मनु का वंश

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
मतस्य, जिन्होने मनु को बचाया था।

यह लेख हिन्दू धर्म के अनुसार पृथ्वी पर सृष्टि रचना के आरम्भ के वंशों क विवरण देता है। यह हिन्दू इतिहास है, जो कि विष्णु पुराण के द्वितीय अंश, प्रथम अध्याय में वर्णित है।

सृष्टि का आरम्भ आदि पुरुष मनु से होता है। इस श्वेतवाराह कल्प में चौदह मनु होते हैं, जिनमें से वर्तमान सातवां मनु वैवस्वत मनु हैं। आरम्भिक थे स्वायम्भु मनु| श्वेतवाराह कल्प के अन्य मनु इस प्रकार हैं:- सावधान इण्डिया न्यूज (निर्जेश मिश्र)

स्वयम्भू मनु का वंश[संपादित करें]

स्वायम्भु मनु के दो पुत्र थे:

इनकी दो पुत्रियां- सम्राट और कुक्षि और दस पुत्र हुए।

      • आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मन, द्युतिमान, मेधा, मेधातिथि, भव्य, सवन, पुत्र और ज्योतिष्मान

इनमें मेधा, अग्निबाहु और पुत्र – योग पारायण और पूर्वजन्म वृत्तान्त जानने वले थे। बाकी सात को पृथ्वी के सात द्वीप बांट दिये:

पुत्र द्वीप
आग्नीध्र जम्बुद्वीप
मेधातिथि प्लक्षद्वीप
वपुष्मान शाल्मलद्वीप
ज्योतिष्मान कुशद्वीप
द्युतिमान क्रौंचद्वीप
भव्य शाकद्वीप
सवन पुष्करद्वीप

आग्नीध्र के प्रजापति समान नौ पुत्र हुए,

नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत्त, रम्य, हिरण्वान, कुरु, भद्राश्व, केतुमाल। इन नौ पुत्रों में उन्होंने जम्बुद्वीप के नौ वर्ष बांट दिये:-

पुत्र जम्बुद्वीप के वर्ष
नाभि दक्षिण की ओर का हिमवर्ष जिसे अब भारतवर्ष कहते हैं
किम्पुरुष हेमकूटवर्ष या किम्पुरुषवर्ष
हरिवर्ष नैषधवर्ष
इलावृत्त जिसके मध्य में मेरु पर्वत है वह इलावृत्तवर्ष
रम्य नीलांचल से लगा रम्यवर्ष
हिरण्वान उत्तरावर्ती श्वेतवर्ष
कुरु जो शृंगवान पर्वत के उत्तर में है, वह कुरुवर्ष
भद्राश्व जो मेरु पर्वत के पूर्व में है, भद्राश्ववर्ष
केतुमाल गन्धमादनवर्ष

द्वीपों का वर्णन[संपादित करें]

भारतवर्ष को छोड़कर प्रत्येक वर्ष में सुख की बाहुल्यता है, बिना किसी यत्न के, स्वभाव से ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जातीं हैं। किसी प्रकार के विपर्यय यानि दुःख, अकाल मृत्यु, आदि) नहीं होते। जरा-मृत्यु आदि का भय नहीं है, धर्म आदि का भेद नहीं है, ना ही उत्तम, मध्यम या निम्न आदि का कोई भेद है। आठ में से किसी भी वर्ष में कोई युग परिवर्तन नहीं होता है।

भारत वर्ष के वंश[संपादित करें]

महात्मा नाभि के पास हिम वर्ष था, उनके मेरु देवी से एक अतिशय कांतिमान पुत्र हुआ, ऋषभदेव। ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए, जिनमेँ भरत सब से बड़े थे। वे राज रहते हुए भी वानप्रस्थ रूप में घोर तपस्या करते हुए रहते थे। वे इतने कृश हो गये थे, कि उनकी शिराएं दिखने लगीं थीं। अन्त में, अपने मुख में एक पत्थर की बटिया रखकर उन्होंने नग्नावस्था में महाप्रस्थान किया। तब उन्होंने यह राज्य भरत को दिया, जिन के नाम पर इस वर्ष का नाम भारत वर्ष पड़ा। उनके सुमति नामक पुत्र हुआ। सुमति के इन्द्रद्युम्न नामक पुत्र हुआ। उनसे परमेष्ठि, परमेष्ठि से प्रतिहार हुए। प्रतिहार के प्रतिहर्ता, उनके भव, उनके उद्गीथ, व उनके प्रस्ताव नामक पुत्र हुआ। प्रस्ताव के पृथु, उनके नक्त, उनके गय, उनके नर, उनके विराट नामक पुत्र हुआ। विराट के महावीर्य, उनके धीमान, उनके महान्त, व उनके मनस्यु नामक पुत्र हुआ। मनस्यु के त्वष्टा, उनके विरज, उनके रज, व उनके शतजित नामक सौ पुत्र हुए। इन सौ में वीश्वग्ज्योति प्रधान था। सौ पुत्रों से प्रजा भी अत्यधिक बढ़ गयी। तब उन्होंने भारत वर्ष को नौ भागों मेंविभक्त किया और उन भागों को इकहत्तर युग पर्यन्त भोगा।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]