माधवि नातक पात्र छित्रन्

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  माधवि नातक पात्र चित्रन् : यह नातक स्रि भीश्म साह्नी जि का हैन। इस नातक मै सभि पात्र का मुख्य योग्दान रहा हैन। सारे पात्रो से नातक का वास जलक्थ हैन। माधवि इस नातक का दिल तथा जान हैन।

पात्र छित्रन[संपादित करें]

मुख्य पात्र[संपादित करें]

१) माधवि[संपादित करें]

    माधवि महाराजा ययाति की पुत्रि है। माधवि विश्वरूपम सुन्दरि थि। उस्का सोन्दर्या महान है, वह उत्तैर्न गुनोह वालि बालिका थि। वह अप्ने पिताजि के साथ आश्रम मै प्रवास कर रहि थि। उस्के पिताजि ययाति को उस्पे बोहुत गर्व थ। माधवि सब्की सेवा कर्नि खुब जान्थि। आश्रम मेइ रह्कर वह सारे ताउर तरिके समज गयी। पूज हवन कर्ना, वह की सारि नियम वह कानुन जान्ति थि। मधवि को दो वर प्रदान थे। इस्के गर्ब से उत्पन्न होने वाल बालक छक्तरवर्ती राजा बनेगा। इसे और भि अनेख वर प्रप्त थे, उसे चिर कौमार्य का वर प्रप्थ था। माधवि गालव कि मदद कर्ने के लिये निकल गयी। उसे राजाओ के शिविर मेइ रह्कर उन्हे सन्तूश्थ कर के पुत्र लाभ दिल्लन पध थ। वह गालव से प्यार कर बैथि और उस्के याद मेइन विरह वेद्न कएने लगी। जब उस्ने बच्छो को जनम दिया तोह वह उन्से जदा नह हो पायि। वह उस्के पुत्रो से जुध गयी थि। वह राजओ के यश वह पैसा नही छह्ति थि। वह गालव से हि विवह कर्न छह्ति थि। अन्थ मेइ वह विश्वह्मित्र कि सेवा कर के गालव कि सहायथ कर्थि है और अन्थ मेइन वह गालव कि सछ्हैयि जान भाग जाति हैन। माधवि एक कर्तव्निश्थ व्यक्थि थि, वह कोमल;, नवीन, ऐश्वर्य, सन्केत, पन्काज स्वरूप इन्स्सन थि। वह प्रेम को समज्त्जिति, वो सज्जल, भुमि, दुर्दर्शि और कुर्बान देने वालि इन्स्सन थि। वह एक बोहुत अच्छि और सर्व उछ्कोथि कि कन्या थि। वह सब्को अप्ने उपर मान्ति और वछन बुध थि, सब्का हित्थ छह्ति थि।
====२) गालव ====
    गालव भि इस कहानि का मुख्य पात्र है। वह विश्वह्मित्र का चात्र थ और बारह विधओ मेइ पाअस थ। अब उसे गुरु दक्शिन देनि थि और वह वछन्बुध थ। धर्नग्रन्थो मेइ मनुशय के बहुत सेगून गिनाये है पर कहा है कर्तव्यपालन सब्से ब्दा गुन। जो आद्मि कर्तव्यपरायन है, वही सच्छ साधक है। अप्ने मात पिता के प्रति कर्तव्य, अप्ने गुरु के प्रति कर्तव्य, अप्न्र धर्म के प्रथि कर्तव्य, इस्सि को सछि साधन कह्ते है। और कर्तव्य पालन क्य, जो वछन दे दिया, उसे पूर करू। मुह से जो बात कह दि वह पथर कि लकीर बन गयी। गालव एक कर्तव्यपालन और कर्तव्यपरायन प्रानि थ। उस्ने तुल्सिअस्स्जि कि कहा सहि और सथक सम्जह कि, रघुकुल्ल रिथि सधा छलि आइ, प्रान जाये पर वछन न जाये। गालव जो गुरुदक्शिन देनि थानि तोह उसे पूरकर्ना उस्का फर्ज़ थ और वह किसि भि हालथ मेइन ८०० सो अश्वमेधि घोदे जूतना छह्ता थ। तोह तब वह माधवि से मिला और उस्से प्यार कर बैथा। वह वछन बुध था और अन्थ वह अप्ने घोर परिश्रम से सफल भि थ। वह एक वीर, साहसि और बुधि मान आदमि था, उस्मे विश्वह्मित्रा से भि ज्यध अकल थि। वह प्यार और गुरु के लिये कुछ भि कर सक्थ थ और किया भि। व द्रिश्यवान, शषन्क, रोहन, रहुल और विवेकि प्रानि था। वह कोमल व निस्छल स्वभाव का था।

अन्य पात्र[संपादित करें]

१) ययति[संपादित करें]

   राज ययति जब अप्ने राज्पात के दिनो मेइ बधे व्यश्थ रह्ते पर आश्रम मेइ वह आराम कर थे और पुत्रि के विवह के विछर कर्ते। वह दान्वीर थे और अप्ने नाम दान्वीर कर्न व हरन्यकश्युप से भि उच्छ पान छाह्ते थे। वे पुत्रि से बेहत्त प्रेम कर्ते थे। उन्होने सध अप्न कर्तव्य पालन किया था और बेति कि कुर्बानि कर्के गालव कि सहायथ भि कि थि। वे सध अप्नि सामर्थ्य से बध्कर दान दे थे। उन्कि यश, किर्थि, उद्दर्थ, दयालुथ मह्हन और सर्वोउत्थम थि। वे अप्ने आत्मसामन कि कदर कर्थे थे, वे गालव, माधवि, विश्वमित्रा और अप्ने प्रजा, सब्का हिथ छह्ते थे।

२) विश्वमित्रा[संपादित करें]

    विश्वामित्रा गालव के गुरु थे। वे आश्रम मेइ रह्तेथे। वे गालव का जिद्द वह हुत्त तोद्ना छह्ते ते और इसिलिये उसे ८००सो अश्वमेधि घोदे कि छा रखि। उन्हे अप्ने छत्र पर विश्वस थ और इसि लिये उन्होने ऐसा गुरुदक्शिन रखी। इस्से सच्छे गुरु कह्ते हैन। वे धर्म के प्रथि कर्तव्यनिश्त थे। वे एक पराक्रमि विध्वाम थे, वे अयोध्या के सब्से बुधिमानी आद्मि थे। वे एक सज्जल, विवेकि, दर्शनियी, देव्लोखि, उच्छ कोति के विद्वान जाने जाते थे। वे शिश्यो कि परख एक जोह्रि कि तरह्कर्ते थे और वे शुरु से जाबन्थे थे कि गालव मेइ बोहुत शमथ है।