मुजफ्फरपुर एवं दरभंगा के दर्शनीय स्थल

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मुजफ्फरपुर और दरभंगा बिहार राज्य का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक जिला है एवं बिहार के प्रमुख शहरों में से भी एक है।

मुजफ्फरपुर के प्रमुख स्थान[संपादित करें]

लीची के बाग[संपादित करें]

मुजफ्फरपुर की लीची के बारे में 3 लाख टन हर साल के निर्माता होने के नाते, लीची के बाग़ीचे  पर्यटकों के लिए सबसे अधिक पसंदीदा जगह है। पर्यटकों की यही रूची इन लीची के बाग़ों को मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल बनाती है।  बोचाचा, झपाहा और मुशहाहारी शहर के 7 किमी के दायरे में स्थित प्रसिद्ध लीची उद्यान हैं। जिनकी लीची की मिठास और सुगंध दूर दूर तक प्रसिद्ध है। लीची के बाग़ों को देखने का सबसे अच्छा समय मई से जून का होता है इस समय लीची की पकी हुई फसल होती है। जो बाग़ों की सुंदरता को बढाती है।

बाबा गरीब नाथ मंदिर[संपादित करें]

बाबा गरीब नाथ मंदिर शहर के दिल में स्थित है, बाबा गरीबनाथ मंदिर मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल मे सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है। यहां भगवान शिव की मूर्ति बाबा गरीबनाथ के रूप में मंदिर में स्थापित है, और स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यह कहा जाता है मंदिर का काफी पुराना इतिहास है। ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा गरीबनाथ धाम का तीन सौ साल पुराना इतिहास रहा है। लेकिन मिले दस्तावेज के अनुसार 1812 ई. में इस स्थान पर छोटे मंदिर में बाबा की पूजा-अर्चना होती रही थी।

मान्यता है कि यहां के घने जंगल में सात पीपल के पेड़ थ। एक बार जंगल की सफाई के दौरान किसी मजदूर की कुदाल से कोई चीज टकराई। उसने देखा कि वहां से खून की धारा बह रही है। वह डरकर भाग गया और ये बातें दूसरों को बताईं। लोग दौड़े-दौड़े वहां आए। जब उन पेड़ों को काटा गया तो अचानक खून जैसे लाल पदार्थ निकलने के बाद विशालकाय शिवलिंग मिला।

उसके बाद जो उस जमीन का मालिक था उसे रात में बाबा ने स्वप्न दिया, जिसके बाद शिवलिंग की स्थापना कर वहां विधिवत पूजा-अर्चना की जाने लगी। मान्यता यह भी है कि एक बेहद ही गरीब आदमी को अपनी बेटी का विवाह करना था और उसके लिए घर में कुछ भी नहीं था, वह बाबा के मंदिर में गया और रोते हुए कहा-बाबा कैसे होगी मेरी बेटी की शादी?

इसके लिए उसने बाबा का जलाभिषेक किया और चिंतामग्न था, कहते हैं उस गरीब आदमी की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसकी परेशानी दूर कर दी और बेटी की शादी के सारे सामानों की आपूर्ति अपने-आप हो गई। तबसे से लोगों के बीच मंदिर का नाम बाबा गरीबनाथ धा्म के रूप में जाना जाने लगा। और धीरे धीरे यह मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल में सबसे अधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बन गया।

जुब्बा सहानी पार्क[संपादित करें]

जुब्बा साहनी पार्क स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी जुब्बा साहनी के नाम पर बच्चों का पार्क मुजफ्फरपुर की मिठ्ठनपुरा क्षेत्र में स्थित है। जुब्बा साहनी पार्क किसी अन्य बच्चों के पार्क की तरह है, लेकिन हरे भरे पेड़, मखमली घास, झाड़ियों और शांत वातावरण के कारण, यह वयस्कों, बच्चों और पर्यटकों का पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बन गया है। पार्क में लंबी और ऊंची लाइटों की कतार सूर्यास्त के बाद इस पूरे पार्क क्षेत्र को प्रकाश की रोशनी से जगमगा देती है। मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल मे यह मुख्य पिकनिक, व मनोरंजन स्थल के रूप में जाना जाता है।

