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मेलकर्ता

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मेलकर्ता राग कर्नाटक संगीत के मूल रागों का समूह है। मेलकर्ता राग, 'जनक राग' कहलाते हैं जिनसे अन्य राग उत्पन्न किये जा सकते हैं। मेलकर्ता रागों की संख्या बहत्तर (७२) मानी जाती है। मेलकर्ता को 'मेल', 'कर्ता' या 'सम्पूर्ण' भी कहते हैं। विजयनगरम के महान संगीतज्ञ राममात्य ने सन् १५५० में "स्वरमेलकलानिधि" नामक अपने ग्रन्थ में राग व्यवस्था प्रस्तुत की।

हिन्दुस्तानी संगीत का ठाट या पाश्चात्य संगीत का 'स्केल' इसके तुल्य समझे जा सकते हैं। हिन्दुस्तानी संगीत में दस ठाट हैं।

मेलकर्ता रागों की गणना

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कटपयादि संख्या, मेलकर्ता राग की संख्या ज्ञात करने के काम आती है। इसके लिये राग के नाम के प्रथम दो सिलैबल्स के संगत कटपयादि संख्या निकालनी पड़ती है।[1]

कटपयादि संख्या

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नीचे की सारणी में देवनागरी वर्णों के संगत कटपयादि संख्याएं दी गयी हैं।

कादि नव
टादि नव
पादि पंच
यादि अष्ट

To use the sankhya, take the first two syllables of the name of the raga, and locate the corresponding columns on the table. Then take the two numbers and reverse them to get the mela number. This is according to the following sutra: अंकानां वामतॊ गतिः (read numbers in the leftward (वामतः) direction)।

कटपयादि संख्या is a simplification of Āryabhaलुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1670 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)।a's Sanskrit numerals, due probably to Haridatta from Kerala, c. 620-700.

स्वरस्थानों का निर्धारण करने की कलनविधि

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मेलकर्ता (कटपयादि संख्या) चार्ट

The Swaras 'Sa' and 'Pa' are fixed, and here is how to get the other swaras from the melakarta number.

  1. Melakartas 1 through 36 have Ma1 and those from 37 through 72 have Ma2.
  2. The other notes are derived by noting the (integral part of the) quotient and remainder when one less than the melakarta number is divided by 6.
  3. 'Ri' and 'Ga' positions: the raga will have:
    • Ri1 and Ga1 if the quotient is 0
    • Ri1 and Ga2 if the quotient is 1
    • Ri1 and Ga3 if the quotient is 2
    • Ri2 and Ga2 if the quotient is 3
    • Ri2 and Ga3 if the quotient is 4
    • Ri3 and Ga3 if the quotient is 5
  4. 'Da' and 'Ni' positions: the raga will have:
    • Da1 and Ni1 if remainder is 0
    • Da1 and Ni2 if remainder is 1
    • Da1 and Ni3 if remainder is 2
    • Da2 and Ni2 if remainder is 3
    • Da2 and Ni3 if remainder is 4
    • Da3 and Ni3 if remainder is 5

कुछ उदाहरण

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राग धीरशंकरभरणम

The katapayadi scheme associates dha9 and ra2, hence the raga's melakarta number is 29 (92 reversed)।

Now 29 36, hence Dheerasankarabharanam has Ma1. Divide 28 (1 less than 29)by 6, the quotient is 4 and the remainder 4. Therefore, this raga has Ri2, Ga3 (quotient is 4) and Da2, Ni3 (remainder is 4)।

This raga's scale is Sa Ri2 Ga3 Ma1 Pa Da2 Ni3 SA.

राग मेचकल्याणी

From the coding scheme Ma 5, Cha 6. Hence the raga's melakarta number is 65 (56 reversed)।

65 is greater than 36. So MechaKalyani has Ma2.

Since the raga's number is greater than 36 subtract 36 from it. 65-36=29. 28 (1 less than 29) divided by 6 : quotient=4, remainder=4 Ri2 Ga3 occurs. Da2 Ni3 occurs.

So MechaKalyani has the notes Sa Ri2 Ga3 Ma2 Pa Da2 Ni3 SA.

