योगेन्द्र नाथ मंडल
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योगेन्द्र नाथ मंडल | |
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प्रथम कानून मंत्री, पाकिस्तान
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पद बहाल 15 अगस्त 1947 – 8 अक्टूबर 1950 | |
राजा | जॉर्ज षष्ठम् |
गर्वनर जनरल | मोहम्मद अली जिन्ना ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन |
प्रधानमंत्री | लियाकत अली खान |
पाकिस्तान के श्रम मंत्री
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पद बहाल 15 अगस्त 1947 – 8 अक्टूबर 1950 | |
राजा | जॉर्ज षष्ठम् |
राष्ट्रपति | लियाकत अली खान |
राज्यपाल | मोहम्मद अली जिन्ना ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन |
राष्ट्रमंडल मंत्री, कश्मीर मामलें
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पद बहाल 1 अक्टूबर 1949 – 8 अक्टूबर 1950 | |
राजा | जॉर्ज षष्ठम् |
गर्वनर जनरल | मोहम्मद अली जिन्ना ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन |
प्रधानमंत्री | लियाकत अली खान |
जन्म | 29 जनवरी 1904 बंगाल, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 5 अक्टूबर 1968 बंगाव, पश्चिमी बंगाल, भारत | (उम्र 64 वर्ष)
नागरिकता | ब्रिटिश भारत (1904–1947) पाकिस्तानी (1947–1950) भारतीय (1950-1968) |
राष्ट्रीयता | भारतीय पाकिस्तानी |
राजनीतिक दल | मुस्लिम लीग |
व्यवसाय | राजनीतिज्ञ |
योगेन्द्र नाथ मंडल (१९०४ -- 5 अक्टूबर, 1968) पाकिस्तान के प्रमुख जनकों में से एक थे जो वहाँ के पहले कानून मंत्री और श्रमिक के रूप में सेवा करने वाले विधायक थे। वे राष्ट्रमंडल और कश्मीर मामलों के दूसरे मंत्री भी थे। एक भारतीय और बाद में पाकिस्तानी नेता जो पाकिस्तान में कानून और श्रम के पहले मंत्री थे। अनुसूचित जातियों (दलितों) के नेता के रूप में, योगेन्द्रनाथ ने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान की मांग के साथ सहभगी बन गये थे। उन्हें विश्वास था कि दलित जातियों को पाकिस्तान बनने का लाभ मिलेगा। वे पाकिस्तान के पहले कैबिनेट में शामिल हो गए थे। इसके कुछ ही वर्षों बाद पाकिस्तान के हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह का हवाला देते हुए वे कानून और श्रम मंत्री से अपना इस्तीफा देने के बाद भारत लौट आये थे। ।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]योगेंद्र नाथ मंडल का जन्म बिरिसल जिले में हुआ था, उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत, 1904 में बांग्लादेश का जन्म हुआ था। उनके शुरुआती सालों के बारे में कुछ नहीं पता है कि वह नमूसूरा समुदाय के एक परिवार के थे। Namasudras हिंदू जाति व्यवस्था के बाहर माना जाता था लेकिन इसके भीतर एक स्थिति का दावा करने के लिए एक आंदोलन शुरू कर दिया था।
भारत में राजनीतिक कैरियर (1937-1947)
[संपादित करें]मंडल ने 1937 के भारतीय प्रांतीय विधानसभा चुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया। उन्होंने बखरागंज उत्तर पूर्व ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र को बंगाल विधान सभा में एक सीट पर चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जिला समिति के अध्यक्ष सरकल कुमार दत्ता को पराजित किया। (कांग्रेस) और स्वदेशी नेता अश्विनी कुमार दत्ता के भतीजे थे।
सुभाष चंद्र बोस और शरतचंद्र बोस दोनों ने इस समय मंडल को काफी प्रभावित किया था। जब पूर्व को 1940 में कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था, मंडल मुस्लिम लीग (एमएल) के साथ जुड़ गया, जो एकमात्र अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पार्टी थी, और एमएल के मुख्यमंत्री, हुसैन शहीद सुहरावर्दी के मंत्रिमंडल में एक मंत्री बने।
यह भी इस समय के आसपास था कि मंडल और भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जाति संघ की बंगाल शाखा की स्थापना की, जो स्वयं राजनीतिक सत्ता की इच्छा रखते थे। जबकि नममुद्दी समुदाय को हिंदू महासभा द्वारा दी गई थी, और प्रांत में राजनीति में दलित और मुस्लिम लोगों का वर्चस्व था, मंडल ने सांप्रदायिक मामलों और कांग्रेस और एमएल से जुड़े राजनैतिक विवादों के बीच अंतर देखा। जब 1946 में दंगे फैल गए, तो उन्होंने पूर्वी बंगाल के चारों ओर यात्रा की ताकि दलितों को मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में भाग न लेने का आग्रह किया। उन्होंने तर्क दिया कि एमएल के साथ अपने विवाद में कांग्रेस के जाति हिंदुओं द्वारा प्यादे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
पाकिस्तान में राजनीतिक कैरियर (1947-1950)
