मीठड़ी मारवाड़

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ध्रुवीय निर्देशांक: 27°57'5975"N 74°68'7235"E[1]

मीठड़ी मारवाड़
—  क़स्बा  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य राजस्थान
सरपंच लक्ष्मी देवी बाजारी
जनसंख्या 3,236 (2001[2] के अनुसार )
आधिकारिक जालस्थल: meetharimarwar.blogspot.com

निर्देशांक: 27°34′34″N 74°41′14″E / 27.575975°N 74.687235°E / 27.575975; 74.687235 मीठड़ी मारवाड़[4] राजस्थान के नागौर जिले की लाडनूं तहसील का एक गाँव है।

परिचय[संपादित करें]

मीठड़ी मारवाड़ - यह ग्राम मारवाड़ क्षेत्र तदानुसार नागौर जिले के उत्तरी पूर्वी दिक्कोण (ईशान) में आबाद कस्बाई ग्राम है। यह तहसील एवं पंचायत समिति लाडनूं के परिधीय क्षेत्र का पूर्वी सीमांत स्थित ग्राम पंचायत मुख्यालय है। स्वतंत्रता के पूर्व रियासती काल में यह ग्राम तत्कालीन तीन राजपूत रियासतों मारवाड़, जयपुर तथा बीकानेर के मध्यवर्ती एक त्रिकोणीय ट्रांजिट पॉईंट की तरह महत्तवपूर्ण स्थान था वहीं वर्तमान में भी तीन जिलों के समागम केन्द्र के रूप में ग्राम अपना वही भौगोलिक महत्त्व बनाए हुए है। रियासती काल में ग्राम स्वयं मारवाड़ रियासत का सीमांत प्रतिनिधि ग्राम था वहीं ग्राम से ४ किलोमीटर के पश्चात् शेखावाटी रियासत का राज्य क्षेत्र प्रारम्भ हो जाता था, आजकल यहाँ से सीकर जिला प्रारम्भ होता है। ग्राम से ८ किमी उत्तर में स्थित खोडा ग्राम वर्तमान में चुरू जिले की सुजानगढ़ तहसील का गाँव है जहाँ सॆ रियासती काल में बीकानेर रियासत का राज्य क्षेत्र प्रारम्भ होता था। बीकानेर राज्य का क्षेत्र स्थानीय बोलचाल में थळी के नाम से जाना जाता है। वस्तुत यह तीनों क्षेत्र अपनी अपनी विशिष्ठ संस्कृति भी रखते हैं तथा लोक जीवन में आम जन आज भी इन क्षेत्रों के लिए इन्हीं शब्दों करते हैं जिनकी काल्पनिक सीमाएँ भी निर्धारित है। इस कारण पूर्व मध्य काल से आधुनिक समय तक यह ग्राम तीन राजनीतिक शक्ति केन्द्रों के साथ साथ तीन सांस्कृतिक परिवेशों के समागम का विशिष्ठ स्थल रहा है। ग्राम वर्तमान में राज्य महामार्ग ६० पर स्थित है। यह राज्य मार्ग सालालर बालाजी धाम को तीर्थ राज पुष्कर से जोड़ता है। यह ग्राम पंचायत मुख्यालय है इसके अतिरिक्त संपूर्ण लाडनूं तहसील को जिन तीन राजस्व सेक्टरों (ravenue sectors) में विभाजित किया गया है उनमें, लाडनूं, निम्बी जोधा के पश्चात् तृतीय राजस्व सेक्टर का मुख्यालय मीठड़ी मारवाड़ ग्राम ही है। एक लघु नगर के लिए आवश्यक सभी तरह की सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध है। राजस्थान राज्य की विधानसभा के लिए परिसीमित २०० विधान सभा क्षेत्रों में मीठड़ी मारवाड़ लाडनूं विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत परिगणित होता है।

इतिहास[संपादित करें]

जागतिक दृष्टिकोण से हमें सही समय का ज्ञान नहीं है कि इस ग्राम की स्थापना कब तथा किसनें की थी तथापि राजपूतकालीन ऱियासतों के उत्तरवर्त्ती काल में यहाँ मानव बस्तियों का स्थापित होना प्रारम्भ हो गया था। कतिपय ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं जन श्रुतियों के अनुसार ७०० AD. या इससे पूर्व यह स्थान उस मार्ग पर स्थित था जो तत्कालीन दो रियासतों का संगम स्थल था। इसी प्राचीन मार्ग से व्यापारी, यात्री, साधु संतों के दल, स्थानीय स्तर के व्यापारी जिन्हें बणजारा कहा जाता था आते जाते थे इसके अतिरिक्त कई बार सेनाएँ भी मारवाड़ एवं शेखावाटी में आवागमन हेतु इसी मार्ग का प्रयोग करती थी। ग्राम की पूर्वी सीमा में प्रवेश करते ही एक छोटा सा तालाब था जिसे स्थानीय बोली में नाडी या तलैया कहा जाता था। इस तालाब में प्राय बरसात का पानी संग्रहित रहता था। मार्ग से गुजरनें वाले यात्री प्राय: यहाँ पानी पीनें, विश्राम करनें तो कभी रात्रि विश्राम के लिए यहाँ ठहरते थे क्योंकि यात्रियों को स्वयं के लिए तथा अपनें पशुओं के लिए पीनें के मीठे तथा स्वच्छ पानी की सहज उपलब्धता थी। साथ ही इस तलैया के इर्द गिर्द बरगद तथा पीपल के वृक्ष इसे विश्राम हेतु और भी प्रासंगिक बना देते थे। इस तलैया का नाम हमें रियासतकालीन दस्तावेजों में पीपरनी नाडी या पीपली नाडी मिलता है। रियासती काल में तीन रियासतों का संगम होनें के कारण जोधपुर महाराजा इस स्थान के राजनैतिक एवं भौगोलिक महत्तव को समझते थे। रियासती काल में जहाँ राज्य की अधिकाँश भूमि जागीरों में विभक्त होकर स्थानीय सामंत, जागीरदीर, जमींदार अथवा ठाकुरों के अधीन प्रशासित होती थी वहीं मीठड़ी ग्राम सदैव खालसा रहा था। ज्ञातव्य है कि खालसा भूमि क्षेत्र अथवा ग्राम के स्थानीय प्रबंधन का उत्तरदायित्तव स्वयं केन्द्रीय प्रशासन अर्थात सीधे महाराजा के अधीन रहता था। इसी कारण हम मान सकते हैं कि मारवाड़ राज्य के लिए इस ग्राम का महत्तव किंचित अधिक रहा था। इन संपूर्ण विशेषताओं के निमित्त कतिपय कारण रहें थे जिनके कारण विभिन्न जन समुदायों, जातियों, परिवारों नें यहाँ स्थायी रूप से रहना प्रारम्भ किया तथा समय के साथ साथ क्रमिक रूप से ग्राम आबाद होता गया। एक ट्रांजिट केन्द्र से कस्बे के स्वरूप में आनें तक मीठड़ी मारवाड़ ग्राम की विकास यात्रा के कई चरण है, जिनका उल्लेख निम्न है -