अपवाद: सिंहेन्द्रमाध्ययम

You can see that, as per the above calculation we should get Sa 7, Ha 8 giving the number 87 instead of 57 for Simhendramadhyamam. This should be ideally Sa 7, Ma 5 giving the number 57. So it is believed that the name should be written as Sihmendramadhymam (As in the case of Brahmana in Sanskrit)।

बहत्तर मेलकर्ता राग

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७२ मेलकर्ता रागों को दो भागों में बांटा जा सकता है, ये हैं- शुद्ध मध्यम और प्रति मध्यम। सभी ७२ रागों के नाम नीचे दिए गये हैं-

कनकांगि रागं रत्नांगि रागं गानमूर्ति रागं वनस्पति रागं मानवति रागं तानरूपि रागं
सेनावति रागं हनुमतोडि रागं धेनुक रागं नाटकप्रिय रागं कोकिलप्रिय रागं रूपवति रागं
गायकप्रियं रागं वकुळाभरणं रागं मायामाळवगौळ रागं चक्रवाकं रागं सूर्यकांतं रागं हटकांबरि रागं
झंकारध्वनि रागं नटभैरवि रागं कीरवाणि रागं खरहरप्रिय रागं गौरीमनोहरि रागं वरुणप्रिय रागं
माररंजनि रागं चारुकेशि रागं सरसांगि रागं हरिकांभोजि रागं धीरशंकराभरणं रागं नागानंदिनि रागं
यागप्रिय रागं रागवर्धनि रागं गांगेयभूषिणि रागं वागधीश्वरि रागं शूलिनि रागं चलनाट रागं
सालगं रागं जलार्णवं रागं झालवराळि रागं नवनीतं रागं पावनि रागं रघुप्रिय रागं
गवांबोधि रागं भवप्रिय रागं शुभपंतुवराळि रागं षड्वितमार्गिणि रागं सुवर्णांगि रागं दिव्यमणि रागं
धवळांबरि रागं नामनारायणि रागं कामवर्धिनि रागं रामप्रिय रागं गमनश्रम रागं विश्वंभरि रागं
श्यामलांगि रागं षण्मुखप्रिय रागं सिंहेंद्रमध्यम रागं हेमवति रागं धर्मवति रागं नीतिमति रागं
कांतामणि रागं रिषभप्रिय रागं लतांगि रागं वाचस्पति रागं मेचकळ्याणि रागं चित्रांबरि रागं
सुचरित्र रागं ज्योतिस्वरूपिणि रागं धातुवर्धिनि रागं नासिकाभूषिणि रागं कोसलमु रागं रसिकप्रिय रागं

