राजस्थान की मिट्टियाँ
इस लेख या भाग में मूल शोध या अप्रमाणित दावे हो सकते हैं। कृपया संदर्भ जोड़ कर लेख को सुधारने में मदद करें। अधिक जानकारी के लिए संवाद पृष्ठ देखें। (फ़रवरी 2015) |
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (फ़रवरी 2015) स्रोत खोजें: "राजस्थान की मिट्टियाँ" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
साधारणतया जिसे हम मिट्टी कहते हैं , वह चट्टानों का चूरा होता है। ये चट्टानें मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं - स्तरीकृत (अवसादी), आग्नेय और रूपान्तरित। क्षरण या नमीकरण के अभिकर्त्ता तापमान, वर्षा, हवा, हिमानी, बर्फ व नदियों द्वाया ये चट्टाने टुकड़ों में विभाजित होती हैं जो अंत में हमें मिट्टी
के रूप में दिखाई देती हैं।
मृदा संगठन के 4 प्रमुख अवयव हैं -
1. खनिज पदार्थ (45%)
2. जीवासम पदार्थ/कार्बनिक पदार्थ(3-5%)
3. जल (25%)
4. वायु (25%)
राजस्थान की मिट्टियों के प्रकार
[संपादित करें]वैज्ञानिक दृष्टि से राजस्थान की मिट्टियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है -
इस प्रकार की मिट्टी मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है राजस्थान में इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान में 38% तक पाया जाता है इस मिट्टी को एरिडिसोल्स भी कहा जाता है
यह मिट्टी उदयपुर जिले के मध्यवर्ती व दक्षिणी भागों में और सम्पूर्ण डूंगरपुर जिले पायी जाती है। लौह-कण के सम्मिश्रण के कारण यह लाल दिखाई देती है। इस माटी में पोटाश व चूने का अंश पर्याप्त मात्रा में होता है। इस माटी पर मक्का,चावल की खेती की जाती है। Or ise yha kha jata h
यह मिट्टी उदयपुर के पूर्वी भाग में चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा और भीलवाड़ा जिले के पूर्वी भाग में पायी जाती है। इस माटी में क्षार का अंश भी होता है। इन भागों में मक्का व कपास की खेती मुख्यत: की जाती है। यहाँ 50-60 फुट की गहराई पर पानी मिल जाता है।
पीली-लाल मिट्टी
[संपादित करें]इस प्रकार की मिट्टी उदयपुर व भीलवाड़ा जिलों के पश्चिमी भाग तथा सवाई माधोपुर, अजमेर ,टोंक, करौली सिरोही जिलों में पायी जाती है। इसमें लौह अंश होने के कारण इसका रंग लाल व पीला है। कहीं-कहीं पर इस माटी का रंग हल्के-पीले से लेकर गहरा भूरा देखने को मिलता है।
काली मिट्टी
[संपादित करें]यह मिट्टी उदयपुर संभाग के कुछ भागों डूंगरपुर , बाँसवाड़ा कुशलगढ़ , प्रतापगढ़ तथा पूर्व में कोटा व झालावाड़ क्षेत्रों में पायी जाती है। इस माटी में नमी को रोके रखने का विशेष गुण होता है। यह मिट्टी खूब उपजाऊ भी होती है। (यह मिट्टी नकदी फसल के लिए उपयुक्त है। ) इस मिट्टी आद्रता ग्रहण क्षमता सर्वाधिक होती है इस लिए इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी भी कहते है ये मिट्टी राजस्थान की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है
लेटेराइट मिट्टी
[संपादित करें]इस प्रकार की मिट्टी बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व कुशलगढ़ के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलती है। [1] इस माटी में चूना, नाइट्रेट व ह्यूमरस अल्पमात्रा में है। अतः वनस्पति उगाने के लिए अच्छा नहीं हैं।
जलोढ़ मिट्टी
[संपादित करें]यह माटी राजस्थान के पूर्वी भाग में मुख्यतः पायी जाती है। इसका थोड़ा-सा क्षेत्र उत्तरी राजस्थान में भी है। अलवर, भरतपुर, डीग ,दौसा(काली पहाड़ी) , अजमेर ,टोंक,कोटा ,धोलपुर , जयपुर और सवाई माधोपुर जिलों तथा गंगानगर जिले के मध्यवर्ती भाग में यह मिट्टी देखने को मिलती है। इस माटी में नाइट्रोजन की तो अल्पमात्रा में है , किंतु चूना, पोटाश, फॉस्फोरस, लोहा अनेक पदार्थ हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 फ़रवरी 2015.