एंजियोप्लास्टी

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एंजियोप्लास्टी (रक्तवाहिकासंधान) (अंग्रेजी: Angioplasty) आमतौर पर धमनीकलाकाठिन्य के परिणामस्वरूप संकुचित या बाधित हुई रक्त वाहिका को यांत्रिक रूप से चौड़ा करने की एक शल्य-तकनीक है। इस तकनीक द्वारा एक गाइड वायर के सिरे पर रखकर एक खाली और पचके गुब्बारे को, जिसे बैलून कैथेटर कहा जाता है संकुचित स्थान में डाला जाता है और फिर सामान्य रक्तचाप (6 से 20 वायुमण्डल) से 75-500 गुना अधिक जल दवाब का उपयोग करते हुए उसे एक निश्चित आकार में फुलाया जाता है। गुब्बारा धमनी या शिरा के अन्दर जमा हुई वसा को खण्डित कर देता है और रक्त वाहिका को बेहतर प्रवाह के लिए खोल देता है और इसके बाद गुब्बारे को पिचका कर उसी तार (कैथेटर) द्वारा वापस खींच लिया जाता है।

एंजियोप्लास्टी को यूनानी शब्द αγγειος aggeîos या "वाहिका" और πλαστός plastós या "गठित" अथवा "ढाला गया", दोनों को मिलाकर बनाया गया है। एंजियोप्लास्टी में सभी तरीके के संवहनी अंतःक्षेप शामिल हैं जिन्हें आम तौर पर न्यूनतम आक्रामक या अखंडित त्वचा विधि के रूप में निष्पादित किया जाता है।

इतिहास[संपादित करें]

एक बैलून कैथेटर का आरेखण

रक्तवाहिकासंधान की चर्चा शुरुआत में अंतःक्षेपी रेडियोलोजिस्ट चार्ल्स डॉटर द्वारा 1964 में की गयी थी।[1] डॉ॰ डॉटर ने एंजियोप्लास्टी और कैथेटर-प्रदत्त स्टेंट का आविष्कार करते हुए आधुनिक चिकित्सा में अग्रणी भूमिका निभायी जिसका प्रयोग सर्वप्रथम परिधीय धमनी रोग के उपचार में किया गया। 16 जनवरी 1964 को डॉटर ने 82 वर्षीय एक ऐसी बूढ़ी महिला की अखंडित त्वचा से एक सतही उरू धमनी (SFA) के कठोर स्थानीयकृत स्टेनोसिस का विस्फारण किया जिसे दर्दनाक इस्कीमिया और गैंग्रीन हुआ था और उसने विच्छेदन से इनकार कर दिया था। गाइड वायर और समाक्षीय टेफ्लोन कैथेटर द्वारा स्टेनोसिस के सफल विस्फारण के बाद, रक्त का परिसंचरण उसके पैर में वापस लौट आया। विस्फारित धमनी तब तक खुली रही जब तक ढाई वर्ष बाद निमोनिया से उसकी मौत नहीं हो गयी।[2] चार्ल्स डॉटर को सामान्यतः "अन्तःक्षेपी रेडियोलॉजी के जनक" के रूप में जाना जाता है। इसी आविष्कार के परिणामस्वरूप चार्ल्स डॉटर को 1978 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के लिये नामित किया गया।

किसी जागते हुए रोगी पर प्रथम कोरोनरी एंजियोप्लास्टी का सफलतापूर्वक निष्पादन एक जर्मन हृदय रोग विशेषज्ञ एड्रिआज़ ग़्रुएन्त्ज़िग द्वारा सितम्बर 1977 में किया गया।[3]

कोरोनरी धमनी रोग के कारण[संपादित करें]

जिन कारणों से धमनियों में रुकावट उत्पन्न होती है उनमें शामिल हैं- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, निष्क्रिय जीवन-शैली, धूम्रपान, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर, संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थ और हृदय सम्बन्धी बीमारी। इन तमाम रुकावटों को एंजियोप्लास्टी द्वारा दूर किया जाता है।[4]

