मुख्य रत्न एवं मणियां

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रत्नों में ही पाँच मुख्य महारत्न तथा पाँच मुख्य मणियाँ होती हैं, जो निम्न प्रकार हैं-


पाँच मुख्य महारत्न[संपादित करें]

हीरा - अंग्रेजी में इसे डायमंड कहा जाता है। इसकी कठोरता 10 होती है। आपेक्षिक घनत्व 3.4, वर्तनांक 2.3175, अपकीर्णन 0.44 होता है। हीरा सबसे अधिक कठोर होता है। इसलिए कोई भी पदार्थ इसे खुरच नहीं सकता, न यह किसी दूसरे पदार्थ से घिसा जा सकता है। इसका वर्तनांक सबसे अधिक होता है। इस कारण इसके भीतर प्रवेश करनेवाला प्रकाश पूरा का पूरा लौटकर आ जाता है। इसलिए हीरे की चमक सबसे अधिक होती है।अपकीर्णन भी इसमें सब रंगों से अधिक पाया जाता है । फलस्वरूप जिस हीरक खंड की तराश अच्छी होती है उनमें झाँककर देखने से इंद्रधनुषी रंगों की झिलमिलाहट खूब दिखाई देती है।

माणिक्य - अंग्रेजी में इसे रूबी कहा जाता है। इसकी कठोरता 9 होती है। आपेक्षिक घनत्व 4.03, वर्तनांक 1.776 होता है। बर्मा का माणिक्य सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। बर्मा के माणिक्य का रंग गुलाब के फूल की पंखुड़ी के रंग से लेकर गहरे लाल रंग तक का होता है। श्रीलंका के माणिक्य में बर्मा के माणिक्य की अपेक्षा पानी अधिक और लोच कम होती है।

पन्ना - अंग्रेजी में इसे एमराल्ड कहा जाता है। इसकी कठोरता 7.75 होती है। आपेक्षिक घनत्व 2.69 से 2.80, वर्तनांक 1.57 - 1.58 होता है। पन्ना हरे रंग का होता है। पन्ना अत्यधिक मुलायम और कोमल रत्न है।

नीलम - अंग्रेजी में इसे सफायर (ब्लू सफायर) कहा जाता है। इसकी कठोरता 8 होती है। आपेक्षिक घनत्व 4.03, वर्तनांक 1.76 होता है। इसकी द्विवर्णिता अति स्पष्ट , बिना सूक्ष्म-दर्शक के भी दृश्य, भंगुर अपकीर्णन हीरे की अपेक्षा कम होता है , इसलिए दमक और जज्वल्यता हीरे से कम होती है। नीलम विशेषतया आसमानी, चमकीले गहरे नीले, मखमली रंग का होता है।

पुखराज - अंग्रेजी में इसे भी सफायर ही (लेकिन येलो सफायर) कहा जाता है। इसकी कठोरता 8 होती है। आपेक्षिक घनत्व 6.53, वर्तनांक 1.61 - 1.62 होता है। द्विवर्णिता इसमें तीक्ष्ण नहीं होती है। यह पीले रंग का होता है । इसकी आभा काँच के समान होती है।

पाँच मुख्य रत्न[संपादित करें]

पुखराज, वैदूर्य, गोमेद, मूँगा अर्थात प्रवाल, मोति,

मुख्य मणिया[संपादित करें]

मुख्य मणियाँ- वैसे मणियाँ तो असंख्य हैं, परन्तु मुख्यतः 9 मणियों की मान्यता अधिक है, जो निम्न हैं-

घृतमणि तैलमणि भीष्मक मणि उपलक मणि स्फटिक मणि पारस मणि उलूक मणि लाजावर्त मणि मासर मणि

मणियाँ भी रत्नों की ही तरह ग्रहों के कारण उत्पन्न अनिष्ट को शांत करती हैं तथा मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ होती हैं। इनका वर्णन निम्नवत है-

इस मणि को अँगूठी में धारण करने से बुद्धि बल की वृद्धि होती है तथा शरीर से दुर्गन्ध नष्ट होती है। सदा निर्दोष मणि को धारण करना चाहिए अन्यथा हानि होना सम्भव है।

भीष्मक मणि[संपादित करें]