  • यह ग्राम वर्तमान में नागौर जिले के ठीक ईशान कोण में स्थित है, इसी प्रकार की अवस्थिति रियासती काल में भी रही थी। पूर्वोत्तर का सीमांत प्रतिनिधि ग्राम होनें के कारण जोधपुर महाराजा एक सीमांत चौकी स्वरूप इसका महत्त्व समझते थे अस्तु उन्होनें ग्राम को सदैव अपनें सीधे प्रशासन में रखते हुए खालसा़ ग्राम ही घोषित किए रखा। ग्राम मीठड़ी मारवाड़ वर्तमान में जिले की लाडनूं तहसील मुख्यालय से लगभग ३५ किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में है। हमारे पास इस तथ्य की स्थापना के पूर्ण साक्ष्य है कि जोधपुर महाराजा नें ७०० ईस्वी या इससे पूर्व किसी समय यहाँ एक आरक्षी चौकी तथा चुँगी थाना स्थापित किया था। आरक्षी दल सीमा पर प्रहरी के रूप में तैनात थे क्योंकि शेखावाटी से मारवाड़ राज्य में प्रवेश का यह मुख्य द्वार था जिसकी सतत् निगहबानी रखना आवश्यक था। साथ ही कई बार दोनों रियासतों के राज्य बहिष्कृत लोगों एवं चोर डाकुओं के इधर उधर से प्रवेश का भी खतरा बना रहता था। चुँगी चौकी या राजस्व थाना वह उपागम होता था जो सीमा के आर पार होनें वाले व्यापार पर निर्धारित चुँगी या राजस्व वसूल करता था। स्थानीय भाषा में इसे सायर थाना कहा जाता था। आरक्षी एवं सायर थानें के लिए एक सुदृढ़ भवन का निर्माण भी किया गया था। यह भवन उपर्युक्त वर्णन में उल्लेखित पीपरनी नाडी से लगभग २ किलोमीटर पश्चिम में स्थापित किया गया, नाडी से यह दूरी रखनें का कारण यह था कि शेखावाटी से आनें वाला रास्ता स्थापित थाना स्थल तक आनें के पश्चात् दो मार्गों में विभाजित हो जाता था। प्रथम मार्ग दक्षिण पूर्वी दिक्कोण में डीडवाना परगनें की ओर बढ़ जाता था तथा द्वितीय मार्ग उत्तरी पश्चिमी दिक्कोण में लाडनूं होता हुआ बीकानेर रियासत की ओर बढ़ जाता था। ये सभी मार्ग आज भी विध्यमान है तथा जहाँ ये मार्ग पृथक होते हैं वहाँ गाँव का विशाल आम परिसर है जिसे स्थानीय भाषा में गुवाड़ कहा जाता है। इस आम गुवाड़ में आज भी ५०० से ४०० वर्ष पुरानें बरगद, पीपल के कई विशाल वृक्ष साक्षियों के रूप में खड़े हैं। रियासती काल में ग्राम के मध्य में स्थापित एक आरक्षी थानें का उल्लेख मिलता है जो संभवतया इस सीमांत ग्राम के भूगोल के राजनीतिक महत्तव को सिद्ध करता है। स्वतंत्रता के कुछ वर्षों के पश्चात वह थाना यहाँ से दक्षिण पूर्व में स्थित नागौर जिले के डीडवाना तहसील के अन्तर्गत ग्राम बरड़वा में स्थानान्तरित कर दिया गया था, बरड़वा से भी यह थाना वर्तमान में मौलासर में स्थापित कर दिया गया है। ग्राम में १९८२-८३ तक उस रियासतकालीन भवन के जर्जर हो चुके अवशेष विद्यमान थे जो एक अर्द्ध किलेनुमा संरचना जैसा दिखाई देता थे। १९८५-८६ में ग्राम के एक भामाशाह जो पटवारी अग्रवाल परिवार के वंशज थे नें उक्त स्थान पर एक विशाल एवं भव्य भवन का निर्माण करवाया जिसमें वर्तमान में राजकीय पटवारी बालिका उच्च प्राथमिक विध्यालय चलता है। इसी भवन के दक्षिण में अभी भी पर्याप्त खुली भूमि वाला चारदीवारी से घिरा हुआ परिसर है जिसमें पुलिस थाना हटाए जानें के बाद से अब तक पुलिस चौकी चल रही है जो पुलिस थाना जसवंत गढ़ से सम्बन्धित है।
  • यह स्थान एक सीमांत तथा सुरक्षित स्थान होनें के साथ साथ एक खालसा श्रेणी का स्थल होनें का कारण तत्कालीन जन समुदायों को स्थायी आवास स्थापित करनें हेतु प्रेरित करनें वाला स्थान बन गया था। ऐसा अनुमान है कि कड़वासरा गौत्रिय जाटों ने सम्भवतया ग्राम राम कि नींव रखी। और एेसा भी मत है कि उन्होंने अपनी जाति के विपरित अर्थी नाम रखा।कड़वा शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है कटु , जिसका विरोधाभासी नाम रखा। इस सम्बन्ध में एक अन्य मान्यता भी प्रचलित है कि इस ग्राम को स्वामी जाति के लोगों नें बसाया था। ग्राम के अधिकाँश क्षेत्रों में किए जानें वाले नवीन भवनों के निर्माण के समय की जानें वाली खुदाई में अक्सर लेटी हुई अवस्था में तो कही बैठी अवस्था में मिलनें वाले मानव कंकालों का समतुल्य काल से सामंजस्य करनें पर प्रतीत होता है कि आज से ६०० से ७०० वर्ष पूर्व जन बस्तियाँ स्थापित हो गई थी। जिससे ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि गोस्वामी समुदाय की पुरी शाखा के लोगों ने भी बहुत पहले रहना शुरु कर दिया था ।(क्योंकि शव को दफनानें कि परंपरा गोस्वामियों के पुरी समुदाय में हि है ।)

कड़वासरा एवं स्वामियों के पश्चात जाखड़ गौत्रीय कुछ जाट कृषक परिवारों नें यहाँ रहना प्रारम्भ किया था। ग्राम्य सामान्य सामाजिक जीवन की प्रमुख जाति जिसनें इस ग्राम को अपनें निवास के लिए चयनित किया वह निश्चित रूप से वणिक थे जिन्हें साधारणतया बनिया कहा जाता है थी। वस्तुत यह सभी हरियाणा क्षेत्र से प्रव्रजन कर क्रमश यहाँ तक पहुँचे अग्रवाल परिवार थे जिनके कई गौत्रों, उपगौत्रों के परिवार यहाँ क्रमश आबाद होते रहे। ग्राम में सार्वजनिक हिताय कई सुविधाएँ उपलब्ध है, विचारणीय तथ्य यह है कि २०१२ में निर्मित हुए भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र के अतिरिक्त अब तक सभी सुविधाओं का निर्माण एवं भौतिक संसाधनों की उपलब्धता ग्राम के अग्रवाल एवं अन्य भामाशाहों के आर्थिक सहयोग से ही सम्भव हो पाई है। वर्तमान में सर्वाधिक आवास मेघवाल परिवारों के है परन्तु वे कब तथा कहाँ से आकर यहाँ बसे इसका कोई प्रमाणिक उल्लेख नहीं मिलता है। ब्राह्मण जाति की कई उप जातियाँ तथा कई गौत्र निवास करते हैं। खण्डेलवाल समाज परिवारों की सर्वाधिक संख्या है जिनका एक पृथक मोहल्ला है। ग्राम में इन्हें गोवळा कहा जाता है। गौड़ समाज ब्राह्मण परिवारों की भी अच्छी खासी संख्या निवास करती है। इनके अलावा जांगिड़,दाधिच, जोशी, रिणवां आदि ब्राह्मण परिवार भी क्रमश यहाँ बसते गए। विश्व ग्राम की परिभाषा को साकार करते हुए कतिपय शिल्प कला से जुड़ी जातियाँ यथा कुम्भकार, स्वर्णकार, चर्मकार, कर्मार, राजगीर इतयादि यहाँ बसते गए तथा उनकी संततियाँ बढ़ती गई। १८२५ में मूलत चौहान राजपूत वंश से धर्म परिवर्तित कर इस्लाम धर्म ग्रहण करनें वाली मुस्लिम जाति कायमखानी के कुछ सदस्यों को यहाँ की भूमि में से ५०० बीघा भूमि बापी के रूप में मिलनें के बाद यहाँ आकर बस गए। यह भूमिदान शेखावाटी के एक सैनिक सरदार को जोधपुर महाराजा नें दिया था। वर्तमान में कायमखानी परिवारों की संख्या १०० से भी अधिक है। इस प्रकार एक विश्राम स्थल समय के साथ साथ विकास करता करता आज एक कस्बे का रूप ले चुका है।

