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रोजावा

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डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ नॉर्थ सीरिया
Democratic Federation of Northern Syria

الفدرالية الديمقراطية لشمال سوريا
Federaliya Demokratîk a Bakûrê Sûriyê
ܦܕܪܐܠܝܘܬ݂ܐ ܕܝܡܩܪܐܛܝܬܐ ܕܓܪܒܝ ܣܘܪܝܐ
ध्वज प्रतीक
हरे रंग में रोजावा क्षेत्र
हरे रंग में रोजावा क्षेत्र
हरे रंग में रोजावा क्षेत्र
अवस्था सीरिया का स्वायत्त महासंघ
राजधानीकमिश्ली[1]
सबसे बड़ा नगर अल-हासाकह
आधिकारिक भाषा
सरकार लोकतांत्रिक
 -  सह-अध्यक्ष हादीया यूसेफ[2]
 -  सह-अध्यक्ष मंसूर सेलूम
स्वायत्त क्षेत्र
 -  स्वायत्तता प्रस्तावित जुलाई 2013 
 -  स्वायत्तता घोषित नवम्बर 2013 
 -  क्षेत्रीय सरकार की स्थापना नवम्बर 2013 
 -  अंतरिम संविधान अपनाया जनवरी 2014 
 -  संघ घोषित 17 मार्च 2016 
जनसंख्या
 -  2014 जनगणना ≈4,600,000
(half of them internal refugees)[3][4][5]
मुद्रा सीरिययन पाउंड (SYP)
समय मण्डल EET (यू॰टी॰सी॰+2)
यातायात चालन दिशा दाएँ

रोजावा: उत्तरी पूर्वी सीरिया में स्थित तथा इसे पश्चिमी कुर्दीस्तान भी कहते रोजवा के अंतर्गत तीन प्रांत आते है जजीरा, कोबोन, और आफरीन जो एक स्वायंत्तशासी क्षेत्र है ओर रोजवा एक कुर्द बहुल क्षेत्र है अनुमानित 30 से 35 लाख की अबादी है रोजवा क्षेत्र में बहुमत कुर्दो का है लेकिन ईराकी मुस्लमानो के साथ साथ यह ईसाईयजीदी अल्पसंख्यक सामुदाय भी रहता है।