मेळकर्ता राग

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'मेलकर्ता राग'
'शुद्ध मध्यमम्' 'प्रति मध्यमम्'
राग संख्या राग स्केल राग संख्या राग स्केल
1.इंदु चक्रम् 7. ऋषि चक्रम्
1 कनकांगि स रि111 प ध1 नि1 स' 37 सालगं स रि112 प ध1 नि1 स'
2 रत्नांगि स रि111 प ध1 नि2 स' 38 जलार्णवं स रि112 प ध1 नि2 स'
3 गानमूर्ति स रि111 प ध1 नि3 स' 39 झालवराळि स रि112 प ध1 नि3 स'
4 वनस्पति स रि111 प ध2 नि2 स' 40 नवनीतं स रि112 प ध2 नि2 स'
5 मानवति स रि111 प ध2 नि3 स' 41 पावनि स रि112 प ध2 नि3 स'
6 तानरूपि स रि111 प ध3 नि3 स' 42 रघुप्रिय स रि112 प ध3 नि3 स'
2. नेत्र चक्रं 8. वसु चक्रं
7 सेनावति स रि121 प ध1 नि1 स' 43 गवांबोधि स रि122 प ध1 नि1 स'
8 हनुमतोडि स रि121 प ध1 नि2 स' 44 भवप्रिय स रि122 प ध1 नि2 स'
9 धेनुक स रि121 प ध1 नि3 स' 45 शुभपंतुवराळि स रि122 प ध1 नि3 स'
10 नाटकप्रिय स रि121 प ध2 नि2 स' 46 षड्विधमार्गिणि स रि122 प ध2 नि2 स'
11 कोकिलप्रिय स रि121 प ध2 नि3 स' 47 सुवर्णांगि स रि122 प ध2 नि3 स'
12 रूपावति स रि121 प ध3 नि3 स' 48 दिव्यमणि स रि122 प ध3 नि3 स'
3. अग्नि चक्रं 9. ब्रह्म चक्रं
13 गायकप्रिय स रि131 प ध1 नि1 स' 49 धवळांबरि स रि132 प ध1 नि1 स'
14 वकुळाभरणं स रि131 प ध1 नि2 स' 50 नामनारायणि स रि132 प ध1 नि2 स'
15 मायामाळवगौळ स रि131 प ध1 नि3 स' 51 कामवर्धनि स रि132 प ध1 नि3 स'
16 चक्रवाकं स रि131 प ध2 नि2 स' 52 रामप्रिय स रि132 प ध2 नि2 स'
17 सूर्यकांतं स रि131 प ध2 नि3 स' 53 गमनाश्रम स रि132 प ध2 नि3 स'
18 हटकांबरि स रि131 प ध3 नि3 स' 54 विश्वंबरि स रि132 प ध3 नि3 स'
4. वेद चक्रं 10. दिसि चक्रं
19 झंकारध्वनि स रि221 प ध1 नि1 स' 55 शामलांगि स रि222 प ध1 नि1 स'
20 नाटभैरवि स रि221 प ध1 नि2 स' 56 षण्मुखप्रिय स रि222 प ध1 नि2 स'
21 कीरवाणि स रि221 प ध1 नि3 स' 57 सिंहेंद्रमध्यमं स रि222 प ध1 नि3 स'
22 खरहरप्रिय स रि221 प ध2 नि2 स' 58 हेमावति स रि222 प ध2 नि2 स'
23 गौरीमनोहरि स रि221 प ध2 नि3 स' 59 धर्मावति स रि222 प ध2 नि3 स'
24 वरुणप्रिय स रि221 प ध3 नि3 स' 60 नीतिमति स रि222 प ध3 नि3 स'
5. बाण चक्रं 11. रुद्र चक्रं
25 माररंजनि स रि231 प ध1 नि1 स' 61 कांतामणि स रि232 प ध1 नि1 स'
26 चारुकेशि स रि231 प ध1 नि2 स' 62 रिषभप्रिय स रि232 प ध1 नि2 स'
27 सरसांगि स रि231 प ध1 नि3 स' 63 लतांगि स रि232 प ध1 नि3 स'
28 हरिकांभोजि स रि231 प ध2 नि2 स' 64 वाचस्पति स रि232 प ध2 नि2 स'
29 धीरशंकराभरणं स रि231 प ध2 नि3 स' 65 मेचकळ्याणि स रि232 प ध2 नि3 स'
30 नागानंदिनि स रि231 प ध3 नि3 स' 66 चित्रांबरि स रि232 प ध3 नि3 स'
6. ऋतु चक्रं 12. आदित्य चक्रं
31 यागप्रिय स रि331 प ध1 नि1 स' 67 सुचरित्र स रि332 प ध1 नि1 स'
32 रागवर्धिनि स रि331 प ध1 नि2 स' 68 ज्योतिस्वरूपिणि स रि332 प ध1 नि2 स'
33 गांगेयभूषिणि स रि331 प ध1 नि3 स' 69 धातुवर्धनि स रि332 प ध1 नि3 स'
34 वागधीश्वरि स रि331 प ध2 नि2 स' 70 नासिकाभूषिणि स रि332 प ध2 नि2 स'
35 शूलिनि स रि331 प ध2 नि3 स' 71 कोसलं स रि332 प ध2 नि3 स'
36 चलनत स रि331 प ध3 नि3 स' 72 रसिकप्रिय स रि332 प ध3 नि3 स'

निम्नलिखित श्लोकों में सभी ७२ रागों का परिचय है-


श्री महावैद्यनाथशिवविरचिता

७२ मेळरागमालिका

ताळम: आदि


पल्लवि - श्रीरागम


प्रणतार्तिहरप्रभो पुरारे प्रणवरूप संपदे पदे ।

प्रणमामि श्री प्रकृतिप्रेरक प्रमथगणपते पदे पदे ॥

जति


तां तां तकणक धीं धीं धिमितरि किटतक तरिकुडु
तधीं धींकु तकधिमि तकतरि किटतक झम
नादिरु दिरुधों दिरुदिरु दित्तिल्लाना दिरिना ताना दोंतिरि
तकणक तकजणु तकधिमि ध्रुक्डतत तळाङ्गुतों
तकतिक तधिङ्गिणतोम

