सामग्री पर जाएँ

मलय रॉय चौधुरी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
मलय रॉय चौधुरी
चित्र:Image:Malay Roychoudhury in Holland.JPG
मलय रॉय चौधुरी
जन्म 29 अक्टूबर १९३९ (१९३९-10-29) (आयु 85)
Patna, Bihar, British India (now India)
हस्ताक्षर

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी।

आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।

पृष्ठभूमि

[संपादित करें]

मलय रायचौधुरीका जन्म बिहार राज्यके पटना शहरमें एक ब्राह्मण परिवारमें हुया जो वहां पचास सालसे भी ज्यादा समयसे इमलितला (बाखरगंज) नामके बहुतही गरीब मुहल्ले में निम्नबर्गके हिन्दु और शिया मुसलमानोंके साथ रहते थे। यह परिवेशका प्रभाव उनके चिन्तन एवम लेखनमें पडा। भुखी पीढी का जन्म एक तरहसे उनके इस परिवेश का अवदान कहा जा सकता है। उनके पिता रंजित रायचौधुरी पटना शहरके काफि पुरानि फोटोग्राफि तथा चित्रकारी संस्था रायचौधुरी ऐन्ड कंके जानेमाने शिल्पी थे। पिताके बडे भाइ प्रमोद रायचौधुरी थे पटना मिउजियमके किपर ऑफ पेइनटिंस ऐन्ड स्कल्पचर। मलय रायचौधुरीके घरमें शास्त्रीय संगीत का आदर था क्यों कि उनके दोनों बडी बहने शस्त्रीय संगीत में माहिर थे। घरमें हर प्रकार के कला का आदर था। मलय रायचौधुरीके माता अमिता बन्द्योपाध्याय आये थे २४ परगणास्थित पानिहटि गांवके शिक्षित परिवार से, जिनके पुरुषोंमें ब्राह्मोसमाजका गभीर प्रभाव था। मलयका स्कुली शिक्षा पहले सेन्ट जोसेफ्स कान्वेन्ट और बादमें राममोहन राय सेमनरिमें हुया। पटना विश्वविद्यालयसे वे बिए अनर्स तथा एमए किये। एमए पढ्ते समयही वे उनका पहला किताब मार्कसवादेर उत्तराधिकार लिखना शुरु किया था। शक्ति चट्टोपाध्यायके साथ मतान्तरके कारण यह किताब प्रकाशित होनेके बाद एक कापि रख कर बाकि सब जला दिये गये थे। मध्यान्तरमें मलय कविता लिखना शुरु किये थे। कविता लिखते समय वह महसुस किये थे कि बांग्ला साहित्य उचितरूपसे उपनिवेशके बादका परिसर प्रतिबिम्बित नहीं कर पा रहा है एवम पुरे व्यवस्था को झक्झोर देनेके लिये एक साहित्यिक आंदोलन बहुतही जरुरि है। वह अप्ने बडे भाइ समीर रायचौधुरीके साथ आलोचनाके पश्चात अपने मित्र सुबिमल बसाक जो कि पटना निवासी थे और देबी रायको पुरे कार्यक्रम का ब्योरा दिया। बचपन से ही फणीश्वर नाथ 'रेणु' के साथ मलयके परिवार का परिचय था। वे उन्के पथप्रदर्शक रहें। कानवेन्टमे पढाइके कारण मलयको बाइबल, ओलड एवम निउ टेस्टामेन्ट के कहानियां काम आये जब वह कालेजमें अंग्रेजी पाठके समय ब्रिटिश कवि जिओफ्रे चौसर के काउनटरबेरि टेलससे भुखी पीढी आंदोलनके 'भुख अविधाका एक नया आयाम पाया। चौसरने ही कहा था इन दि सावर हंगरी टाइम। मार्कसवाद पर किताब लिखते समय मलय परिचित हुये थे जर्मन दार्शनिक आस्वल्ड स्पेंगलरके दि डिक्लाइन ऑफ दि वेस्ट ग्रन्थ से, जिस्के दर्शन, उनको लगा था, भारतीय उत्तरऔपनिवेशिक स्थितिको सही-सही व्याख्या करता है। उनहोने एक पन्ने का मैनिफेस्टो पटनामें ही १९६१के नवम्बर में निकाला और देबी रायको भेजा कोलकातामें वितरित करने के लिये। उसके बाद जो हुया वह तो केवल बांग्ला नहीं, भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण इतिहास है।