  • ग्राम का नाम मीठड़ी रह जानें के पीछे कतिपय प्रवाद भी प्रचलित है कि कड़वासरा गौत्रिय जाटों ने इसे बसाकर इसका नाम अपनी जाति के विरोधाभासी नाम के रूप में रखा। क्योंकि कड़वा का मतलब है खारा या क्षारिय जिसके उल्ट उन्होंने मिठड़ी नाम रखा जिसका मतलब है मीठा।एक और वाद प्रचलित है जैसे कि शेखावाटी क्षेत्र की बोली जो अपनें उच्चारणीय गुणों के कारण कड़वी किंवा लठ्ठमार बोली मानी जाती है जिस पर हरियाणवीं भाषा का अधिक प्रभाव है, के क्षेत्र से निकल कर लोग जब मारवाड़ क्षेत्र में इस प्रवेश द्वार से प्रवेश करते थे तब यहाँ से मारवाड़ी भाषा का बोलना प्रारम्भ हो जाता था। मारवाड़ी बोली बोलनें में लच्छेदार तथा सुननें में कानों को भानें वाली मानी जाती थी है, हम मीठड़ी से प्रारम्भ कर ज्यों ज्यों पश्चिम में जाते है यह भाषा सतत् मधुर से मधुरतम होती जाती है, अस्तु इस बस्ती का नाम मीठड़ी प्रचलित हो गया। चूँकि इस स्थान से मारवाड़ राज्य एवं मारवाड़ी संस्कृति प्रारम्भ हो जाती थी अस्तु यह ग्राम मारवाड़ मीठड़ी के उपाख्य नाम से प्रसिद्ध हो गया। एक अन्य विचार यह भी है कि यह ग्राम बस्ती के प्रारूप में आनें के पहले यह स्थान मीठे बरसाती पानी की उपलब्धता के कारण प्रसिद्ध था, उस पोखर अथवा नाडी को पीपरनी नाडी कहा जाता था। जब यहाँ प्रारम्भक निवासियों की बस्तियाँ बस गई तब गाँव मीठी नाडी के रूप में जानें जाना लगा। यही नाम धीरे धीरे मीठड़ी नाम में परिवर्तित हो गया। अन्य साक्ष्यों के अनुसार प्रारम्भ से ही वणिक परिवारों का मुख्य निवास स्थान रहा था। जोधपुर राज्य के सायर अर्थात राजस्व थानें की तैनाती यहाँ स्वतंत्रता के समय तक रही थी। वणिक परिवारों के द्वारा पुण्य के निममित कई प्रकार के धार्मिक तथा सामाजिक आयोजन चलते ही रहते थे। वणिक समाज की व्यवस्था के तहत इस ग्राम से होकर निकलनें वाले प्रत्येक यात्री को आवश्यकता अनुसार रात्रि विश्राम सुविधा के अतिरिक्त गुड़ और चनें का चबैना खानें के लिए निशुल्क दिया जाता था, इस कारण क्षेत्र में ग्राम गुड़ मीठड़ी के नाम से भी प्रसिद्ध रहा था तो कई लोग इसे मीठड़ी सेठान भी कहते थे क्योंकि आज से २०० वर्ष पूर्व तक अग्रवाल बनियों की आबादी बहुत ज्यादा हो गयी थी। इन वणिक परिवारों द्वारा बनवाई गयी आवासीय हवेलियाँ आज भी ग्राम के आर्थिक वैभव का ज्ञान करवाती है। ग्राम के वर्तमान आम गुवाड़ जिसे सदर बाजार भी कहा जाता है से गाँव के आन्तरिक भागों में जानें वाली गलियों के दोनों ओर पक्की एवं लम्बोतरी दुकानें थी जो दुकान एवं गोदाम दोनों के रूप में काम आती थी। सुधि वृद्ध जन बताते हैं कि ग्राम ५०० से १०० वर्ष पहले तक मण्डी के रूप में विख्यात रहा था। अब इन कोटड़ीनुमा लम्बी दुकानों की जगह आधुनिक शैली के एक तो कहीं दो - तीन मँजिले भवनों का निर्माण हो चुका है।

भूगोल[संपादित करें]

ग्राम मीठड़ी मारवाड़ की भौगोलिक स्थिति[5]

नागौर जिले का एकमात्र घंटाघर (Clock Tower).सदर बाजार मीठड़ी मारवाड़

नागौर जिले का यह भू भाग राजस्थान की परम्परागत जलवायु वाला क्षेत्र है। अरावली पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में १७२१ मीटर ऊँचे गुरु शिखर से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग ३/५ भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष २/५ भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान थार नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है। सुदूर पश्चिम में वास्तविक मरुस्थल, बंजर भूमि व रेत के टीलों के क्षेत्र हैं, जो विशाल भारतीय रेगिस्तान की हृदयस्थली का निर्माण करते हैं इस भाग में जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, झुंझुनू, सीकर, पाली व नागौर जिलों का संम्पूर्ण क्षेत्र परिगणित होता है। इन सभी ज़िलों में विस्तारित पश्चिमोत्तर के रेतीले मैदानों में मुख्यत: लवणीय या क्षारीय मिट्टी पाई जाती है। पानी दुर्लभ है, लेकिन ३०-६० मीटर की गहराई पर मिल जाता है। विडमबना है कि ग्राम मीठड़ी का भूमिगत जल यह क्षेत्र भी अति क्षारीय होनें से पूर्णतया अनुपयोगी है। राजस्थान की जलवायु विविधता लिए हुए है, एक ओर अति शुष्क तो दूसरी ओर आर्द्र क्षेत्र हैं। आर्द्र क्षेत्रों में दक्षिण-पूर्व व पू र्वी ज़िले आते हैं। अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापमान, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं से युक्त शुष्क जलवायु है। मीठड़ी मारवाड़ का क्षेत्र थार रेगिस्तान के मध्य पश्चिमी क्षेत्र में परिगणित होता है। इसे हम अर्द्ध शुष्कीय जलवायु क्षेत्र मान सकते हैं जहाँ ग्रीष्म ऋतु में तापमान बहुत ऊँचा चला जाता है जिसके कारण ग्रीष्म काल में दिन के समय भयंकर लू चलती है वहीं प्राय रात्रि को भी तापमान कोई ज्यादा राहत देनें वाला नहीं होता है। सर्दियों में हाड़ कँपा देनें वाली सर्दी में उत्तरी हवाओं के चलनें के कारण कई बार सामान्य जन जीवन प्रभावित हो जाता है। वर्षा ऋतु पूर्णतया मानसूनी हवाओं पर निर्भर है, प्राय २५ जून को मानसून का आगमन माना जाता है, जिसका दूसरा चरण १५ अगस्त से प्रारम्भ माना जाता है। उपज के आधार पर देखा जाए तो इस क्षेत्र की भूमि कोई अधिक उर्वरा शक्ति वाली नहीं है। कृषि कार्य पूर्णतया वर्षा पर निर्भर करता है, सिंचाई के किसी भी वैकल्पिक साधन का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि यहाँ का भूमिजल अत्याधिक भारी एवम क्षारीय है जो न तो कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त है न हीं पेयजल के रूप में काम आता है। थार तुल्य वनस्पति क्षेत्र होनें के कारण वन क्षेत्र अति विरल है। खेजड़ी, रोयड़ा, कंकेड़ा, केर, खैर, बबूल के अतिरिक्त नीम, पीपल, बरगद, शीशम, सरेस आदि वृक्ष पाए जाते हैं। बेर, खींप, सीणिया, धमासा, ईनोट, सरकंडा जैसे झाड़ी वर्ग के पादप इस क्षेत्र में होते हैं। वर्षा पर आधारित कृषि से किसान वर्ग यहाँ मुख्यत बाजरा, ग्वार, मोठ, मूँग के साथ उड़द जैसी फसलों की खेती करते हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति तृतीय स्तर की होनें के कारण प्रति बीघा अनाज का उत्पादन सामान्यतया कम होता है। ग्राम में अधिकाँश खेत लघु जोत वाले हैं। मीठड़ी ग्राम बसावट की दृष्टि से पूर्व से पश्चिम दिशा में लम्बोतरा सा होता गया है। उत्तर से दक्षिण दिशा में ग्राम का विस्तार अपेक्षाकृत कम है। आबादी के अलावा ग्राम की कृषि भूमि, पड़ती जमीन का कोई ज्यादा विशाल क्षेत्र ग्राम के कुल क्षेत्रफल में नहीं आता है जनसंख्या २००१ के आँकड़ों के अनुसार ग्राम का कुल भूनि क्षेत्रफल १०५५ हैक्टर (area of village (in hectares) १०५५) है। ग्राम में आबाद परिवारों की संख्या ७८२ है जबकि निवासियों का एक विशाल भाग वर्तमान में अन्यत्र रहता है। इसी भूमि क्षेत्र में कई भूभाग एसे भी है जो राजस्व विभाग किंवा ग्राम पंचायत की भूमि मानी जाती है। पश्चिमी दिशा में लगभग १.५० किमी की दूरी पर सिथित औरण भूमि का नाम रिद्धी तळाई हकहलाता है। ग्राम की पूर्वी दिशा में आकाणी नामक औरण जमीन है। ग्राम के उत्तर में १५० किमी की दूरी पर पीह तळाई का छोटा औरण क्षेत्र है वहीं ग्राम के दक्षिण में स्थित औरण भूमि को रूपाणी तळाई के नाम से जाना जाता है जिसमें मुस्लिम समुदाय की सभी जातियों का कब्रिस्तान १२ बीघा क्षेत्र मे है। गाँव की उत्तरी सीमा से लगी एक औरण जमीन है जहाँ सर्व समाज का श्मशान है। जनगणना २००१ में परिवारों की कुल संख्या ४८१ (Number of households 481) थी जो २ ०१० तक परिवारों की संख्या ७८२ हो गई है।। ग्राम की पूर्वी दिशा में ५०० बीघा चारागाह सुरक्षित क्षेत्र है। राजस्थान के विभिन्न मुख्य नगरों से दूरी निम्नानुसार है -

  1. जयपुर - १६९ किलोमीटर
  2. जोधपुर - २६२ किलोमीटर
  3. सीकर - ०५३ किलोमीटर
  4. जिला मुख्यालय नागौर - १२० किलोमीटर
  5. समीपस्थ रेलवे स्टेशन - डीडवाना - २४ किलोमीटर
  6. समीपस्थ हवाई अड्डा - सांगानेर जयपुर - १८३ किमी
  7. अजमेर - १७८ किलोमीटर
  8. सालासर - २२ किमी।