रामचंद्र साही संग्रहालय[संपादित करें]

जुबबा साहनी पार्क के बीच में, रामचंद्र शाही संग्रहालय का निर्माण 1979 में विभिन्न कलाकृतियों, अष्टदिक पाल और मानसा नाग जैसे मूर्तियों को दिखाता है, जो देखने के लिए एक दिव्य दृष्टि है। प्राचीन बर्तनों का संग्रह भी जटिल रूप से बनाई गई मूर्तियों के साथ संग्रहालय का एक प्रमुख आकर्षण है।

खुदीराम बोस मैमोरियल[संपादित करें]

खुदीराम बोस मेमोरियल एक 18 वर्षीय सेनानी, खुदीराम बोस को समर्पित है , जो ब्रिटिश मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड पर एक बम फेंकने के आरोप मे गिरफ्तार किए गये थे।  खुदीराम बोस से अपने स्वतंत्रता सेनानी प्रफुल्ल कुमार चाकी के साथ मिलकर किंग्सफोर्ड को बम से उडाने की योजना बनाकर उसकी बग्गी पर बम फेका था।  परंतु दुर्भाग्य वश किंग्सफोर्ड तो बच गया। और दो अंग्रेज स्त्रियां मारी गई। उसके बाद अंग्रेज सिपाही उनके पीछे लग गए, प्रफुल्ल कुमार चाकी ने तो खुद को गोली माकर शहीद कर लिया, परंतु खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।

मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे।

उनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें लोक गायक आज भी गाते हैं।

चतुर्भुज स्थान मंदिर[संपादित करें]

चतुर्भुज स्थान मंदिर मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल मे सबसे पवित्र मंदिरों में से एक और एक है। लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह शायद क्षेत्र और बिहार राज्य के सभी पवित्र मंदिरों के बीच सबसे पुराना मंदिर है। 12 वीं सदी के मध्यकालीन युग के अपने इतिहास के साथ यह मंदिर लगभग 600 साल पुराना है। मुजफ्फरपुर नगर के चतुर्भुज स्थान मोहल्ले में तकरीबन 1200 ई. में स्थापित अतिप्राचीन बाबा चतुर्भुज नाथ मंदिर भक्ति व आस्था का केंद्र है । यहाँ भगवान् चतुर्भुज यानी श्रीहरि विष्णु की भवय प्रतिमा स्थापित है । यहाँ एक प्राचीन शिवलिंग भी है । लंबे – चौड़े मंदिर परिसर में सूर्य, महावीर , भैरव और गणेश भगवान की प्रतिमाए स्थापित है । पुरे उत्तर बिहार के लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं । यहाँ मुख्य द्वार पर स्थापित सूर्य मंदिर इस क्षेत्र का एकमात्र सूर्य मंदिर है । यह मंदिर मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल मे काफी प्रसिद्ध है।

श्रीराम मंदिर[संपादित करें]

यह प्रसिद्ध भगवान राम मंदिर साहू पोखर के छोटे गांव में स्थित है। यह ऐतिहासिक और सुंदर मंदिर हर दिन हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। वास्तव में यहां आने वाले भक्तों की संख्या में जाकर देखे, तो यह आसानी से मुजफ्फरपुर के दर्शनीय स्थल मे सबसे अधिक देखी जाने वाले मंदिरों में से एक है। मंदिर भी बहुत विशाल है और कई हिंदू देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिरों को समायोजित है। और इन मंदिरों में से एक मंदिर है जिसमें एक विशेष शिवलिंग है जो पूरे भारत में तीसरा सबसे बड़ा है। कहने की जरूरत नहीं है, कोई भी पर्यटक इस विशेष मंदिर को देखेने के बाद याद करे बिना नही रह सकता है।

रामन देवी मंदिर[संपादित करें]

