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मायावती तारा

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द्वितारे में एक तारे के कभी खुले चमकने और कभी ग्रहण हो जाने से उसकी चमक परिवर्तित होती रहती है - नीचे की लक़ीर पृथ्वी तक पहुँच रही चमक को माप रही है
ययाति (पर्सियस) तारामंडल में मायावती (अलग़ोल) तारा 'β' द्वारा नामांकित है

मायावती या अलग़ोल, जिसका बायर नाम बेटा परसई (β Persei या β Per) है, ययाति तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है।[1] यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ५९वाँ सब से रोशन तारा भी है। यह एक ऐसा द्वितारा है जिसके मुख्य तारे के इर्द-गिर्द घूमता साथी तारा कभी तो उसके और पृथ्वी के बीच आ जाता है और कभी नहीं। इस से यह पृथ्वी से एक परिवर्ती तारा लगता है जिसकी चमक बदलती रहती है। वैदिक काल में इसकी मायावी बदलती प्रकृति के कारण ही इसका नाम "मायावती" पड़ा। इसे पश्चिम और अरब संस्कृतियों में एक दुर्भाग्य का तारा माना जाता था। यह पृथ्वी से लगभग ९३ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। पृथ्वी से देखी गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) वैसे तो +२.१० मैग्नीट्यूड पर रहती है लेकिन हर २ दिन २० घंटे और ४९ मिनटों के बाद इसकी चमक गिरकर +३.४ हो जाती है (याद रखें कि मैग्नीट्यूड एक ऐसा उल्टा माप है कि यह जितना कम हो रोशनी उतनी अधिक होती है)।

अन्य भाषाओँ में

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मायावती तारे को अंग्रेज़ी में "ऐलगॉल" (Algol) कहते है। यह अरबी के "रास अल-ग़ूल" (ur) से लिया गया है, जिसका अर्थ "राक्षस का सिर" है ('ग़' के उच्चारण पर ध्यान दें)। इसे अंग्रेज़ी में "डीमन स्टार" (demon star, असुरी तारा) भी कहा जाता है। इब्रानी भाषा में इसे "रोश हा सातान" (शैतान का सिर) भी बुलाया गया है। पश्चिमी और अरबी सभ्यता में इस तारे का सम्बन्ध दुष्टता और दुर्भाग्य से जोड़ा गया है।

मायावती एक द्वितारा मंडल है जिसके दो तारों (मायावती ए और मायावती बी) के इर्द-गिर्द एक तीसरा तारा परिक्रमा करता है, यानि कुल मिलकर इस मंडल में तीन तारे ज्ञात हैं:

जब मायावती मंडल का शुरू में अध्ययन किया गया तो खगोलशास्त्रियों को एक बात देख कर हैरानी हुई। आम तौर पर किसी द्वितारे के दोनों तारे एक ही समय पर जन्म लेते हैं और उनमें जो भी अधिक द्रव्यमान वाला तारा होता है उसमें नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) अधिक तेज़ी से चलता है। इस से अधिक द्रव्यमान वाला तारा ज़्यादा जल्दी बूढ़ा जो जाता है। लेकिन मायावती ए और मायावती बी में तो यह हिसाब ही उल्टा है: बड़े द्रव्यमान का तारा (ए) अभी मुख्य अनुक्रम में ही है और गरम है, जबकि कम द्रव्यमान वाला उपदानव (बी) अधिक बूढ़ा है और ठंडा पड़ गया है। इसे "ऐलगोल प्रशन" (Algol paradox) बुलाया जाने लगा। बाद में ज्ञात हुआ कि वास्तव में मायावती बी आज से बड़ा हुआ करता था लेकिन जब यह बूढ़ा होकर फूलने लगा तो उसकी बाहरी परत को मायावती ए ने खींचकर उसका बहुत सा द्रव्यमान अपने में मिला लिया और अब उसमें द्रव्यमान बी से कहीं अधिक है।

आज से ७३ लाख वर्ष पहले मायावती हमारे सौर मंडल के ९.८ प्रकाश-वर्ष दूर से गुज़ारा था। उस समय यह पृथ्वी के आकाश में व्याध तारे से भी अधिक रोशन रहा होगा, हालांकि इसे देखने के लिए मनुष्य पृथ्वी पर मौजूद नहीं थे। इसका हमारे सौर मंडल पर गुरुत्वाकर्षक प्रभाव भी पड़ा होगा और वैज्ञानिक मानते हैं कि उस काल में इसने हमारे सौर मंडल के और्ट बादल से कुछ धूमकेतुओं को भी अन्दर के ग्रहों की ओर फेंका होगा। फिर समय के साथ-साथ यह हम से दूर होता चला गया और आज ९२.८ प्रकाश वर्ष दूर है।[2]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Royal Astronomical Society of New Zealand. "Southern stars, Volume 32". Royal Astronomical Society of New Zealand, 1986. ... An ancient Hindu knowledge of Algol's variability seems implied from its identification with Mayavati literally 'the changeful') and Mukerji (1905), in his background to this star, makes allusions which go right back to the Rig Veda ...
  2. J. García-Sánchez, R.A. Preston, D.L. Jones, P.R. Weissman (1999). "Stellar Encounters with the Oort Cloud Based on Hipparcos Data". The Astronomical Journal. 117 (2): 1042–1055. डीओआई:10.1086/300723.{{cite journal}}: CS1 maint: multiple names: authors list (link)