रामयत्न शुक्ल
रामयत्न शुक्ल | |
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आचार्य रामयत्न शुक्ल | |
जन्म |
15 जनवरी 1932 भदोही, उत्तर प्रदेश, भारत |
मौत |
सितम्बर 20, 2022 | (उम्र 90 वर्ष)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | पीएचडी, डी.लिट. |
शिक्षा की जगह |
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय भारतीय प्राच्य विद्या संस्थान |
पेशा | विद्वान, भाषाविद् |
पदवी | काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष |
प्रसिद्धि का कारण | संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य में योगदान |
माता-पिता |
रामनिरंजन शुक्ल (पिता) मैनादेवी (माता) |
पुरस्कार |
पद्म श्री (2021) राष्ट्रपति पुरस्कार (1998) केशव पुरस्कार वाचस्पति पुरस्कार विश्व भारती पुरस्कार |
रामयत्न शुक्ल (1932−2022), संस्कृत भाषा के भारतीय विद्वान और भाषाविज्ञानी थे। वे उत्तर प्रदेश के वाराणसी से थे और प्राचीन और संस्कृत ग्रंथों को संरक्षित करने में योगदान दिया।[1] वे काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे, जो भारत में विद्वानों और संतों का एक संगठन है। उन्हें संस्कृत भाषाविद और व्याकरणकार पाणिनी के नाम पर अभिनव पाणिनी के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने संस्कृत व्याकरण और वेदांत शिक्षण और आधुनिकीकरण के नए तरीकों का आविष्कार करने में योगदान दिया। उन्हें 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने नई पीढ़ी को संस्कृत भाषा से जोडेने के लिए एक मुहिम की शुरुआत की थी, जिसके अंतर्गत वें मुफ़्त में संस्कृत की शिक्षा दिया करते थे। [2]
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]आचार्य रामयत्न शुक्ल का जन्म 15 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के गांव कला तुलसी में हुआ था। उन्होंने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पीएचडी और कोलकाता के भारतीय प्राच्य विद्या संस्थान से डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। उनके पिता रामनिरंजन शुक्ल भी संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान थे और उनकी माता मैना देवी गृहिणी थीं। आचार्य रामयत्न शुक्ल ने स्वामी करपात्री और स्वामी चेतन भारती से योग, वेद और शास्त्र भी सीखे।[3]
करियर
[संपादित करें]उन्होंने उत्तर प्रदेश नागकूप शास्त्रार्थ समिति और सनातन संस्कृति संवर्धन परिषद की स्थापना की, दोनों संगठन संस्कृत भाषा और समाज के नैतिक मूल्यों को उन्नत करने में लगे हुए हैं।[3]
उन्होंने 1992 में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के एचओडी और डीन के रूप में सेवा दी। एक शिक्षक के रूप में, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पांडिचेरी और श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ सहित विभिन्न संस्थानों में प्रधानाचार्य, व्याख्याता और अतिथि संकाय के रूप में सेवा दी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की और उनके शोध पत्र कई प्रकाशनों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। व्याकरण दर्शन शृष्टि प्रक्रिया विमर्श उनके उल्लेखनीय कार्यों में से एक है।[4]
व्यक्तिगत जीवन
[संपादित करें]उनका निधन 20 सितंबर 2022 को हुआ।[5][6][7]
सम्मान एवं पुरस्कार
[संपादित करें]उन्हें 25 से अधिक पुरस्कार मिले हैं और कुछ उल्लेखनीय पुरस्कारों में राष्ट्रपति पुरस्कार, केशव पुरस्कार, वाचस्पति पुरस्कार और विश्वभारती पुरस्कार शामिल हैं। उन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि दी गई थी। 2021 में, रामयत्न शुक्ल को सामाजिक कार्य श्रेणी में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।[8]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ सिंह, अलख (1 फरवरी 2021). "SSVV को अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने की उठी मांग". हिन्दुस्तान.
- ↑ शुक्ला, राघवेंद्र (27 जनवरी 2021). "मुफ्त में संस्कृत की शिक्षा दे रहे हैं आचार्य रामयत्न शुक्ल, अब मिला पद्मश्री सम्मान". नवभारत टाइम्स.
- ↑ अ आ भदौरिया, योगेश (21 सितंबर 2022). "नहीं रहे व्याकरण के पुरोधा पद्मश्री रामयत्न शुक्ल, 90 वर्ष की आयु में काशी में ली अंतिम सांस". नवभारत टाइम्स.
- ↑ "The Vyakaran Darsane Srishti Prakriya Vimarsh of Acharya Ram Yatna shukla". इग्ज़ाटिक इंडिया. Luminous Books.
- ↑ सिंह, अनुराग (20 सितंबर 2022). "महामहोपाध्याय पद्मश्री प्रो. रामयत्न शुक्ल का तिरोधान, प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शोक जताया". दैनिक जागरण.
- ↑ "PM condoles the demise of Prof Ram Yatna Shukla, President Kashi Vidvat Parishad". प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो. 20 सितंबर 2022.
- ↑ "UP Guv, CM remember Padma Shri Prof Shukla". यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया. 22 सितंबर 2022.
- ↑ "Pamdma Shri Prof. Ram Yatna Shukla" (PDF). Padmaawards.gov.in. भारत सरकार. 2019.