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मेसोपोटामियाई वास्तुकला

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साँचा:Infobox art movement

मेसोपोटामियाई वास्तुकला टिगरिस-फरात नदी प्रणाली (जिसे मेसोपोटामिया भी कहा जाता है) के आसपास 10वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व (जब पहली स्थायी संरचनाएं बनाई गईं) से छठी शताब्दी ईसा पूर्व विकसित प्राचीन वास्तुकला है। अनेक विशिष्ट संस्कृतियां इसमें समाहित हैं। मेसोपोटामिया की स्थापत्य कला आने से शहरी नियोजन, आंगन घर और जिग्गुराट का विकास हुआ। "पुनर्जागरण" शब्द की उत्पत्ति रिनासिटा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है पुनर्जन्म। यह शब्द 1550 ई. में जियोर्जियो वासारी की पुस्तक लाइफ्स ऑफ द मोस्ट एक्सेलेंट पेंटर्स, स्कल्पटर्स एंड आर्किटेक्ट्स में पहली बार में प्रयोग किया गया था। प्राचीन मेसोपोटामिया वास्तुकला का अध्ययन उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्य, भवनों की चित्रात्मक प्रस्तुति तथा भवन निर्माण संबंधी ग्रन्थ के अंतर्गत किया जाता है।


निर्माण सामग्री

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सुमेरियाई चिनाई में गारे का प्रयोग नहीं किया जाता है। हालाँकि कभी-कभी इसमें डामर का इस्तेमाल किया जाता था। ईंट की शैलियाँ समय के साथ बदलती गईं।[1] काल के अनुसार ये शैलियाँ भिन्न थीं। जैसे -

  • पैट्ज़ेन 80×40×15 सेमी: उरुक काल का अंतिम भाग (3600-3200 ईसा पूर्व)
  • रीमचेन 16×16 सेमी: उरुक काल का अंतिम भाग (3600-3200 ईसा पूर्व)
  • प्लेनो-उत्तल 10x19x34 सेमी: प्रारंभिक राजवंश काल जिसे सुमेर कहा जाता है (3100-2300 ईसा पूर्व)

मेसोपोटामिया वास्तुकला में घर बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियाँ वर्तमान में उपयोग में लाई जाने वाली सामग्रियों की तरह थीं। जैसे बेंत, पत्थर, लकड़ी, राख, मिट्टी की ईंट, मिट्टी का प्लास्टर और लकड़ी के दरवाजे आदि। ये सभी शहर के आसपास स्वाभाविक रूप से उपलब्ध थे, हालाँकि सुमेर के कुछ शहरों में लकड़ी आसानी से नहीं मिलती थी।[2]

  1. "द आर्कियोलॉजी ऑफ़ मेसोपोटामिया: सेरेमोनियल सेंटर्स, अर्बनाइज़ेशन एंड …". archive.ph. 12 जुलाई 2012. अभिगमन तिथि 23 जनवरी 2025.
  2. निकोलस, पोस्टगेट; जे एन, पोस्टगेट (1994). अर्ली मेसोपोटामिया: सोसायटी एंड इकोनॉमी ऐट द डाउन ऑफ़ हिस्ट्री.

बाहरी कड़ियाँ

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