भूमि अधिग्रहण अधिनियम, १८९४

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भूमि अधिग्रहण अधिनियम, १८९४(अंग्रेज़ी: The Land Acquisition Act of 1894) भारत और पाकिस्तान दोनों का एक कानून है, जिसका उपयोग करके सरकारें निजी भूमि का अधिग्रहण कर सकतीं हैं। इसके लिये सरकार द्वारा भूमि मालिकों को क्षतिपूर्ति (मुआवजा) देना आवश्यक है। यह मुआवजा राशि भूमि के सर्कल रेट पर निर्भर करता है।

परिचय[संपादित करें]

भूमि अधिग्रहण को सरकार की एक ऐसी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके द्वारा यह भूमि के स्‍वामियों से भूमि का अधिग्रहण करती है, ताकि किसी सार्वजनिक प्रयोजन या किसी कंपनी के लिए इसका उपयोग किया जा सके। यह अधिग्रहण स्‍वामियों को मुआवज़े के भुगतान या भूमि में रुचि रखने वाले व्‍यक्तियों के भुगतान के अधीन होता है। आमतौर पर सरकार द्वारा भूमि का अधिग्रहण अनिवार्य प्रकार का नहीं होता है,ना ही भूमि के बंटवारे के अनिच्‍छुक स्‍वामी पर ध्‍यान दिए बिना ऐसा किया जाता है।

संपत्ति की मांग और अधिग्रहण समवर्ती सूची में आता है, जिसका अर्थ है केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें इस मामले में कानून बना सकती हैं। ऐसे अनेक स्‍थानीय और विशिष्‍ट कानून है, जो अपने अधीन भूमि के अधिग्रहण प्रदान करते हैं, किन्‍तु भूमि के अधिग्रहण से संबंधित मुख्‍य कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 है।

यह अधिनियम सरकार को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए भूमि के अधिग्रहण का प्राधिकरण प्रदान करता है- जैसे कि योजनाबद्ध विकास, शहर या ग्रामीण योजना के लिए प्रावधान, गरीबों या भूमिहीनों के लिए आवासीय प्रयोजन हेतु प्रावधान या किसी शिक्षा, आवास या स्‍वास्‍थ्‍य योजना के लिए सरकार को भूमि की आवश्‍यकता। इससे उपयुक्‍त मूल्‍य पर भूमि के अधिग्रहण में रूकावट आती है, जिससे लागत में विपरीत प्रभाव पड़ता है।

इसे सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए शहरी भूमि के पर्याप्‍त भण्‍डार के निर्माण हेतु लागू किया गया था, जैसे कि कम आय वाले आवास, सड़कों को चौड़ा बनाना, उद्यानों तथा अन्‍य सुविधाओं का विकास। इस भूमि को प्रारूपिक तौर पर सरकार द्वारा बाजार मूल्‍य के अनुसार भूमि के स्‍वामियों को मुआवज़े के भुगतान के माध्‍यम से अधिग्रहण किया जाता है।

इस अधिनियम का उद्देश्‍य सार्वजनिक प्रयोजनों तथा उन कंपनियों के लिए भूमि के अधिग्रहण से संबंधित कानूनों को संशोधित करना है। साथ ही उस मुआवज़े का निर्धारण करना भी है, जो भूमि अधिग्रहण के मामलों में करने की आवश्‍यकता होती है। इसे लागू करने से बताया जाता है कि, अभिव्‍यक्‍त भूमि में वे लाभ शामिल हैं जो भूमि से उत्‍पन्‍न होते हैं और वे वस्‍तुएं जो मिट्टी के साथ जुड़ी हुई हैं या भूमि पर मजबूती से स्‍थायी रूप से जुड़ी हुई हैं।

इसके अलावा यदि लिए गए मुआवज़े को किसी विरोध के तहत दिया गया है, बजाए इसके कि इसे प्राप्‍त करने वाले को इसके प्रभावी होने के अनुसार पाने की पात्रता है, तो मामले को मुआवज़े की अपेक्षित राशि के निर्धारण हेतु न्‍यायालय में भेजा जाता है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को प्रशासित करने वाली नोडल संघ सरकार होने के नाते समय समय पर कथित अधिनियम के विभिन्‍न प्रावधानों के संशोधन हेतु प्रस्‍तावों का प्रसंसाधन करता है।

पुन: इस अधिनियम में सार्वजनिक प्रस्‍तावों को भी विनिर्दिष्‍ट किया जाता है, जो राज्‍य की ओर से भूमि के इस अधिग्रहण के लिए प्राधिकृत हैं। इसमें कलेक्‍टर, उपायुक्‍त तथा अन्‍य कोई अधिकारी शामिल हैं, जिन्‍हें कानून के प्राधिकार के तहत उपयुक्‍त सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्‍त किया जाता है। कलेक्‍टर द्वारा घोषणा तैयार की जाती है और इसकी प्रतियां प्रशासनिक विभागों तथा अन्‍य सभी संबंधित पक्षकारों को भेजी जाती है। तब इस घोषणा की आवश्‍यकता इसी रूप में जारी अधिसूचना के मामले में प्रकाशित की जाती है। कलेक्‍टर द्वारा अधिनिर्णय जारी किए जाते हैं, जिसमें कोई आपत्ति दर्ज कराने के लिए कम से कम 15 दिन का समय दिया जाता है।

सभी राज्‍य विधायी प्रस्‍तावों में संपत्ति के अधिग्रहण या मांग के विषय पर कोई अधिनियम या अन्‍य कोई राज्‍य विधान, जिसका प्रभाव भूमि के अधिग्रहण और मांग पर है, में शामिल हैं, इनकी जांच राष्‍ट्रपति की स्‍वीकृति पाने के प्रयोजन हेतु धारा 200 (विधयेक के मामले में) या संविधान की धारा 213 (1) के प्रावधान के तहत भूमि संसाधन विभाग द्वारा की जाती है। इस प्रभाग द्वारा समवर्ती होने के प्रयोजन हेतु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में संशोधन के लिए राज्‍य सरकारों के सभी प्रस्‍तावों की जांच भी की जाती है, जैसा कि संविधान की धारा 254 की उपधारा (2) के अधीन आवश्‍यक है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

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