राजस्थान अभिलेखागार

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बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार देश के सबसे अच्‍छे और चर्चित अभिलेखागारों में से एक है। इस अभिलेखागार की स्‍थापना 1955 में हुई और यह अपनी विपुल व अमूल्‍य अभिलेख निधि के लिए प्रतिष्ठित है। अभिलेखागार देश का पहला ई अभिलेखागार है। 26 सितम्बर 2013, को जारी इनकी वेबसाइट के जरिए दूर दराज से शोध करने वाले विद्यार्थी और इतिहासकार सिर्फ एक क्लिक पर 35 लाख अभिलेखों का अध्ययन कर सकते हैं। वेबसाइट के जरिए बीकानेर रियासत के 12 लाख, जयपुर रियासत के 11 लाख और जोधपुर रियासत के 7.5 लाख 'अभिलेख' ऑनलाइन किए गए हैं। इसके साथ ही अलवर और सिरोही के महत्वपूर्ण रजिस्ट्री अभिलेखों और ऐतिहासिक फरमानों को भी डिजिटलाइज किया गया है। ई-रिकॉर्डिंग के रूप में यहाँ बैठ कर 246 स्वाधीनता सेनानियों के संस्मरण भी सुने जा सकते हैं।[1]

दस्‍तावेजों की सुव्‍यवस्थित व्‍यवस्‍था[संपादित करें]

यहां संरक्षित दुर्लभ दस्‍तावेजों की सुव्‍यवस्थित व्‍यवस्‍था काबिलेतारीफ है। अपने समृद्ध इतिहास स्रोतों और उनके बेहतर प्रबंधन, रखरखाव के चलते ही शायद इसे देश के सबसे व्यवस्थित अभिलेखागारों में से एक माना जाता है। इस अभिलेखागार की तीन विशेषताएं हैं, एक तो यहां उपलब्‍ध सामग्री- इस लिहाज से निसंदेह रूप से यह देश के सबसे समृद्ध अभिलेखागारों में से एक है। दूसरा- उपलब्‍ध सामग्री को संरक्षित/सुरक्षित रखने के तौर-तरीके और तीसरा इसका प्रबंधन। इन सबका एक साथ मिलना अपने आप में बड़ी बात है।

दुर्लभ दस्‍तावेज और स्रोत[संपादित करें]

आजादी से पूर्व रियासतकालीन तथा मुगलकालीन इतिहास स्रोतों के विविध स्‍वरूप यहां सुरक्षित तथा संरक्षित हैं। यही कारण है कि राजस्‍थान और भारतीय इतिहास पर काम करने वाले देशी विदेशी शोधार्थिओं और जिज्ञा‍सुओं का यहां निरंतर आना जाना बना रहता है। इस अभिलेखागार में विभिन्‍न स्‍वरूपों में संग्रहित मूल स्रोत सामग्री नई पीढी के लिए सौगात से कम नहीं है। यहां मुगलकालीन फरमान, निशान, मंसूर, अर्जदास्‍त, ताम्रपत्र, रजत पत्र, सियाह हजूर, अखबारात, वकील रपटें, तोजियां बहियां, रूक्‍के, परवाने, पट्टे व दरबारी पत्र संग्रहीत तथा संरक्षित हैं। इस अभिलेखागार के संदर्भ-पुस्‍तकालय की बात ही की जाए तो वहां 51 विषयों के अनुसार व्‍यवस्थित 50 हजार किताबें हैं। आजादी-पूर्व की रियासतों के दुलर्भ प्रकाशन, विविध जनसंख्‍या रपटें, रिसर्च जर्नल तथा शोध पत्रिकाएं इसमें शामिल हैं।[2]

दस्‍तावेजों का कंप्‍यूटरीकरण[संपादित करें]

बदलते वक्‍त के साथ इस अभिलेखागार में उपलब्‍ध दुर्लभ दस्‍तावेजों के कंप्‍यूटरीकरण (डिजिटलीकरण) का काम भी शुरू हो गया है। यह देश का पहला अभिलेखागार है, जो पुरा दस्तावेजों को ऑनलाइन करने जा रहा है। प्रथम और द्वितीय चरण में करीब 50 लाख दस्तावेजों का डिजिटलीकरण करके इसी वर्ष नवंबर तक ऑनलाइन कर दिया जाएगा। तीसरे चरण में एक करोड़ से ज्यादा दस्तावेजों के डिजिटलीकरण करने का बड़ा काम होगा, जिसमें तीन साल लग जाएंगे।[3]

बदलते वक्‍त के साथ अभिलेखागार को अद्यतन करने की अनेक योजनाएं जारी हैं। इनमें दुर्लभ दस्‍तावेजों का डिजिटलीकरण या कंप्‍यूटरीकरण शामिल है। माइक्रोफिल्‍म बनाने का काम भी इस दिशा में उठाया गया कदम है ताकि दुर्लभ दस्‍तावेजों की आयु को और बढाया जा सके। इन्‍हें और बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके। बीकानेर स्‍टेट के पट्टा रिकार्ड की प्रतिलिपि जारी करने के लिए एकल खिड़की योजना है तो स्‍वतंत्रता सेनानी चित्र गैलरी बनाने की दिशा में भी काम जारी है। इसी तरह एक महत्‍वाकांक्षी योजना यहां आर्काइवल म्‍यूजियम बनाने की है।

