्तरी उड़ीसा तक, तथा पूर्व में असम तक पाया जाता है। इसके अलावा यह उत्तरी तथा मध्य बांग्लादेश, दक्षिणी नेपाल, म्यानमार तथा कंबोडिया में भी पाया जाता है।

अस्तित्व[संपादित करें]

इस जाति का अस्तित्व ख़तरे में है। वैसे तो इनकी थोड़ी आबादी पूर्वी भारत, दक्षिणी नेपाल, बांग्लादेश तथा म्यानमार में है लेकिन यह अनुमान लगाया गया है कि कंबोडिया में ही प्रजननशील ५०-१०० पक्षी बचे हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि कंबोडिया में पशुओं को डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) दवाई नहीं दी जाती है। पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम (meloxicam) आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें। एक अनुमान के मुताबिक सन् २००९ में अपने प्राकृतिक वास में इनकी आबादी लगभग १००० ही रह गई है और आने वाले दशक में यह प्राकृतिक पर्यावेश से विलुप्त हो जायेंगे।

संरक्षण[संपादित करें]

आज इन गिद्धों का प्रजनन बंदी हालत में किया जा रहा है। सन् २००९ में दो अण्डों से बच्चे निकले थे, जिनमें से एक को हरयाणा तथा एक को पश्चिम बंगाल में पाला जा रहा है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. BirdLife International (२०१२). Gyps tenuirostris. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on ०१/११/२०१२.
  2. Gray GR (1944) The Genera of Birds. volume 1:6
  3. Hume A O (1878) Stray Feathers 7:326
  4. Deignan, HG (1946). "The correct names of three Asiatic birds" (PDF). Ibis. 88: 402–403. मूल (PDF) से 15 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2012.
  5. Baker, ECS (1927) Bull. Brit. Orn. Club 47:151
  6. Rand, AL & RL Fleming (1957). "Birds from Nepal". Fieldiana: Zoology. 41 (1): 55. मूल से 7 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 फ़रवरी 2012.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]