रुदाल्फ हरमन लात्से

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Hermann Lotze
Hermann Lotze
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म21 मई 1817
Bautzen, Saxony
मृत्यु1 जुलाई 1881(1881-07-01) (उम्र 64)
बर्लिन, प्रशा राज्य
वृत्तिक जानकारी
युग19th-century philosophy
क्षेत्रWestern Philosophy
विचार सम्प्रदाय (स्कूल)German Monism
मुख्य विचारLogic, Metaphysics
प्रमुख विचारTeleological idealism
Teleomechanism

रुदाल्फ हरमन लात्से (Rudolf Hermann Lotze ; १८१७-१८८१ ई.) जर्मनी का सुप्रसिद्ध दार्शनिक एवं तर्कशास्त्री था। उसने चिकित्सा विज्ञान में भी डिग्री प्राप्त की थी तथा जीवविज्ञान में अत्यन्त पारंगत था। हेगल के बाद जर्मनी के दार्शनिकों में हरमन लात्से का नाम बहुत प्रसिद्ध है। उसके चिकित्सकीय अध्ययन वैज्ञानिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में अग्रगण्य थे।

परिचय[संपादित करें]

लात्से का जन्म जर्मनी के सैक्सोनी (Saxony) के बौजेन (Budziszyn) में एक चिकित्सक के यहाँ हुआ था। विद्यार्थी काल में उसने विज्ञान और सौंदर्य शास्त्र का बिशेष अध्ययन किया और इस अध्ययन ने उसके दार्शनिक दृष्टिकोण को निर्णीत किया। उसने तथ्य, नियम और मूल्य को सत्ता के अंश स्वीकार किया। विज्ञान में वह अनुभववादी था; दर्शन में प्रयोजनपरक प्रत्यवादी था और धर्म में ईश्वरवादी। उसके विचारानुसार, जगत् तथ्यों का क्षेत्र है; इसमें जो कुछ होता है, नियम के अधीन होता है और मूल्यों के उत्पादन और सुरक्षण के प्रयोजन से होता है। तथ्य, नियम और मूल्य का यह सामंजस्य चेतन परमदेव की अध्यक्षता में होता है।

किसी वस्तु के अस्तित्व का अर्थ क्या है जार्ज बर्कले ने कहा था कि किसी वस्तु का अस्तित्व उसका ज्ञात होना है। लॉत्से के अनुसार किसी वस्तु का अस्तित्व उसका अन्य वस्तुओं के साथ संबद्ध होना है। दो संबंध प्रमुख हैं : घटनाओं में कारण-कार्य-संबंध और जीवों में पारस्परिक संसर्ग। यह संबंध विद्यमान तो हैं, परंतु विवेचन के लिए समस्या यह है कि कोई दो पृथक् पदार्थ एक दूसरे पर प्रभाव डाल कैसे सकते हैं। लॉत्से कहता है कि पदार्थ एक दूसरे से पृथक हैं ही नहीं - यह सब एक ही सत्ता, ईश्वर, के आभासमात्र हैं। क्रिया-प्रतिक्रिया या जीवों के संसर्ग में होता यही है कि ईश्वर में कोई परिवर्तन होता है और उसका प्रतिफल कोई दूसरा परिवर्तन प्रकट हो जाता है।

दार्शनिक विवेचन में लॉत्से एकवादी था, परंतु जब वह नीति और धर्म पर विचार करता है, तो ईश्वर और अनेक जीवों को समर्थन करता है। हेगल और उसके अनुयायी अन्य वस्तुओं की तरह जीवों को भी आभासमात्र मानते थे; लात्से जीवों को स्वाधीन कर्ता मानता है। इसी के साथ वह निरपेक्ष को पुरुष विशेष के रूप में देखता है। वह कहता है कि सत्ता में मौलिक तत्व मूल्य है और मूल्यों में सर्वोत्तम मूल्य आत्मचेतना है। यह आत्मचेतना ईश्वर में ही पूर्ण रूप में विद्यमान है; जीवों में तो यह अपूर्ण रूप में दिखती है।

लॉत्से एकवाद और अनेकवाद में चुन नहीं सका - दार्शनिक विवेचन ने उसे एकवाद की ओर खींचा, नैतिक विचार ने अनेकवाद की ओर खींचा।

सन्दर्भ[संपादित करें]


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