मलय का साहित्य

[संपादित करें]

मलय रायचौधुरीका भूखी पीढी का दौर साठ के दशक तक ही चला। इसका प्रधान कारण यह है कि उनके खिलाफ जो मुकदमा चला था उसमें उनके आंदोलन के बन्धुगण, जैसे कि शैलेश्वर घोष, सुभाष घोष, उत्पलकुमार बसु, शक्ति चट्टोपाध्याय, सन्दीपन चट्टोपाध्याय उनके विरुद्ध सरकारी गवाह बन बैठे थे। कहा जा सकता है कि भूखी पीढी आंदोलन इन लोगों के सरकारी गवाह होने पर बिखर गया। मलय के लिये यह सचेत होने का पथ बना। वे अकेले अपने-आप में साहित्य का एक जगत बना कर चल दिये। उनके लेखनप्रक्रिया में भी परिवर्तन आया। उन्होंने करीब दस साल पढाई में बिताया और एक नवीण रूप में कोलकाता आये। उनकी कविता, कहानीयाँ, उपन्यास, इत्यादि सम्पूर्णत: अलग थे। इस नये दौर को लोगों ने अधुनान्तिक दौर कहा है। मलय अपने नये रूप में थे बहुसंस्कृतिवाद के कट्टर समर्थक जो उनके लेखन में पूरी तरह झलकता है और यह है उनके बचपन में बिताये हुए इमलितला के परिवेश की देन। कोलकाता के साहित्य बाजार में चलनेवाले बिकाउ-लेखन से एक अलग ही जगत है उनका। वह परवाह नहीं करते कि उनके किताबें हजारों की संख्या में बिके। परन्तु उनका एक पाठक-समाज बन गया है जो उनके पुस्तकों को ढून्ढ ही लेते हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय के बांग्ला भाषा विभाग के प्रधान डाक्टर तरुण मुखोपाध्याय का कहना है कि मलय अपने नये रूप में साहित्य में ताजे हवा को तूफान में बदलने वाले झोंके की तरह हैं।

चित्र परिचालक श्रीजित मुखर्जी बाइशे श्राबोण नामसे एक फिल्म बनायी हैं जिसमें कवि मलय रायचौधुरीको चित्रित किया गया है। मलयके चरित्र में अभिनय किया है जाने-माने परिचालक गौतम घोष

भुखी पीढी सृजनकर्मों का कापिराइट

[संपादित करें]

भुखी पीढी आंदोलनकारियों के सृजनकर्मों का कापिराइट नहीं होता है। उन लोगों का कहना है कि भारत में यदि महाभारत, रामायण, गीता, रामचरितमानस आदि का कापिराइट कभी था ही नहीं तो हम क्यों यह उपनिवेशवादी अवधारणा को स्वीकारें। मलय रायचौधुरी के किताबों में यह घोषणा लिखा रहता है।

