राजेश्वर प्रसाद मंडल

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राजेश्वर प्रसाद मंडल (२० फ़रवरी १९२० - १० अक्टूबर १९९२) न्यायविद, साहित्यकार एवं हिन्दीसेवी थे। पटना उच्च न्यायालय में हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले वे प्रथम न्यायधीश थे।

परिचय[संपादित करें]

बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश्वर प्रसाद मंडल ‘मणिराज’ का जन्म मधेपुरा जिला के गढिया में २० फ़रवरी १९२० को अहीरों[1] के मुरहो जमींदार परिवार में हुआ था। इनके दादा रासबिहारी मंडल मधेपुरा के सुख्यात जमींदार एवं बिहार के अग्रणी कांग्रेसी थे। रासबिहारी मंडल के तीन पुत्र भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल तथा बिन्ध्येश्वरी प्रसाद मंडल राजनीति में सक्रिय थे। राजेश्वर पिता भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल और माता सुमित्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। टीएनबी कॉलेज भागलपुर से अर्थशास्त्र में स्नातक और पटना वि०वि० से एम०ए० करने के बाद इन्होने १९४१ में पटना विधि महाविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की. १९४० में आपके विवाह पटना में भाग्यमणी देवी से हुआ।

राजेश्वर प्रसाद मंडल १९४२ में वकालत पेशे से जुड़े. १९४६ तक मधेपुरा में वकालत करने के बाद ये १९४७ में मुंसिफ के पद पर गया में नियुक्त हुए.१९६६ में ये पटना हाई कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार बनाये गए तथा १९६९ में दुमका में एडीजे बने. १९७३ में हजारीबाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित हुए और फिर १९७९ में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे उत्कर्ष पद पर. १९८२ में अवकाश ग्रहण करने के पूर्व वे समस्तीपुर जेल फायरिंग जांच समिति के चेयरमैन नियुक्त हुए. १९९० में ये राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य तथा १९९० में ही पटना उच्च न्यायालय में सलाहकार परिषद के सदस्य जज मनोनीत हुए. १० अक्टूबर १९९२ को इनके जीवन यात्रा का समापन पटना में ही हो गया।

उपलब्धियाँ[संपादित करें]

बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सजा था उनका जीवन. बहुत अच्छे खिलाड़ी ही नही, बहुत अच्छे इंसान भी थे वे. हिन्दी में न्यायादेश लिखने वाले पटना उच्च न्यायलय के प्रथम न्यायाधीश थे वे. उन्होंने हजार पृष्ठ से भी अधिक विस्तार में साहित्य-सर्जना की जिनमे सभ्यता की कहानी, धर्म, देवता और परमात्मा, भारत वर्ष हिंदुओं का देश, ब्राह्मणों की धरती आदि ग्रंथों में वंचितों के प्रति अपनी पक्षधरता द्वारा यह प्रमाणित किया किया है। ’जहाँ सुख और शान्ति मिलती है’ जैसे रोचक उपन्यास में उन्होंने पाश्चात्य की तुलना में भारतीय संस्कृति का औचित्य प्रतिपादित किया है तो ‘सतयुग और पॉकेटमारी’ कहानी संग्रह में अपनी व्यंग दक्षता का प्रमाण दिया है। ’अँधेरा और उजाला’ के द्वारा उनके नाटककार व्यक्तित्व का परिचय मिलता है तो ‘चमचा विज्ञान’ से कवि प्रतिभा का.

सार रूप में कहें तो राजेश्वर प्रसाद मंडल मानवता के पुजारी, रूढियों के भंजक, प्रगतिकामी, सामाजिक परिवर्तन के शब्द-साधक मसीहा और सर्वोपरि एक नेक इंसान थे।

  1. Mishra, Girish; Pandey, Braj Kumar (1996). Sociology and Economics of Casteism in India: A Study of Bihar (अंग्रेज़ी में). Pragati Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7307-036-5.