सीरिया को 1946 में फ्रांसीसी शासन से आजादी मिली थी। तत्कालीन सरकार ने देश को गणतंत्र घोषित किया लेकिन तीन साल बाद ही सेना ने यहां तख्तापलट कर दिया। कुछ समय बाद यहां नागरिक सरकार बनी लेकिन फिर तख्तापलट हो गया। सीरिया में सत्ता परिवर्तन का यह क्रम लगातार चला. 1970 में एक ‘सुधारात्मक आंदोलन’ चलाने के बाद जनरल हाफिज अल असद यहां के प्रधानमंत्री बने और एक साल बाद ही उन्होंने खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया। वे 2000 में अपनी मृत्यु के पहले तक देश के राष्ट्रपति रहे इस दौरान सीरिया में अरब सोशलिस्ट बाथ पार्टी (सीरिया रीजन) एकमात्र राजनीतिक दल बना रहा। सीरिया में यह केंद्रीकृत शासन व्यवस्था का दौर था जहां सारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास थीं। लोकतात्रिक मूल्यों के हिसाब से यह एक तरह की तानाशाही व्यवस्था थी जो हाफिज अल असद के बाद उनके बेटे बशर अल-असद ने कायम रखी पिछली शताब्दी की शुरुआत में सीरिया, ईराक और तुर्की के बीच एक बड़े क्षेत्र में कुर्दों का मिलाजुला भू-भूभाग रहा है। लेकिन इन देशों के निर्माण के साथ- साथ कुर्द लोगों की सामाजिक- सांस्कृतिक पहचान वाला यह क्षेत्र तीन हिस्सों में बंट गया। हालांकि ईराक में कुर्दिस्तान नाम का स्वायत्तशासी क्षेत्र है लेकिन तुर्की और सीरिया में कुर्दों की ऐसी किसी मांग को बर्बर तरीके से दबाया जाता रहा. लेकिन इस मांग को लेकर तुर्की में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) के नेतृत्व में लंबे अरसे तक एक विद्रोही आंदोलन चला है। पीकेके की स्थापना 1978 में हुई थी और यह मार्क्सवादी- लेनिनवादी विचारधारा की वामपंथी पार्टी रही है। अपनी स्थापना के बाद से इसने क्षेत्र में तुर्की के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ दिया था। इस दौरान पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक अब्दुल्ला ओकलान कुर्दों के क्रांतिकारी नेता बनकर उभरे. सिर्फ तुर्की में ही नहीं ईराकी और सीरियाई कुर्दों के बीच भी वे सबसे बड़े नेता बन गए। 1980 में वे सीरिया आ गए और यहां से अपनी गतिविधियां चलाने लगे। लेकिन बाद में तुर्की के दबाव के चलते 1998 में उन्हें हाफिज अल असद (बशर अल असद के पिता और सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति) ने देश से बाहर निकाल दिया। अब्दुल्ला ओकलान यूरोप से होते हुए कीनिया पहुंच गए लेकिन यहां अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अमेरिका ने उस समय तक पीकेके को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था। अब्दुल्ला ओकलान तब से तुर्की की जेल में हैं। कुर्दों का सबसे बड़ा नेता अब अपने लोगों से संवाद नहीं कर सकता था लेकिन उनकी विचारधारा इस क्षेत्र में दिनोंदिन मजबूत होती गई। बाद के समय में अब्दुल्ला ओकलान माओवादी विचारधारा छोड़कर एक अलग राजनीतिक विचारधारा ‘डेमोक्रेटिक कन्फेडरिलज्म’ का प्रचार करने लगे थे। इस उदार समाजवादी राजनीतिक तंत्र के बारे में उनकी व्याख्या है, यह तंत्र दूसरे राजनीतिक समूहों और वर्गों के लिए खुला है। इसमें लोच है, यह एकाधिकार विरोधी और अधिकतम सहमति से चलने वाला तंत्र है। ’ अब्दुल्ला ओकलान की विचारधारा सत्ता के अधिकतम विकेंद्रीकरण और अधिकतम भागीदारी का समर्थन करती है। ओकलान का यह सपना ईराक और तुर्की में पूरा नहीं हो पाया लेकिन रोजावा में शासन व्यवस्था तकरीबन इसी आधार पर चल रही है। सबसे बड़ी बात है कि रूढ़िवादी समाज और अरब देशों से घिरे हुए रोजावा की महिलाएं इस व्यवस्था में बराबरी की हिस्सेदार हैं।

महिलाएँ

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मुस्लिम बहुल देशों और खासकर अरब देशों में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भूमिका तकरीबन नगण्य होती है लेकिन रोजावा इस मामले में एक अलग मिसाल कायम कर सकता है हर स्तर पर महिलाओं की भागीदारी है मुस्लिम बहुल देशों और खासकर अरब देशों में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भूमिका तकरीबन नगण्य होती है। रोजावा सरकार में जितनी भी समितियां बनती हैं उनमें दो सह-अध्यक्ष होते हैं और हर स्तर पर एक सह-अध्यक्ष महिला होती है। इसके अलावा हर स्तर पर बनी परिषद में 40 फीसदी स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। यह तो शासन प्रशासन की बात हुई लेकिन रोजावा में अलग से महिलाओं की सेना वाईपीजे भी गठित की गई है। वाईपीजे ने साल 2015 आईएस के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर कई लड़ाइयां लड़ी हैं। माना जाता है कि सीरिया के कोबानी शहर को आईएस के कब्जे से मुक्त कराने में इस महिला लड़ाका सेना की अहम भूमिका थी। कोबानी रोजावा का ही हिस्सा है।