मीठड़ी मारवाड़ ग्राम अपनी विशिष्ठ भौगोलिक स्थिति के कारण नागौर जिले के इस २० - २५ ग्रामों से बनें एक पृथक ग्रामीण वृत्त का केन्द्रीय ग्राम है। यह राज्य महा मार्ग संख्या ६० पर डीडवाना से लगभग २४ किमी ईशान दिशा में वहीं सालासर धाम से ठीक २१ किमी वायव्य दिक्कोण में स्थित है। यह राज्य महा मार्ग सालासर बालाजी धाम को तीर्थराज पुष्कर से जोड़ता है। इसके अतिरिक्त पूर्ब दिशा में हुसैनपुरा एवं हुसैनपुरा की ढाणी ग्रामों से होकर एक पक्की लिंक सड़क नेछवा (जिला-सीकर) तक बनी हुई है जो ग्राम को राज्य महा मार्ग संख्या ७ से जोड़ती है। यह मार्ग सालासर धाम से सीकर तक जाता है, जहाँ से जयपुर, चुरू तथा झुन्झुनू को राष्ट्रीय महामार्ग संख्या ११ एवं ६५ को सड़कें जाती है। ग्राम से एक पक्की सड़क जसवंत गढ होते हुए सुजानगढ एवं लाडनूं को ग्राम से जोड़ती है। वहीं समीपस्थ ग्राम पंचायतों फिरवासी, लाछड़ी तथा ध्यावा तक भी पक्की सड़कों के कारण आवागमन सुगम एवं सुलभ है।

प्रशासन[संपादित करें]

मीठड़ी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र नागौर के अन्तर्गत आनें वाला ग्राम है। १३ वीं लोकसभा के चुनावों से पूर्व लाडनूं तहसील का सम्पूर्ण क्षेत्र चुरू लोकसभा क्षेत्र में सम्मिलित होता था, परन्तु चुनाव पूर्व हुए नए परिसीमन में यह क्षेत्र अपनें गृह जिले नागौर में सम्मिलित कर दिया गया था। वर्तमान में श्री हनुमान बेनिवाल यहाँ के निर्वाचित साँसद है। राजस्थान राज्य की विधान सभा के निमित्त यह लाडनूं विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। 15 वीं राजस्थान विधान सभा चुनावों के द्वारा श्रीमान् मुकेश भाकर यहाँ के विधायक चयनित हुए हैं। भारत में स्थापित त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम मीठड़ी सबसे निचले स्तर का निकाय अर्थात ग्राम पंचायत मुख्यालय है। मीठड़ी ग्राम पंचायत के अन्तर्गत मीठड़ी ग्राम के साथ पूर्वोत्तर दिशा में अवस्थित ग्राम तिलोटी (दूरी ४ किलोमीटर) तथा पश्चिम दिशा में लगभग २ किलोमीटर की दूरी पर बसी दो ढाणियाँ - रेवाड़ा का बास तथा डोबरा का बास भी सम्मिलित है। सम्पूर्ण ग्राम पंचायत १२ वार्डों में विभक्त है। ग्राम पंचायत के मुखिया का पदनाम ग्राम सरपंच है। श्रीमती लक्ष्मी देवी बाजारी वर्तमान में ग्राम की सरपंच है। सभी वार्डों के वार्ड पंचों का चुनाव स्वतंत्र रूप से सरपंच पद के साथ होता है। वार्डपंचों में से सर्व सम्मति से अथवा चुनाव से उप सरपंच का चयन होता है। इसके अतिरिक्त सरकारी प्रशासन के तौर पर ग्राम पंचायत स्तर के दो कर्मचारी कार्य करते हैं - प्रथम पटवारी जो तहसील स्तर के अधिकारी तहसीलदार का ग्राम प्रतिनिधि कार्मिक होता है तथा ग्राम सचिव या ग्राम सेवक जो तहसील स्तर के अधिकारी विकास अधिकारी का प्रतिनिधि होता है। अब एक अन्य पद का सृजन और किया गया है जिसका पद नाम ग्राम सहायक है जो ग्राम सचिव के सहायक के तौर पर कार्य करता है। पटवारी मूलत ग्राम की आबादी भूमि, कृषि भूमि, चारागाह भूमि, अंगोर भूमि के साथ साथ ग्राम की कुल भूमि जिसे स्थानीय भाषा में काँकड़ कहा जाता है, का संपूर्ण लेखा जोखा रखता है। ग्राम सेवक सरकारी योजनाओं को ग्राम पंचायत के सहयोग से क्रियान्वित करता है, साथ ही वह ग्राम का जन्म मृत्यु रजिस्ट्रार भी होता है। ग्राम मीठड़ी मारवाड़[6] में सदर बाजार में ही मौजी दास जी की धूणी के पीछे पटवार कार्यालय है तथा डीडवाना रोड़ पर अस्पताल के आगे ग्राम पंचायत कार्यालय है जहाँ ग्राम सेवक का कार्यालय है। राजस्थान राज्य राजस्व विभाग नें लाडनूं तहसील के सम्पूर्ण ग्राम्य क्षेत्र को तीन राजस्व क्षेत्रों में विभाजित कर रखा है। यह तीन क्षेत्र हैं १. निम्बी जोधान २. जसवंतगढ़ तथा ३. मीठड़ी। प्रत्येक राजस्व खण्ड को राजस्व वृत्त कहा जाता है तथा प्रत्येक वृत्त में मुख्यालय के आस पास के कई गाँव, ढ़ाणियाँ सम्मलित होती है। राजस्व वृत्त (revenue circle) मीठड़ी के अन्तर्गत आनें वाले गाँवों की संख्या .... है। राजस्व वृत्त क्षेत्र का अधिकारी राजस्व निरीक्षक (revenue inspector) कहलाता है। वर्ष २०१२ में राजस्थान सरकार की नवीन योजना - भारत निर्माण योजना के अन्तर्गत भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र की स्थापना नव निर्मित भवन में की गई है जो ग्राम जनों के लिए एक बहुउदेश्शीय सेवा स्थल के रूप में काम कर रहा है। वर्तमान में राजस्व निरीक्षक तथा ग्राम सचिव का कार्यालय यही भवन है।

ग्राम परिवेश[संपादित करें]

सन् १९२९ में जोधपुर राज्य सरकार द्वारा स्थापित प्रथम पाठशाला

ग्राम मीठड़ी मारवाड़ परंपरागत भारतीय गंगा जमुनी संस्कृति को अपनें आप में समाहित कर एक प्रतिमान बन जानें वाला ग्राम है। ग्राम की जनसंख्या के वर्तमान आँकड़े चाहे कोई भी नवीन तथ्य प्रदर्शित करें परन्तु यह सत्य बात है कि इस ग्राम का क्षेत्र में विशिष्ठ महत्त्व होनें का मुख्य कारण ग्राम में वणिक परिवारों की आबादी का सर्वाधिक होना था जो आज भी है। मीठड़ी में विभिन्न गौत्रीय अग्रवाल परिवारों का विशाल जन समुदाय निवास करता था। इन परिवारों में से अधिकाँश आज अपनें व्यापार वाणिज्य के निमित्त मुम्बई, कोलकाता, असम प्रांत के कतिपय नगरों, हैदराबाद (दक्षिण), सूरत, परभनी, जुठलीबाड़ी (आसाम),दीमापुर (नागालैंड), चटगाँव (बांग्ला देश) तथा इदौर आदि क्षेत्रों या नगरों में प्रवासी हो चुके हैं तथापि इन परिवारों के निवास स्थल, अचल सम्पत्तियाँ, उनके द्वारा जन हितार्थ करवाए गए निर्माणों का सतत उपयोग यह दर्शित करता है कि अग्रवाल परिवार भी स्वामी परिवारों की भाँति ग्राम के प्रारम्भिक निवासियों में थे। यदि हम अग्रवाल परिवारों में से सर्वाधिक पारिवारिक विस्तार वाले मानावत परिवार की वंशावली का अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि लगभग ७०० वर्ष पूर्व नारनोल से प्रव्रजन कर मीठड़ी में आकर बसनें वाले प्रथम अग्रवाल परिवार के मुखिया श्री बद्री नारायण मानावत थे जो मूलत बंसल गौत्रीय एवम मानावत उपगौत्र शाखा से सम्बन्धित थे। मानावतों के ही एक वंशज श्री हरजी राम मानावत को जोधपुर महाराजा की ओर से ग्राम के राजस्व अधिकारी का पद पटवारी मिला था, उनकी संतति बाद में पटवारी उपनाम या सह-गौत्रीय नाम से प्रसिद्ध हो गई। ग्राम के भौतिक विकास में इन दोनों परिवारों का योगदान अविस्मरणीय है। अग्रवाल परिवारों में अन्य है बाजारी, भड़ेच, कन्दोई, गाड़ोदिया, झुरिया इत्यादि। ग्राम का पूर्वी आबादी क्षेत्र दो रास्तों के इर्द गिर्द बसा हुआ है, प्रथम रास्ता सीकर जिले के नेछवा ग्राम को जाता है वहीं दुसरा मार्ग ग्राम फिरवासी की ओर जाता है, इन दोनों रास्तों के आस पास मेघवाल समुदाय की बस्तियाँ है। यहाँ निवास करनें वाले प्रमुख मेघवाल आलड़िया, रोळण, राठी, भाटी आदि उपगोत्रों से सम्बन्धित है। यह सभी परिवार अनुसूचित जाति वर्ग में परिगणित होते हैं। इसी वर्ग की कतिपय अन्य जातियों के परिवार भी यहाँ निवास करते हैं यथा नाईक, हरिजन, गिंवारिया, नट, साँसी आदि। अनुसूचित जन जाति वर्ग में परिगणित मीणा जाति के परिवारों के भी ग्राम में आवास हैं।