[संपादित करें]15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत के विभाजन के बाद, मंडल पाकिस्तान के संविधान सभा के सदस्य और अस्थायी अध्यक्ष बने, और कानून और श्रम के लिए नए राज्य के पहले मंत्री के रूप में सेवा करने पर सहमत हो गए - सरकार का उच्चतम स्थान वाला हिंदू सदस्य 1947 से 1950 तक वह पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी कराची के बंदरगाह शहर में रहते थे। किंतु जब उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दू दलितों पर हो रहे अत्याचार को देखा तो उन्होंने भारत वापस आने का फैसला किया!उनके द्वारा पहले पाकिस्तान जाने के फ़ैसले के कारण निर्दोष दलितों की हत्या हुई और एक बड़ा हिन्दू भू भाग पाकिस्तान को मिल गया!
भारत लौटे (1950)
[संपादित करें]1950 में, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा देने के बाद मंडल वापस भारत लौट आये, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के विरोधी हिंदू पूर्वाग्रह का हवाला दिया गया था। उन्होंने अपने इस्तीफे पत्र में सामाजिक अन्याय और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार से संबंधित घटनाओं का उल्लेख किया।
जब पाकिस्तान बना तो लाखों दलित पाकिस्तान चले गये जिन्हें विश्वास था मुसलमान उनका साथ देंगे, उन्हें अपनाएंगे । लेकिन उनके साथ क्या हुआ, इसे जानना जरूरी है ।
दिल दहला देने वाली इस सच्चाई को वहां के कानून मंत्री ने ही लिखा था ।
तत्कालीन दलित मुस्लिम भाईचारे के पैरोकार मंडल को मुसलमानो ने दिया था धोखा ।
जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म बंगाल के बरीसल जिले के मइसकड़ी में हुआ था । वो एक पिछड़ी जाति से आते थे, इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था । जोगेन्द्रनाथ मंडल 6 भाई बहन थे जिनमे ये सबसे छोटे थे । जोगेंद्र ने सन 1924 में इंटर और सन 1929 में बी. ए. पास कर पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका और बाद में कलकत्ता विश्व विद्यालय से पूरी की थी । सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया । इसी वर्ष उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया । सन 1939,40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है । इसके बाद वो मुस्लिम लीग से जुड़ गये । जोगेंद्र नाथ मंडल मुस्लिम लीग के खास सदस्यों में से एक थे ।
1946 में चुनाव के ब्रिटिशराज में अंतिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना जो कि मंत्री के तौर पर सरकार में काम करेंगे । मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा । पाकिस्तान निर्माण के बाद मंडल को कानून और श्रम मंत्री बनाया गया । जिन्ना को जोगेंद्र नाथ मंडल पर भरोसा था । वो मुहम्मद अली जिन्ना के काफी करीबी थे । दरअसल जोगेंद्र ने ही अपनी ताकत से असम के सयलहेट को पाकिस्तान में मिला दिया था । 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का । उस इलाकें में हिंदू मुस्लिम की संख्या बराबर थी । जिन्ना ने इलाके में मंडल को भेजा, मंडल ने वहां दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना आज वो बांग्लादेश में हैं ।
पाकिस्तान निर्माण के कुछ वक्त बाद गैर मुस्लिमो को निशाना बनाया जाने लगा । हिन्दुओ के साथ लूटमार, बलात्कार की घटनाएँ सामने आने लगी । मंडल ने इस विषय पर सरकार को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी । जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिये उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा । मंडल को इस बात का एहसास हुआ जिस पाकिस्तान को उन्होंने अपना घर समझा था वो उनके रहने लायक नहीं है । मंडल बहुत आहात हुए, उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा । करीबन दो सालों में ही दलित मुस्लिम एकता का मंडल का ख्बाब टूट गया । जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अली खां के मंत्री मंडल से त्याग पत्र देकर भारत आ गये ।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने खत में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया, जिसके कुछ अंश यहाँ है । मंडल ने अपने खत में लिखा, 'बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी । दोनों ही पिछड़े, मछुआरे, अशिक्षित थे । मुझे आश्वस्त किया गया था लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा । हम मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा । इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया । 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' मनाया । जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए । कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया । हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया । इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे जिनसे अभिभूत हूँ लेकिन फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा ।
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया । मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया । उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा किया । लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मैं बहुत हताश हुआ ।