शासन व्यवस्था

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ओकलान की राजनीतिक विचारधारा केंद्रीय सत्ता का विरोध करती है और इसी आधार पर रोजावा को तीन स्वायत्तशासी क्षेत्रों – कैंटॉन में बांटा गया है। हर कैंटॉन में शहरों को जिलों में बांटा गया है। हर जिले को उसकी जनसंख्या के आधार पर कम्यूनों में विभाजित किया गया है। कैंटॉन में सरकार की सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण इकाई कम्यून हैं। हर एक कम्यून स्थानीय 300 लोगों से मिलकर बनता है। इसमें दो सह- अध्यक्ष चुने जाते हैं और स्थानीय मामलों की देखरेख के लिए समितियां गठित होती हैं। लोगों की समस्याएं इन्ही समितियों के माध्यम से सुलझाई जाती हैं हर कम्यून के दो सह-अध्यक्ष मिलकर जिला परिषद का निर्माण करते हैं और जिला परिषद फिर से दो सह- अध्यक्षों का चुनाव करती है। हर जिला परिषद से चुने गए सह-अध्यक्ष नगर परिषद का निर्माण करते हैं। नगर परिषद प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से पूरे शहर से और सदस्यों का चुनाव करती है आखिर में नगर परिषद से चुने हुए प्रतिनिधि कैंटॉन परिषद का निर्माण करते हैं। इसकी तुलना हमारी संसद से की जा सकती है लेकिन इस प्रक्रिया के हर स्तर पर कम्यून के सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और सामाजिक- राजनीतिक- आर्थिक मुद्दे कम्यून से शुरू होकर कैंटॉन तक पहुंचते हैं इस मॉडल की खासबात है कि यहां सभी लोगों को अपना धर्म मानने की आजादी तो है लेकिन राजनीति में इसका कोई हस्तक्षेप नहीं है। रोजावा की शासन व्यवस्था पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। रोजावा पूंजीवादी आर्थिक मॉडल को खारिज करता है। ओकलान पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के विरोधी हैं और रोजावा के आर्थिक तंत्र पर यह विचार पूरी तरह लागू है। यहां सहकारिता के आधार पर उत्पादन क्षेत्र का विकास किया जा रहा है और लोगों को इसबारे में जागरूक किया जा रहा है। रोजावा में इस नई सरकार की बुनियाद ‘अरब वसंत’ की लहर ने रखी है। 2011 में अरब राष्ट्रो के तानाशाही शासन के खिलाफ ट्यूनीशिया से शुरू हुआ विद्रोह, मिस्र और लीबिया होते हुए सीरिया तक आ पहुंचा था। रोजावा के बारे में कहा जा सकता है कि यह पहले से बारूद के ढेर पर बैठा था। सीरिया में विपक्षी गुटों के विरोध प्रदर्शन शुरू होने पर रोजावा में भी कुर्द अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर आए। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आई खबरों के मुताबिक असद सरकार ने तब इनका बुरी तरह दमन किया था। सीरिया में जब गृहयुद्ध तेज होने लगा तब बाकी विरोधी गुटों से अलग होकर कुर्दों की दो राजनीतिक पार्टियों, कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी (पीवाईडी) और कुर्दिश नेशनल काऊंसिल (केएनसी) ने मिलकर रोजावा में कुर्दिश सुप्रीम कमिटी का गठन कर लिया जो अब यहां सरकार चलाने वाली सर्वोच्च संस्था थी फिर इसी के तहत कुर्दों की सेना पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट (वाईपीजी) का गठन हुआ 2012 में इसने सीरियाई सेना को रोजावा से खदेड़ दिया। हालांकि इसकी एक वजह यह भी थी कि सरकारी सेना अब राजधानी और दूसरे महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा बनाए रखने की लड़ाई पर ज्यादा जोर देना चाहती थी। इस तरह 2012 में यह क्षेत्र ‘स्वराज’ की एक नई प्रयोगस्थली बन गया।

सन्दर्भ

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  1. "Syrian Kurds declare Qamishli as capital for the new federal system". ARA News. 2016-07-05. मूल से 8 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-07-05.
  2. "Syrian Kurds declare new federation in bid for recognition". Middle East Eye. 17 मार्च 2016. मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जनवरी 2018.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; utopia नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. In der Maur, Renée; Staal, Jonas (2015). "Introduction". Stateless Democracy (PDF). Utrecht: BAK. पृ॰ 19. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-77288-22-1. मूल (PDF) से 25 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जनवरी 2018.
  5. Estimate as of mid November 2014, including numerous refugees. "Rojava’s population has nearly doubled to about 4.6 million. The newcomers are Sunni and Shia Syrian Arabs who have fled from violence taking place in southern parts of Syria. There are also Syrian Christians members of the Assyrian Church of the East, Chaldean Catholic Church, Syriac Catholic Church, Syriac Orthodox Church, and others, driven out by Islamist forces." "In Iraq and Syria, it's too little, too late". Ottawa Citizen. 14 November 2014. मूल से 18 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जनवरी 2018.