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यान्त्रिक पेंसिल

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एक सामान्य रैचट-आधारित यान्त्रिक पेंसिल की संरचना में एक यान्त्रिक यंत्रविधान होता है जो लीड को आगे बढ़ाने का कार्य करता है। यह यंत्रविधान उपयोगकर्ता को बिना पेंसिल को तराशे, निरंतर लेखन की सुविधा प्रदान करता है।

यान्त्रिक पेंसिल एक ऐसा लेखन उपकरण है जिसमें एक ठोस वर्णक कोर होता है जिसे लीड कहा जाता है। यह कोर प्रतिस्थापन योग्य होता है और यान्त्रिक रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है। यह कोर, जो प्रायः ग्रेफ़ाइट से निर्मित होता है, बाहरी आवरण से जुड़ा नहीं होता, और उपयोग के दौरान नोक के घिस जाने पर इसे यान्त्रिक विधि से आगे बढ़ाया जा सकता है। अधिकांश यान्त्रिक पेंसिलों में रबर (इरेज़र) भी लगा होता है[उद्धरण चाहिए]

यान्त्रिक पेंसिल का प्रयोग ऐसी रेखाएँ खींचने के लिए किया जाता है जिनकी चौड़ाई स्थिर बनी रहे, और जिन्हें बार-बार तेज करने की आवश्यकता न हो। यह तकनीकी चित्रण, स्वच्छ लेखन तथा ललित कला चित्रण में प्रयुक्त होती है। चूँकि इसे तेज करने की आवश्यकता नहीं होती, यह विद्यार्थियों के बीच भी अत्यन्त लोकप्रिय है।[1]

यान्त्रिक पेंसिल का प्रयोग सर्वप्रथम १८वीं शताब्दी में हुआ था। इसके अनेक अभिकल्प १९वीं और २०वीं शताब्दियों में पेटेंट कराए गए।

सन्दर्भ

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  1. "Longman Dictionary" (अंग्रेज़ी भाषा में). Longman/Pearson. अभिगमन तिथि: 13 May 2022.