मानसार शिल्पशास्त्र

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मानसार शिल्पशास्त्र शिल्पशास्त्र का प्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचयिता मानसार हैं। इसके 43 वें अध्याय में ऐसे अनेक रथों का वर्णन है जो वायुवेग से चल कर लक्ष्य तक पहुँचते थे। उनमें बैठा व्यक्ति बिना अधिक समय गवाँए गंतव्य तक पहुँच जाता था। [1] श्री प्रसन्न कुमार आचार्य ने बहुत परिश्रम से मानसर शिल्पशास्त्र को जोड़जोड़कर पुनः निर्मित किया और इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। यह ग्रन्थ सात भागों में प्रकाशित किया गया।

मानसर शिल्पशास्त्र ब्रह्मा की स्तुति से आरम्भ होता है जो ब्रह्माण्ड के निर्माता हैं। यह ग्रन्थ शिव के तीसरे नेत्र के खुलने पर समाप्त होता है। इसमें लगभग ७० अध्याय हैं जिनमें से प्रथम आठ अध्यायों को एक भाग में रखा गया है। आगे के दस अध्याय दूसरा समूह बनाते हैं। इसके बाद मानसार का केन्द्रीय भाग आता है। अध्याय १९ से अध्याय ३० में एकमंजिला भवन से लेकर १२ मंजिला भवन का वर्नन करते हैं। अध्याय ३१ से अध्याय ५० में वास्तुशिलप (आर्किटेक्चर) की चर्चा है। इसके बाद मूर्तिकला की चर्चा आती है जो अध्याय ५१ से अध्याय ७० तक की गयी है। अध्याय ५१ से अध्याय ७० की सामग्री को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है- अध्याय ५१ से अध्याय ६५ तक एक समूह है तथा अध्याय ६६ से अध्याय ७० तक दूसरा समूह।

अध्याय[संपादित करें]

  • १ संग्रहः
  • २ मानोपकरणविधानम्
  • ३ वास्तुप्रकरणम्
  • ४ भूमिसंग्रहविधानम्
  • ५ भूपरीक्षाविधानम्
  • ६ शंकुस्थापनलक्षणम्
  • ७ पदविन्यासलक्षणम्
  • ८ बलिकर्मविधानम्
  • ९ ग्रामलक्षणम्
  • १० नगरविधानम्
  • ११ भूमिलम्बविधानम्
  • १२ गर्भविन्यासविधानम्
  • १३ उपपीठविधानम्
  • १४ अधिष्ठानविधानम्
  • १५ स्तम्भलक्षणम्
  • १६ प्रस्तरविधानम्
  • १७ सन्धिकर्मविधानम्
  • १८ विमानलक्षणम्
  • १९ एकतलविधानम्
  • २० द्वितलविधानम्
  • २१ त्रितलविधानम्
  • २२ चतुस्तलविधानम्
  • २३ पंचतलविधानम्
  • २४ षट्तलविधानम्
  • २५ सप्ततलविधानम्
  • २६ अष्टतलविधानम्
  • २७ नवतलविधानम्
  • २८ दशतलविधानम्
  • २९ एकादशतलविधानम्
  • ३० द्वादशतलविधानम्
  • ३१ प्राकारविधानम्
  • ३२ परिवारविधानम्
  • ३३ गोपुरविधानम्
  • ३४ मण्डपविधानम्
  • ३५ शालाविधानम्
  • ३६ गृहमानस्थानविधानम्
  • ३७ गृहप्रवेशविधानम्
  • ३८ द्वारस्थानविधानम्
  • ३९ द्वारमानविधानम्
  • ४० राजहर्म्यविधानम्
  • ४१ राजांगविधानम्
  • ४२ राजलक्षणम्
  • ४३ रथलक्षणम्
  • ४४ शयनविधानम्
  • ४५ सिंहासनलक्षणम्
  • ४६ तोरणविधानम्
  • ४७ मध्यरंगविधानम्
  • ४८ कल्पवृक्षविधानम्
  • ४९ मौलिलक्षणम्
  • ५० भूषणलक्षणम्
  • ५१ त्रिमूर्तिलक्षणम्
  • ५२ लिंगविधानम्
  • ५३ पीठलक्षणम्
  • ५४ शक्तिलक्षणम्
  • ५५ जैनलक्षणम्
  • ५६ बौद्धलक्षणम्
  • ५७ मुनिलक्षणम्
  • ५८ यक्षविद्याधरादिलक्षणम्
  • ५९ भक्तलक्षणम्
  • ६० हंसलक्षणम्
  • ६१ गरुडलक्षणम्
  • ६२ वृषभलक्षणम्
  • ६३ सिंहलक्षणम्
  • ६४ प्रतिमाविधानम्
  • ६५ उत्तमदशतालविधानम्
  • ६६ मध्यमदशतालविधानम्
  • ६७ प्रलम्बलक्षणम्
  • ६८ मधूच्छिष्टविधानम्
  • ६९ अंगदूषणविधानम्
  • ७० नयनोन्मीलनलक्षणम्

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "पुरातन ज्ञान के खण्डहरों पर खड़ा है आज का विज्ञान". मूल से 8 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 सितंबर 2014.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]