मंडल ने अपने खत में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं जिक्र किया उन्होंने लिखा, 'गोपालगंज के पास दीघरकुल (Digharkul ) में मुस्लिम की झूटी शिकायत पर स्थानीय नमोशूद्राय लोगो के साथ क्रूर अत्याचार किया गया । पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों ने मिलकर नमोशूद्राय समाज के लोगो को पीटा, घरों में छापे मारे । एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने भी हिंसा को बढ़ावा दिया । सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया । सेना ने न केबल लोगो को पीटा बल्कि हिंदू पुरुषो को उनकी महिलाओं सैन्य शिविरों में भेजने के मजबूर किया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके । मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई ।
खुलना (Khulna) जिले कलशैरा (Kalshira) में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से पुरे गाँव पर हमला किया । कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया । मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया । जब मैं कलशैरा में आया तो देखा यहाँ जगह उजाड़ और खंडहर में बदल गयी । यहाँ करीबन 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया । मैंने तथ्यों के साथ आपको सूचना दी ।
ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । ढाका नारायणगंज और ढाका चंटगाँव के बीच ट्रेनों और पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे गहरा झटका दिया । मैंने ईस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा प्रसार को रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया । 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल (Barisal) पहुंचा । यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकार में चकित था । यहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओ को जला दिया गया । उनकी बड़ी संख्या को खत्म कर दिया गया । मैंने जिले में लगभग सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया । मधापाशा (Madhabpasha) में जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे । एक जगह है मुलादी (Muladi ), प्रत्यक्षदर्शी ने यहाँ भयानक नरक देखा । यहाँ 300 लोगो का कत्लेआम हुआ । वहां गाँव में शवो के कंकाल भी देखे नदी किनारे गिद्द और कुत्ते लाशो को खा रहे थे । यहाँ सभी पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया । राजापुर में 60 लोग मारे गये । बाबूगंज (Babuganj) में हिन्दुओ की सभी दुकानों को लूट आग लगा दी गयी ईस्ट बंगाल के दंगे में अनुमान के मुताबिक 10000 लोगो की हत्याएं हुई । अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए मेरा दिल पिघल गया । मैंने अपने आप से पूछा, 'क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था ।''
मंडल ने अपने खत में आगे लिखा, 'ईस्ट बंगाल में आज क्या हालात हैं? विभाजन के बाद 5 लाख हिन्दुओ ने देश छोड़ दिया है । मुसलमानों द्वारा हिंदू वकीलों, हिंदू डॉक्टरों, हिंदू व्यापारियों, हिंदू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ा । मुझे मुसलमानों द्वारा पिछड़ी जाति की लडकियों के साथ बलात्कार की जानकारी मिली है । हिन्दुओ द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान खरीददार पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं । तथ्य की बात यह है पाकिस्तान में न कोई न्याय है, न कानून का राज इसीलिए हिंदू चिंतित हैं ।
पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं । विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है । मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं । इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है । इन सबका कारण एक है । हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है ।
जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा, 'पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए, मेरा अपना तजुर्बा भी कुछ कम दुखदायी, पीड़ादायक नहीं है । आपने अपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था । आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मै ऐसे असत्य और असत्य से भी बुरे अर्धसत्य भरा वक्तव्य जारी करूं । जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था पर अब मै इससे ज्यादा झूठे दिखाबे तथा असत्य के बोझ को अपनी अंतरात्मा पर नहीं लाद सकता । मैंने यह निश्चय किया कि मैं आपके मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफे का प्रस्ताव आपको दूँ, जो कि मैं आपके हाथों में थमा रहा हूँ । मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे । आप बेशक इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस पद को किसी को देने के लिये स्वतंत्र हैं ।
पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये । कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अंतिम सांस ली ।