बाईपास सर्जरी की तुलना में एंजियोप्लास्टी अधिक सुरक्षित है और आंकड़ों के अनुसार इस प्रक्रिया के बाद होने वाली जटिलताओं के कारण 1% से भी कम लोग मरते हैं।[5] एंजियोप्लास्टी के दौरान या उसके बाद होने वाली जटिलताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • धमनी का खिंचाव जिसके परिणामस्वरूप पूर्ण अवरोध और सम्भव रोधगलन हो सकता है - इसे आमतौर पर एक स्टेंट द्वारा ठीक किया जा सकता है।
  • एक भटका हुआ थक्का कुछ परिस्थितियों में स्ट्रोक पैदा कर सकता है। (एंजियोप्लास्टी कराने वाले 1% से भी कम रोगियों में प्राय: ऐसा होता है।) ं
  • जहाँ से कैथेटर डाला गया हो वहाँ रक्तस्राव या जख्म।
  • गुर्दे की समस्याएँ, विशेष रूप से उन लोगों में जिनमे पहले से ही गुर्दे या मधुमेह की बीमारी हो। (यह एक्स-रे के लिए इस्तेमाल होने वाले आयोडीन कंट्रास्ट डाई की वजह से होता है; इस जोखिम को कम करने के लिए प्रक्रिया से पहले और बाद में अन्तर्शिरा द्रव और दवा दी जाती है।)
  • अतालता (दिल की अनियमित धड़कन)।[6]
  • एंजियोप्लास्टी के दौरान दिये गये डाई से एलर्जी प्रतिक्रिया।
  • 3 से 5% मामलों में रोधगलन भी होता है।
  • प्रक्रिया के दौरान इमरजेंसी कोरोनरी धमनी बाईपास ग्राफ्टिंग की जरूरत। (2-4 प्रतिशत लोगों के लिये) यह तब हो सकता है जब एक धमनी खुलने की बजाय बन्द हो जाये।
  • रेस्टेनोसिस, एंजियोप्लास्टी की सबसे आम जटिलताओं में से एक है और इसके तहत प्रक्रिया समाप्ति के बाद अगले कई हफ़्तों या महीनों के दौरान रक्त वाहिकाओं का धीरे-धीरे पुनः संकुचन होता है। ऐसी कुछ परिस्थितियाँ हैं जिनके तहत इस जटिलता के विकास का जोखिम बढ़ जाता है और वे हैं उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एंजाइना या गुर्दे की बीमारी।
  • रक्त के थक्के (इंस्टेंट घनास्त्रता)। ये थक्के एंजियोप्लास्टी के कुछ घण्टों या महीनों के बाद स्टेंट के भीतर बन सकते हैं और रोधगलन का कारण हो सकते हैं।[7]

एंजियोप्लास्टी से उपजे जोखिम 75 साल से अधिक उम्र वाले रोगियों में अधिक होते हैं। इसके अतिरिक्त उन रोगियों में भी हो सकते हैं, जो मधुमेह या गुर्दे की बीमारी से पीड़ित हों या जिन्हें व्यापक हृदय रोग हो अथवा उनके हृदय की धमनियों में थक्के जमा हो गये हों। इसके अलावा, महिलाओं में और जिन रोगियों में हृदय की पम्पिंग क्रिया कमज़ोर होती है उनमें भी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।

फिर भी, रोधगलन स्ट्रोक, स्ट्रोक या गुर्दे की समस्याओं जैसी जटिलताएँ काफी कम होती हैं। एंजियोप्लास्टी करवाने वाले रोगियों में मृत्यु दर बहुत कम है। (नियमित बाईपास सर्जरी के 1% से 2% की तुलना में केवल 0.1%)

कुल मिलाकर, अपेक्षित जोखिम के साथ सम्भावित लाभ की तुलना करने पर अधिकांश मामलों में जोखिम कम और स्वीकार्य है।[8]

विवाद[संपादित करें]

दिल का दौरा पड़ने पर किसी भी रोगी को बचाने के लिये एंजियोप्लास्टी के महत्त्व (बाधा को तुरन्त समाप्त कर) को कई अध्ययनों में परिभाषित किया गया है। लेकिन अध्ययनों के तहत स्थिर एनजाइना रोगियों में एंजियोप्लास्टी बनाम चिकित्सा उपचार के लिये कठोर अन्तर्बिन्दुओं में कमी करने में सफलता नहीं मिली है। धमनी खोलने की प्रक्रिया, अस्थायी रूप से सीने में दर्द को कम कर सकती है, लेकिन लम्बी उम्र के लिये योगदान नहीं करती। दिल के अधिकांश दौरे उन अवरोधों की वजह से नहीं उभरते जो धमनियों को संकुचित करते हैं।[9]

अधिक जोखिम में जीने वाले रोगियों में दिल के दौरे के खतरे को कम करने का अधिक स्थायी और कारगर उपाय है धूम्रपान का त्याग, व्यायाम में वृद्धि और ऐसी दवाएँ लेना जो रक्तचाप पर नियन्त्रण रखें, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नीचे रखें और रक्त के थक्के न बनने दें।[9]

प्रक्रिया के बाद[संपादित करें]

एंजियोप्लास्टी के बाद, अधिकांश रोगी अस्पताल में रात भर निगरानी में रहते हैं और अगर कोई जटिलता नहीं हो तो अगले दिन उन्हें घर भेज दिया जाता है।

