रोमक सिद्धांत

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रोमक सिद्धान्त (शाब्दिक अर्थ, "रोम के लोगों का सिद्धान्त") वराह मिहिर की पञ्चसिद्धान्तिका (भारतीय खगोलीय ग्रंथ) में वर्णित पाँच सिद्धान्तों में से एक है। रोमक सिद्धान्त बीजान्टिन रोम (पूर्वी रोमन साम्राज्य) की खगोलीय विद्या पर आधारित है। [1] [2]

सामग्री[संपादित करें]

यवनजातक की भांति रोमकसिद्धान्त भी हमारे युग की पहली शताब्दियों के दौरान भारत को पश्चिमी खगोलीय ज्ञान (विशेषकर अलेक्जेंड्रियन स्कूल) के प्रसार के उदाहरण के रूप में है।

रोमक सिद्धांत का भारतीय खगोलशास्त्री वराहमिहिर के काम पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा था। इसे 5वीं शताब्दी में भारत में "पाँच खगोलीय ग्रंथों" में से एक के रूप में माना जाता था।

यह सभी देखें[संपादित करें]

टिप्पणियाँ[संपादित करें]

  1. Sarma, (2000), p. 158
  2. McEvilley, (2001), p385

संदर्भ[संपादित करें]

  • McEvilley, Thomas (November 2001). The Shape of Ancient Thought: Comparative Studies in Greek and Indian Philosophies. Allworth Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-58115-203-6. McEvilley, Thomas (November 2001). The Shape of Ancient Thought: Comparative Studies in Greek and Indian Philosophies. Allworth Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-58115-203-6. McEvilley, Thomas (November 2001). The Shape of Ancient Thought: Comparative Studies in Greek and Indian Philosophies. Allworth Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-58115-203-6.
  • सरमा, नटराज (2000), "डिफ्यूजन ऑफ एस्ट्रोनॉमी इन द एंशिएंट वर्ल्ड", एंडेवर, 24 (2000): 157-164।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]