भावप्रकाश (भक्ति ग्रन्थ)

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भावप्रकाश ब्रजभाषा गद्य में रचित भक्ति सम्बन्धी एक टिप्पण ग्रन्थ है जिसके रचयिता हरिराय माने जाते हैं। इसकी रचना उन्होंने चौरासी वैष्णवन की वार्ता तथा 'दो सौ बावन की वार्ता' के गूढ़ भावों को स्पष्ट करने के लिए की है। हरिरायजी ने कई बार यात्राएँ कर पुष्टि सम्प्रदाय का व्यापक प्रचार किया था। उन्होंने 'वार्ताओं' में वर्णित भक्तों के जीवन-वृत्तान्त का विशेष रुप से खोज कर उनको विशेष सूचना के साथ अपने 'भावप्रकाश' में प्रकट किया है।

'भावप्रकाश' द्वारा हिन्दी में भाषा पुस्तकों पर टीकाएँ लिखने की नवीन पद्धति का प्रचार हुआ। सम्भवतः इसी के अनुसरण पर नाभाजी के 'भक्तमाल' पर संवत् १७८० में प्रियादास ने पद्यात्मक टीका लिखी थी। इसके बाद केशव, बिहारी आदि हिन्दी के कितने ही कवियों की पुस्तकों पर गद्य- पद्यात्मक टीकाएँ लिखी गईं। इन टीकाओं के देखने से स्पष्ट ज्ञान होता है कि "भावप्रकाश' में जैसी पुष्ट गद्य-शैली का प्रयोग हुआ है, वैसी बाद की टीकाओं में नहीं देखी गई।

भावप्रकाश की भाषा

भावप्रकाश की भाषा की एक बानगी देखिए-

सो सूरदासजी दिल्ली के पास चारि कोस उरे में एक सीही ग्राम है, जहाँ राजा परीक्षित के बेटा जनमेजय ने सर्प यज्ञ कियौ है, सो ता गांम में एक सारस्वत ब्राह्मण के यहाँ प्रकटे।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]