कैथेटर साइट को रक्त बहाव और सूजन के लिये जाँचा जाता है और रोगी की हृदय गति व उसके रक्तचाप पर नज़र रखी जाती है। आमतौर पर, मरीजों को ऐसी दवा दी जाती है जो ऐंठन के खिलाफ धमनियों की रक्षा करने में उन्हें आराम दे। इस प्रक्रिया के बाद रोगी आमतौर पर दो से छह घण्टे के भीतर चलने में सक्षम हो जाते हैं और अगले सप्ताह तक अपनी सामान्य दिनचर्या में वापस आ जाते हैं।[10]

एंजियोप्लास्टी के प्रभाव से निकलने के लिये प्रक्रिया के बाद कई दिनों तक शारीरिक गतिविधि से बचना जरुरी होता है। मरीजों को एक सप्ताह तक किसी प्रकार का सामान उठाने, पोते-पोतियों की देखभाल या अन्य भारी शारीरिक गतिविधि से बचने की सलाह दी जाती है।[11] एक नाज़ुक बैलून एंजियोप्लास्टी के दो हफ्ते बाद तक मरीजों को अधिकतम दो सप्ताह तक किसी शारीरिक थकान या लम्बे समय की खेल गतिविधियों से बचने की जरूरत होती है।[12]

स्टेंट वाले रोगियों के लिये आमतौर पर थक्कारोधी दवा, क्लोपिडोग्रेल लिखी जाती है जिसे एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड के साथ एक ही समय पर लिया जाता है। इन दवाओं का लक्ष्य रक्त के थक्कों को रोकना होता है और प्रक्रिया समाप्त होने के बाद आमतौर पर कम से कम पहले महीने तक लिया जाता है। ज्यादातर मामलों में, मरीजों को इस प्रकार की दवा 1 वर्ष के लिये दी जाती है। इसके अलावा, वे रोगी जो दाँतों का काम करते हैं उन्हें ऐसा करने से मना किया जाता है क्योंकि इससे अन्तर्हृद्शोथ का खतरा होता है जो हृदय का एक संक्रमण है।

प्रविष्टि स्थान पर जिन रोगियों को सूजन, रक्तस्राव या दर्द का अनुभव होता है उनमें ज्वर का विकास होता है, बेहोशी या कमजोरी महसूस करते हैं, उस हाथ या पाँव में रंग अथवा ताप में परिवर्तन पाते हैं जिसका उन्होंने उपयोग किया हो या श्वास की तकलीफ या सीने का दर्द होता है; उन्हें तुरन्त चिकित्सा सलाह लेनी चाहिये।

परिधीय रक्तवाहिकासंधान[संपादित करें]

परिधीय रक्तवाहिकासंधान (अंग्रेजी में पेरिफेरल एंजियोप्लास्टी या पीए) के तहत एक गुब्बारे का उपयोग कोरोनरी धमनियों के बाहर किसी भी रक्त वाहिका को खोलने के लिये होता है। इसे आमतौर पर पेट, पैर और गुर्दे की धमनियों के धमनीकलाकाठिन्य संकुचन के इलाज के लिये किया जाता है। पीए का प्रयोग शिराओं के संकुचन के लिये तो किया ही जाता है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की एंजियोप्लास्टी का प्रयोग परिधीय स्टेंटिंग और अथेरेक्टोमी के संयोजन में भी किया जाता है।

कोरोनरी रक्तवाहिकासंधान[संपादित करें]

बाईं कोरोनरी परिसंचरण को दिखाता एक कोरोनरी एंजियोग्राफ (कोरोनरी धमनियों में रेडियो अपारदर्शी कंट्रास्ट वाला एक एक्सरे)। दूरस्थ बाईं मुख्य कोरोनरी धमनी (LMCA) छवि के ऊपरी बायें चतुर्थ भाग में है। इसकी मुख्य शाखाएँ दृश्यमान हैं। बाईं परिवेष्टक धमनी (LCX) है, जो शुरू में ऊपर से नीचे जाती है। केन्द्र से नीचे और बायीं अवरोही धमनी (LAD), जो छवि पर बायें से दायें जाती है और फिर छवि के मध्य में चली जाती है ताकि परिवेष्टक LCX को नीचे प्रक्षेपित किया जा सके। इसमें LAD की दो बड़ी विकर्ण शाखाएँ दिख रही हैं जो केन्द्र के शीर्ष में उभरते हुए छवि के मध्य से बायीं ओर जा रही हैं।