चित्र:शिव मन्दिर, सदर बाजार, मीठड़ी मारवाड़.gif
ग्राम का 80 वर्ष पुराना शिव मन्दिर।

ग्राम में इस्लाम धर्म के अनुयायी कायमखानी परिवारों की अचछी जनसंख्या निवास करती है। कायमखानियों के अतिरिक्त मुस्लिम छींपा तथा मुस्लिम मनियार अथवा लखारों के भी परिवार यहाँ निवास करते है। ग्राम के सदर बाजार से पश्चिम में बहुत सुन्दर वास्तु कला का उदाहरण देती विशालकाय मस्जिद दिखाई देती है, इसके पीछे ही मुस्लिम बस्ती है जिसे आमतौर पर कायमखानियों का मोहल्ला अथवा कायमखानी कोटड़ी कहा जाता है। अप्रत्याशित रूप से ग्राम में राजपूत जाति के कुछ ही परिवार निवास करते हैं जो सथी शेखावत गौत्र के हैं। जाट कृषक परिवारों के भी अपेक्षाकृत कम परिवार निवास करते हैं। इनमें ग्राम के प्रथम निवासियों में सम्मिलित कड़वासरा गौत्र के अलावा जाखड़, सोऊ, चाहर तथा बेन्दा गौत्रीय कतिपय परिवार निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त मिरासी, ढाढी, नट तथा साँसी जाति के परिवार भी रहते हैं। ग्राम में ब्राह्मण जाति की खण्डेलवाल शाखा के काफी परिवार निवास करते हैं। गाँव में इन्हें साधारणतया गोवळा,रिणवा,चोटिया तथा जोशी कहा जाता है तथा इनका एक पृथक मोहल्ला है। गौड़ गौत्रीय परिवारों की भी अच्छी खासी संख्या है इसके अतिरिक्त जांगिड़,दाधिच,ब्राह्मण परिवार भी निवास करते हैं। दो तीन डाकौत परिवार भी रहते हैं। यहाँ बसे हुए सभी कायमखानी परिवार ईब्राहीमखानी उप गौत्रीय खाँप के है जिनका सम्बन्ध फतेहपुर के कायमखानी[7] नबाब अल़फ़ खान से है। यहाँ आकर बसे कायमखानियों का प्रमाणिक इतिहास है। शिल्प कर्म से जुड़ी कई जातियाँ ग्राम में निवास करती है, जिनमें कुम्हार, स्वर्णकार इत्यादि प्रमुख है। जिनके काफी परिवार यहाँ आबाद है। श्री धीरा राम जाँगिड़ ग्राम के सरपंच भी रहे हैं साथ ही उनकी गणना गाँव के भामाशाहों में होती है। इन्होनें राजकीय उच्च माध्यमिक विध्यालय में एक विशाल कक्षा कक्ष का निर्माण करवा कर 2005 में जनता जनार्दन की सेवा में भेंट किया था। कुम्हारों के परिवारों की संख्या भी काफी है परन्तु वर्तमान में सभी कुम्हार जाति के लोग अपनें परम्परागत कार्य को छोड़ कर अन्य व्यवसाओं से आजीविका जुटाते हैं। ग्राम में सभी धर्मावलम्बी एवं विभिन्न जातियों के निवासी गहरी धार्मिक सद्भावना के साथ मिल जुल कर रहते हैं। त्योंहारों, सामाजिक उत्सवों, विवाह आयोजनों में परस्पर खाना पीना, एक दूसरे के सुख दुख में भागी बननें की सभी की सहभागिता अनुकरणीय है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आम गुवाड़ अथवा सदर बाजार स्थित मौजी दास जी की धूणी जो एक पुरानें एवं विशालकाय बरगद के नीचे बनी हुई है। बरगद के नीचे तथा धूणी स्थल के आगे वृत्ताकार गट्टा बना हुआ है जिस पर दिन भर ग्राम के वृद्ध जनों की बैठकें लगी रहती है, वे अपनें पुरानें अनुभव सुनाते रहते हैं, नई पीढ़ी के युवजन तथा बालक उनसे जीवन जीनें की सीख लेते रहते हैं। इस प्रकार की वार्ताओं को बत कहनी अथवा हथाई कहा जाता है। गर्मी के दिनों में यह परिसर लोगों से अटा रहता है। एक दो मण्डलियों में ताश की बाजियाँ तो कई दल चौपड़ पासा, चरबर जैसे माईंड इंप्रुविंग खेलों की बिसात बिछाते हैं।

सांगलिया पीठ के अधीन ग्राम मीठड़ी मारवाड़ में स्थापित धूणी, जो मौजी दास जी की धूणी के नाम से प्रसिद्ध है। यह हिन्दू मुस्लिम दोनों ही धर्मों के ग्राम जनों का श्रद्धा का केन्द्र है।

सार्वजनिक सुविधाएँ[संपादित करें]

ग्राम प्रारम्भ से ही वणिक जनों की जन्म भूमि एवं कर्म भूमि रहा था अस्तु सार्वजनिक सुविधाओं की उपलब्धता की दृष्टि से सदैव सौभाग्यशाली रहा है। एक नगर स्तर की सभी सुविधाओं से ग्राम लाभान्वित रहा है।

शैक्षणिक सुविधाएँ

शिक्षा के प्रति ग्राम जनों की जागरूकता का प्रतीक है यहाँ का राजकीय सीनियर सैकण्डरी विध्यालय, जो स्वतंत्रता के पूर्व उस समय प्राथमिक पाठशाला के रूप में स्थापित हुआ था जब वर्तमान समीपस्थ शहरों यथा डीडवाना, जसवंत गढ़, लाडनूं, सुजानगढ़ में कोई भी तथा किसी भी स्तर का राजकीय शिक्षणालय नहीं था। माननीय जोधपुर महाराजा के आदेशों से १९२९ में सतही तौर पर एवं १९३१-१९३२ सत्र से औपचारिक रूप से विध्यालय की स्थापना हुई जिसका तात्कालीन नाम श्री दरबार हिन्दी लोअर प्राईमरी पाठशाला था। पाठशाला का प्रथम वैधानिक सत्र दो कक्षाओं - प्रथम एवं द्वितीय से प्रारम्भ हुआ था जिनकी कुल छात्र संख्या ४३ थी। पाठशाला का प्रबंधन जिला शिक्षणालय नागौर के अधीन था। यहाँ नियुक्त प्रथम अध्यापक श्री मेघराज शर्मा थे। विध्यालय के लिए एक विशाल सुदृढ़ भवन ग्राम के भामाशाह श्री जीवन राम जैसराज गाड़ोदिया नें जनहित में दान दिया। १९५१ में विध्यालय एक नए विशाल, सुंदर तथा भव्य भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया जिसका निर्माण भामाशाह फर्म श्रीमान् राम दयाल घासी राम बद्रुका हैदराबाद दक्षिण निवासी नें करवाया था। इसी सत्र १९५१-५२ में विध्यालय उच्च प्राथमिक स्तर में क्रमोन्नत हुआ। पुराना भवन विध्यालय से जुड़े हुआ छात्रावास में परिवर्तित कर दिया गया जो आज भी जीवन छात्रावास के नाम से विध्यालय से सम्बन्धित अवयव है। १९६६ में राज्य सरकार नें विध्यालय को माध्यमिक स्तर में क्रमोन्नत कर दिया जो उस समय लगभग २० किलोमीटर की परिधि में एक मात्र माध्यमिक विध्यालय था। कई दूरस्थ गाँवों के छात्र यहाँ की छात्रावास सुविधा का लाभ उठा कर अध्ययन करते थे। प्राथमिक कक्षाओं को गाँव के मध्य स्थित एक अन्य भवन में स्थानान्तरित कर दी गयी जिसे राजकीय पटवारी प्राथमिक पाठशाला के रूप में जाना जाता है। माध्यमिक विध्यालय में ग्राम के अन्य अग्रवाल भामशाह परिवारों यथा पटवारी, बाजारी, भड़ेच, कन्दोई आदि नें नवीन कक्षों का निर्माण करवा कर विध्यालय को भौतिक संसाधनों से समृद्ध कर दिया। १९९५ में राज्य सरकार नें इसे सीनियर सैकण्डरी विध्यालय का स्तर प्रदान कर दिया तथा दो वैकल्पिक विषयों मानविकी तथा वाणिज्य संकाय का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। यह विध्यालय राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का परीक्षा केन्द्र भी है। वर्तमान में विध्यालय में कक्षा नवीं से बारहवीं तक अध्ययन होता है। ग्राम में राजकीय स्तर पर शिक्षा प्रदान करनें वाली संस्थाओं की सूची निम्न है -

