मैं नास्तिक क्यों हूँ?
मैं नास्तिक क्यों हूँ (अंग्रेज़ी: Why I am an Atheist) भगत सिंह द्वारा लिखा एक लेख है जो उन्होंने लाहौर सेंट्रल जेल में क़ैद के दौरान लिखा था और इसका प्रथम प्रकाशन लाहौर से ही छपने वाले अख़बार दि पीपल में 27 सितम्बर 1931 को हुआ।[1] यह लेख भगत सिंह के द्वारा लिखित साहित्य के सर्वाधिक चर्चित और प्रभावशाली हिस्सों में गिना जाता है और बाद में इसका कई बार प्रकाशन हुआ।[2][3] इस लेख के माध्यम से भगत सिंह ने तार्किक रूप से यह बताने की कोशिश की है कि वे किसी ईश्वरीय सत्ता में क्यों यक़ीन नहीं करते हैं।[4]
इतिहासकार बिपिन चन्द्र के अनुसार भगत सिंह ने जेल में कई किताबें और पर्चे लिखे थे, लेकिन इनका अधिकांश हिस्सा नष्ट हो गया। यह पर्चा (लेख) किसी प्रकार उनके पिता के हाथों, जेल से बाहर आया और लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित अख़बार दि पीपल में प्रकाशित हुआ।[5]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ सिंह, भगत (1931). "मैं नास्तिक क्यों हूँ (सम्पूर्ण पाठ का हिंदी अनुवाद)". www.marxists.org. 19 फ़रवरी 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 19 फरवरी 2017.
- ↑ Bhagat Singh; D. N. Gupta (1 August 2007). Bhagat Singh, select speeches & writings. National Book Trust. pp. 50-. ISBN 978-81-237-4941-9. 19 फ़रवरी 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 19 फ़रवरी 2017.
- ↑ सिंह, भगत. "मैं नास्तिक क्यों हूँ". बीबीसी हिंदी. 19 फ़रवरी 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 19 फरवरी 2017.
- ↑ "भगत सिंह का ऐतिहासिक लेख - "मैं नास्तिक क्यों हूँ?"" (ब्रिटिश अंग्रेज़ी भाषा में). मूल से से 30 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 2019-10-30.
- ↑ चंद्र, बिपिन. "मैं नास्तिक क्यों हूं". pustak.org. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया. मूल से से 19 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 19 फरवरी 2017.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- मैं नास्तिक क्यों हूँ (हिंदी अनुवाद)।