यह दो प्रकार की होती है-

1. मोहिनी भीष्मक मणि। 2. कामदेव भीष्मक मणि।

मोहिनी भीष्मक मणि- इसे अमृत मणि भी कहते हैं। यह सरसों पुष्प या तोरी पुष्प या गुलदाऊदी पुष्प अथवा केले के अति नवीन पत्र के समान पीले रंग की होती है तथा हीरे की तरह चमकती है।

कामदेव भीष्मक मणि- यह कृष्ण वर्ण की, शहद के समान वर्ण का अथवा दही व फिटकरी के मिश्रण से बने रंग के समान होती है तथा यह स्निग्ध स्वच्छ तथा सुंदर रंग व कांति वाली होती है।

प्रयोग- सूर्य के आद्रा नक्षण में होने तथा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु अथवा कुम्भ राशि पर चन्द्रमा के होने से मोहिनी भीष्मक मणि को रुई में लपेट कर पूर्व दिशा में पानी में डुबाकर रख देते हैं। तत्पश्चात वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक अथवा मकर राशि पर चन्द्रमा के आने पर मणि को पश्चिम दिशा में रखकर विधिपूर्वक पूजन करने से अच्छी वर्षा होती है।

प्रयोग- मेष राशि पर यह सूर्य के होने से रोहिणी नक्षण अथवा पूर्णमासी के दिन व मंगलवार के दिन तेलमणि को जिस खेत में 4-5 हाथ गहरे गड्ढे में खोदकर गाड़ दिया जाए व मिट्टी से ढँककर सींचा जाए तो सामान्य से बहुत अधिक अन्न उत्पन्न होता है।

उपलक मणि[संपादित करें]

नाम- हि. उपल, रत्नोपल, अं. ओपल।

परिचय- यह मणि मधु के समान तथा विभिन्न रंगों वाली होती है। इसके ऊपर पीले, नीले, श्वेत तथा हरे रंग के बिन्दु के दाग पाए जाते हैं। इसे तेल, जल अथा दूध में डाला जाए तो चमक अधिक आती है।

मणि के पूजन के बाद पाँच दिन के अंदर वर्षा होने पर अच्छी फसल की पैदावार होती है। 10 दिन के भीतर वर्षा होने से अन्न का भाव सस्ता होता है। 5 या 10 दिन तक निरन्तर वर्षा होने से अन्न का भाव महँगा रहता है। 20 दिन तक निरन्तर वर्षा होने से अकाल पड़ता है तथा 25 दिन तक लगातार वर्षा होने से मानव समाज पर भयंकर आपदा आने वाली होती है, ऐसा समझना चाहिए।

प्रभाव- मोहिनी भीष्मक को धारण करने से धनधान्य, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य व पारिवारिक तथा दाम्पत्य सुख में वृद्धि होती है तथा शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।

कामदेव भीष्मक मणि के धारण करने से शत्रु पर विजय के साथ सभी प्रकार की मनोरथ पूर्ति व हृदय रोग, गरमी तथा अन्य व्याधियाँ दूर होती हैं।

घृतमणि[संपादित करें]

पर्याय नाम- सं. गरुणमणि। हिन्दी- करकौतुक, कर्केतन। फारसी- जबरजद्द। अं.- पेरीडॉट।

परिचय- घृतमणि एक विशेष प्रकार का पत्थर है। यह हरे, पीले, लाल, श्वेत, श्याम व मधु मिश्रित रंग का होता है। इसके ऊपर पिस्ते के समान छींटे भी होते हैं।

प्रयोग- (1) मिथुन राशि में सूर्य अथवा चन्द्रमा के होने पर घृतमणि को चाँदी की अँगूठी में लगवाकर हस्त नक्षत्र में सूर्यमन्त्र से अभिमन्त्रित करके बाएँ हाथ की अनामिका अँगुली में धारण किया जाता है।

(2) कन्या राशि पर सूर्य, चन्द्र अथवा बुध के होने पर घृतमणि को सोने की अँगूठी में जड़वाकर दाएँ हाथ की कनिष्ठिका अँगुली में धारण किया जाता है।

