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उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर

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महाकालेश्वर
महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताशिव/ शंकर/ महाकालेश्वर
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिउज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू
निर्मातास्वयंभू; जीर्णोद्धारक उज्जैन शासक/मराठा+राजा भोज
स्थापितअति प्राचीन

महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।[1] यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। [क] १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

इतिहास

इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन १६९० ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और २९ नवंबर १७२८ को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन १७३१ से १८०९ तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं - पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

वर्णन

मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक ऊपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल १०.७७ x १०.७७ वर्गमीटर और ऊंचाई २८.७१ मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। सन १९६८ के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है।[2][3] अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है।[4][5]

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

  1. "जय महाकालेश्वर". अमर उजाला. मूल से (एएसपी) से 20 अगस्त 2004 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: २६ जुलाई २००८. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  2. "महाकालेश्वर मंदिर में ११० स्वर्ण कलश की योजना" (यूनिकोड). प्रजा भारत. अभिगमन तिथि: ४ मार्च २००५. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)[मृत कड़ियाँ]
  3. "सोने से चमकेगा महाकालेश्वर मंदिर". जागरण. मूल से से 12 अगस्त 2010 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: ९ अप्रैल २००९. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  4. दैट्स हिन्दी[मृत कड़ियाँ] पर देखें ई-दान सुविधा
  5. समय लाइव[मृत कड़ियाँ] पर देखें-ई-दान सुविधा

टीका टिप्पणी

^

वक्र: पंथा यदपि भवन प्रस्थिताचोत्तराशाम, सौधोत्संग प्रणयोविमखोमास्म भरूज्जयिन्या:।
विद्युद्दामेस्फरित चकितैस्त्र पौराड़गनानाम, लीलापांगैर्यदि न रमते लोचननैर्विंचितोसि॥

- कालिदास

बाहरी कड़ियाँ