भैरौंनाथ

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भैरौं या भैरौंनाथ एक प्रसिद्ध तांत्रिक हैं। इन्हें कई स्थानों पर अघोरी साधु के रूप में भी वर्णित किया गया है। भैरौंनाथ एक दानव कुल से थे और सतयुग में इनके पिता दुर्जय और पितामह दैत्यराज का वध भी माता वैष्णो देवी ने किया था।

भैरौं का उद्धार और उनकी पूजा करने के पीछे मान्यता[संपादित करें]

दिव्य कन्या की आज्ञा से श्रीधर ने गांव में भंडारा किया और पास के गांव में भी भोज का निमंत्रण दिया और साथ ही गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरौंनाथ के साथ अन्य शिष्यों को भी भोज का आमंत्रण दिया। भंडारे में माता ने दिव्य कन्या का रूप लिया और लोगों को उनके पसन्द के पकवान माता एक जादुई कड़छी बर्तन से परोसे। जब माता भैरौंनाथ के पास गई तो भैरौं ने खीर पूड़ी के स्थान पर मांस मदिरा खाने की बात कही। माता ने भैरौं को बहुत समझाया किन्तु वे नहीं माने। भैरौंनाथ ने कन्या रूपी मां का हाथ पकड़ लिया लेकिन माता ने अपना हाथ भैरौं के हाथ से छुड़वाया और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ी। भैरौं उनका पीछा करते हुए उस स्थान पर आ गए। भैरौं का युद्ध श्री हनुमान से हुआ जब वीर लंगूर निढाल होने लगे तो माता वैष्णो ने महाकाली के रूप में भैरौं का वध कर दिया। अपने वध के बाद भैरौंनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने माता से क्षमा मांगी तो माता ने उन्हें भी पूजित होने का वरदान दिया और अपने से भी ऊंचा स्थान दिया।

वर्तमान समय में ये स्थान[संपादित करें]

वैष्णो देवी कटरा में स्थित है। माता का भवन वह स्थान है जहां माता महाकाली (दाएं) , महालक्ष्मी (मध्य) और महासरस्वती (बाएं) विराजमान हैं और इसी स्थान पर माता वैष्णो देवी ने भैरौंनाथ का वध किया था। जिस स्थान पर भैरौं का शीश गिरा वह स्थान भैरौं का शीश गिरा वह स्थान भैरौंनाथ के मंदिर के नाम से विख्यात है और यह मंदिर माता वैष्णो देवी के भवन से तीन किलोमीटर दूर है। आज श्रीधर की कुटिया को उनका मंदिर बनाया गया है और उनके पूर्वज माता की पूजा करते हैं।

भैरौं (भैरौंनाथ) बाबा का मंदिर

भैरौं या भैरौंनाथ एक प्रसिद्ध तांत्रिक हैं कई जगह पर अघोरी साधु के रूप में वर्णित भैरौंनाथ असल में एक दैत्य कुल से थे सतयुग में इनके पूर्वज दैत्यराज तथा इनके पिता दुर्जय का संहार भी माता वैष्णो देवी ने किया था। शिवावतार गोरखनाथ भैरौंनाथ के गुरु थे। गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येन्द्रनाथ था। बाबा भैरौंनाथ का मुख्य अस्त्र तलवार है। भैरौंनाथ का वध वैष्णो देवी ने जिस जगह पर किया था वह जगह भवन के नाम से प्रसिद्ध है यहाँ देवी महाकाली(दाएं) , देवी महालक्ष्मी(मध्य) और देवी महासरस्वती (बांए) विराजमान हैं। भैरौंनाथ का वध करने के बाद उनका शीश ३किमी दूर जाकर गिरा उस जगह को भैरौंनाथ मंदिर और भैरौं घाटी कहतें हैं । मरते हुए जब भैरौंनाथ अपनी भूल का अहसास हुआ था और जब माँ से क्षमा याचना की तब माँ ने उन्हें वरदान दिया कि उनकी भी पूजा होगी और जन्म मृत्यु के चक्र से भैरौंनाथ को मुक्ति दिलाई माँ ने कहा था "कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं होंगे जब तक कोई मेरे बाद तुम्हारे के दर्शन नहीं करेगा"। माँ वैष्णों देवी के भवन से भैरौंनाथ बाबा का मंदिर ३किमी दूर है। भैरौंनाथ को मांस मदिरा आत्याधिक संख्या में चढ़ती है किन्तु अब बलि की जगह अधिक संख्या में नारियल फोड़े जाते हैं | मदिरा चढाने की परंपरा अभी तक ख़तम नहीं हुई उज्जैन के एक भैरौंनाथ मंदिर में मदिरा को गिलास में निकालकर बाबा को पिलाई जाती है वहां के पुजारियों का मानना है कि साक्षात् बाबा भैरौंनाथ मदिरा पिने आतें हैं | कहतें हैं की यदि भैरौंनाथ को कोई मदिरा का भोग लगाकर किसी गरीब को पिलाये तो भैरौंनाथ जी की कृपा भी उस पर सदैव बनी रहती है यदि माँ वैष्णों देवी को प्रसन्न करना हो तो बाबा भैरौंनाथ को प्रसन्न करना आवश्यक है और भैरौंनाथ बाबा को प्रसन्न करना हो तो माँ वैष्णों देवी को प्रसन्न करना आवश्यक है | बाबा भैरौंनाथ की चार भुजाएँ हैं जिनमें तलवार , मदिरा और मांस रहता है चौथा हाथ अभय मुद्रा में रहता है | वैष्णव देवी की तरह ही उत्तर भारत मे एक और प्रसिद्ध सिद्धपीठ है माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर। इसकी गिनती शक्तिपीठों मे भी होती है। यहाँ पर भी भैरौंनाथ जी का मंदिर है जिसमे प्रथम दर्शन अनिवार्य है क्योंकि यहाँ पर भी माता रानी ने भैरौंनाथ जी को प्रथम पूजा का वरदान दिया था काफी लोग भैरौंनाथ और शिवावतार भैरव को एक मान लेते हैं जबकि शाकम्भरी देवी सिद्धपीठ मे जो भैरव है वो कालभैरव के अवतार है। नवरात्रि में भैरौंनाथ के रूप में एक लड़के की आवश्यकता होती है। तांत्रिक और अघोरी साधु बाबा भैरौंनाथ को अपना गुरु मानतें हैं।