प्रभाव- घृतमणि की अँगूठी धारण करने से धन, संतान, स्नेह की वृद्धि होती है तथा छोटे बच्चों के गले में पहनाने से बुरी नजर का दोष, मृगी रोग का भय नहीं रहता है। सदा निर्दोष मणि धारण करना चाहिए।

तेलमणि[संपादित करें]

पर्याय नाम- हि. उदउक, उदोक, अं. टूर्मेलीन।

परिचय- तेलमणि लाल रंग की आभा लिए हुए श्वेत, पीत व कृष्ण वर्ण की होती है तथा स्पर्श करने से तेल जैसा चिकना ज्ञात होता है। श्वेत रंग की तेलमणि को अग्नि में डालने पर ही पीत वर्ण की तथा कपड़े में लपेट कर रखने पर तीसरे दिन पीत वर्ण की हो जाती है, परन्तु आग में से या कपड़े में से निकालकर बाहर रखने पर हवा लगने से पुनः अपने असली रंग श्वेत वर्ण में बदल जाती है।

प्रभाव- उपलक मणि को धारण करने से भक्ति भाव वैराग्य तथा आत्म उन्नति प्राप्त होकर अनेक प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

स्फटिक मणि[संपादित करें]

नाम- हि. बिल्लौर अ. क्वार्ट्ज।

परिचय- स्फटिक मणि सफेद रंग की चमकदार होती है।

प्रभाव- स्फटिक मणि की अँगूठी धारण करने से सुख, शांति, धैर्य, धन, सम्पत्ति, रूप, बल, वीर्य, यश, तेज व बुद्धि की प्राप्ति होती है तथा इसकी माला पर किसी मंत्र को जप करने से वह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।

पारस मणि[संपादित करें]

नाम- सं. स्पर्श मणि, हि. पारस पत्थर, अं. फिलास्फर्स स्टोन।

परिचय- यह काले रंग का सुगंधयुक्त पत्थर होता है। आजकल पारस पत्थर दुर्लभ है। देखने को नहीं मिलता। इसके बारे में कहा जाता है कि यदि लोहे को इससे स्पर्श करा दिया जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाता है।

उलूक मणि[संपादित करें]

परिचय- इसका रंग मटमैला होता है तथा मृदु होता है। ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है, परन्तु अभी तक यह कहीं देखने में नहीं आई है।

प्रभाव- जब यह मणि अप्राप्त है, तो प्रभाव अनुभव करने का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी यह किंवदंती है कि किसी अंधे व्यक्ति को यदि घोर अंधकार में ले जाकर द्वीप प्रज्वलित कर उसकी आँख से इस मणि को लगा देने से उसे दिखाई देने लगता है।

लाजावर्त मणि[संपादित करें]

नाम- हि. लाजवर्द, लाजावर्त, राजावर्त, अं. लैपिस लैजूली।

परिचय- इस मणि का रंग मयूर की गर्दन की भाँति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है।

प्रभाव- लाजावर्त मणि को मंगलवार के दिन धारण करने से बल, बुद्धि एवं यश की वृद्धि होती ही है, साथ ही भूत, प्रेत, पिशाच, दैत्य, सर्प आदि का भी भय नहीं रहता।

मासर मणि[संपादित करें]

नाम- अं. एमनी।

परिचय- मासर मणि हकीक के समान होती है तथा इसका रंग श्वेत, लाल, पीला व काला चार प्रकार का होता है तथा ये पंकज पुष्प के सदृश चमकदार व स्निग्ध होती है।

मासर मणि दो प्रकार की होती है-

अग्नि मासर मणि- यदि अग्निवर्ण वाली मासर मणि में धागे को लपेटकर आग में डाल दिया जाए तो धागा नहीं जलता है। जलवर्ण- जलवर्ण वाली मासर मणि को यदि जल मिश्रित दूध में डाल दिया जाए तो दूध व पानी अलग-अलग हो जाते हैं। प्रभाव- अग्नि वर्ण वाली मासरमणि को धारण करने से व्यक्ति आग में नहीं जलता तथा जलवर्ण वाली मासर मणि को धारण करने से व्यक्ति जल में नहीं डूबता तथा भूत, प्रेत, चोर, शत्रु आदि का भी भय नहीं रहता है।