यह मुजफ्फरपुर जिले के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है। यह भगवान दुर्गा माता को समर्पित है। हालांकि मुजफ्फरपुर के अन्य मंदिरों के विपरीत यह किसी भी समृद्ध इतिहास को बढ़ावा नहीं देता है, लेकिन यह बढ़ावा देता है सौंदर्य और स्थापत्य सौंदर्य। इस मंदिर का निर्माण वास्तव में श्री बाभा बाबू नामक एक स्थानीय व्यापारी द्वारा वर्ष 1941 में पूरा किया गया था। उन्हें दुर्गा माता का वफादार भक्त माना जाता था। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मंदिर कुछ दशकों के मामले में मुजफ्फरपुर के मंदिरों के बाद सबसे अधिक मांग में से एक बन गया और आज भी ऐसा ही जारी है। इस तरह के अल्प अवधि में इसकी लोकप्रियता वास्तव में अपनी वास्तुकला की सुंदरता के लिए श्रद्धांजलि है। सब कुछ, रामन देवी मंदिर मुजफ्फरपुर के धार्मिक स्थलों में से एक है।

माता चामुंडा स्थान[संपादित करें]

कटरा गढ़ में शक्तिपीठ चामुंडा स्थान अवस्थित है। देवी चामुंडा का स्वरूप पिंडनुमा है, जो स्वअंकुरित बताई जाती है। यहां सालों भर श्रद्धालु भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

शास्त्रीय आख्यानों के अनुसार चंड-मुंड असुर बंधुओं का संहार देवी ने इसी स्थल पर किया जहां वे विराजमान हैं। तभी से वे चामुंडा कहलाईं। कहते हैं कि इस ऐतिहासिक स्थल पर चंद्रवंशी राजाओं का साम्राज्य था। 13वीं सदी में चंद्रसेन सिंह नामक राजा यहां राज्य करता था और माता चामुंडा की आराधना कुलदेवी के रूप में करता था।

सदियों से जीर्ण-शीर्ण देवालय की जगह 1980 में नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद सरस्वती के प्रिय शिष्य डॉ. शौनक ब्रह्मचारी की प्रेरणा व प्रखंड अधिकारी ब्रजनाथ सिंह के प्रयास से जनसहयोग द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।

दरभंगा के प्रमुख स्थान[संपादित करें]

कुशेश्वर स्थान  पक्षी अभ्यारण्य[संपादित करें]

दरभंगा जिला अंतर्गत कुशेश्वरस्थान पूर्बी प्रखण्ड में यह झील है जिसे  स्थानीय भाषा में चौर कहा जाता है| यहाँ कराके  की ठण्ड में बड़ी संख्या में दुर्लभ प्रजाति की पक्षियां तीन माह तक प्रवास करती है | यह करीब 14 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है |

कुशेश्वर स्थान मंदिर[संपादित करें]

बाबा कुशेश्वर् नाथ का शिव मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग ७० किलोमीटर दूर है | यह मंदिर मिथिला में बाबाधाम के नाम के रूप में प्रचलित है | इस मंदिर में उत्तर बिहार, झारखण्ड तथा नेपाल तक के भक्त गन पूजा करने के लिए आते है |

दरभंगा राज किला[संपादित करें]

दरभंगा में १९३४ ईस्वी के प्रलयंकारी भूकंप के बाद दरभंगा महाराज के द्वारा राज किला की स्थापना की गई थी | वर्तमान में यह ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पश्चिम में अवस्थित है | किला के अन्दर कई भव्य मंदिर बनाये गए है | इसकी ऊंची दिवार राजस्थान एवं दिल्ली में अवस्थिति ऐतहासिक किलो की भांति दर्शनीय है |

अहिल्या स्थान[संपादित करें]

अहिल्या स्थान एक प्रसिद्ध एतिहासिक स्थल है| यह दरभंगा  जिला के जाले प्रखण्ड के कमतौल रेलवे स्टेशन से लगभग ३ किलोमीटर दक्षिण में अहियारी ग्राम में अवस्थित है | पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि गौतम की धर्म पत्नी देवी अहिल्या प्रसंग वश अपने पति के श्राप के कारण शिलाखंड में परिवर्तित हो गई थी | भगवान श्री राम की चरण धूलि के स्पर्श से उनका उद्धार हुआ | दरभंगा जिला के लिए यह स्थान एक प्रशिधि धार्मिक पर्यटन स्थल है जिसे रामायण सर्किट से जुरने का भी गौरब प्राप्त है |

