माइक्रोएरे

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माइक्रोएरे को अनुवांशिक चिप, माइक्रो चिप, DNA चिप, बायोऐरे, जीनऐरे आदि भी कहा जाता है। यह तकनीक सबसे पहले १९८३ में Tse Wen Chang ने एंटीबाडी के लिए प्रयोग में लाइ थी। इस तकनीक में हजारो अनुवांशिकाओ को एक ढोस सब्सट्रेट जो की या तो गिलास का या फिर सिलिकॉन की पतली झल्ली का बना होता है, पर जोड़ा जाता है। इस तकनीक की सहायता से अनुवांशिकाओ की प्रोफाइलिंग और उनका विश्लेषण करने में मदद करते हैं। माइक्रोएरे एक छोटी सी चिप है जिसमें २००-३०० स्पॉट बने होते है जिनका आकार २००mm होता है। यह स्पॉट अनुवांशिक सैंपल लोड करने के लिए होते हैं। माइक्रोएरे चिप में अनुवांशिक के सैंपल को रख क्र उन्हें हाइब्रिड कराया जाता है। उसके बाद उन्हें कुछ देर रखकर उनमे फ्लोरोक्रोम डाई का प्रयोग किया जाता है जो की जीन के २ विभिन्न सैंपल को अलग करने में मदद करती है। इस पुर प्रयोजन के बाद उन अनुवांशिक सैंपल का विश्लेषण किया जाता है माइक्रोएरे की मदद से। माइक्रोएरे जीन की जांच करने में सहायक है। और इसकी मदद से cDNA का संग्रह करने में भी सहायक होते है।

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सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Tse-Wen Chang, TW (1983). "Binding of cells to matrixes of distinct antibodies coated on solid surface". Journal of Immunological Methods. 65 (1–2): 217–23. doi:10.1016/0022-1759(83)90318-6. PMID 6606681.