मारवाड़ के मान सिंह

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महाराजा मान सिंहजी
जोधपुर के महाराजा
महाराजा मान सिंहजी
जोधपुर के शासक
शासनावधि19 अक्तूबर 1803 – 4 सितंबर 1843
राज्याभिषेकश्रृंगार चौकी मेहरानगढ़, जोधपुर, 17 जनवरी 1804
पूर्ववर्ती[[महाराजा भीम सिंहजी
उत्तरवर्तीमहाराजा तख्त सिंहजी
जन्म03 फ़रवरी 1783
जालोर किला,जालोर
निधन4 सितम्बर 1843(1843-09-04) (उम्र 60)
मंडोर,मारवाड़
रानी भटियानीजी राय कँवरजी पुत्री राव सूरजमल जी खारिया-जैसलमेर
                                                                रानी चावड़ीजी बदन कँवरजी पुत्री रावोल जालमसिहजी नाथसिहजी मानसा-गुजरात

रानी तंवरजी भोम कँवरजी पुत्री राव बख्तावर सिंहजी लक्खासर-बीकानेर

रानी कछवहीजी सूरज कँवरजी पुत्री महाराजा सवाई प्रताप सिंहजी जयपुर

रानी भटियानीजी प्रताप कँवरजी पुत्री राव शेर सिंहजी जाखन-जोधपुर
संतानयुवराज छत्र सिंहजी

कुंवर किशोर सिंहजी

कुंवर पृथ्वी सिंहजी

कुंवर प्रताप सिंहजी

कुंवर शिवदान सिंहजी

बाईजी लाल सिरेह कँवरजी महाराजा सवाई जगत सिंहजी जयपुर से विवाह

बाईजी लाल स्वरूप कँवरजी महाराव राजा राम सिंहजी बूंदी से विवाह

बाईजी लाल अमृत कँवरजी

बाईजी लाल इंद्र कँवरजी
घरानाराठौड़ (सूर्यवंशी)
पिताकुंवर गुमान सिंहजी
मातारानी चौहानजी अभय कँवरजी पुत्री राव गोवर्धनदास सोइंता-मारवाड़
धर्महिन्दू

महाराजा मान सिंहजी (3 फरवरी 1783 - 4 सितंबर 1843) मारवाड़ साम्राज्य/जोधपुर रियासत के अंतिम स्वतंत्र महाराजा थे जिन्होंने 19 अक्टूबर 1803 - 4 सितंबर 1843 तक शासन किया। 7 नवंबर 1791 को उनके दादा महाराजा विजय सिंहजी द्वारा उन्हें वारिस के रूप में नियुक्त किया गया था। हालांकि, महाराजा विजय सिंहजी की मृत्यु के बाद, महाराजा भीम सिंहजी ने जोधपुर पर कब्जा किया और खुद को मारवाड़ का शासक घोषित कर दिया था।

कुंवर मान सिंहजी को अपनी सुरक्षा के लिए जालोर भेजा गया, जहाँ वे अपने चचेरे भाई, मारवाड़ के महाराजा भीम सिंहजी के शासनकाल में रहे।

वह 19 अक्टूबर 1803 को अपने चचेरे भाई की मृत्यु पर उत्तराधिकार के रूप में गद्दी पर बैठे। 1804 में महाराजा मान सिंहजी ने सहयोग के लिए अंग्रेजों से संधि तोड़ दी और यशवंतराव होलकर के साथ गठबंधन किया, हालाँकि, जोधपुर पर सिंधिया ने आक्रमण किया और होलकर के साथ उनके गठबंधन को तोड़ने और भारी भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया।

अपने शासनकाल में उनके कई प्रमुख रईसों द्वारा विरोध किया गया था, वे लगातार गुटों के समर्थन पर निर्भर थे। इनमें से अंतिम था, नाथ परिवार, महाराजा के आध्यात्मिक सलाहकार, जो राज्य के मामलों को नियंत्रित करने के लिए आए थे।

राजा मानसिंह के शासनकाल के दौर में खट्दरशन की अदालत के हाकिम और ओहदेदार चारण थे। इनके अलावा नाथ एवं मुत्सदी वर्ग का प्रभुत्व भी बहुत था। हुए।

मानसिंह को " रीझ" और "खींझ" के लिए जाना जाता था। प्रसन्न होंने पर लाखपसाव और क्रोधित होने पर बेरहमी से मरवा देते थे। इसके लिए उस समय राजपरिवार की आन्तरिक कलह और चाकरो (पट्टेदार जागीरदार) की विद्रोही प्रवृत्ति भी मानसिंह के उक्त आचरण के कारण बनें।

महाराजा मान सिंहजी अपने चचेरे भाई की मौत के बाद मेवाड़ के महाराणा भीम सिंहजी की पुत्री कृष्ण कँवरजी से शादी करना चाहते थे।[1][2] मानसिंह के वाभा (अनौरस पुत्र) राजसिघ का विवाह सोढा सालिमसिंघ की बेटी से हुआ था। मानसिंह की पङदायत रंगरूपराय की बेटी सदाकंवर का विवाह फलोदी के बाणासर के भाटी मुकनसिघ से हुआ था। सदा कंवर को कागल और जाजीवाल गांव पट्टे दिया गया था। [3]

इनके शासनकाल में रसोङे के दरोगा पद पर धांधल गोरधन को नियुक्त कर केरू गांव पट्टे दिया गया था। [4]खीची बिहारीदास जी कपङे के कोठार के दरोगा थे उनको भी ठिकाना इनायत किया गया था। माली लखे को झाराबदार के पद पर नियुक्त किया गया था।

महाराजा सिंहजी ने अपने राज्य को सिंधियों और अपने भ्रष्ट रईसों और मंत्रियों द्वारा नष्ट हो जाने के बाद, 6 जनवरी 1818 को अंग्रेजों के साथ संधि संबंधों में प्रवेश किया।

रचनाएँ[संपादित करें]

मान सिंह अपने समय के एक प्रख्यात कवि और विद्वान थे और उन्होंने कई कविताओं और ग्रंथों की रचना की थी। मानसिंह को पुस्तकों से इतना प्रेम था कि उन्होने काशी,नेपाल आदि से संस्कृत के अनेक ग्रंथ मंगवाकर अपने पुस्तकालय में सुरक्षित रखें। आज यह पुस्तकालय मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध केंद्र के रूप में विख्यात है।[5][6][7]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "The tragic tale of Krishna Kumari of Mewar – and why it isn't told as much as Rani Padmini's".
  2. "The Rajput princess who chose death to save her dynasty".
  3. भाटी, नारायणसिंह (1993). महाराजा तख्त सिंह री ख्यात. जोधपुर: राजस्थान राज्य प्राच्य विधा प्रतिष्ठान जोधपुर. पृ॰ 70.
  4. जैन, जे के (1979). महाराजा मानसिंह री ख्यात. जोधपुर: राजस्थान राज्य प्राच्य विधा प्रतिष्ठान जोधपुर. पपृ॰ 15, 20, 87, 163.
  5. सक्सेना, हरमोहन (2014). राजस्थान अध्ययन. जयपुर: राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल जयपुर. पृ॰ 38.
  6. Hooja, Rima. A History of Rajasthan. Rupa Publication. पृ॰ 833.
  7. Singh, Kesri (1999). An Anthology of Rājasthāni Poetry in English Translation (अंग्रेज़ी में). Books Treasure.