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राय बहादुर

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी राय बहादुर डॉक्टर हीरालाल राय जी साहित्य, भाषा, पुरातत्व, इतिहास, नृत्तत्व शास्त्र, समाजशास्त्र आदि विषयों के विद्वान थे। उनका जन्म 1 अक्टूबर, 1867 को कटनी(मध्यप्रदेश) में हुआ था।


हीरालाल जी ने जनगणना अधिकारी, पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान विषय के शिक्षक और डिप्टी कमिश्नर जैसी अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया।

कई शोध पत्र और पुस्तकें रायबहादुर हीरालाल को एक उच्चकोटि का साहित्यकार भी बनाती हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकें; 1914 में मध्यप्रांत और बरार के शिलालेख, 1908 में एथनोग्राफिक्स नोट्स, 1916 में ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेंट्रल प्रॉविसेंस ऑफ इंडिया, रामटेक का दर्शन, चिमूर का घोड़ा, बुंदेलखंड की त्रिमूर्ति आदि उल्लेखनीय हैं। पुरातत्व के उच्च कोटि का विद्वान होने के कारण उन्हें 'चेदि कीर्ति चंद्र' भी कहा जाता था।

ग्रेजुएशन करने के बाद ये कई वर्षों तक शिक्षक रहे फिर 1891 ई0 में उन्हें सागर जिले का डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने ग्रामीण अँचलों में शिक्षा का विस्तार करते हुए कई कन्या-पाठशालाओं का निर्माण करवाया। इसी बीच जब 1897 ई0 का अकाल पड़ा तब उन्हें फैमिन रिलीफ़ आफिसर बनाया गया। अकाल राहतकार्यों में उन्होंने सरकार  के साथ निजी स्तर पर भी उत्कृष्ट काम किया जिसके लिए तत्कालीन चीफ कमिश्नर ने उनकी मुक्त कण्ठ से प्रसंशा की।

हीरालाल राय जी ने मध्यप्रदेश के 22 जिलों के गजेटियर के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था जिसके लिए तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने आपको 'रायबहादुर' की उपाधि से नवाजा। इस दौरान आपने अनेक शिलालेखों और प्राचीन ऐतिहासिक ग्रँथों पर काम करते हुए मध्यप्रदेश के इतिहास का लेखन किया जो आज भी आधार ग्रँथ है।

1911 के जनगणना में आप मुख्य अधिकारी थे। जनगणना कार्य समाप्त होने पर आप शिलालेख और हस्तलिखित संस्कृत,पालि,प्राकृत ग्रँथों की खोज में जुट गए।

अवकाश प्राप्त होने के बाद भी आपका कार्य जारी रहा और आपने ऐसे 10000 ग्रँथों की खोज कर डाली।

आपने वर्धा के डिप्टी कमिश्नर पद को भी सुशोभित किया और उसी पद पर रहते हुए सरकारी सेवा से अवकाश लिया।

हीरालाल राय जी इतिहास और प्राच्य विद्या के इतने बड़े मनीषी थे कि 1932 उनको अखिल भारतीय ओरियंटल कांफ्रेंस के पटना अधिवेशन का सभापति चुन लिया गया। अपने अंतिम समय में भी इतिहास पर महत्वपूर्ण कार्य करते हुए 19 अगस्त 1934 में उनका देहावसान हो गया जिसके कारण अशोक" और "मध्यप्रदेश का इतिहास" नामक  ग्रँथ आज भी अप्रकाशित हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ काशी प्रसाद जायसवाल और हीरालाल जी के बीच इतिहास विषयक बातों को लेकर काफी पत्राचार हुआ था। दोनों विद्वान एक-दूसरे की पांडुलिपियाँ संशोधन के लिए भेजते थे।

डॉ काशी प्रसाद जायसवाल अपनी विख्यात पुस्तक "भारतवर्ष का अन्धकरयुगीन इतिहास" में लिखते हैं कि रायबहादुर हीरालाल उक्त पुस्तक के दीप-स्तम्भ ही नहीं अपितु मार्गदर्शक भी थे।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं कि कलचुरी-इतिहास का जो ज्ञान हीरालाल जी रखते हैं वो किसी के पास नहीं। उन्हीं के शब्दों में "श्रद्धेय जायसवाल, स्व. राखालदास बनर्जी और स्व. हीरालाल जी भारतीय इतिहास के उन विद्वानों में हैं जिनका कोई सानी नहीं।"

उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 1987 में भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था |

1 अक्टूबर 1992 को नागपुर विश्वविद्यालय में राय बहादुर डॉ हीरालाल पुरातत्व संग्रहालय का उद्घाटन महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकांत जिचकर जी ने करके उन्हें सम्मान दिया।

सन्दर्भ

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