पर्क्युटेनियस कोरोनरी इण्टरवेंशन (संक्षेप में पीसीआई), जिसे आमतौर पर कोरोनरी एंजियोप्लास्टी के नाम से भी जाना जाता है, एक चिकित्सीय उपचार प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल ह्रदय की स्टेनोटिक (संकुचित) कोरोनरी धमनियों के इलाज के लिये किया जाता है। यह अवरोध प्राय: कोरोनरी हृदय रोग में पाया जाता है। यह रोग स्टेनोटिक खण्ड या कोलेस्ट्रॉल के टुकड़ों के कारण होता है। पीसीआई (PCI) को आमतौर पर अन्तःक्षेपी हृदय रोग विशेषज्ञ द्वारा ही निष्पादित किया जाता है।

स्थिर कोरोनरी धमनी रोग वाले रोगियों का पीसीआई से उपचार करने के पश्चात सीने में दर्द तो कम हो जाता है, लेकिन मृत्यु, रोधगलन या अन्य हृदय सम्बन्धी प्रमुख गतिविधियों का खतरा कम नहीं होता।[13]

गुर्दा धमनी रक्तवाहिकासंधान[संपादित करें]

गुर्दे धमनी के धमनीकलाकाठिन्य अवरोध का उपचार गुर्दा धमनी रक्तवाहिकासंधान द्वारा किया जा सकता है। अंग्रेजी में इसे पर्क्यूटेनियस ट्रांसलूमिनल रेनल एंजियोप्लास्टी या पीटीआरए (PTRA) कहते हैं। गुर्दा धमनी स्टेनोसिस के कारण उच्च रक्तचाप और वृक्क क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न हो सकता है उस समय इसी पद्धति से उसका इलाज किया जाता है।

कैरोटिड एंजियोप्लास्टी[संपादित करें]

कैरोटिड स्टेनोसिस का उपचार कई अस्पतालों में उच्च जोखिम वाले रोगियों के लिये एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग से किया जाता है।

मस्तिष्क धमनी रक्तवाहिकासंधान[संपादित करें]

1983 में रूसी न्यूरो सर्जन जुबकोव और उनके सहयोगियों ने एन्यूरिज़्म सम्बन्धी एसएएच (SAH) के बाद वेसोस्पाज्म के लिये ट्रांसलूमिनल बैलून एंजियोप्लास्टी के प्रथम उपयोग की सूचना दी थी।[14][15] इसके बाद चिकित्सा जगत में इसका प्रयोग भी होने लगा।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. डॉटर सीटी और एमपी जुद्किंस धमनीकाठिन्यज रुकावट का ट्रांसलुमिनल उपचार परिसंचरण नवम्बर 1964 माप XXX पेज 654-670
  2. Rosch Josef; एवं अन्य (2003). "The birth, early years, and future of interventional radiology". J Vasc Interv Radiol. 14 (7): 841–853. PMID 12847192. Explicit use of et al. in: |author= (मदद)
  3. एनड्रिआस ग़्रुएन्त्ज़िग की जीवनी का संक्षिप्त वर्णन. http://www.ptca.org/archive/bios/gruentzig.html Archived 2012-12-15 at the वेबैक मशीन
  4. "Angioplasty". मूल से 9 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  5. "The Facts on Angioplasty". मूल से 25 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  6. "What Are the Risks of Coronary Angioplasty?". मूल से 23 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  7. "Risks And Possible Complications". मूल से 11 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  8. "PTCA or Balloon Angioplasty". मूल से 9 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  9. कोलाता, जीना. "नया हार्ट अध्ययन धमनियों के खुलने के मूल्य पर प्रश्न करता है" Archived 2013-01-22 at the वेबैक मशीन न्यूयॉर्क टाइम्स, 21 मार्च 2004 29 जनवरी 2011 को अभिगमन
  10. "What should I expect after my procedure?". मूल से 9 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  11. "After the operation". मूल से 25 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  12. "Angioplasty Recovery". मूल से 9 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-04-06.
  13. Boden W. E., O'Rourke R. A.; एवं अन्य (2007). "Optimal medical therapy with or without PCI for stable coronary disease". N Engl J Med. 356 (15): 1503–16. PMID 17387127. डीओआइ:10.1056/NEJMoa070829. Explicit use of et al. in: |author= (मदद)
  14. Zubkov IuN, Nikiforov BM, Shustin VA (1983). "1st attempt at dilating spastic cerebral arteries in the acute stage of rupture of arterial aneurysms". Zh Vopr Neirokhir Im N N Burdenko. 5 (5): 17–23. PMID 6228084. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  15. Zubkov YN, Nikiforov BM, Shustin VA (1984). "Balloon catheter technique for dilatation of constricted cerebral arteries after aneurysmal SAH". Acta Neurochir (Wien). 70 (1–2): 65–79. PMID 6234754. डीओआइ:10.1007/BF01406044. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]