अनुपल्लवि - चरणम


कनकाङ्ग्या रमया पूजित सनकादिप्रिय कृपालय ॥ १ ॥
रत्नाङ्ग्या धर्मसंवर्धन्या रमण मां परिपालय ॥ २ ॥
गानमूर्तिरिति धनशास्त्रमानमूर्धन्यैर्गदितोऽसि ॥ ३ ॥
श्रीवनस्पतिदलसमर्चनेन पावनभक्तैर्विदितोऽसि ॥ ४ ॥
मानवतीभिः स्मृतिभिरुक्तकर्मकृन मानवपापं वारयसि ॥ ५ ॥
तानरूपिणं त्वां भजन्ति ये तारमुपदिशंस्तारयसि ॥ ६ ॥
देवसेनापतिजनक नीलग्रीव सेवकजनपोषण ॥ ७ ॥
हनुमतो डिण्डिमभवं स्तुवतः सुतनुमतोऽददाभूतिभूषण ॥ ८ ॥
भानुकोटिसंकाश महेश धेनुकासुरमारकवाहन ॥ ९ ॥
आनन्दनाटकप्रियामरवर श्रीनन्दनाटवीहव्यवाहन ॥ १० ॥
कोकिलप्रियाम्रकिसलयाङ्ग गोकुलपालनपटुभयभञ्जन ॥ ११ ॥
बहुरूपावतीह भवान मां मुहुर्मुहुरूर्जितभक्तजनरञ्जन ॥ १२ ॥
धीरभद्राख्यगायकप्रिय वीरभद्रादिपालितशरण ॥ १३ ॥
देवकुलाभरणोद्धारक श्रीवसुदेवकुलाभरणनतचरण ॥ १४ ॥
जितमाया माळवगौळान्तर्गतमाहेशाः त्वां विन्दन्ति ॥ १५ ॥
चक्रवाककुचार्धाङ्ग त्वत्कृपया शुक्रवाक्पतिसुराः नन्दन्ति ॥ १६ ॥
तेजसा जितसूर्यकन्त्या गौर्या ओजसाऽतुलप्रताप ॥ १७ ॥
शुभकर हाटकाम्बरिशराब्जनिभकर हतभक्तपरिताप ॥ १८ ॥
झंकारध्वनियुतमालाधर टंकारध्वनियुतचाप ॥ १९ ॥
महानट भैरवीमारुतिभारतीसहायदेवैर्नतकोप ॥ २० ॥
शिव नत्कीरवाणीवशग भवन इव वस मे मनसि ॥ २१ ॥
खरहरप्रियमालोक्य परात्पर हर दयया पालितवानसि ॥ २२ ॥
गौरीमनो हरिदम्बर सततं गौरिव वत्से रमते भवति ॥ २३ ॥
योऽसौ अरुणप्रियादित्यः तं त्वा सा श्रुतिरानता भवति ॥ २४ ॥
माररञ्जनीवरद निरहंकारजना मुक्त्यै त्वां स्तुवन्ति ॥ २५ ॥
चारु के शिवलिङ्गमनार्च्य मेरुधन्वन सुखमाप्नुवन्ति ॥ २६ ॥
सरसां गीतिं कीर्तिं दिश मे तरसा अङ्गीकृतहतमदन ॥ २७ ॥
हरिकाम्भोधिसंभवामरदुरितनिवारक स्मितवदन ॥ २८ ॥
धीर शङ्कराभरणसमं त्वां घोरशङ्कया नो जाने ॥ २९ ॥
ज्ञानगानं कृतवतां वरद श्रीनगानन्दिनीजाने ॥ ३० ॥
यागप्रियामरत्यागप्रियं विधिं द्रागप्रियेण शिक्षितवानसि ॥ ३१ ॥
सदानन्दे त्वयि रागवर्धनीं मुदा पुनितवतीं रक्षितवानसि ॥ ३२ ॥
श्रितगजवदन गाङ्गेय भूषणीकृतभुजङ्ग नतसुरकदम्ब ॥ ३३ ॥
वागदीश्वरीश्रियौ यदङ्गसंभवे भोगमोक्षदा जगदम्बा ॥ ३४ ॥
शूलिनी तया धर्मवर्धन्या खेलसि दयया सुरवरिष्ठ ॥ ३५ ॥
कैलासाचलनातकृद्भुजशैलदण्डकचरणाङ्गुष्ठ ॥ ३६ ॥


(प्रणतार्तिहर प्रभो पुरारे)