श्यामा मंदिर[संपादित करें]

मां श्यामा मंदिर दरभंगा राज के महाराजा रमेश्वर सिंह की चिता पर अवस्थित है। इस मंदिर परिसर में हर शुभ कार्य शादी, जनेऊ, मुंडन आदि पवित्र संस्कार होते हैं।

1933 में हुई मां श्यामा की प्रतिमा की स्थापना : इस स्थल पर दरभंगा राज परिवार के तत्कालीन महाराजाधिराज सह कामेश्वर सिंह ने अपने पिता एवं तांत्रिक शक्ति के प्रबल उपासक रमेश्वर सिंह की चिता पर वर्ष 1993 में मां श्यामा काली की आदमकद प्रतिमा की स्थापना की।

चिता पर विराजमान हैं पांच भगवती की प्रतिमाएं : इस मंदिर परिसर में कुल नौ मंदिर हैं। महादेव के दो , भगवती के छह एवं एक मंदिर अर्द्धनिर्मित है। सबसे बड़ी खासियत है कि पांच भगवती की प्रतिमाएं चिता पर अवस्थित हैं। जो इस प्रकार है। जानकारों के मुताबिक महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर श्यामा माई मंदिर, महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की चिता पर लक्ष्मेश्वरी तारा मंदिर, महाराज रुद्रेश्वर सिंह की चिता पर रुद्रकाली मंदिर, महाराज कामेश्वर सिंह की चिता पर कामेश्वरी श्यामा मंदिर एवं महारानी अन्नपूर्ण की चिता पर अन्नपूर्ण मंदिर अवस्थित है।

श्मशान भूमि पर मां श्यामा की प्रतिमा विराजमान होने के बावजूद आज यह मंदिर परिसर मिथिला के लोगों के लिए आस्था एवं उपासना का केंद्र बन गया है। पूर्व में तो श्मशान में ही साधक तांत्रिक पद्धति से पूजा करते थे। मां श्यामा हर भक्त की इच्छा की पूर्ति करती हैं ।

मजार[संपादित करें]

दरभंगा जिला अंतर्गत दिघी तालाब के किनारे अवस्थित हजरत भीखा साह सलामी रहमतुल्लाह अले का मजार अवस्थित है | इसे मकदूम बाबा के नाम से भी जाना जाता है | यह मजार लगभग १४० वर्ष पुराना है |

शाही मस्जिद किलाघाट दरभंगा[संपादित करें]

तुगलक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक़ के द्वारा १९३६ इश्वी में बनाई गई थी | वर्तमान समय में यहाँ एक मदरसा हमीदिया संचालित है|

खनका समर्कंदिया दरभंगा[संपादित करें]

इसकी स्थापना अफगानिस्तान शहर तोदिया सादत से आये हजरत मौलाना सैयेद शाह मोहम्मद अब्दुल करीम मौलाना समरकंदी रहमतुल्लाह के द्वारा १८८६ इश्वी में बीबी विलायत सदिया के द्वारा दान में गई भूमि पर स्थापित की गई |

चर्च स्थल[संपादित करें]

दरभंगा जिला में १८९१ में पुराना कैथोलिक चर्च स्थापित हुआ था | १९८७ के विनाशकारी भूकंप में पुराना चर्च क्षत विक्षत हो गया | पुनः इसका निर्माण १९९१ इश्वी में किया गया | दरभंगा में एक प्रोटोस्टेंट चर्च भी है जो लहेरियासराय में है |

गुरुद्वारा[संपादित करें]

दरभंगा नगर अंतर्गत मिर्ज़ापुर में सिख धर्म स्थली गुरुद्वारा है | यहाँ प्रत्येक वर्ष गुरुगोविंद सिंह की जयंती पर लंगर का आयोजन किया जाता है |

संदर्भ[संपादित करें]