मुकुटधर पाण्डेय
मुकुटधर पाण्डेय | |
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जन्म | 30 सितम्बर 1895 |
मौत | {६ नवम्बर १९८९} {छत्तीसगढ़ राज्य के [[रायगढ़ जिला, छत्तीसगढ़|]] के एक छोटे से मोहल्ले बैकुंठपुर में।} |
पेशा | लेखक, निबंधकार, विद्वान, कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उल्लेखनीय कामs | छायावाद और अन्य निबंध (१९८३) |
खिताब | पद्मश्री |
मुकुटधर पाण्डेय (१८९५ - ६ नवम्बर १९८९) हिन्दी कवि थे। वे छायावाद के जनक माने जाते हैं।
परिचय
[संपादित करें]उनका जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले के एक छोटे से गाँव बालपुर में ३० सितम्बर सन् १८९५ ई० को हुआ।[1] वे अपने आठ भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। इनके पिता पं.चिंतामणी पाण्डेय संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे और भाइयों में पं० लोचन प्रसाद पाण्डेय जैसे हिन्दी के ख्यात साहित्यकार थे। बाल्यकाल में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर बालक मुकुटधर पाण्डेय के मन में गहरा प्रभाव पड़ा किन्तु वे अपनी सृजनशीलता से विमुख नहीं हुए।
उनका निधन ६ नवम्बर १९८९ को हुआ।
साहित्यिक अवदान
[संपादित करें]सन् १९०९ में १४ वर्ष की उम्र में उनकी पहली कविता आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'स्वदेश बांधव' में प्रकाशित हुई एवं सन् १९१९ में उनका पहला कविता संग्रह ‘पूजा के फूल’ प्रकाशित हुआ। देश की सभी प्रमुख पत्रिकाओं में लगातार लिखते हुए मुकुटधर पाण्डेय ने हिन्दी पद्य के साथ-साथ हिन्दी गद्य के विकास में भी अपना अहम योग दिया। पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अनेक लेखों व कविताओं के साथ ही उनकी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं – ‘पूजाफूल (१९१६), शैलबाला (१९१६), लच्छमा (अनूदित उपन्यास, १९१७), परिश्रम (निबंध, १९१७), हृदयदान (१९१८), मामा (१९१८), छायावाद और अन्य निबंध (१९८३), स्मृतिपुंज (१९८३), विश्वबोध (१९८४), छायावाद और श्रेष्ठ निबंध (१९८४), मेघदूत (छत्तीसगढ़ी अनुवाद, १९८४) आदि प्रमुख हैं।
रचनाएं
[संपादित करें]पूजाफूल (१९१६), शैलबाला (१९१६), लच्छमा (अनूदित उपन्यास, १९१७), परिश्रम (निबंध, १९१७), हृदयदान (१९१८), मामा (१९१८), छायावाद और अन्य निबंध (१९८३), स्मृतिपुंज (१९८३), विश्वबोध (१९८४), छायावाद और श्रेष्ठ निबंध (१९८४), मेघदूत (छत्तीसगढ़ी अनुवाद, १९८४) छायावाद के प्रवर्तक
पुरस्कार
[संपादित करें]हिन्दी के विकास में योगदान के लिये इन्हें विभिन्न अलंकरण एवं सम्मान प्रदान किये गये। भारत सरकार द्वारा इन्हें सन् १९७६ में `पद्म श्री’ से नवाजा गया। पं० रविशंकर विश्वविद्यालय द्वारा भी इन्हें मानद डी लिट की उपाधि प्रदान की गई।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ लाल जैन (२०१२). Chhattisgarh Pre. B.Ed. Examination. उपकार प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788174829344. मूल से 1 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 फ़रवरी 2014.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]छायावाद के मुकुट : संजीव तिवारी का आलेख