राजस्थान का युद्ध

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कन्नौज त्रिकोण

सन ७३८ ई में लड़े गये कई युद्धों की शृंखला को राजस्थान के युद्ध कहते हैं। इन युद्धों में हिन्दुओं के संघ ने आक्रमणकारी अरब सेनाओं को सिन्ध नदी के पूर्वी भाग से पीछे धकेलते हुए इस भाग को अरबों के प्रभाव से मुक्त कर दिया था। अन्तिम युद्ध वर्तमान सिन्ध और राजस्थान की सीमा पर किसी स्थान पर हुआ था। अरब सेना ने सिन्ध पर अधिकार कर लिया किन्तु उनको सिन्ध नदी के पश्चिमी क्षेत्र तक रुकने के लिये मजबूर होना पड़ा।

प्रतिहार राजवंश के नागभट्ट प्रथम, दक्षिण भारत के चालुक्य राजवंश का सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय, गुहिल राजवंश के बाप्पा रावल तथा कई महान क्षत्रिय राजपूत थे। अरबों ने फारस को बहुत कम समय में बहुत कम प्रयत्न से जीत लिया था, उसी से उत्साहित होकर अरब सेनाओं ने भारत पर आक्रमण किया जिसमें उनको मुंह की खानी पड़ी। राजस्थान का युद्ध (या युद्ध की श्रृंखला), 738 ए.डी. में तत्कालीन सिंध-राजस्थान की सीमा पर हुआ । इस युद्ध में, राजपूत गठबंधन गठबंधन ने अरब आक्रमणकारियों को हराया और सिंधु नदी के पूर्वी क्षेत्र से अरब आक्रमणकारियों और लूटेरों को पीछे धकेल दिया और पूरे भारत की रक्षा की। मुख्य भारतीय राजा जिन्होंने अरबों पर विजय के लिए योगदान दिया था: प्रतिहार राजवंश का नागभट्ट प्रथम राष्टकूट साम्राज्य के जयसिंह-वर्मन मेवाड़ के क्षत्रिय बाप्पा रावल राजस्थान का युद्ध: पृष्ठभूमि


7वीं शताब्दी के अंत तक इस्लाम एक शक्तिशाली धर्म बन गया था और अरब एक शक्तिशाली सेना । मोहम्मद इब्न कसीम ने ईरान और अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था । उनके उत्तराधिकारी, जुनेद इब्न अब्द अल-रहमान अल-मुरी, ने 730 सी.ई. की शुरुआत में हिंदुस्तान क्षेत्र में एक बड़ी सेना का नेतृत्व किया। अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटकर उन्होंने दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी मालवा और गुजरात के कई शहरों में लूटपाट की। अरब बलों की शक्ति का अनुभव करते हुए नागभट्ट प्रथम ने राष्ट्रकूट साम्राज्य के जयसिंह वर्मन के साथ संयुक्त मोर्चा दिखाने का आग्रह किया। जयसिम्हा ने आग्रह स्वीकार किया और अपने पुत्र अवनिजनश्रया पुलकेसी को नागभट्ट प्रथम को समर्थन देने के लिए भेजा । दोनों सेनाएं राजस्थान की सीमा पर पहले से ही युद्ध कर रही बप्पा रावल के नेतृत्व वाली राजपूत सेना में सम्मिलित हुई । राजस्थान का अंतिम युद्ध और परिणाम: इस युद्ध में 5000-6000 पैदल राजपूत सेना और घुड़सवारों ने 30,000 से अधिक अरबी सेना का सामना किया । युद्ध के दौरान बप्पा रावल के नेतृत्व वाली राजपूत सेना अरबी नेता अमीर जुनैद को मारने में सफल रही ॥ अरब इतिहासकार सुलेमान के शब्दों में, “मुसलमानों को भाग कर शरण लेने का स्थान भी नहीं मिल पाया था।” अरबों को अपनी हार से उबरने में काफी समय लग गया। जुनेद के उत्तराधिकारी तमीम इब्न ज़ेड अल-उत्बी ने राजस्थान के खिलाफ एक नए युद्ध की रचना की लेकिन किसी भी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने में असफल रहे। इस प्रकार, वीर राजपूतों की तिहरी संधि ने कम से कम अगले 300 वर्षों तक अरब आक्रमणकारियों से हिंदुस्तान को बचाया।