मैथिलीकल्याणम्

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लेखक[संपादित करें]

हस्तिमल्ल संस्कृत जैन नाटककार थे जो विक्रान्तकौरव , मैथिलीकल्याण , अंजना पवनंजय , उदयनराज , भरतराज , अजुर्नराज , मेघेश्वर , आदि पुराण , श्रीपुराण और सुभद्रा नाटिका के रचनाकार थे।

कथासार[संपादित करें]

प्रथम अंक - मिथिला में राम सीता के विषय में सोच रहे थे जिसे उन्होंने देखा नहीं तभी विदूषक उनको कामदेव के मंदिर वसंतोत्सव दिखाने ले जाते है। वहाँ विनीता के साथ सीता आती है। विनीता उन्हें कामदेव समझ कर प्रार्थना करती है कि सीता को योग्य वर मिले किंतु उनकी मुद्रिका नाम देखकर राम को पहचान जाती है। सीता वहाँ चली जाती है।

द्वितीय अंक - सीता और राम पुनः एकबार माध्वीवन में मिलते है लेकिन प्रदोषकाल हो जाने से वहां से चले जाते हैं।

तृतीय अंक - कलावती राम को संदेश कहती है कि सीता आपसे चन्द्रकान्त धारागृह में मिलना चाहती है।

चतृर्थ अंक - सीता शिरोवेदना का नाटक कर चन्द्रकान्त धारागृह में राम से मिलती है लेकिन तभी कौमुदीका उसे बुलाने आती है कि सीता कि माता उनसें मिलना चाहती है और सीता वहां से चली जाती हैं।

पंचम अंक - राम और लक्ष्मण स्वयंवर में आते है। जनक भी सीता के साथ वहाँ पधारते है। राम स्वयंवर में धनुष-भंग करते हैं और जनक राम-सीता के विवाहोत्सव प्रारंभ करने का आदेश देते हैं और इसी के साथ नाटक पूर्ण होता हैं।