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रेडियो मंदाकिनी

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रेडियो मंदाकिनी की विभिन्न तरंगदैर्ध्य की छवियाँ। सिंक्रोट्रॉन प्रक्रियाओं से होने वाला रेडियो उत्सर्जन है। छवि जेट और लोब से रेडियो उत्सर्जन दिखाती है।

रेडियो मंदाकिनी जिसे आकाशगंगा भी कहा जाता हैं। इनमें रेडियो तरंगों में अत्यधिक उत्सर्जन होता है, जिससे उनके दृश्य आकार से कई गुना अधिक फैला होता है। यह उत्सर्जन मुख्य रूप से उनके सक्रिय नाभिक से निकलने वाले गैस पिंड द्वारा संचालित रेडियो लॉब्स के कारण होता है। ये गैस पिंड 10 मेगाहर्ट्ज से 100 गीगाहर्ट्ज तक के रेडियो तरंग दैर्ध्य पर ऊर्जा का उत्सर्जन कर सकते हैं, जिसकी चमक 10³⁹ वाट होती है।[1] रेडियो उत्सर्जन का प्रमुख कारण "सिंक्रोट्रॉन उत्सर्जन प्रक्रिया" है, जिसमें कण चुंबकीय क्षेत्र में घूमते समय उत्सर्जित होते हैं। जिसमें अधिकांश रेडियो मंदाकिनी आकार में बड़ी अण्डाकार संरचना वाली होती हैं।

रेडियो मंदाकिनी और कुछ गैसीय पिंड ब्रह्मांड में रेडियो तरंगों के रूप में ऊर्जा छोड़ते हैं। नग्न आंखों से देखने पर अलग-अलग आकार की संरचनाएँ दिखाती हैं। सबसे बड़ी संरचनाएँ लोब कहलाती हैं। लोब आमतौर पर दो तरफ होते हैं, नाभिक के दोनों ओर लंबे और अंडाकार आकार के होते हैं। कम चमक वाली मंदाकिनीयों में कभी-कभी बहुत लंबे और पतले प्लम भी दिखाई देते हैं। ये लोब और प्लम मुख्य रूप से नाभिक के पास से आने वाले उच्च-ऊर्जा कणों और चुंबकीय क्षेत्रों की वजह से सक्रिय रहते हैं।

कुछ मंदाकिनीयों में लंबी संकीर्ण संरचनाएँ भी होती हैं, जिन्हें जेट कहा जाता है। जेट सीधे नाभिक से निकलती हैं और लोब तक जाती हैं। इनका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण विशाल आकाशगंगा एम87 है।

1974 में दो वैज्ञानिक, बर्नार्ड फनारॉफ और जूलिया रिले ने रेडियो स्रोतों को दो वर्गों में बांटा:—एफआरआई (FRI) और एफआरआईआई (FRI)। एफआरआई (FRI) में केंद्र की ओर सबसे चमकदार क्षेत्र होते हैं और ये कम चमक वाले स्रोत होते हैं। एफआरआईआई (FRII) में किनारों पर सबसे चमकदार हिस्से होते हैं और ये उच्च चमक वाले स्रोत होते हैं।[2]

एफआरआईआई (FRII) जेट अपनी ऊर्जा को लोब तक कुशलतापूर्वक पहुंचाते हैं, जबकि एफआरआई (FRI) जेट यात्रा करते समय अपनी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खो देते हैं। इसका मतलब है कि FRII जेट तेज गति से अपने रास्ते में ऊर्जा को बनाए रखते हैं।

  1. डेविड जे॰ एडम; डेविड जोन एडम; एलन केलेस; एंथनी डब्ल्यू. जोन्स (2004). मार्क एच. जोन्स; डेविड जे॰ एडम; रॉबर्ट जे. लैम्बोर्न (eds.). आकाशगंगाओं और अंतरिक्ष विज्ञान का परिचय. Cambridge University Press. pp. 142–144. ISBN 978-0-521-54623-2.
  2. फैनारॉफ, बर्नार्ड एल.; .; रिले जूलिया एम॰ (मई 1974). "उच्च और निम्न चमक वाले बाह्य आकाशगंगा रेडियो स्रोतों की आकृति विज्ञान". रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की मासिक सूचनाएं. 167: 31P – 36P. बिबकोड:1974MNRAS.167P..31F. डीओआई:10.1093/mnras/167.1.31p.{{cite journal}}: CS1 maint: multiple names: authors list (link)