मौलवी मोहम्मद बाकिर

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मौलवी मुहम्मद बाक़िर (1780-1857) एक शिया विद्वान, भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और दिल्ली में स्थित पत्रकार थे। वह 1857 में विद्रोह के बाद मारे जाने वाले पहले पत्रकार थे। उन्हें 16 सितंबर 1857 को गिरफ्तार किया गया और दो दिन बाद बिना किसी मुकदमे के बंदूक की गोली से उसे मार दिया गया।

जीवन परिचय[संपादित करें]

बाकिर का जन्म 1780 में दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। 1825 में, वे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली कॉलेज चले गए। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें 1828 में दिल्ली कॉलेज में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने छह वर्षों तक सेवा की।

लेकिन नौकरी करना उनका लक्ष्य नहीं था। 1836 में जब ब्रिटिश सरकार द्वारा "प्रेस एक्ट"" में संशोधन किया गया और आमजन को प्रकाशन की अनुमति दी गई तो उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया।

1837 में उन्होंने साप्ताहिक "देहली उर्दू अखबार" के नाम से समाचार पत्र निकालना शुरू कर दिया का प्रकाशन किया। यह अखबार लगभग 21 वषों तक जीवित रहा,जो उर्दू पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।[1]

इस अखबार की मदद से आपने सामाजिक मुद्दों के साथ साथ जनता में राजनीतिक जागरूकता लाने और विदेशी शासकों के खिलाफ एकजुट करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मौलवी ने अपने अखबार का दिल्ली में ना सिर्फ बल्कि दिल्ली के आसपास इलाकों में अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध जनमत तैयार करने में अखबार का भरपूर उपयोग किया।

1857 में क्रांतिकारियों द्वारा फिरंगियों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया गया और मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को सभी क्रान्तिकारी बन्धुओं द्वारा अपना नेता चुन लिया गया तो मौलवी बाकिर ने अपना समर्थन जताने के लिए अपने अखबार "देहली उर्दू अखबार" का नाम बदलकर " अखबार उज़ ज़फर" कर दिया।

4 जून 1857 को हिंदू मुस्लिम एकता के कट्टर समर्थक मौलवी बाकिर दोनों समुदायों से अपील करते हुए अपने अखबार में लेख छापते हुए लिखते हैं - " यह मौका मत गंवाओ, अगर चूक गए तो फिर कोई मदद करने नहीं आयेगा। यह अच्छा मौका हैं, तुम फिरंगियों से निजात पा सकते हो "


विद्रोह असफल हो जाने पर क्रांति के महानायक मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को गिरफ्तार कर लिया जाता है और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया गया। इसके बाद अंग्रेज़ एक एक भारतीय सिपाहियो को ढूंढकर काला पानी, फांसी और तोपों से उड़ाने का काम करने लगे।

इसी के साथ 14 सितंबर 1857 को मौलवी बाकिर को गिरफ्तार कर लिया जाता है और कैप्टन हडसन के सामने पेश किया गया। उसने उन्हें मौत की सज़ा का फैसला सुनाया। इसके तहत 16 सितंबर 1857 को दिल्ली गेट के सामने पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाकिर को तोप से उड़ा दिया गया।[2] He was arrested on 16 September 1857 and executed by gunshot two days later without trial.[3][4][5]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

रेशमी रूमाल : रेशमी पत्र आन्दोलन

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. खुरशिद, आलम (9 जनवरी 2024). "Maulvi Mohammad Baqar Shaheed: A great Urdu Journalist and intellectual Mujahid मो. बाकिर-आजादी के लिए शहीद होने वाले पहले पत्रकार! | Khurshid Alam | New Age Islam | Islamic News and Views | Moderate Muslims & Islam". web.archive.org. मूल से पुरालेखित 9 जनवरी 2024. अभिगमन तिथि 9 जनवरी 2024.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  2. Dabas, Maninder (2017-12-02). "Maulana Baqir Was First Journalist To Sacrifice His Life During 1857 Revolt, Here's His Story". indiatimes.com (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2019-07-20.
  3. Safvi, Rana. "Maulavi Muhammad Baqar: Hero or Traitor of 1857?". The Wire. अभिगमन तिथि 2019-07-20.
  4. Pritchett, Frances W. (1994-05-09). Nets of Awareness: Urdu Poetry and Its Critics (अंग्रेज़ी में). University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780520914278.
  5. Husain, Syed Mahdi (2006). Bahadur Shah Zafar and the War of 1857 in Delhi (अंग्रेज़ी में). Aakar Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187879916.