इसी तरह सभी दस्तावेजों की माइक्रोफिल्म भी बनाई जा रही है। इससे दस्तावेज अगले 500 साल तक सुरक्षित रहेंगे। अभी बीकानेर संभाग के करीब डेढ़ लाख रियासतकालीन पट्टों का डिजिटलीकरण करने का काम पूरा हो चुका है। दूसरे चरण में 25 लाख पर काम चल रहा है। 16 लाख दस्तावेजों का डिजिटलीकरण हो चुका है। नवंबर तक इन्हें नेट पर डाल दिया जाएगा। राज्य सरकार की वेबसाइट पर अभिलेखागार की ‘डिपार्टमेंट ऑफ आर्काइव्ज’ पर ये दस्तावेज उपलब्‍ध हो सकेंगे।[4] विदेशी शोधार्थी भी आते हैं।

कुछ आंकड़े[संपादित करें]

संस्कृति व सभ्यता की दृ‌ष्टि से खास पहचान रखने वाले बीकानेर के अभिलेखागार में हर वर्ष करीब 500 शोधार्थी विभिन्‍न विषयों पर शोध करने आते हैं। यहां शोध के लिए आने वाले शोधार्थियों में विदेशी छात्र भी शामिल हैं। रियासतकालीन समय में कच्चे घरों पर की जाने वाली रंग-बिरंगी छपाई एवं पशु पक्षियों के शिकार की घटनाओं पर आज भी विदेशों से विद्यार्थी यहां आकर शोध करते हैं। विदेशों से आने वाले शोधार्थी रियासतकाल में होने वाले आय-व्यय एवं उनके काम करने की प्रक्रिया पर ज्यादा शोध करते हैं।

वर्ष 2008-09 में बीकानेर के अभिलेखागार में 10 विदेशी विद्यार्थियों ने विभिन्‍न विषयों पर शोध कर पीएच॰डी॰ की डिग्री हासिल की है। देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से विद्यार्थी यहां आते हैं जिसमें नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, पंजाब की चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, बनारस विश्वविद्यालय प्रमुख हैं। वर्ष 2004 से पहले यहां आने वाले शोधार्थियों की संख्या बहुत कम थी लेकिन जैसे-जैसे यहां पर रियासतकालीन अभिलेखों को नया रूप दिया जा रहा है वैसे-वैसे शोधार्थियों की संख्या भी बढ़ रही है।[5]

वैसे बीकानेर में पर्यटन की दृ‌ष्टि से कई संभावनाएं हैं जिसमें यहां का अभिलेखागार भी प्रमुख है। अगर आने वाले समय में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाए तो पर्यटकों की संख्या में तो इजाफा होगा ही, साथ ही सरकार को राजस्व भी मिलेगा।

अभी अभिलेखागार के निदेशक डा। महेंद्र खड़गावत हैं।

राजस्थान शासन के एक संकल्प के अनुसार "हमारी समृद्ध प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए पुरालेखों का संरक्षण और ई-तालिका बनाना, अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राथमिक काम है। लगभग 75,000 पट्टा अभिलेख व 4 लाख बहिया ऐसी है जो कि गैर सूचीबद्ध है। इन संग्रह अभिलेख के अलावा वहाँ कुछ दुर्लभ पट्टा और फारमैन है, जिसे भावी पीढ़ी के लिए इस तरह के अभिलेख स्कैनिंग द्वारा संरक्षित किये जाने की जरूरत है। इसके अलावा ऐसे पुरालेखों जो अत्यधिक ध्वस्तहालत में है, उनके संरक्षण और प्रबंधन प्रक्रिया के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। राज्य पुरालेख की जिम्मेदारी वस्तुओं की पहचान और जानकारी संकलन की होगी। आँकड़ा प्रविष्टि का कार्य डिजिटलीकरण के कार्य के समानांतर किया जाएगा। जैसे ही डिजिटलीकरण का काम समाप्त होगा, उन छवियों को औऱ आँकड़ों अभिलेखों के साथ जोड़ दिया जाएगा और एनआईसी के ई-सूचीबद्ध सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर आँकड़ा कोष बनाया जाएगा। एनआईसी/एनआईसीएसआई इस सॉफ्टवेयर का प्रस्तुतिकरण, खोज तंत्र और नेविगेशन सुविधा का उपयोग कर जानकारी की पुनर्प्राप्ति करने के लिए अनुकूलित करेगी।"c[6]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. [1.'Rajasthan State Archives: an introduction' By Rajasthan State Archives An Introductory Publication
  2. [1.'Rajasthan State Archives: an introduction' By Rajasthan State Archives An Introductory Publication
  3. [1.'Rajasthan State Archives: an introduction' By Rajasthan State Archives An Introductory Publication
  4. [1.'Rajasthan State Archives: an introduction' By Rajasthan State Archives An Introductory Publication
  5. [1.'Rajasthan State Archives: an introduction' By Rajasthan State Archives An Introductory Publication
  6. [1] Archived 2014-07-15 at the वेबैक मशीन/
  • [Handbook of libraries, archives and information centres in India By B M. Gupta][2]
  • [Rajasthan State Archives: an introduction By Rajasthan State Archives]

website[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

[3] [Sep 26, 2013, इ-पेपर [4] [5] [6][मृत कड़ियाँ]