  1. राजकीय सीनियर सैकंडरी विध्यालय।सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref> टैग;

(संभवतः कई) अमान्य नाम

  1. राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय (क्रमोन्नति - अगस्त २०१३)।
  2. राजकीय बाजारी उच्च प्राथमिक विद्यालय।
  3. राजकीय पटवारी प्राथमिक विद्यालय नं.१।
  4. राजकीय प्राथमिक विद्यालय नं. २, ईन्दिरा कॉलोनी।
  5. मदरसा दारूल उलूम, कायमखानी मोहल्ला।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ :

१९५१ में स्थापित "राष्ट्रीय औषधालय" जो वर्तमान में (२०१३) में राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में क्रमोन्नत हो चुका है।

ग्राम में सन् १९५१ में स्थापित राष्ट्रीय औषधालय है जिसे १९६१-६२ में राजकीय प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में मान्यता मिल गई थी। वर्तमान वित्त वर्ष में २०१२-२०१३ में राज्य सरकार नें इसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में क्रमोन्नत कर दिया है।

जल प्रबंधन : एक मरूस्थलीय अथवा अर्द्ध मरूस्थलीय ग्रामीण परिवेश में जल की सुगम एवं पर्याप्त प्राप्ति सर्वाधिक महत्तवपूर्ण आवश्यकता है। ग्राम की भूमि उस भूपटी का एक भाग है जो फतेहपुर से डीडवाना तक संकरे स्वरूप में फैली हुई है। डीडवाना क्षेत्र लवणीय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। ग्राम की समस्त भूमि में अत्याधिक लवणता तथा फ्लोराईड की उपस्थिति के कारण जहाँ कृषि कार्यों के लिए नितांत प्रतिकूल तो है ही इसके अतिरिक्त न तो पेयजल के योग्य है न ही नहाने धोनें के। अस्तु पेयजल एवं प्रक्षालन आदि कार्यों के लिए मीठे जल की पूर्ति एक गम्भीर समस्या रही है। ग्राम के आबादी क्षेत्र एवं खेतों में कतिपय कुँओं का निर्माण जन हितार्थ कई वणिक परिवारों नें करवाया था परन्तु किसी स्रोत से मीठे जल की प्राप्ति नहीं हुई। १९८० से पूर्व तक पेयजल की आपू्र्ति गहन समस्या रही थी। ग्राम के लगभग प्रत्येक परिवार के आवास में गहरा जलकुण्ड बनानें की परम्परा पुरानें समय से ही रही है जिसमें बरसात के पानी को संग्रहित रख कर पेयजल के रूप में वर्ष भर प्रयोग में लिया जाता था तथा यह व्ववस्था आज भी ग्राम के प्रत्येक परिवार द्वारा अपनायी जाती है। ग्राम में पेयजल की आपूर्ति हेतु राजकीय स्तर पर प्रबन्ध १९८० से प्रारम्भ हुए जब झिलमिल गाँव (तहसील-लक्ष्मण गढ़, जिला-सीकर) में नलकूपों का जल समीपस्थ गाँव फिरवासी तक वहाँ बनें उच्च जलाशय के माध्यम से मीठड़ी तक पहुँचाया गया। प्रारम्भ में व्यवस्था ठीक रही परन्तु अन्य गाँवों को भी इस लाईन से जोड़े जानें के बाद धीरे धीरे जल आपूर्ति अपर्याप्त हो गई। इस स्थिति में सुधार सन् १९९७ में आया जब गाँव के भामाशाह बाजारी परिवार नें आर्थिक सहयोग देकर मीठड़ी की श्मशान भूमि के दक्षिणी छोर पर उच्च जलाशय निर्मित हुआ तथा नेछवा ग्राम (तहसील-लक्ष्मण गढ़, जिला-सीकर) में नए नलकूप खोद कर नई पाईप लाईन डाली गई। इसके पश्चात एक अन्य उच्च जलाशय का निर्माण भी हुआ। ग्राम में जलदाय विभाग का कार्यालय स्थापित किया गया जहाँ कनिष्ठ अभियन्ता अन्य कार्मिकों के साथ गाँव की जल वितरण व्यवस्था को सम्भालता है। गाँव का लगभग प्रत्येक आवास जलदाय विभाग की जल वितरण प्रणाली से जुड़ा हुआ है।

भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र :

भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र ग्राम पंचायत - मीठड़ी मारवाड़

राजस्थान राज्य की जनता एवम सरकार के मध्य सम्बन्धों को समीपता परदान करनें तथा राजकीय कामों में पारदर्शिता लानें के उदे्दश्य के साथ राज्य के मुख्यमंत्री श्रीमान् अशोक गहलोत नें जोधपुर में राजीव गांधी भारत निर्माण सेवा केन्द्र की आधारशिला रख कर भारत निर्माण योजना को साकार किया। मुख्यमंत्री नें ५ अगस्त २०१२ रविवार को प्रात: जोधपुर जिला कलेक्ट्रेट परिसर में राजीव गांधी भारत निर्माण सेवा केन्द्र की आधारशिला रखी और शिलान्यास कर एक महत्ती योजना का श्री गणेश किया। यह योजना भारत निर्माण के लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार की इस प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सरकार के कार्यक्रमों व योजनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा आम आदमी को लाभ पहुँचानें के लिए यह योजना एक कारगर उपागम सिद्ध हो सकती है। यह योजना जनप्रतिनिधि, अधिकारी वर्ग के साथ आम आदमी तीनों मिलकर समन्वय तथा सामंजस्य बनाकर कार्य करें, के मूल मंत्र पर आधारित है। योजना से राज्य में अब गांव-गांव और ढाणी-ढाणी के व्यक्तियों को भी सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार के साधन और शहरों के समान सुविधाएं उपलब्ध होने लगी है। यह अधिनियम देश में प्रथम बार राजस्थान में लागू किया गया है जिसके तहत आम जनता को उसके निवास स्थान के नजदीक सुनवाई का अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। जनता के समय पर कार्य हों, अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखें। इसी योजना के तहत मीठड़ी गाँव में भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्रभारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र<[4] Archived 2018-03-12 at the वेबैक मशीन का निर्माण राजकीय सीनियर सैकण्डरी विध्यालय के सामनें, डीडवाना रोड़ के पश्चिमी पार्श्व में हुआ। नव निर्मित भवन में कार्यालय (चैम्बर), प्रतीक्षा कक्ष एवं निजी सहायक का कमरा, बड़ा प्रतीक्षा हॉल, एकल खिड़की, सुगम एवं शिकायत कक्ष तथा सामान्य शौचालय की सुविधाएँ है। केन्द्र को बहु उपयोगी तथा बहु उद्देशीय स्वरूप देनें के लिए ऑन लाईन व्यवस्था हेतु ब्रॉड बैण्ड इन्टरनेट से जोड़ा गया है तथा एक कम्प्यूटर ऑपरेटर को नियुक्त किया गया है। इस केन्द्र का उदघाटन कृषि मंत्री जो स्थानीय विधायक भी है श्रीमान् हरजी राम बुरड़क के कर कमलों से हुआ।

राजकीय पशु चिकित्सालय मीठड़ी : मीठड़ी की पूर्व दिशा में सदर बाजार से लगभग १५ किमी की दूरी सार्वजनिक गौचर भूमि का ५०० बीघा क्षेत्र है। इस गौचर क्षेत्र की स्थापना हैदराबाद दक्षिण प्रवासी मानावत जिन्हें श्री बद्री नारायण जी की संतति होनें के कारण बद्रुका उपाख्य नाम से जाना जा था के वंशज युग पुरूष राजा साहिब बंकट लाल बद्रुका के नेतृत्तव में सम्पन्न हुई थी। अब ग्राम की आवासीय बस्तियाँ यहाँ तक पहुँच गई है जिसे समग्र रूप से इन्दिरा कॉलोनी के नाम से जाना जाता है। गौचर भूमि के प्रारम्भ में ही राजकीय पटवारी पशु चिकित्सालय का भवन तथा विशाल परिसर स्थित है। आस पास के १५ से २० गाँवों के लिए पशुओं की चिकित्सा का एक मात्र अस्पताल है। वर्तमान वित्त वर्ष २०१२ - १३ में राज्य सरकार नें पशुओं के लिए निशुल्क दवाईयाँ प्रदान करनें की योजना नें इस अस्पताल को बहु उद्देश्यीय बना दिया है।

