मुझे चाँद चाहिए

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मुझे चाँद चाहिए  
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मुझे चाँद चाहिए
लेखक सुरेन्द्र वर्मा
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय साहित्य

मुझे चाँद चाहिए हिन्दी के विख्यात साहित्यकार सुरेन्द्र वर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1]सुरेन्द्र वर्मा ने इस उपन्यास में अभिनय कला के लिए किए जाने वाले कलाकार के संघर्ष का गहरे पीड़ा - बोध और कलात्मक संयम के साथ अंकन किया है।

1993 में अपने प्रकाशन के साथ ही यह उपन्यास अभिनय कला के संकटों से हिन्दी पाठकों को परिचित कराता है। इस उपन्यास के जरिए सुरेन्द्र वर्मा हिन्दी उपन्यास जगत में अपनी एक खास पहचान बनाते हैं। बृहद कलेवर वाले इस उपन्यास की कहानी तीन खंडों में विभक्त है। प्रत्येक खंड कई-कई शीर्षकों में बँटा हुआ है और अंंत में उपसंहार के साथ उपन्यास समाप्त होता है। उपन्यास की कहानी शाहजहांपुर, लखनऊ, दिल्ली और मुंबई के इर्द-गिर्द बुनी गई है। कहानी की शुरुआत शाहजहांपुर से होती है।

कथानक

"मुझे चाँद चाहिए " वर्षा वशिष्ठ के संघर्षों, सफलताओं और आकर्षणों की कहानी है। जो कि शाहजहांपुर की रहने वाली है। वर्षा इंटरमीडिएट की छात्रा है और बेहद ठंडे किस्म की विद्रोही है। अपनेे इसी ठंडे विद्रोही स्वभाव के चलते वह परिवार द्वारा दिए गए नाम 'यशोदा शर्मा' को बदलकर वर्षा वशिष्ठ कर लेती है और इस बारें में पिता के ऐतराज़ करने पर कहती है कि "अब हर तीसरे - चौथे के नाम में शर्मा लगाा होता है। मेरे क्लास में ही सात शर्मा् हैै।...... और यशोदा? घिसा - पिटा, दकियानूसी नाम। उन्होंने किया क्या था? सिवा क्रिश्न को पालने के?" 2 इसकेे बाद आगे की पढ़ाई केे लिए शाहजहांपुर के ही मिश्रीलाल डिग्री कालेेज में दाखिला लेती है जहाँ उसकी मुलाकात मिस दिव्या कात्याल से होती है। समय बीतने के साथ वह उनकी प्रिय विद्यार्थी बन जाती है। उनके कहने पर कालेज केे संस्थापक दिवस पर होने वाले नाट्य प्रदर्शन 'अभिशप्त सौम्यमुद्रा' में भाग लेती हैै और अपने अभिनय के लिए काफी प्रशंसित होती है। अभिनय उसे उसकी निजी जिंदगी की कड़वाहटों सेे बहुत सुकून देता है जिसके कारण वह काफी प्रभावित होती है और अभिनय कला को अपने भविष्य के तौर पर चुनती है। इसके लिए वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला लेती है और अभिनय कला में तीन वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर कुशल अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाती है। बाद में एक कलाकार की हैसियत से ड्रामा स्कूल के रिपर्टरी में काम करतेे हुए उसे फिल्म में काम करने का प्रस्ताव मिलता है जिसे वह स्वीकार कर लेती है। इस तरह उसका नया सफ़र शुरू होता है। अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में काम करते हुए वह अपने को कुशल अभिनेत्री के तौर पर स्थापित करती है और अनेक पुरस्कारों से नवाजी जाती है। साथ ही अपने निजी जीवन में अपने प्रेमी हर्ष के बच्चे की अनब्याही माँ बनने का साहसिक फैसला कर समाज की रूढ़ मान्यताओं को भी चुनौती देती है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.

2. मुुझे चाँद चाहिए, भारतीय ज्ञानपीठ, छठा संस्करण-2018, पृृष्ठ -14