कृतियां

[संपादित करें]
  • मार्कसबादेर उत्तराधिकार (१९६२)
  • शयतानेर मुख (१९६४) काव्यग्रन्थ।
  • आमार जेनरेशनेर काव्यदर्शन (१९६४) भुखी पीढी आन्दोलन के दर्शन।
  • जखम (१९६५) दीर्घ कविता।
  • इसताहार संकलन (१९८५)। भुखी पीढी के मेनिफेस्टों का संकलन।
  • कविता संकलन (१९८६)। भुखी पीढी आन्दोलन के समय लिखित कवितायें।
  • मेधार वातानुकुल घुंगुर (१९८७)। काव्यग्रन्थ।
  • हाततालि (१९८९)। दीर्घ कविता।
  • चितकारसमग्र (१९९५)। काव्यपुस्तिका।
  • क्षत्रखान (१९९५)। कवितापुस्तिका,
  • जा लागबे बोलबेन (१९९६)। काव्यग्रन्थ।
  • (१९९८)। अपने कवितयों का विश्लेषण।
  • आत्मध्वंसेर सहस्राब्द (२०००)। काव्यग्रन्थ।
  • भेन्नोगल्पो (१९९६)। कहानियों का संकलन।
  • डुबजले जेटुकु प्रश्वास (१९९४)। उपन्यास।
  • जलाण्ंजलि (१९९६)। उपन्यास।
  • नामगन्ध (१९९९)। उपन्यास।
  • नाटकसमग्र (१९९४)। भुखी पीढी के समय लिखे गये नाट्कों का संकलन।
  • हंगरी किंवदन्ति (१९९४)। भुखी पीढी आन्दोलन क स्मृतिलेख।
  • पोस्टमडर्निजम नव्योत्तर काल (१९९५)। शोधकार्य।
  • परावस्तवबाद (१९९७)।
  • आधुनिकतावाद एर विरुध्दे कथाबात्रा (१९९९)। मनन-चिन्तन।
  • मतान्तर (२०००)। प्रचलित चिन्तओं पर टिप्पणियां।
  • हंगरी साक्षातकारमाला (१९९९)। लघु पत्रिकायों में प्रकाशित साक्षातकारों का संकलनल।
  • पोस्टमोडर्न नव्योत्तर काल कालखण्ड ओ बांगालिर पतन (२०००)। बंगालि समाज के पतन पर एक विश्लेषण।
  • उत्तराऔपनिवेशिक पोस्टमोडर्निजम (२००१)। मूल्याँ के विघटन पर आलोचना।
  • अप्रकाशित गल्पो (२००८)। कहानीयां।
  • तिनटि उपन्यास (२०१०)। एक साथ तीन उपन्यासें।
  • अतिवास्तव गल्पोगाचा (२००८)। अधुनान्तिक कहानीयां।
  • कवितासमग्र (२००५)। १९६१ से २००४ तक लिखे सारे कवितायें।
  • प्रबन्धसमग्र - प्रथम खण्ड (२०११)

आलोचना और जीवनी

[संपादित करें]
  • पाल गौंगा (१९९९)
  • शार्ल बादलेयर (१९९८)
  • जँ आर्तुर रेंबो (१९९९)
  • एलेन गिन्सबर्ग (२०००)
  • सालवादोर दालि (२००१)
  • जेमस जायस (२०१०)
  • जँ जेने (२०१०)
  • आना आखमातोभा (२००९)

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  • मलय रायचौधुरी विशेष संख्या, ह्वा ४९ (अप्रैल २००१)। मुर्शिद अलि मन्डल सम्पादित। विश्लेशकगण: तपोधीर भट्टचार्जि, कलिम खान, विश्वजित सेन, सत्यजित बन्दोपाध्याय, अजित राय, पार्थप्रतिम बन्दोपाध्याय, सुबिमल बसाक, अरुणकुमार चट्टोपध्याय, जाहिरुल हसन, गौतम सेनगुप्ता, समीर सेनगुप्ता, बारीन घोषाल, उदयन घोष, शुभंकर दाश, समरजित सिनहा, समीर रायचौधुरी, यशोधरा रायचौधुरी, शान्तनु बन्दोपाध्याय, रफिक उल इसलाम, उतपलकुमार बसु, तपनकुमार माइति, अरूप चौधुरी, मीजानुर रहमान, शंकरनाथ चक्रबर्ती, सलिला रायचौधुरी, अनुश्री प्रशन्त, फणिश्वर नाथ 'रेणु', शिबनारायन राय, विमलकुमार मुखोपाध्याय, मनोज नन्दी, अरविन्द प्रधान एवम प्रवीर चक्रवर्ती।
  • मलय रायचौधुरी विषेश संख्या, आहबकाल (१९९९)। रतनकुमार विश्वास सम्पादित।
  • वन तुलसी का गन्ध (१९८४)। फणीश्वर नाथ 'रेणु'
  • स्वप्न मलय रायचौधुरी विशेष संख्या (२००८)। सम्पादक: डक्टर विष्णुचन्द्र दे। विश्लेषकगण: अनुपम मुखोपाध्याय, डक्टर तरुण मुखोपाध्याय, अध्यापक शीतल चौधुरी, डक्टर शंकर भट्टाचार्या, पिनासी राजस्थानी, राणा चट्टोपाध्याय, श्यामल शील एवम डक्टर विष्णुचन्द्र दे।
  • Malay Roy Choudhury by Hardmod Carlyle Nicolas. Crypt Publishing (2011). ISBN - 10:613690541 Amazon.com ISBN - 13: 978-6136905419.
  • STARK ELECTRIC JESUS (1965 edition) विवादित कविता का अनुवाद Amazon.com मूल्ञ $250.

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

बाह्यसूत्र

[संपादित करें]