श्री भड़ेच भवन :

बैकिंग सुविधाएँ :

ग्राम बैंकिग सुविधा की दृष्टि से ज्यादा लाभान्वित नहीं है। यध्यपि ग्राम में १० से अधिक केन्द्र एवं राज्य सरकार के उपक्रम है साथ ही आस पास के लगभग १५ - १६ गाँव भी प्राथमिक सुविधाओं के लिए इसी ग्राम पर निर्भर है। साथ ही कम से कम २५० पेंशनर्स जिनमें अधिकाँश रिटायर्ड सैनिक हैं यहाँ रहते हैं परनतु अभी तक कोई राष्ट्रीयकृत बैंक की शाखा प्रारम्भ न होना विचारणीय तथ्य है। क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करनें वाली एक बैंक जयपुर थार ग्रामीण बैंक की शाखा अवश्य १९८४ से यहाँ कार्यरत है परन्तु इस बैंक का कार्य क्षेत्र सीमित है। ग्राम में एक सहकारी बैंक भी है परन्तु उसका कार्यक्षेत्र ग्राम में सहकारी स्तर तक ही है। ग्राम में किसी राष्ट्रीयकृत बैंक की शाखा की स्थापना होना प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। एक्सिस बैंक का एटीएम भी हैं। ग्राम जन वर्तमान में बैंकिग सुविधा के लिए डीडवाना, लाडनूं, गनेड़ी अथवा सुजानगढ़ जाते हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ के साथ ही इस बैंक का नाम परिवर्तित हो गया है, अब इसे मरूधरा ग्रामीण बैंक के नाम से जाना जाएगा।

जल निकास प्रणाली :

भारतीय आदि सभ्यता सिन्धु नदी घाटी सभ्यता में नगर स्थापना पूर्व नियोजित होती थी जिसकी आधार पीठिका सड़कों को सामानान्तर रूप से काटता जाल होता था।। ग्राम मीठड़ी की बसावट यध्यपि उस पुरातन नगर नियोजन की भाँति तो कतई नहीं है परनतु जैसा की उपर कई बार उल्लेख किया जा चुका है कि अग्रवाल जनों की निवास स्थली होनें का प्रतिफल सदैव ग्राम हित में होता रहा है। ग्राम की मुख्य बस्ती जहाँ आबाद हुई वह वास्तव में भूमि का अधोतल थी। बरसात के पानी का आम गुवाड़ में होना सामान्य बात थी जो जनसंख्या एवं आवासों के बढ़नें से धीरे धीरे गम्भीर समस्या बनना शुरू हो गई। इस समस्या का समाधान 1957 में ग्राम के भड़ेच परिवार की वंशावली में ग्राम राम की सेवार्थ ही जन्म लेनें वाले युग पुरूष महामना बंशीधर जी भड़ेच के द्वारा हुआ। श्रीमान् नें संपूर्ण खर्चा स्वयं वहन कर आम गुवाड़ से लेकर लगभग ५०० मीटर दूरी लम्बे तथा ६ फीट गहराई वाले नाले का निर्माण करवाया। नाले की समाप्ति जहाँ होती है वहाँ लम्बी चौड़ी गहरी तलैया भी उन्होनें ही खुदवाई। आज ६० वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत होनें के बाद भी यह नाला ज्यों का त्यों है साथ ही बह तलैया भी विध्यमान है जिसे आजकल गेनाणी कहा जाता है। वर्तमान में ग्राम पंचायत नें गाँव की प्रत्येक गली और रास्तों के दोनों ओर कहीं खुली तो कहीं बंद नालियों का पक्का निर्माण करवा कर उन्हें उक्त पुरानें नाले से जोड़ दिया है। आज गाँव के आम गुवाड़ तथा किसी भी मोहल्ले में बरसाती पानी एवं कीचड़ इत्यादि नहीं रहता है। पर एक नवीन समस्या अवश्य खड़ी हुई है, जिस गेनाणी का निर्माण कभी गाँव की आबादी से काफी दूर माना गया था वह आज कायमखानियों के मोहल्ले के लगभग मध्य में आ गई है, जिससे समीपस्थ आवासों के निवासियों का वर्षा काल (चौमासा) में रहना दूभर हो जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ध्रुवीय निर्देशांक मीठड़ी मारवाड़<[http://www.openstreetmap.org/?lat=27.57459&lon=74.68969&zoom=15>
  2. जनगणना 2001 मीठड़ी मारवाड़<[1] Archived 2013-10-07 at the वेबैक मशीन
  3. "Pin code search option, भारत Post". मूल से 20 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-02-10. नामालूम प्राचल |publisher Beedsar= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. https://web.archive.org/web/20130131060917/http://www.fallingrain.com/world/IN/24/Mitri.htmlमीठड़ी मारवाड़
  5. http://goo.gl/maps/GKRcB
  6. मीठड़ी मारवाड़>http://www.meetharimarwar.blogspot.in Archived 2015-06-10 at the वेबैक मशीन
  7. कायमखानी<[2][मृत कड़ियाँ]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

ग्राम स्थिति[संपादित करें]

[[श्रेणी:नागौर जिले के गा�</ref> https://web.archive.org/web/20190413121513/http://meetharischool.blogspot.com/></ref>

  1. राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय (क्रमोन्नति - अगस्त २०१३)।
  2. राजकीय बाजारी उच्च प्राथमिक विद्यालय।
  3. राजकीय पटवारी प्राथमिक विद्यालय नं.१।
  4. राजकीय प्राथमिक विद्यालय नं. २, ईन्दिरा कॉलोनी।
  5. मदरसा दारूल उलूम, कायमखानी मोहल्ला।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ :

१९५१ में स्थापित "राष्ट्रीय औषधालय" जो वर्तमान में (२०१३) में राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में क्रमोन्नत हो चुका है।

ग्राम में सन् १९५१ में स्थापित राष्ट्रीय औषधालय है जिसे १९६१-६२ में राजकीय प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में मान्यता मिल गई थी। वर्तमान वित्त वर्ष में २०१२-२०१३ में राज्य सरकार नें इसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में क्रमोन्नत कर दिया है।

जल प्रबंधन : एक मरूस्थलीय अथवा अर्द्ध मरूस्थलीय ग्रामीण परिवेश में जल की सुगम एवं पर्याप्त प्राप्ति सर्वाधिक महत्तवपूर्ण आवश्यकता है। ग्राम की भूमि उस भूपटी का एक भाग है जो फतेहपुर से डीडवाना तक संकरे स्वरूप में फैली हुई है। डीडवाना क्षेत्र लवणीय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। ग्राम की समस्त भूमि में अत्याधिक लवणता तथा फ्लोराईड की उपस्थिति के कारण जहाँ कृषि कार्यों के लिए नितांत प्रतिकूल तो है ही इसके अतिरिक्त न तो पेयजल के योग्य है न ही नहाने धोनें के। अस्तु पेयजल एवं प्रक्षालन आदि कार्यों के लिए मीठे जल की पूर्ति एक गम्भीर समस्या रही है। ग्राम के आबादी क्षेत्र एवं खेतों में कतिपय कुँओं का निर्माण जन हितार्थ कई वणिक परिवारों नें करवाया था परन्तु किसी स्रोत से मीठे जल की प्राप्ति नहीं हुई। १९८० से पूर्व तक पेयजल की आपू्र्ति गहन समस्या रही थी। ग्राम के लगभग प्रत्येक परिवार के आवास में गहरा जलकुण्ड बनानें की परम्परा पुरानें समय से ही रही है जिसमें बरसात के पानी को संग्रहित रख कर पेयजल के रूप में वर्ष भर प्रयोग में लिया जाता था तथा यह व्ववस्था आज भी ग्राम के प्रत्येक परिवार द्वारा अपनायी जाती है। ग्राम में पेयजल की आपूर्ति हेतु राजकीय स्तर पर प्रबन्ध १९८० से प्रारम्भ हुए जब झिलमिल गाँव (तहसील-लक्ष्मण गढ़, जिला-सीकर) में नलकूपों का जल समीपस्थ गाँव फिरवासी तक वहाँ बनें उच्च जलाशय के माध्यम से मीठड़ी तक पहुँचाया गया। प्रारम्भ में व्यवस्था ठीक रही परन्तु अन्य गाँवों को भी इस लाईन से जोड़े जानें के बाद धीरे धीरे जल आपूर्ति अपर्याप्त हो गई। इस स्थिति में सुधार सन् १९९७ में आया जब गाँव के भामाशाह बाजारी परिवार नें आर्थिक सहयोग देकर मीठड़ी की श्मशान भूमि के दक्षिणी छोर पर उच्च जलाशय निर्मित हुआ तथा नेछवा ग्राम (तहसील-लक्ष्मण गढ़, जिला-सीकर) में नए नलकूप खोद कर नई पाईप लाईन डाली गई। इसके पश्चात एक अन्य उच्च जलाशय का निर्माण भी हुआ। ग्राम में जलदाय विभाग का कार्यालय स्थापित किया गया जहाँ कनिष्ठ अभियन्ता अन्य कार्मिकों के साथ गाँव की जल वितरण व्यवस्था को सम्भालता है। गाँव का लगभग प्रत्येक आवास जलदाय विभाग की जल वितरण प्रणाली से जुड़ा हुआ है।

भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र :

भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र ग्राम पंचायत - मीठड़ी मारवाड़

राजस्थान राज्य की जनता एवम सरकार के मध्य सम्बन्धों को समीपता परदान करनें तथा राजकीय कामों में पारदर्शिता लानें के उदे्दश्य के साथ राज्य के मुख्यमंत्री श्रीमान् अशोक गहलोत नें जोधपुर में राजीव गांधी भारत निर्माण सेवा केन्द्र की आधारशिला रख कर भारत निर्माण योजना को साकार किया। मुख्यमंत्री नें ५ अगस्त २०१२ रविवार को प्रात: जोधपुर जिला कलेक्ट्रेट परिसर में राजीव गांधी भारत निर्माण सेवा केन्द्र की आधारशिला रखी और शिलान्यास कर एक महत्ती योजना का श्री गणेश किया। यह योजना भारत निर्माण के लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार की इस प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सरकार के कार्यक्रमों व योजनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा आम आदमी को लाभ पहुँचानें के लिए यह योजना एक कारगर उपागम सिद्ध हो सकती है। यह योजना जनप्रतिनिधि, अधिकारी वर्ग के साथ आम आदमी तीनों मिलकर समन्वय तथा सामंजस्य बनाकर कार्य करें, के मूल मंत्र पर आधारित है। योजना से राज्य में अब गांव-गांव और ढाणी-ढाणी के व्यक्तियों को भी सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार के साधन और शहरों के समान सुविधाएं उपलब्ध होने लगी है। यह अधिनियम देश में प्रथम बार राजस्थान में लागू किया गया है जिसके तहत आम जनता को उसके निवास स्थान के नजदीक सुनवाई का अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। जनता के समय पर कार्य हों, अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्यों में पारदर्शिता बनाए रखें। इसी योजना के तहत मीठड़ी गाँव में भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र[1] का निर्माण राजकीय सीनियर सैकण्डरी विध्यालय के सामनें, डीडवाना रोड़ के पश्चिमी पार्श्व में हुआ। नव निर्मित भवन में कार्यालय (चैम्बर), प्रतीक्षा कक्ष एवं निजी सहायक का कमरा, बड़ा प्रतीक्षा हॉल, एकल खिड़की, सुगम एवं शिकायत कक्ष तथा सामान्य शौचालय की सुविधाएँ है। केन्द्र को बहु उपयोगी तथा बहु उद्देशीय स्वरूप देनें के लिए ऑन लाईन व्यवस्था हेतु ब्रॉड बैण्ड इन्टरनेट से जोड़ा गया है तथा एक कम्प्यूटर ऑपरेटर को नियुक्त किया गया है। इस केन्द्र का उदघाटन कृषि मंत्री जो स्थानीय विधायक भी है श्रीमान् हरजी राम बुरड़क के कर कमलों से हुआ।

राजकीय पशु चिकित्सालय मीठड़ी : मीठड़ी की पूर्व दिशा में सदर बाजार से लगभग १५ किमी की दूरी सार्वजनिक गौचर भूमि का ५०० बीघा क्षेत्र है। इस गौचर क्षेत्र की स्थापना हैदराबाद दक्षिण प्रवासी मानावत जिन्हें श्री बद्री नारायण जी की संतति होनें के कारण बद्रुका उपाख्य नाम से जाना जा था के वंशज युग पुरूष राजा साहिब बंकट लाल बद्रुका के नेतृत्तव में सम्पन्न हुई थी। अब ग्राम की आवासीय बस्तियाँ यहाँ तक पहुँच गई है जिसे समग्र रूप से इन्दिरा कॉलोनी के नाम से जाना जाता है। गौचर भूमि के प्रारम्भ में ही राजकीय पटवारी पशु चिकित्सालय का भवन तथा विशाल परिसर स्थित है। आस पास के १५ से २० गाँवों के लिए पशुओं की चिकित्सा का एक मात्र अस्पताल है। वर्तमान वित्त वर्ष २०१२ - १३ में राज्य सरकार नें पशुओं के लिए निशुल्क दवाईयाँ प्रदान करनें की योजना नें इस अस्पताल को बहु उद्देश्यीय बना दिया है।

श्री भड़ेच भवन :

बैकिंग सुविधाएँ :

ग्राम बैंकिग सुविधा की दृष्टि से ज्यादा लाभान्वित नहीं है। यध्यपि ग्राम में १० से अधिक केन्द्र एवं राज्य सरकार के उपक्रम है साथ ही आस पास के लगभग १५ - १६ गाँव भी प्राथमिक सुविधाओं के लिए इसी ग्राम पर निर्भर है। साथ ही कम से कम २५० पेंशनर्स जिनमें अधिकाँश रिटायर्ड सैनिक हैं यहाँ रहते हैं परनतु अभी तक कोई राष्ट्रीयकृत बैंक की शाखा प्रारम्भ न होना विचारणीय तथ्य है। क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करनें वाली एक बैंक जयपुर थार ग्रामीण बैंक की शाखा अवश्य १९८४ से यहाँ कार्यरत है परन्तु इस बैंक का कार्य क्षेत्र सीमित है। ग्राम में एक सहकारी बैंक भी है परन्तु उसका कार्यक्षेत्र ग्राम में सहकारी स्तर तक ही है। ग्राम में किसी राष्ट्रीयकृत बैंक की शाखा की स्थापना होना प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। एक्सिस बैंक का एटीएम भी हैं। ग्राम जन वर्तमान में बैंकिग सुविधा के लिए डीडवाना, लाडनूं, गनेड़ी अथवा सुजानगढ़ जाते हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ के साथ ही इस बैंक का नाम परिवर्तित हो गया है, अब इसे मरूधरा ग्रामीण बैंक के नाम से जाना जाएगा।

जल निकास प्रणाली :

भारतीय आदि सभ्यता सिन्धु नदी घाटी सभ्यता में नगर स्थापना पूर्व नियोजित होती थी जिसकी आधार पीठिका सड़कों को सामानान्तर रूप से काटता जाल होता था।। ग्राम मीठड़ी की बसावट यध्यपि उस पुरातन नगर नियोजन की भाँति तो कतई नहीं है परनतु जैसा की उपर कई बार उल्लेख किया जा चुका है कि अग्रवाल जनों की निवास स्थली होनें का प्रतिफल सदैव ग्राम हित में होता रहा है। ग्राम की मुख्य बस्ती जहाँ आबाद हुई वह वास्तव में भूमि का अधोतल थी। बरसात के पानी का आम गुवाड़ में होना सामान्य बात थी जो जनसंख्या एवं आवासों के बढ़नें से धीरे धीरे गम्भीर समस्या बनना शुरू हो गई। इस समस्या का समाधान 1957 में ग्राम के भड़ेच परिवार की वंशावली में ग्राम राम की सेवार्थ ही जन्म लेनें वाले युग पुरूष महामना बंशीधर जी भड़ेच के द्वारा हुआ। श्रीमान् नें संपूर्ण खर्चा स्वयं वहन कर आम गुवाड़ से लेकर लगभग ५०० मीटर दूरी लम्बे तथा ६ फीट गहराई वाले नाले का निर्माण करवाया। नाले की समाप्ति जहाँ होती है वहाँ लम्बी चौड़ी गहरी तलैया भी उन्होनें ही खुदवाई। आज ६० वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत होनें के बाद भी यह नाला ज्यों का त्यों है साथ ही बह तलैया भी विध्यमान है जिसे आजकल गेनाणी कहा जाता है। वर्तमान में ग्राम पंचायत नें गाँव की प्रत्येक गली और रास्तों के दोनों ओर कहीं खुली तो कहीं बंद नालियों का पक्का निर्माण करवा कर उन्हें उक्त पुरानें नाले से जोड़ दिया है। आज गाँव के आम गुवाड़ तथा किसी भी मोहल्ले में बरसाती पानी एवं कीचड़ इत्यादि नहीं रहता है। पर एक नवीन समस्या अवश्य खड़ी हुई है, जिस गेनाणी का निर्माण कभी गाँव की आबादी से काफी दूर माना गया था वह आज कायमखानियों के मोहल्ले के लगभग मध्य में आ गई है, जिससे समीपस्थ आवासों के निवासियों का वर्षा काल (चौमासा) में रहना दूभर हो जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केन्द्र<[3] Archived 2018-03-12 at the वेबैक मशीन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

ग्राम स्थिति[संपादित करें]