मुस्तफा रज़ा खान क़ादरी

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मुस्तफा रज़ा खान कादरी (1892 - 1981) एक भारतीय इस्लामी विद्वान और लेखक थे, वे अपने पिता अहमद रज़ा खान की मृत्यु के बाद सुन्नी बरेलवी आंदोलन के नेता एवं उत्तराधिकारी बने।

वह अपने अनुयायियों के लिए मुफ्ती-आजम-ए-हिंद के रूप में जाने जाते थे। मुहम्मद आफ़ताब कासिम रज़वी द्वारा संकलित एक जीवनी में उन्हें मुफ्ती-ए-आज़म-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है।

जीवन[संपादित करें]

"मुफ्ती ए आज़मे हिन्द" मुस्तफा रज़ा खान का जन्म 18 जुलाई 1892 ई. को बरेली में हुआ था। उन्होंने अरबी, उर्दू, फारसी में इस्लाम पर किताबें लिखीं और "फतवा-ए-मुस्तफविया" के अपने संकलन में कई हजार इस्लामी समस्याओं पर निर्णय (मसाइल) की घोषणा की।

हजारों इस्लामी विद्वान उनको आध्यात्मिक गुरु के रूप में मानते थे और वे एक मुत्तकी परहेज़गार आलिमे दीन थे। वह बरेली में जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के मुख्य नेता थे, जिसने विभाजन पूर्व भारत में मुसलमानों को हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिए शुद्धि आंदोलन का विरोध किया था।

भारत में 1977 में आपातकाल के समय, उन्होंने पुरुष नसबंदी के खिलाफ एक फतवा जारी किया जिसे अनिवार्य कर दिया गया था और केवल एक वर्ष में ६.२ मिलियन भारतीय पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी। ऐसी परिस्थितियों में मुस्तफा रजा खान ने इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए भारत सरकार के इस आदेश का खूला विरोध किया था।

11 नवंबर 1981 को उनका निधन हो गया, उन्हें उनके पिता अहमद रज़ा खान के बराबर में दफ्न किया गया।

संदर्भ[संपादित करें]