मुजफ्फर हुसैन (पत्रकार)

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मुजफ्फर हुसैन (२० मार्च १९४५ -- १३ फरवरी २०१८) भारत के राष्ट्रवादी पत्रकार व चिन्तक थे। सन २००२ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। कई भाषाओं में प्रवीणता हासिल करने वाले हुसैन विभिन्न भाषाओं में कई पत्रिकाओं के लिए और कई स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों के लिए भी लिखते थे। वे मुसलमानों के एक वर्ग में पनपनेवाली जेहादी मानसिकता के सदैव निंदक रहे।

जीवन परिचय[संपादित करें]

मुजफ्फर हुसैन का जन्म 1945 में राजस्थान के बिजोलिया में हुआ था। वहां उनके पिताजी राजवैद्य थे। राजशाही की समाप्ति के बाद उनका परिवार मध्य प्रदेश के नीमच आ गया। यहीं उन्होंने स्नातक की उपाधि नीमच महाविद्यालय (विक्रम विश्‍वविद्यालय) से प्राप्‍त की। इसके बाद वे एल.एल.बी. की पढ़ाई करने के लिए मुंबई चले गए। इसी दौरान उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ।

हिंदी, उर्दू, मराठी और गुजराती भाषा पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। इन चारों भाषाओं के अखबारों में उनके लेख प्रकाशित होते थे। कई अखबारों में उनके नियमित स्तंभ छपते थे। यहां तक कि दक्षिण के भी अखबारों में उनके लेख प्रकाशित होते थे। बिना लाग-लपेट के वे अपनी बात कहते थे। उनका मानना था कि मुसलमानों को हिन्दुओं के साथ समरस हो जाना चाहिए। उनमें जो अलगाव की भावना है वह उनकी समस्याओं की मूल कारण है। वे कहते थे, दोनों की उपासना पद्धतियां भले ही अलग हों मगर दोनों के पूर्वज एक ही हैं।

व्यवसाय के रूप में पत्रकारिता को अपनाया। हिंदी और गुजराती के विभिन्न अखबारों में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। औरंगाबाद के दैनिक ‘देवगिरी समाचार’ में सलाहकार संपादक के पद पर काम किया।

मुजफ्फर हुसैन पाञ्चजन्य के उन लेखकों में से रहे जो लगातार चार दशक तक लिखते रहे। उनकी बेबाक लेखनी और सधी हुई सोच पाठकों को उनके नए लेख का इंतजार करने के लिए मजबूर करती थी। इस्लाम के इबादत के सारे तौर-तरीकों का पालन करने के बावजूद वे जिहादी सोच को अपने लेखों में बेनकाब करते थे। वे मुसलमानों के बोहरा समुदाय से जुड़े हुए थे। किन्तु वहां भी वे अपनी सुधारवादी सोच के अनुसार सुधार का आंदोलन चलाते रहे।

मुजफ्फर हुसैन लेखनी के धनी होने के साथ-साथ ओजस्वी वक्ता भी थे। अक्सर विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में उन्हें भाषण के लिए आमंत्रित किया जाता था।

उन्होंने मराठी, हिन्दी और गुजराती में नौ पुस्तकें लिखीं। इनमें से 'इस्लाम और शाकाहार', 'अलपसंख्यकवाद के खतरे', 'मुस्लिम मानस' आदि प्रमुख हैं। कुछ समय पहले तक वे राष्ट्रीय उर्दू काउंसिल के उपाध्यक्ष भी रहे। इस नाते उन्होंने अनेक सुधारात्मक कार्य भी किए। उन्होंने काउंसिल से नए-नए लेखकों को जोड़ा और उन्हें आगे बढ़ाया।

उनकी पत्नी नफीसा हुसैन भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और बहुत अधिक सक्रिय रहती हैं।

लेखन[संपादित करें]

मुजफ्फर हुसैन हिंदी में लिखने वाले ऐसे मुस्लिम लेखक थे जो सदैव मुस्लिम समाज को हिंदुओं के साथ समरस होने की वकालत करते रहे। अपने इसी नजरिये के साथ देश के कई अखबारों में वह स्तंभ लिखते रहे। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं।

हिंदी, मराठी, गुजराती और अंग्रेजी में अब तक कुल नौ पुस्तकें प्रकाशित। वर्तमान में देश-विदेश के ४२ दैनिकों एवं साप्‍ताहिकों में प्रति सप्‍ताह स्तंभ लेखन। वक्‍ता के रूप में प्रतिष्‍ठित संस्थाओं एवं विश्‍वविद्यालयों में नियमित आमंत्रित।

इस्लाम और शाकाहार नामक उनकी पुस्तक काफी चर्चित रही है। इसमें उन्होंने कुरान के विभिन्न अध्यायों में हिंसा से दूर रहने की जो सीख दी गई है, और हदीसकुरान में किस हद तक शाकाहार का समर्थन किया गया है, उसे बहुत कुशलता प्रस्तुत किया है। इसमें ऐसे-ऐसे रहस्य उद‍्घाटित किए गए हैं जिन्हें पढ़कर आश्‍चर्य होता है। कुरान में दिए गए तथ्य के अनुसार, जब ईश्‍वर ने शाकाहार को ही उदरपूर्ति के लिए चुना था तो यह नहीं कहा जा सकता है कि इसलाम शाकाहार का समर्थक नहीं है। वास्तविकता यह है कि इसलाम ने शाकाहारी बनने के लिए असंख्य स्थानों पर प्रेरित किया है। पुस्तक के तीसरे अध्याय का शीर्षक है—‘गाय और कुरान’, जो कृषि एवं भारतीयता के मर्म को स्पष्‍ट करता है। गाय चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था और अध्यात्म का प्राण है, इसलिए लेखक ने इस विषय पर सार्थक चर्चा की है। बकरा ईद के समय धर्म के नाम पर जिस तरह से हिंसा होती है उसकी इसलाम किस हद तक आज्ञा देता है, इसे कुरान की आयतों द्वारा समझाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया है। ‘इसलाम और जीव-दया’ तथा ‘इसलामी साहित्य में शाकाहार’ अध्यायों में की गई चर्चा रोचक व प्रशंसनीय है। ‘इक्कीसवीं शताब्दी शाकाहार की’ अध्याय में लेखक ने चौंका देनेवाले रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं।

सम्मान एवं पुरस्कार[संपादित करें]

अपने शानदार कॅरियर में उन्होंने साहित्य में कई राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार जीते। राष्‍ट्रीय स्तर के चौदह से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित।2002 में पद्मश्री के अलावा उन्हें 2014 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा पत्रकारिता के लिए लोकमान्य तिलक पुरस्कार तथा जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]