राजसूय
राजसूय वैदिक काल का विख्यात यज्ञ है। इसे कोई भी राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए किया करते थे। यह एक वैदिक यज्ञ है जिसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
इस यज्ञ की विधी यह है की जिस किसी को चक्रवर्ती सम्राट बनना होता था, वह राजसूय यज्ञ संपन्न कराकर एक अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया करता था। वह घोड़ा अलग-अलग राज्यों और प्रदेशों में फिरता रहता था। उस अश्व के पीछे-पीछे गुप्त रूप से राजसूय यज्ञ कराने वाले राजा के कुछ सैनिक भी हुआ करते थे।
जब वह अश्व किसी राज्य से होकर जाता और उस राज्य का राजा उस अश्व को पकड़ लेता था तो उसे उस अश्व के राजा से युद्ध करना होता था और अपनी वीरता प्रदर्शित करनी होती थी और यदि कोई राजा उस अश्व को नहीं पकड़ता था तो इसका अर्थ यह था की वह राजा उस राजसूय अश्व के राजा को नमन करता है और उस राज्य के राजा की छत्रछाया में रहना स्वीकार करता है।
महाभारत काल में महाराज युधिष्ठिर द्वारा यह यज्ञ किया गया था।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]रामायण के राजा श्री राम ने राजसूय यज्ञ नहीं किया था बल्कि अश्वमेघ यज्ञ किए थे। इसलिए इसे Wikipedia correct kre।
युधिष्ठिर द्वारा खांडववन में इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद राजसूय यज्ञ किया गया था राजसूय यज्ञ में सिर्फ अपने हराये और अधीनस्थ किये राज्यों पर प्रभुत्व के लिए यज्ञ किया जाता है राजसूय में घोडा नहीं छोड़ा जाता, युधिष्ठिर के द्वारा इस समय किये राजसूय यज्ञ के समय घोडा नहीं छोड़ा था इस कारण हस्तिनापुर से लेकर जरासंघ का मगध, कर्ण का अंगदेश सहित अनेक राज्य युधिष्ठिर के अधिकार में नहीं आये थे क्योकि ना तो घोडा छोड़ा ना उनसे युधिष्ठिर ने उस समय युद्ध ही लड़ा !
महाभारत के बाद युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया इसमें स्वतंत्र घोडा छोड़ा गया जिसके पीछे पांडवो की सेना रहती थी. घोडा पूरी पृथ्वी पर कही भी जा सकता था इस समय पूरेभारत वर्ष में युधिष्ठिर का राज हो गया था, जो राज्य महाभारत में शेष रह गए थे उन्होंने भी इस समय युधिष्ठिर और पांडवो की प्रधानता/अधीनता स्वीकार कर ली थी, उदाहरण के लिए मणिपुर द्वारा अश्वमेघ का घोडा रोकने पर मणिपुर के राजकुमार बृषवाहन (अर्जुन और प्रियवंदा के पुत्र ) ने कर्ण के पुत्र और अर्जुन का अपनी पराक्रम से वध कर दिया था परन्तु यह पता चलने पर की अर्जुन उनके पिता है बृषवाहन ने अपनी दूसरी माता नागकन्या उडुपी (अर्जुन की दूसरी पत्नी ) से नागमणि लेकर कारण के पुत्र और अपने पिता अर्जुन को जीवित किया था और युधिष्ठिर और पांडवो का घोडा छोड़ दिया था और घोडा की आगे की रक्षा के लिए वह भी पांडव सेना के साथ हो लिया था.