प्रतिबिंबरसालगफलसमा विषया इति बिम्बाधराः संत्यजन्ति ॥ ३७ ॥
ये भवजलार्णवं संतरितुं ते भवदङ्घ्रिनौकां भजन्ति ॥ ३८ ॥
झलं झलवराळिगीतमालाधर जलन्धरासुरमारक ॥ ३९ ॥
सुरदानवनीतामृतविमुख वरदाननिरत तारक ॥ ४० ॥
भोः पावनीपिष्टास्वादनरसिकभूप अव नीपवनसुन्दर ॥ ४१ ॥
रघुप्रियार्चितराजीवचरण मघप्रणाशन भुजमन्दर ॥ ४२ ॥
गवाम्भोधिः तीर्ण इव मया भवाम्भोधिः तव दयया ॥ ४३ ॥
इह प्रसन्नो भव प्रियतमया सह प्रमथप द्रागुमया ॥ ४४ ॥
सर्वशुभापं तु वराळिकाक्षं कुर्वनुग्रहं त्वां वन्देऽहम ॥ ४५ ॥
सदय षड्विधमार्गिणि मनुजे हृदयग न कुर्वे संदेहम ॥ ४६ ॥
सुवर्णां गीतिं समुपदिश प्रथमवर्णाङ्गीकृतवैकुण्ठ ॥ ४७ ॥
दिव्यमणिबन्धे बद्धनागकङ्कण भव्यमणिलसितश्रीकण्ठ ॥ ४८ ॥
सुबलारिमुखामरप्रपूजित धवळाम्बरीपतेर्दुर्दर्श ॥ ४९ ॥
सुरूपनामनारायणीसहचर स्वरूपभासकादर्श ॥ ५० ॥
धर्मकामवर्धनीविलसित निर्मलाङ्ग शुभदायक ॥ ५१ ॥
नितरां अप्रियवादिनि विमुख नतराम अग्निसायक ॥ ५२ ॥
चिदंबरगमनश्रमापहरणं कदंबरमण मम दीयताम ॥ ५३ ॥
विश्वं भरितं त्वयाष्टमूर्त्या शश्वद्धनमाधीयताम ॥ ५४ ॥
श्यामळाङ्गीकृतवामभाग कोमळाङ्गजशरभङ्ग ॥ ५५ ॥
षण्मुखप्रियाङ्गुप्रियजनक हिरण्मयाङ्गनत शरभाङ्ग ॥ ५६ ॥
हर सिंहेन्द्रमध्यमार्धाङ्ग नरसिंह अजिनाम्बर ॥ ५७ ॥
पुरहर हैमवतीमनोहर हर रक्षितसुरनिकर ॥ ५८ ॥
विदितधर्मौ अतिकायजिद्रामौ मुदितमनाः त्वं रक्षितवान ॥ ५९ ॥
नीतिमतीह जनेऽतिप्रियोऽसि प्रीतिमतिरहितान शिक्षितवान ॥ ६० ॥
श्रियोऽधिकां तां अणिमादिदां पयोधिकान्तामणिसेविताम ॥ ६१ ॥
धर्मवर्धनीं सुरर्षभप्रियां निर्मलभक्तैर्भाविताम ॥ ६२ ॥
मननशीलतां गीर्वाणपतेः जननवर्जितामुक्तवतीम ॥ ६३ ॥
भूमिषु वाचस्पतिसंबन्धस्वामिने ज्ञानं दत्तवतीम ॥ ६४ ॥
मेचकल्याणीं वाचं दिशतीं मोचकदायिनीं रमसे ॥ ६५ ॥
विचित्राम्बरीषवरदभाग सचित्रगुप्तयमागः क्षमसे ॥ ६६ ॥
सुचरित्रमुखभक्तसङ्गीत सुचरित्रमुखरितवाद्य ॥ ६७ ॥
ज्योतिःस्वरूपिणि त्वयि प्रसन्ने भाति स्वरूपं किं नाद्य ॥ ६८ ॥
धातुवर्धनीं तवाभिधासुधां पातुकामिनी मम रसना ॥ ६९ ॥
सुखेन आसिकाभूषणं हि सतां मुखे नासिकेव विवसन ॥ ७० ॥
कोसलपः त्वाऽऽपूज्याघं हित्वा सभापते मुमुदे हि ॥ ७१ ॥
भक्तापदानरसिकप्रिय त्यक्तापदानन्दं मम देहि ॥ ७२ ॥

(प्रणतार्तिहर प्रभो पुरारे)

इति श्रीमहावैद्यनाथशिवविरचिता
मेळरागमालिका समाप्ता

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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